Priyanka Gupta

Abstract Inspirational Others

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Priyanka Gupta

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मुझे किरायेदार बनकर नहीं रहना

मुझे किरायेदार बनकर नहीं रहना

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सूरज की किरणें अनुभूति के चेहरे पर अठखेलियाँ कर रही थी। अनुभूति ने एक नज़र पास ही सो रहे अपने 5 वर्षीय बेटे शिवम् पर डाली। शिवम् एकदम निश्चिंत होकर सो रहा था, अनुभूति ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और सूरज की किरणों से बचने के लिए मुँह पर चादर डालकर दोबारा सोने की कोशिश की। वैसे भी कई वर्षों के बाद अनुभूति को आज सुकून की नींद नसीब हुई थी। थोड़ी देर बिस्तर पर अनुभूति करवटें बदलती रही, लेकिन उसे दोबारा नींद नहीं आयी। सूरज उसकी नींद में खलल डाल ही गया था, अब सूरज को कहाँ पता था कि अनुभूति लम्बे समय बाद सुकून से सो पायी है। सूरज वाकई में एक स्थितप्रज्ञ है, कैसी भी स्थिति हो, वह उदय होना कभी नहीं छोड़ता। सूरज के शब्दकोष में शायद निराशा ,असंभव जैसे शब्द हैं ही नहीं। 

अनुभूति बिस्तर से उठ गयी थी। अनुभूति ने शहर के बाहरी इलाके में किराए से यह घर लिया था। बड़ी मुश्किल से उसे यह घर मिला था, वैसे भी अकेली बच्चे वाली महिला के लिए आज भी किराये पर घर ढूंढना बहुत मुश्किल है। अपनी बजटीय सीमाओं के कारण वह एक स्वतंत्र फ्लैट किराए पर नहीं ले सकती थी। मकान मालिक 50 तरीके के सवाल पूछते हैं। संचित तो उसे एकदम से छोड़कर चला गया था। संचित से उसे कोई शिकायत भी नहीं थी, लिव इन में रहना उन दोनों का ही निर्णय था। अनुभूति ने अपनी मम्मी को शादी में तिल -तिल मरते हुए देखा था, उसे शादी के नाम से नफरत सी हो गयी थी। शादी का मतलब उसे एक स्त्री के लिए गुलामी से ज्यादा कुछ नहीं लगता था। वह कई बार सोचती थी कि ,"मम्मी ,इतना सब कुछ कैसे सहन कर लेती है।"


संचित के साथ अच्छा वक़्त कट रहा था, इसी बीच अनुभूति गर्भवती हुई। संचित ने उसे एबॉर्शन करवाने के लिए कहा, लेकिन अनुभूति ने इंकार कर दिया। संचित ने बच्चे की जिम्मेदारी उठाने से पूरी तरीके से इंकार कर दिया और हमेशा -हमेशा के लिए उसकी ज़िन्दगी से चला गया। लिव इन में रहने के कारण, अनुभूति के घरवालों ने पहले ही उससे सारे रिश्ते तोड़ लिए थे। लिव इन में रहने का निर्णय अनुभूति के खुद का था तो उसके परिणाम को सहने के लिए वह मानसिक रूप से तैयार थी। शिवम् को जन्म देने का निर्णय भी उसका खुद ही का था तो इसके लिए भी उसने अपने आपको तैयार कर लिया था। अपनी मम्मी की असमर्थता और गुलामी देखकर, अनुभूति ने अपने लिए हमेशा स्वतंत्रता को चुना था। अनुभूति अच्छे से जानती थी कि ,"कोई भी स्वतंत्रता कभी भी मुफ्त में नहीं मिलती। उसके लिए कोई न कोई कीमत चुकानी पड़ती है। "

संचित के जाने के बाद अनुभूति के लिए आर्थिक समस्याएं भी बढ़ गयी थी। उसने सबसे पहले अपने लिए एक घर तलाशना शुरू किया। शहर के बाहरी इलाके में मंजू आंटी का घर उसे मिल गया था। मंजू आंटी ने ज्यादा कुछ सवाल -जवाब किये बिना उसे घर किराए पर दे दिया गया था। आंटी स्वयं नीचे रहती थी, ऊपर उन्होंने एक कमरा और कमरे के बाहर टिन लगाकर एक छोटी सी स्लैब लगवा दी थी, जिसे किचन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता था। कमरे के पास ही एक बाथरूम बना हुआ था। अनुभूति को खुला -खुला घर पसंद आया था। 

