मॉर्फीन - 6
मॉर्फीन - 6


लेखक: मिखाइल बुल्गाकाव
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
८ अप्रैल १९१७.
यह पीड़ादायक है.
९ अप्रैल.
बसंत भयानक है.
बोतल में शैतान है. कोकीन – बोतल में शैतान.
उसकी प्रतिक्रिया इस तरह होती है:
दो प्रतिशत वाले घोल के एक ही इंजेक्शन से लगभग पल भर में ही शान्ति की स्थिति आ जाती है, जो फ़ौरन ही उत्साह में परिवर्तित हो जाती है. ये सिर्फ एक, दो मिनट तक ही रहता है. और फिर सब कुछ बिना कोई निशान छोड़े गायब हो जाता है, जैसे कभी था ही नहीं. फिर आता है दर्द, खौफ़, अन्धेरा. बसंत गरज रहा है, काले पंछी एक से दूसरी नंगी डालों पर उड रहे हैं, और दूर जंगल टूटे और काले ब्रश की तरह आसमान की ओर खिंचा जा रहा है, और उसके पीछे जल रहा है, एक चौथाई आकाश को अपनी गिरफ़्त में लेकर बसंत का सूर्यास्त.
मैं अपने डॉक्टर वाले क्वार्टर के इकलौते खाली बड़े कमरे में चहलकदमी कर रहा हूँ, तिरछे, दरवाज़े से खिड़की तक, खिड़की से दरवाज़े तक. ऐसे कितने चक्कर लगा सकता हूँ मैं? पंद्रह या सोलह – उससे ज़्यादा नहीं. और उसके बाद मुझे मुड़कर शयनकक्ष में जाना पड़ता है. बैंडेज वाले कपडे पर बोतल की बगल में सिरिंज पडी थी. मैं उसे उठाता हूँ, और असावधानी से सुईयां चुभोये गए नितम्ब पर आयोडीन मलता हूँ, सुई त्वचा में घुसाता हूँ.
ज़रा भी दर्द नहीं है. ओ, इसके विपरीत: मुझे उल्लासोन्माद का पूर्वाभास होता है, जो अभी प्रकट होगा. और, वो आ रहा है. मैं इस बारे में जान जाता हूँ, क्योंकि हार्मोनियम की आवाजें, जो बसंत के आगमन से खुश होकर पोर्च में चौकीदार व्लास बजा रहा है, सुनाई दे रही हैं. हार्मोनियम की भर्राई हुई, फटी-फटी आवाज़, कांच से चुपचाप उड़कर मेरे पास आती हुई, फरिश्तों की आवाजों में बदल जाती हैं, और फूली हुई धौंकनी में कर्कश आवाजें स्वर्गीय कोरस जैसी गूंजती हैं. मगर सिर्फ एक पल, और खून में कोकीन किसी रहस्यमय नियम के अनुसार, जो किसी औषधि विज्ञान में नहीं लिखा है, किसी नई चीज़ में बदल जाती है. मुझे मालूम है : यह शैतान का और मेरे खून का मिश्रण है. और पोर्च में व्लास चीख रहा है, और मैं उससे नफ़रत करता हूँ, और सूर्यास्त, बेचैनी से गरजते हुए, मेरे भीतरी अंगों को जला रहा है. और ऐसा लगातार कई बार होता है, शाम के दौरान, जब तक मैं ये नहीं समझता कि मुझे विषबाधा हो गई है.
दिल इस तरह खटखट करने लगता है, कि मैं उसे अपने हाथों में, कनपटियों में महसूस करता हूँ....और फिर वह एक खाई में गिर जाता है, और कुछ ऐसे पल आते हैं, जब मैं इस बात पर विचार करता हूँ, कि अब डॉक्टर पलिकोव ज़िंदगी में वापस नहीं लौटेगा...
१३ अप्रैल.
