'ममता '
'ममता '
प्रसव पीड़ा की वेदना असहनीए हो रही थी,और अस्पताल पहुंचने में देर। खुशी के घरवालों को हर हाल मे पुत्र ही चाहिये था। इस बात से खुशी भलीभान्ति अवगत थी। डॉक्टर ने आकर कहा-----'माँ जी स्थिति बहुत नाजुक है। आपलोगों ने आने में बड़ी देर कर दी। हम दोनों मे से किसी एक को ही बचा पायेंगे। 'खुशी की सास ने कहा--'ई सब हम कुछो नही जानते। बाकी हमरे पोता को कुछो नही होना चाहिये। 'डॉक्टर समझ गयी। इन्हें बहु का मोह नही। वह चुपचाप वहा से चली गयी। थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने आकर कहा--'मुबारक हो आपको पौती हुयी है। लेकिन आपके बहु की हालत बहुत नाजुक है। कुछ भी कहा नही जा सकता। आप में से एक उन्हें मिल सकता है। 'तानाशाही की मूरत सासु माँ ने प्रसव कक्ष में प्रवेश किया। बहु की तरफ बेगानी नजर डालते हुये कहा--'जिते जी तो कभी काम नहीं आयी। अब मरते वक्त एक बोझ सर पर डाल कर जा रही है। पहले इसका अब इसकी बेटी का बोझ उठाओ। मनहूस माँ के ही साथ मर क्यूं नही जाती। 'इतना कहने के साथ ही उसने जैसे ही बच्ची को ठूनक लगानी चाही। खुशी ने उनका हाथ पकड़ लिया। सासु माँ के साथ-साथ सारे डॉक्टर हत्पृध रह गए।
तभी उस डॉक्टर ने व्यंग्य करते हुये कहा--'माँ जी अब आपका समय खतम यानी मिलने का। अब आपकी बहु को कुछ नही हो सकता। क्युंकि अब इनकी ममता जाग चुकी है। जो इसे मौत की नींद नही सोने देगी। 'खुशी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान फैल गयी। उसने मन ही मन सोचा। बेटा होता तब तो शायद मैं आज मर ही जाती। मगर मैनें तो एक बेटी जना है। इसीलिये मुझे जीना होगा। क्यूँकि अगर मैं मर गयी तो ये पुरुष प्रधान समाज इसे जीने नहीं देगा।