AMAN SINHA

Drama Tragedy

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AMAN SINHA

Drama Tragedy

मुझे माफ मत करना

मुझे माफ मत करना

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आज टी वी पर एक प्रचार देखा। प्रचार रक्षा बंधन पर आधारित था। वैसे तो मैं खुद को काफी मज़बुत और भाव विहिन मानता हूँ मगर जाने क्यूंं इस प्रचार से मेरा दिल भर अया। मेरे आंखोंं से अनयास हीं आंसू छलक गये। ना जाने क्युंं मेरा अपने भावनाओं से काबु हट गया। बीते कई सालों से मेरा अपने बडी बहनो से कोई सीधा सम्पर्क या बात-चीत नही रही। मैं अपने भाई बहनों मे सबसे छोटा था। मुझसे बडे दो भाई और उनसे बडी दो बहनेंं थीं । अपने सबसे बडी बहन और मेरे उमर के बीच का अन्तर लगभग १२-१४ साल के बीच का था।

तो जब तक मैंने अपना होश सम्हाला मेरे दोनो बडी बहनों की शादी हो चुकी थी। बचपन मे मुझे तो अपनी मां और दोनो दिदि के बीच अंतर ही समझ नही आता था। इस बात को मैं तब समझा जब मेरे बडी दिदि ने उसके बच्चे को जन्म दिया। उसके बडे लडके और मुझमे सिर्फ पांच साल का अंतर था। मेरे छोटी दिदि के बेटे और मुझमे सीर्फ १० साल का। तो उन दोनो के लिये ही मैं उनके पहले बच्चे जैसा था। मेरे सभी भाई बहने ने मुझे ढेर सारा प्यार दिया था। पहले जब राखी आती थी तो मेरी दोनो दिदियां दो दिन पहले ही अपने ससुराल से चली आती थी राखी के पहले वाली रात हमारे लिये बहुत खास होती थी। हम पांचो भाई बहन मिलकर उस रात से ही मस्ती करने लगते थे। हंसी-मजाक का ऐसा माहौल बनता था की मां की रात के नींद खराब हो जाती थी। दिदि मेहंदी लगाती, राखी तैयार करती और ढेर सारी तैयारी करती और हम सब भाई बस उनको परेशान लरने मे लगे रहते थे। बरा खुशी भरा माहौल हुआ करता था लेकिन फिर हम सबकी उमर बढती चली गई और अपस का प्यार कब करवाहट मे बदल गया पता ही नही चला। पारिवारीक मामले अक्सर अपसी रिश्तों का बलिदान करवा देते है। मुझे याद है साल २००१ के बाद आज तक मेरे हाँथों मे राखी नही बंधी आज लगभग बीस साल हो चुके है इस बात को आज मेरे खुद के दो बच्चे है एक लडका और एक लडकी जब वो इस पर्व को मनाते है तो मुझे भी अपना बचपन याद आ जाता है।

आज के पहले मैने कभी ऐसा दर्द तो नही महसुस किया था मगर आज उस प्रचार को देखकर मेरे अंदर का दर्द जाग उठा मुझे कई दिनों के बाद मेरे बहनों की याद आयी और ऐसी याद आयी की आज मेरे आंसू रुकने का नाम ही नही ले रहे। ऐसा लग रहा है जैसे वर्षों पहले खोए किसी किमती समान का डर और अफसोस एक साथ दिल मे उठा हो । आज मैं तुम दोनो को बहुत याद कर रहा हूँ या युं कहूँ कि तुम दोनो आज मुझे बहुत याद आ रहे हो। शयद मैं तुमको कभी ये बता नही पाउंगा मेरा ज़िद मेरा अहम मुझे ये तुमसे कहने ही नही देगा मगर तुम लोगोंं से ना मिलकर मैं भी यहां खुश तो नही हूँ। आज तक मैंने खुद को भी इसी धोके मे रक्खा था की मैं टुटूंगा नही मगर आज मैं टूट चुका हूँ आज मेरी सुनी कलाई मुझी बार-बार धिकारती है और तुम लोगो से मिलकर माफी मांगने को कहती है। मगर अब देर हो चुकी है उन दिनों को और उस प्यार को अब शयद ही हममे मे से कोई वापस ला सकेगा। पर एक विनती है की तुम दोनो कभी मुझी माफ मत करना बिल्कुल नही करना। तुम लोग मुझे जी भर कर श्राप दो, उलाहने दो, कोसो मगर माफ मत करना क्युंकी मैं चैन से मरना नही चहता। चैन से मरने वाले की अंतीम यात्रा सुखद होती है और मैं इस सुखद यात्रा का पात्र तो बिल्कुल नही हूँं। मुझे मुक्ती नही चहिये अपने किये का फल लेकर ही मरना चहता हूँ। यही मेरी सजा है की मेरी कलाई सूनी थी, है और रहेगी। भगवान से मेरी प्रार्थना है की मुझे मौत भी राखी वाले दिन ही आये तो अच्छा है।  


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