मॉर्फीन - 4
मॉर्फीन - 4


“।७ वां साल? , २० जनवरी।
।और बेहद खुश हूँ। और खुदा का शुक्र है : जितना ज़्यादा बेवकूफ, उतना ज़्यादा बेहतर। लोगों को देख नहीं सकता, और यहाँ मैं किन्हीं भी लोगों को नहीं देखूंगा, सिवाय मरीजों के और किसानों के। मगर वे तो किसी भी तरह मेरे ज़ख्म को नहीं छुएंगे? वैसे, दूसरों को, ज़ेम्स्त्वा के गाँवों में मुझसे ज़्यादा बुरी पोस्टिंग नहीं दी गई। मेरे पूरे बैच की, जो युद्ध के आह्वान में शामिल नहीं था (१९१६ के बैच के दूसरी श्रेणी के योद्धा), ज़ेम्स्त्वा के गाँवों में पोस्टिंग की गई। खैर, इसमें किसी को दिलचस्पी नहीं है। दोस्तों में से सिर्फ इवानोव और बोमगर्द के बारे में पता चला। इवानोव ने अर्खान्गेल्स्क प्रांत को चुना (अपनी-अपनी पसंद है), और बोमगर्द, जैसा कि नर्स ने बताया, मेरे ही जैसे दूरदराज़ के कोने में, मुझसे तीन गाँव दूर, गरेलव में बैठा है। मैं उसे लिखना चाहता था, मगर फिर इरादा बदल दिया। लोगों से मिलना और उन्हें सुनना नहीं चाहता।
२१ जनवरी।
बर्फीला तूफ़ान। कोई बात नहीं।
२५ जनवरी।
कितना स्वच्छ सूर्यास्त है। माइग्रेन – एन्टीपायरिन coffeina ac citric। 1।0 के पावडर में। क्या 1।0 संभव है?।।संभव है।
३। फरवरी।
आज पिछले सप्ताह के अखबार मिले। पढ़ा तो नहीं, मगर फिर भी थियेटर-विभाग में झांकने की उत्सुकता हुई। “आइदा” का प्रोग्राम पिछले हफ्ते चल रहा था। मतलब, वह स्टेज पर आई और गाने लगी, “मेरे प्यारे दोस्त, मेरे पास आओ।”
उसकी आवाज़ असाधारण है, और कितनी अजीब बात है, कि स्पष्ट आवाज़, अंधकारपूर्ण आत्मा के लिए नायाब तोहफ़ा है।
(यहाँ अंतराल, दो या तीन पन्ने फाड़े गए थे।)
।बेशक, ये गलत है, डॉक्टर पलिकोव। हाँ और शराफत के लिहाज़ से भी – बेवकूफी है भद्दी गालियाँ देते हुए किसी औरत पर टूट पड़ना, इसलिए कि वह चली गई! नहीं रहना चाहती – चली गई। किस्सा ख़तम।
वास्तविकता में सब कुछ कितना आसान है। ऑपेरा की गायिका नौजवान डॉक्टर के साथ रहने लगी, साल भर रही और चली गई।
क्या उसे मार डालूँ? मार डालूँ? आह, सब कुछ कितना बेवकूफी भरा, खोखला है। कोई उम्मीद नहीं! सोचना भी नहीं चाहता। नहीं चाहता।
११ फरवरी।
सिर्फ बर्फीले तूफ़ान , बस तूफ़ान।तंग आ गया हूँ! पूरी पूरी शाम मैं अकेला होता हूँ, अकेला। लैम्प जलाता हूँ और बैठा रहता हूँ। दिन में तो लोग दिखाई भी दे जाते हैं। मगर काम मैं यंत्रवत करता हूँ। काम की मुझे आदत हो गई है। वह इतना भयानक नहीं है, जैसा मैं पहले सोचता था। खैर, युद्ध के दौरान हॉस्पिटल ने मेरी काफी मदद की। फिर भी, जब मैं यहाँ आया था तो बिलकुल अनपढ़ तो नहीं था। आज मैंने ‘रोटेशन-ऑपरेशन’ किया।
तो, तीन आदमी यहाँ दफन हैं बर्फ के नीचे: मैं, आन्ना किरीलव्ना – कंपाउंडर-दाई और कंपाउंडर। कंपाउंडर शादी-शुदा है। वे (कंपाउंडर लोग) बाहरी बिल्डिंग में रहते हैं। और मैं अकेला।
१५ फरवरी
कल रात को एक मजेदार बात हुई। मैं सोने जा ही रहा था, कि अचानक मेरे पेट वाले हिस्से में दर्द उठा। और कैसा दर्द! मेरे माथे पर ठंडा पसीना निकल आया।
फिर भी, चिकित्सा शास्त्र – संदिग्ध विज्ञान है, ये कहना पडेगा।
आखिर, एक आदमी को जिसे कोई पेट की या आंत की (मिसाल के तौर पर, अपेंडिक्स) बीमारी नहीं है, जिसकी किडनी और लीवर बढ़िया है, जिसकी आंतें पूरी तरह सामान्य हैं रात को ऐसा दर्द कैसे उठ सकता है जिससे वह बिस्तर पर लोट-पोट करने लगे? कराहते हुए किचन तक पहुँचा जहाँ रसोइन अपने पति व्लास के साथ रात को रहती है। व्लास को आन्ना किरीलव्ना के पास भेजा। वह रात को मेरे पास आई और उसे मुझे मॉर्फिन का इंजेक्शन देना पडा। कहती है कि मैं पूरी तरह हरा हो गया था। किस वजह से? हमारा सहायक मुझे अच्छा नहीं लगता। बिलकुल मिलनसार नहीं है, मगर आन्ना किरीलव्ना बड़ी अच्छी और सुसंस्कृत है। ताज्जुब होता है कि एक औरत, जो बूढ़ी नहीं है, कैसे इस बर्फ की कब्र में पूरी तरह तनहाई में रह सकती है। उसका पति जर्मनी की कैद में है।
