Anita Sharma

Tragedy Classics Inspirational

4  

Anita Sharma

Tragedy Classics Inspirational

मृत्युभोज

मृत्युभोज

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"लाओ इधर लाओ बेटा ये दाल के भजिये दीदी की प्लेट में रखो, खाइये दीदी इन्हे जरूर खाइये आप। आप तो जानती है कि पापा को ये कितने पसन्द थे खास इसीलिये बनवाये है। आप देखिये दीदी प्लेट में उनकी पसंद की हर चीज है कुछ नहीं छोड़ा मैने। ये पूरी तो शुद्ध घी से बनवाई है। आपतो जानती है उन्हे बहुत अच्छी लगती थी न घी की खुशबू"! 

दिव्या की प्लेट में उसकी बुआ का बेटा रवि अपने पापा की तेरहवीं का खाना खुद खड़े होकर परसवा रहा था और उसके सामने अपनी सेखी बघारते हुये ये जताना चाहता था कि उसने अपने पापा की पसन्द का कितना ख्याल रखा है। 

पर दिव्या के गले से तो जैसे एक निवाला भी नहीं निगला जा रहा था। इसलिए रवि के इधर उधर होते ही उसने एक लड़के को बुला अपनी प्लेट का खाना कम करवाया और हाथ जोड़ फूफाजी के नाम के दो निवाले खाकर वहाँ से उठकर अंदर आ गई। जहाँ फूफाजी की बहू आने जाने वाले लोगों के सामने आँसू बहा उनके जाने का दुख जता रहीं थी। 

दिव्या जानती थी कि ये उनके मगरमच्छि आँसू है, उसे ये सब देखकर अंदर ही अंदर घुटन होने लगी थी इसलिये उसने वहा रुकना मुनासिब न समझा और उसका घर भी तो इसी शहर में था तो वो सभी से बिदा लेकर अपने घर आ गई। पर उसके मन में शान्ति न थी उसको रह-रह कर अपने फूफा जी का खाने पीने की चीजों के लिये तरसता चेहरा याद आ रहा था। 

खूब मेहनत से पैसे कमाने बाले उसके फूफा जी

 खाने पीने के बहुत शौकीन थे। बुआ हमेशा उनकी पसन्द को ध्यान में रखकर ही खाना बनाती थी। उन्हे अपनी खाने की थाली में विभिन्न प्रकार की चटनियाँ जरूर चाहिये होती। जब भी फूफा जी बुआ के साथ उनके मायके जाते तो माँ भी छत्तिस प्रकार के व्यंजन बनाती और दिव्या उन्हे खूब परस-परस कर खिलाती। फूफा जी भी उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करते।उनका बेटा रवि भी अपनी माँ के खाने को बड़े चाव से खाता। उसे आदत जो हो गई थी अच्छा अच्छा खाना खाने की। 

फिर उनका बेटा बड़ा हो गया और उसकी शादी हो गई।दिव्या की शादी भी वही हो गई जिस शहर में उसकी बुआ की ससुराल थी। इस बीच बुआ को केंसर हो गया फूफा जी ने बहुत कोशिश की उन्हे बचाने की। पैसा पानी की तरह बहाया पर वो उन्हे अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। अब फूफा जी अपने बेटे और बहू के साथ रहते।और उन्ही पर आश्रित हो गये क्योंकि फूफाजी की जीवन भर की बचत बुआ के इलाज में खर्च हो गई थी। 

हमेशा अपनी पसन्द का खाना खाने वाले फूफाजी को अब बमुश्किल दाल रोटी सब्जी मिलती। फूफाजी ने समय के हिसाब से खुद को पूरी तरह बदल लिया था। पर अगर गलती से भी वो किसी चीज को खाने की इक्षा जाहिर करते तो बदले में दस बातें ही मिलती उन्हे सुनने को। 

पहले दिव्या उन्हे अपने घर बुला लेती रहने को तो रवि कहता...."दीदी आप तो ऐसे करती है जैसे मैं अपने पापा का ख्याल नहीं रख सकता। आप यूँ बार- बार उन्हे अपने पास न बुलाया करें समाज में मेरी इज्जत खराब होती है।"

