मोहे श्याम रँग दै दे
मोहे श्याम रँग दै दे
"मोरा गोरा अंग लैइ ले
मोहे श्याम रँग दैई दे "
आभास कॉलबेल बजाने ही वाला था कि घर के अंदर से आती मधुर स्वर लहरी ने जैसे उसके कदम जड़ से कर दिए. इतना मधुर सुरीला कंठ. भला जय के घर में कौन गा रहा है. भाभी इतना अच्छा गातीं हैं. मुझे तो पता ही नहीं था.आभास फिर से कान लगाकर सुनने लगा. लग रहा था उस कंठ कोकिला को सुनने के लिए उसके शरीर के सारे अंग कान बन गए थे.
थोड़ी देर बाद गाना अचानक बँद हो गया और कुछ हँसने खिलखिलाने की आवाज़ अंदर से आने लगी तो आभास समझ गया अब गाना गानेवाली ने बोलना बतियाना शुरू कर दिया है तो आश्वास्त होकर उसने अब घंटी बजा दी.
"जी, कहिये! आप कौन?"
आभास ने देखा, चित्रलिखित सी चित्रा उसके सामने खड़ी थी. उसके स्वर का जादू तो वो अभी अभी सुन चुका था."उसकी साँवली सूरत भी बेहद आकर्षक थी "कुछ पल को तो आभास उसे मन्त्रमुग्ध होकर देखता ही रह गया. इस भुवनमोहिनी छवि ने जैसे उसके बोलने की क्षमता को भी अपने काले कज़रारे नैनों के जादू में बाँध लिया था.
"कौन है चित्रा?"
अंदर से ज़ब पवित्रा भाभी की आवाज़ आई तो जैसे आभास होश में आया. उसे बड़ी शर्म सी आई कि पता नहीं ये कातिल लड़की मुझे कितना निर्लज़्ज़ समझ रही होगी.
प्रकट में बोला,"भाभी मैं हूँ आभास, ये मुझे अंदर आने नहीं दे रहीं हैं "चित्रा को भी अपनी ओर एकटक देखता हुआ पाकर आभास को ना जाने क्यूं मसखरी सूझी.उसे यूँ बोलता देख चित्रा हड़बड़ा गई और उसके लिए अंदर आने का रास्ता बनाते हुए बोली,
"जी अंदर आ जाइये!"
ओह्ह्ह्हह..... एक बार फिर आभास के कानों में जैसे जलतरंग बज उठा. इतनी मीठी बोली, ये लड़की तो मेरी जान लेकर ही मानेगी ".अंदर आया तो उसके चेहरे पर उत्सुकता देखकर पवित्रा भाभी खुद ही चित्रा का परिचय देने लगी.
चित्रा तबतक आभास के लिए चाय नाश्ता लेने रसोई की ओर गईं.