मैं – अभागा डॉक्टर पलिकोव, जो इस साल फरवरी से मोर्फिनिज्म से बीमार है, और, सबको आगाह करता हूँ, जिसके हिस्से में ऐसी किस्मत आये, जैसी मुझे मिली है, कभी भी मॉर्फिन के बदले कोकीन न लेना. कोकीन – सबसे खतरनाक और सबसे ज़्यादा घातक ज़हर है. कल आन्ना ने मुश्किल से कपूर से मुझे ठीक किया था, और आज मै – आधा मुर्दा हूँ...
६ मई १९१७.
काफी दिनों से मैंने अपनी डायरी को हाथ नहीं लगाया है. और अफसोस हो रहा है. असल में, ये डायरी नहीं है, बल्कि बीमारी का इतिहास है, और मेरे पास, ज़ाहिर है, दुनिया में अपने इकलौते दोस्त के प्रति व्यावसायिक आकर्षण है ( अगर मेरे दुखी और अक्सर रोते रहने वाले दोस्त आन्ना को न गिना जाए तो).
तो, अगर बीमारी के इतिहास पर नज़र डाली जाए, तो ऐसा है. मैं चौबीस घंटे में दो बार मॉर्फिन का इंजेक्शन लगाता हूँ. दिन में पाँच बजे (लंच के बाद) और रात के बारह बजे, सोने से पहले.
घोल तीन प्रतिशत वाला है: दो इंजेक्शन्स. मतलब, एक बार में – ०.०६ लेता हूँ.
बढ़िया है!
मेरे आरंभिक नोट्स कुछ उन्मादपूर्ण थे. कोई ख़ास भयानक बात नहीं है.
मेरी कार्यक्षमता पर इसका ज़रा सा भी असर नहीं होता है. बल्कि, पूरा दिन मैं पिछली रात को लिए गए इंजेक्शन की बदौलत गुजारता हूँ. मैं शानदार तरीके से ऑपरेशन्स करता हूँ, अपने नुस्खों के प्रति बेहद चौकस रहता हूँ और अपने डॉक्टरी लब्ज़ की कसम खाकर कहता हूँ, कि मेरे मोर्फिनिज्म से मेरे मरीजों को कोई नुक्सान नहीं पहुँचा है. उम्मीद करता हूँ कि आगे भी नहीं पहुँचेगा. मगर एक दूसरी ही बात मुझे परेशान करती है. मुझे हर पल ऐसा लगता है कि कोई न कोई मेरे गुनाह के बारे में जान जाएगा, और रिसेप्शन पर मेरी पीठ पर जमी अपने सहायक-कम्पाउण्डर की बेहद उत्सुक नज़र महसूस करना मुश्किल हो जाता है.
बकवास! वह अंदाज़ नहीं लगा सकता. कोई भी चीज़ मेरा भेद नहीं खोल सकती. आंखों की पुतलियाँ सिर्फ शाम को भेद खोल सकती हैं, और शाम को तो मैं उससे कभी भी नहीं टकराता.
हमारी डिस्पेंसरी में मॉर्फिन की भयानक कमी को मैंने कसबे में जाकर पूरा कर दिया.
मगर वहां भी मुझे कुछ अप्रिय क्षणों का सामना करना पडा. गोदाम के मैनेजर ने मेरा 'मांग-पत्र' लिया, जिसमें मैंने जानबूझ कर हर तरह की बकवास लिख दी थी, जैसे कैफीन, जो हमारे यहाँ जितनी चाहो मिल जायेगी, और बोला:
"४० ग्राम मॉर्फिन?"
और मुझे महसूस हो रहा था कि मैं आंखें चुरा रहा हूँ, स्कूली बच्चे की तरह. महसूस कर रहा था कि मेरा चेहरा लाल हो रहा है...
"हमारे पास इतनी मात्रा में नहीं है. दस ग्राम दूँगा."
और सचमुच, उसके पास नहीं है, मगर मुझे ऐसा लगता है कि वह मेरे भेद को जान गया है, कि वह आँखों से मुझे टटोल रहा है, भेद रहा है, और मैं परेशान हो रहा हूँ, तड़प रहा हूँ.