बेटे की बात सुनकर उन्होंने दिव्या के घर आना बंद कर दिया।फिर उम्र बढ़ने की वजह से कुछ दिनों से उनकी तबियत खराब रहने लगी। तो जब दिव्या उनसे मिलने गई तो उन्होंने भाभी से छुपकर दिव्या से भजिये खाने की इक्षा जाहिर की। तो दिव्या दूसरे दिन ही उनके पसन्द की अमरूद की चटनी के साथ भजिये लेकर गई । 

फूफाजी ने खुश होकर बड़े चाव से भजिये के ऊपर चटनी लगाई और मुँह में डालने वाले थे कि भाभी की आवाज सुनाई दी..... 

" क्या दीदी आप पापाजी के लिये ये तेल मसाले वाली चीजे क्यों लेकर आती है ? आप तो खिलाकर चली जाती है। फिर इनका पेट खराब हो जाता है। तो डॉक्टरों के चक्कर हमें लगाने पड़ते है। आप को क्या खिलाओ और निकल लो।"

बहू की बात सुनकर फूफा जी ने मुँह तक गया निवाला वापिस रखकर हाथ जोड़ लिये। और डबडबाई आँखें लेकर मुँह फेर लिया जैसे सारी तकलीफ अकेले ही पीना चाहते हो। फिर दिव्या की बहुत कोशिशों के बाद भी उन्होंने एक टुकड़ा भी नहीं खाया था। 

जब ये बात दिव्या ने रवि को बताई तो वो भी अपनी बीबी का पक्ष लेकर बोले.... 

" क्या गलत बोला उसने वो नौकरी करती है। मैं भी घर पर नहीं रहता कुछ उल्टा सीधा खाने से उनकी तबियत बिगड़ती है तो हमें कितनी तकलीफ होती है। हम ऑफिस देखे कि डॉक्टरों के चक्कर लगाते रहें।"

अब दिव्या की सहन शक्ति खत्म हो गई थी। तो उसने आव देखा न ताव और अपने पति की मदद से ये बोलकर फूफा जी को अपने साथ अपने घर ले आई कि.... 

" जब तुम लोगों से उनकी सेवा नहीं होती तो मैं उन्हे अपने घर ले जा रहीं हूँ।अब तुम्हे अपने समाज को जो बताना हो वो बताना। हाँ अगर तुमने उन्हे मुझे नहीं ले जाने दिया तो मैं जरूर सभी को तुम्हारा कच्चा चिठ्ठा बता दूँगी। "

उसके बाद आखरी सांस तक फूफा जी उसके पास ही रहे। पर हमेशा थोड़ा उदास रहते शायद उन्हे अपने बेटे बहू का इंतजार रहता। पर वो कभी नहीं आये। आये तो जब,जब दिव्या ने उनकी आखरी चंद सांसो के पहले रवि को फोन किया। 

रवि को देखते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गये और रवि उनके पार्थिव शरीर को अपने घर ले आया क्योंकि शास्त्रों के अनुसार बेटे के द्वारा ही अपने पिता का अंतिम संस्कार हो तभी उन्हे मोक्ष प्राप्त होता है। 

और आज फूफाजी के मृत्यु भोज में उनकी पसंद की सारी चीजें बनवा कर रवि यूँ जता रहा था जैसे वो उनका कितना ख्याल रखता था। 

फूफा जी के जाने से दिव्या का मन दुखी तो था पर ये संतोष भी था कि उसने उनके आखरी दिनों में उनकी सेवा की और उनकी पसंद न पसंद का ख्याल रखा। 

साथ में उसके मन में एक सवाल भी था कि जब जीते जी फूफा जी को जिन्होंने कुछ खाने न दिया हो क्या मरने के बाद वो अपने बेटे के यहाँ बने अपने पसंद के पकवांन खाने आये होंगे। 

हो सकता शायद अपने बेटे का यूँ प्यार देखकर उनकी दुखी आत्मा को शांति मिली होगी। पर दिव्या रवि को माफ नहीं कर पाई थी। इसलिये उसने उससे अपने सारे रिश्ते खत्म कर लिये थे। 


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