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Charumati Ramdas

Classics

4  

Charumati Ramdas

Classics

मॉर्फीन - 5

मॉर्फीन - 5

6 mins
332


लेखक: मिखाइल बुल्गाकव 

अनु. आ. चारुमति रामदास 

आन्ना के. डरती है. उसे मैंने यह कहकर शांत किया कि मैं बचपन से ही ज़बरदस्त इच्छा शक्तिवाला हूँ.

२ मार्च.


किसी भव्य बात के बारे में अफवाहें. जैसे निकलाय का तख्ता-पलट कर दिया गया है!!.

मैं काफी जल्दी सो जाता हूँ. करीब नौ बजे. और मीठी नींद सोता हूँ.


१० मार्च.

क्रान्ति हो रही है. दिन ज़्यादा बड़ा हो गया है, और शाम कुछ और नीली.

सुबह-सुबह ऐसे सपने मैंने आज तक कभी नहीं देखे थे. ये दुहरे सपने हैं. और उनमें से मुख्य सपना, मैं कहता, कांच का है. वह पारदर्शी है.

तो, - मैं देखता हूँ एक भयानक रूप से जलता हुआ लैम्प, उसमें से रंगबिरंगी रोशनियों का एक रिबन फूटता है. अम्नेरिस, एक हरे पंख को हिलाते हुए गाती है. ओर्केस्ट्रा, जो बिल्कुल इस दुनिया का नहीं है, असाधारण रूप से ऊँची आवाज़ में गा रहा है. मगर, मैं शब्दों में इसे बयान नहीं कर सकता. एक लब्ज़ में कहूं तो, किसी सामान्य सपने में संगीत बेआवाज़ होता है....( सामान्य सपने में? एक और सवाल, कौन सा सपना ज़्यादा सामान्य होता है! खैर, मज़ाक कर रहा हूँ...) बेआवाज़, मगर मेरे सपने में वह सुनाई दे रहा है स्वर्गीय संगीत की तरह. और, ख़ास बात ये है, कि मैं अपनी इच्छा से म्यूजिक की आवाज़ को कम या ज़्यादा कर सकता हूँ. याद आता है, “युद्ध और शान्ति” में वर्णन किया गया है कि कैसे पेत्या रस्तोव आधी नींद में ऐसी ही स्थिति का अनुभव करता है. ल्येव टॉल्स्टॉय – अद्भुत् लेखक है!

अब पारदर्शिता के बारे में. तो, आइदा के बिखरते हुए रंगों, से एकदम वास्तविक रूप में सीधे मेरी लिखने की मेज़ का कोना प्रकट होता है, जो अध्ययन कक्ष के दरवाज़े से दिखाई देता है, लैम्प, चमकता हुआ फर्श, और सुनाई देती है, बल्शोय थियेटर के ओर्केस्ट्रा की लहरों को चीरती हुई, पैरों की स्पष्ट आवाज़, जो इतने हौले-हौले चल रहे थे, जैसे बेआवाज़ खड़ताल हों.

मतलब, - आठ बज गया है, - ये आन्ना के. है जो मुझे जगाने और यह बताने आ रही है कि इमरजेंसी रूम में क्या हो रहा है.

उसे इस बात का एहसास नहीं है कि मुझे जगाने की ज़रुरत नहीं है, कि मैं सब सुन रहा हूँ और उससे बात कर सकता हूं.

और इस तरह का प्रयोग मैंने कल किया:

आन्ना – सिर्गेइ वासिल्येविच...

मैं – "मैं सुन रहा हूँ...(हौले से म्यूजिक से “ज़्यादा तेज़”).

म्यूजिक –" ऊँची तान है."

रे-"दिओज़."

आन्ना – "बीस लोगों का रजिस्ट्रेशन है. "

अम्नेरिस (गाती है).

खैर, इसे कागज़ पर लिखना असंभव है.

क्या ये सपने हानिकारक हैं? ओ, नहीं. इनके बाद मैं शक्ति और उत्साह महसूस करता हूँ. और अच्छी तरह काम करता हूँ. मुझमें दिलचस्पी भी पैदा हो गई, जो पहले नहीं थी. और, ताज्जुब की बात नहीं है, मेरे सारे विचार मेरी भूतपूर्व पत्नी पर केन्द्रित हो गए.

और अब मैं शांत हूँ.

मैं शांत हूँ.


१९ मार्च.


रात को मेरा आन्ना के. साथ झगड़ा हो गया.

“मैं अब और ज़्यादा मिश्रण तैयार नहीं करूंगी.”

मैं उसे मनाने लगा.

“बेवकूफी है, आन्नूस्या, मैं क्या छोटा हूँ?”

“नहीं करूंगी. आप मर जायेंगे.”

“ओह, जैसा चाहो. ये समझ लो, कि मेरे सीने में दर्द है!”

“इलाज करवा लो.”

“कहाँ?”

“छुट्टी ले लो. मॉर्फिन से इलाज नहीं करते हैं.” (फिर उसने सोचा और आगे कहा). “मैं अपने आप को इस बात के लिए माफ़ नहीं कर सकती, कि उस समय आपके लिए दूसरी बोतल तैयार कर दी थी.”

“मुझे क्या मोर्फिन की लत लग गई है?”

‘हाँ, आपको मोर्फिन की लत लग जायेगी.”

“तो, आप नहीं जायेंगी?”

“नहीं.”

तब मुझे पहली बार पता चला कि मुझमें गुस्सा करने की अप्रिय योग्यता है और, ख़ास बात, लोगों पर चिल्लाने की, जब मैं गलत होता हूँ.