मंजू आंटी माँ नहीं बन सकती थी, इसीलिए उनके पति ने उन्हें छोड़कर दूसरा विवाह कर लिया था। अपने आत्मसम्मान की कीमत पर उन्होंने अपने पति के घर में रहना स्वीकार नहीं किया और पति क घर ही नहीं, वह शहर भी छोड़ दिया। इस शहर में आकर उन्होंने एक दुकान पर नौकरी करना शुरू किया। अनुभव बढ़ने के साथ आंटी आज स्वयं एक मॉल में मैनेजर बन गयी थी। आंटी ने अपने खुद क घर बना लिया।

आंटी अक्सर कहती कि ,"शादी से एक घर मिल तो जाता है, लेकिन वह भी खुद का कहाँ होता है ?हम उसमें एक किरायेदार ही तो होते हैं। बच्चे पैदा करो, सबकी सेवा करो, अपना हाड़ तोड़ -तोड़कर के किराया देते हैं और अगर किराया नहीं चुकाते तो तुरंत घर से बेघर कर दिए जाते हैं। अब यह मेरा घर है, जिससे मुझे कोई नहीं निकाल सकता।"

शायद इसीलिए आंटी ने बिना कोई सवाल किये अनुभूति को अपने घर किरायेदार के रूप में रख लिए था। किसी न सही कहा है कि महिला कोई भी हो, किसी भी वर्ग की हो सबकी पीड़ा एक सी ही होती है। आंटी ने अनुभूति को हर तरीके से मदद की। अनुभूति ने जब शिवम् को जन्म दिया, तब आंटी ने ही उसे सम्हाला। छोटे शिवम् के साथ अनुभूति ने घर -घर जाकर प्लास्टिक की बोतल ,मग,सर्फ आदि बेचे।उसने हॉकर का काम भी करना शुरू कर दिया। शिवम् के थोड़ा बड़े होने पर अनुभूति ने फ़ूड डिलीवरी का काम शुरू कर दिया था। इसी बीच राज्य सरकार की तरफ से इंस्पेक्टर के पद की भर्तियाँ निकाली गयी। मंजू आंटी के कहने पर अनुभूति ने फॉर्म भर दिया। फॉर्म भरने के बाद उसने तैयारी करना शुरू किया।

आंटी ने सुझाव दिया कि, "जब तक तुम तैयारी कर रही हो, तब तक मुझे किराया मत देना। जैसे ही तुम्हारा चयन हो जाए, तुम पिछला बकाया किराया भी चुका देना।"

"अगर चयन नहीं हुआ तो ?" अनुभूति ने कहा। 

"क्यों नहीं होगा ? मेहनत करोगी तो जरूर होगा। ",मंजू आंटी ने कहा। 

अनुभूति ने तैयारी में दिन -रात एक कर दिए थे। इंस्पेक्टर बनने के ख़्वाब ने उसे एक भी दिन चैन से सोने नहीं दिया था। किराए के पैसे से उसने तैयारी के लिए किताबें खरीदी। तैयारी के दौरान वह मुश्किल से 4 घंटे सोती थी। उसकी मेहनत का फल उसे मिला भी और वह इंस्पेक्टर के पद पर चयनित हो गयी थी।कल ही तो उसका नियुक्ति पत्र उसके हाथों में आया था।

सुबह के नित्यकर्म से फारिग होकर, अनुभूति एक बार फिर कमरे में आयी और शिवम् को प्यार भरी नज़रों से निहारा और कहा ," आज के बाद कोई भी शिवम् की मम्मी के निर्णयों पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाएगा। शिवम् को हमेशा ही अपनी मम्मी पर गर्व होगा। "

"अरे अनुभूति ,ये दो प्रेस रिपोर्टर तेरा इंटरव्यू लेने आये हैं। ",मंजू आंटी ने सीढ़ियों पर से आवाज़ लगाई। 

"अपनी सफलता का थोड़ा सा श्रेय मुझे भी दे देना। ",सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आती अनुभूति को देखकर मंजू आंटी ने कहा। 

"आंटी ,पूरा श्रेय ही आपको है। मुझे भी किरायेदार बनकर नहीं रहना था यह आपसे ही सीखा। ",अनुभूति ने आंटी के गले लगते हुए कहा। 

"नहीं बेटा, मज़ाक कर रही थी। यह तेरी मेहनत का परिणाम है। तूने लोगों के फेंके हुए पत्थरों से अपनी सफलता की नयी इमारत बना दी। मुझे तुझ पर गर्व है। तू हर उस महिला के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो दुनिया के दकियानूसी कायदों पर नहीं बल्कि अपनी शर्तों पर जीना चाहती है। ",मंजू आंटी ने कहा। 

"जी आंटी, मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं।" अनुभूति ऐसा कहकर पत्रकारों की तरफ बढ़ गयी थी। 


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