उस व्यक्ति की तारीफ़ किये बिना नहीं रह सकता, जिसने पहली बार पॉपी हेड्स (पोस्ते के फूल) से मॉर्फिन निकाली थी। मानवता का सच्चा हितैषी। इंजेक्शन के सात मिनट बाद दर्द बंद हो गया। ताज्जुब की बात है : दर्द पूरी ताकत से हिलोरें ले रहा था, बिना रुकावट के, जिससे मेरा दम घुट रहा था, जैसे पेट में कोई लोहे की तप्त छड घुसाकर घुमाई जा रही हो। इंजेक्शन के चार मिनट बाद मैं दर्द की हिलोरों को समझ पा रहा था।
कितना अच्छा होता अगर डॉक्टर के लिए खुद अपने ऊपर कई दवाओं की जाँच करना संभव होता। तब उनके असर के बारे में उसकी बिलकुल दूसरी ही राय होती। इंजेक्शन के बाद पिछले कई महीनों में पहली बार मुझे अच्छी और गहरी नींद आई – बिना उसके बारे में सोचे, जिसने मुझे धोखा दिया था।
१६ फरवरी।
आज ‘रिसेप्शन’ पर आन्ना किरीलाव्ना ने पूछा कि मेरी तबियत कैसी है, और कहा कि पहली बार वह मुझे उदास नहीं देख रही है।
“क्या मैं उदास रहता हूं?”
“बेहद,” उसने दृढता से कहा और आगे बोली, कि वह इस बात से हैरान है कि मैं हमेशा खामोश रहता हूँ।
“मैं वैसा ही हूँ।”
मगर यह झूठ है। मेरे ‘पारिवारिक नाटक’ से पहले मैं बेहद खुशमिजाज़ व्यक्ति था।
अन्धेरा जल्दी होने लगता है। मैं क्वार्टर में अकेला हूँ। शाम को दर्द उठा था, मगर तेज़ नहीं था, जैसे कल के दर्द की परछाई हो, कहीं सीने की हड्डी के पास। कल के दौरे के खतरे से बचने के लिए मैंने अपने आप नितम्ब में एक सेन्टीग्राम का इंजेक्शन लगा लिया।
दर्द लगभग फ़ौरन ही गायब हो गया। ये तो अच्छा हुआ कि आन्ना किरीलव्ना ने शीशी छोडी थी।
१८।
चार इंजेक्शन भयानक नहीं हैं।
२५ फरवरी
गज़ब की औरत है आन्ना किरीलव्ना! जैसे कि मैं डॉक्टर ही नहीं हूँ। १/२ सिरींज = ०।०१५ मॉर्फिन? हाँ।
१ मार्च।
डॉक्टर पलिकोव, सावधान रहे!
बकवास।
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शाम का धुंधलका।
आधा महीना बीता गया, और मैं अपने विचारों में एक भी बार उस औरत की ओर नहीं लौटा, जिसने मुझे धोखा दिया था। उसके ‘अम्नेरिस’ वाले खेल का उद्देश्य मेरे दिमाग से उतर गया। मुझे इसका बड़ा गर्व है।
मैं – मर्द हूँ।
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आन्ना के। गुप्त रूप से मेरी पत्नी बन गई। वर्ना कुछ और तो हो ही नहीं सकता था। हम एक निर्जन टापू पर कैद हैं।
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बर्फ बदल गई है, मानो भूरी हो गई है। भयानक ठण्ड तो अब नहीं है, मगर बर्फीले तूफ़ान कभी कभी लौट आते है।
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पहला मिनट: गर्दन को स्पर्श करने का एहसास। यह स्पर्श गर्माहटभरा होकर फ़ैलने लगता है। दूसरे मिनट में अचानक पेट के गढे में ठण्डी लहर दौड़ जाती है, और उसके बाद विचारों की असाधारण स्पष्टता और कार्य क्षमता का विस्फोट। सभी अप्रिय एहसास ख़त्म हो जाते हैं। ये मनुष्य की आध्यात्मिक शक्ति का चरम बिंदु है। और यदि मेडिकल की शिक्षा ने मुझे बिगाड़ न दिया होता, तो मैं कहता, कि आम तौर से आदमी सिर्फ मॉर्फिन के इंजेक्शन के बाद ही काम कर सकता है। वाकई में: आदमी क्या ख़ाक ‘फिट’ हो सकता है, यदि एक छोटी सी नस का दर्द उसे बदहवास कर सकता है।
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