खैर, ये एकदम नहीं हुआ. मैं शयन कक्ष में गया. देखा. बोतल के तल पर थोड़ा-सा द्रव था. मैंने सिरिंज ली, - एक चौथाई सिरिंज निकला, हाथ से सिरिंज उछल गई. करीब-करीब उसे तोड ही दिया और खुद थरथराने लगा. सावधानी से उसे उठाया, गौर से देखा, एक भी दरार नहीं थी. शयन कक्ष में बीस मिनट बैठा रहा. बाहर आया – वह नहीं थी.

चली गई थी.

 

 x x x


 ज़रा सोचिये, बर्दाश्त नहीं कर पाया, उसके पास गया. उसकी विंग में प्रकाशित खिड़की पर खटखटाया. शॉल लपेटे, वह बाहर पोर्च में आई. रात खामोश, खामोश. बर्फ ढीली पड गई थी. आसमान में कहीं दूर बसंत ऋतू खिंची आ रही है.

“आन्ना किरीलाव्ना, मेहेरबानी करके मुझे डिस्पेन्सरी की चाभी दीजिये.”

वह फुसफुसाई:

“नहीं दूंगी.”

“कॉमरेड, मेहरबानी से मुझे डिस्पेन्सरी की चाभियाँ दीजिये. मैं डॉक्टर की हैसियत से आपसे कह रहा हूँ.”

देखता हूँ कि झुटपुटे में उसका चेहरा बदल गया, बेहद सफ़ेद हो गया, और आंखें भीतर को धंस गईं, डूबने लगीं, काली हो गईं. और उसने ऐसी आवाज़ में जवाब दिया जिससे मेरे मन में दया की भावना उमड़ने लगी.

मगर तभी गुस्सा मुझ पर हावी हो गया.

वह:

“क्यों, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आह, सिर्गेइ वसील्येविच, मुझे आपके लिए अफसोस होता है.”

और फ़ौरन उसने शॉल के नीचे से हाथ बाहर निकाले, और मैं क्या देखता हूँ कि चाभियाँ तो उसके हाथों में हैं. मतलब, वह मेरी तरफ आ रही थी और साथ में चाभियाँ भी रख ली थीं.

मैं (बदतमीजी से):

“चाभियाँ दीजिये!”

और मैंने उसके हाथों से चाभियाँ छीन लीं.

सडे हुए, उछलते पुलों से होते हुए मैं अस्पताल की जर्जर बिल्डिंग की ओर चल पडा. 

मेरे भीतर तैश फुफकार रहा था, और सबसे पहले इस बात से कि मैं यह बात बिल्कुल नहीं जानता था कि चमड़ी के नीचे देने वाले इंजेक्शन के लिए मॉर्फिन का घोल कैसे तैयार किया जाता है. मैं डॉक्टर हूँ, न कि कम्पाउन्डर!

चल रहा था और हिल रहा था.

और सुन रहा हूँ: मेरे पीछे-पीछे, वफादार कुत्ते की तरह, वह चल रही थी. और मेरे मन में कोमल भावनाएँ जाग उठीं, मगर मैंने उन्हें दबा दिया. मुड़ा और, दांत पीसते हुए, बोला:

“बनाओगी या नहीं?” और उसने भी हाथ झटक दिया, जैसे सज़ाए मौत सुनाई गई हो, जैसे, ‘ठीक है, क्या फर्क पड़ता है’, और हौले से जवाब दिया:

“चलिए, बनाती हूँ...”

...घंटे भर बाद मैं सामान्य स्थिति में था. बेशक, मैंने बेवजह की कठोरता के लिए उससे माफी मांग ली. खुद भी नहीं जानता कि ऐसा कैसे हुआ.

पहले तो मैं मिलनसार इंसान था.

उसने मेरे माफीनामे पर बड़े अजीब तरीके से व्यवहार किया. घुटनों पर बैठ गई, मेरे हाथों से लिपट गई और बोली:

“मैं आप पर गुस्सा नहीं हूँ. नहीं. अब मैं जान गई हूँ कि आप बर्बाद हो गए हैं. जानती हूँ. और मैं अपने आप को कोसती हूँ, कि मैंने आपको इंजेक्शन क्यों लगाया था.”

मैंने जैसे संभव था, उसे शांत किया, ये यकीन दिलाते हुए, कि उसका इस बात में कोई दोष नहीं है, अपने कामों के लिए मैं खुद ही जवाबदेह हूँ. उससे वादा किया कि कल से धीरे-धीरे डोज़ कम करते हुए, पूरी संजीदगी से यह आदत छोड़ने की कोशिश करूंगा.

“अभी आपने कितने का इंजेक्शन दिया है?”

“बकवास. एक प्रतिशत घोल की तीन सिरींज.

उसने अपना सिर पकड़ लिया और खामोश हो गई.

“अरे, आप परेशान न होईये!...असल में मैं उसकी परेशानी समझ सकता था. वाकई में morphinum hydrochloricum भयानक चीज़ है, आदत बेहद जल्दी पड जाती है. मगर एक छोटी सी आदत मोर्फिनिज्म तो नहीं है ना?...

सच कहूं तो, ये औरत अकेली ऐसी इंसान है, जो मेरी असली, मेरी अपनी है. और, वाकई में, इसे ही मेरी पत्नी होना चाहिए था. उसे मैं भूल गया हूँ. भूल गया हूँ. और फिर भी, इसके लिए मॉर्फिन का शुक्रिया...   



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