नहीं, पुतलियाँ, सिर्फ पुतलियाँ खतरनाक हैं, और इसलिए मैंने अपने आप के लिए एक नियम बना लिया:
शाम को लोगों से नहीं मिलना है. मॉर्फिन के लिहाज़ से, मेरे इस 'कोने' से ज़्यादा सुविधाजनक और कोई जगह नहीं मिल सकती, तो छः महीने से ऊपर हो गये, जब मैं किसी से भी नहीं मिलता, सिवाय अपने मरीजों के. और उन्हें मुझसे कोई लेना-देना नहीं है.
१८ मई.
ऊमस भरी रात है. तूफ़ान आयेगा. दूर, जंगल के उस पार, काला 'पेट' बढ रहा है और फूल रहा है.
पीली-सी, व्याकुल चमक आई. तूफ़ान आ रहा है.
मेरी आंखों के सामने किताब है, और उसमें मॉर्फिन से दूर रहने के उपाय के बारे में लिखा है:
"...बहुत घबराहट, बेचैनी भरी पीड़ा की स्थिति. चिडचिडाहट, याददाश्त कमजोर होना, कभी कभी मतिभ्रम और कुछ मात्रा में चेतना का धुंधला जाना..."
मतिभ्रम की स्थिति को तो मैंने महसूस नहीं किया, मगर बाकी के लक्षणों के बारे में मैं कह सकता हूँ:
ओह, कैसे नीरस, सरकारी, कुछ न कहने वाले शब्द हैं!
"पीड़ा की स्थिति"! ...
नहीं, मैं, जो इस भयानक बीमारी से ग्रस्त हूँ, डॉक्टर्स को आगाह करता हूँ, कि वे अपने मरीजों के प्रति ज़्यादा दया दिखाएं. यदि आप सिर्फ एक या दो घंटों के लिए उसे मॉर्फिन से वंचित रखते हैं, तो "पीडाजनक स्थिति" नहीं, बल्कि मौत धीमी गति से मोर्फिनिस्ट को दबोच लेती है. हवा संतोषजनक नहीं है, उसे निगल नहीं सकते...शरीर में ऐसी कोई कोशिका नहीं है जो प्यासी न हो... किस चीज़ की? इसे परिभाषित करना, समझाना मुमकिन नहीं है. एक शब्द में, इंसान नहीं है. वह निकल गया है. घूमता है, चाहता है, पीड़ा सहन करता है मुर्दा. वह कुछ नहीं चाहता, किसी बारे में नहीं सोचता, सिवाय मॉर्फिन के. मॉर्फिन!
मॉर्फिन की प्यास की तुलना में पानी की प्यास से मौत – स्वर्गीय है, आनंदमय है. इस तरह जीते जी दफ़न किया गया इंसान, शायद, ताबूत में हवा के अंतिम, नगण्य बुलबुलों को पकड़ता है और सीने की त्वचा को नाखूनों से फाड़ता है. इस तरह विधर्मी चिता पर कराहता है और कसमसाता है, जब आग की पहली लपटें उसके पैरों को चूमती हैं...
मौत – सूखी, धीमी गति से आने वाली मौत...
यही छुपा है प्रोफेसरों के "पीडाजनक स्थिति" इन शब्दों के पीछे.
x x x
और बर्दाश्त नहीं कर सकता. और मैंने फ़ौरन अपने आप को इंजेक्शन लगा लिया. गहरी सांस ली. और एक सांस ली.
आराम है. और ये...ये...पेट के गढे में पेपरमिंट जैसी ठंडक...
३% वाले घोल के तीन इंजेक्शंस. ये आधी रात तक के लिए पर्याप्त हैं...
बकवास. ये नोट – बकवास है. इतना खतरनाक नहीं है. देर-सवेर मैं छोड़ ही दूँगा!...
और अब सोना है, सोना है.
मॉर्फिन के साथ इस बेवकूफी भरी जंग से मैं सिर्फ खुद को पीड़ा पहुंचाता हूं और कमजोर बनाता हूँ.
(आगे नोटबुक में करीब दो दर्जन पन्ने काट दिए गए थे.)
...ता
...ई उल्टी ४ बजकर ३० मिनट पर.
जब मुझे कुछ आराम हो जाएगा, तब अपने भयानक अनुभवों को लिखूंगा.