ममता की भाषा
ममता की भाषा
स्कूल से वापस आ दरवाजे पर लगे ताले को खोलते समय मुझे अपने घर के पीछे से कुत्ते की एक अजीब तरह की आवाज आती सुनाई पड़ी। सामान्यता जैसे कुत्ते की भौकने की आवाज होती है ये वैसी न थी। मैं दरवाजा खोल के पीछे के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी ।दरवाजे को खोलते ही देखा कोने में जो चंपा का पेड़ है उसके नीचे एक कुत्तिया दर्द से कराह रही है ।अभी-अभी उसने दो बच्चे को जन्म दिया था और अब तीसरे की बारी थी ।मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ।मैंने पहली बार किसी पशु को ऐसी हालत में देखा था ।पड़ोस की रीमा को आवाज दी। उसने आते ही बताया कि आपके स्कूल जाने के थोड़ी देर बाद ही आपके घर से ऐसी आवाज आ रही है ।हम लोगों ने पास जाकर देखने की कोशिश की तो कुत्तिया बहुत आक्रामक होकर हमें काटने को दौडी। मुझे उस की ऐसी हालत देख अपने प्रसव पीड़ा की याद आ गई। ऐसी असह्य पीड़ा को सहने की शक्ति ईश्वर ने सिर्फ और सिर्फ हमें दे कर मातृत्व सुख का एक अनुपम उपहार दिया है।
यूं तो मुझे जानवरों से बहुत ज्यादा लगाव न था। एक अनजाना सा डर लगा रहता ।शायद इसी वजह से मैं पशुओं से दूरी बना कर रखती हूं। मैंने पहले भी इस कुत्तिया को अपनी गली में इधर उधर घूमते देखा था पर ज्यादा ध्यान न दिया था कि वह गर्भवती है पर आज उसकी ऐसी हालत देखकर एहसास हुआ कि ईश्वर ने न सिर्फ हमें बल्कि इन पशुओं को ऐसी प्रसव पीड़ा सहने की शक्ति हमसे भी ज्यादा दी है ।हम तो अपनी पीड़ा को बता कर उसके लिए दवाइयां इंजेक्शन वगैरह ले सकते हैं पर ये पशु ....।मैंने जब उसकी आंखों में देखा तो आंसुओं का सैलाब बह रहा था। रीमा ने मुझे सचेत किया कि आप उसके पास मत जाना शायद गुस्से में काट लेगी ।यह सच भी लग रहा था क्योंकि पशुओं को अपने नवजात बच्चे की सुरक्षा की चिंता रहती है और इस समय वह ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं पर मुझे उसकी इस पीड़ा का एहसास अब अपने शरीर में होने लगा। मैंने एक कटोरी में दूध और दूसरे में पानी ले जाकर उसके पास रखा। अब उसकी आंखें मुझसे बातें करने लगी ।उसका वह आक्रामक स्वभाव बिल्कुल शांत हो गया। उस दिन पहली बार मैंने आंखों की भाषा को पढ़ लिया था ।पशुओं के प्रति मेरी जो धारणा थी वह बिल्कुल बदल चुकी थी। शाम को पति घर आए तो मैंने सारी घटना उन्हें बताई। उत्सुकतावश वे उसके पास गए। अचानक उन्हें देखकर वह जोर-जोर से भौंकने लगी शायद अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए ।मैंने अपने पति को उसके पास न जाने की सलाह दी ।घी और आटे का हलवा बनाया और रात में उसके पास रख दिया। दूसरे दिन मेरा स्कूल जाने का मन न हो रहा था क्योंकि घर में बच्चों का जन्म जो हुआ था ।बच्चों के साथ_ साथ उसकी मां की देखभाल भी करनी थी ।सुबह आंख खुलते हैं बाहर जाकर देखा तो बच्चों के बोलने की आवाज आ रही थी वहां अब चार बच्चे थे ।मैंने मिट्टी पर एक चादर डाल दिया ताकि वह बच्चे उस पर आराम से सो सकें ।उसकी मां भी अब स्वस्थ लग रही थी ।मैंने उस दिन स्कूल से छुट्टी ली। उसके लिए हलवा बनाने लगी। तभी मेरे पति की आवाज आई _"आज तो बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है क्या बन रहा है"? मैंने थोड़ा इतराते हुए जवाब दिया_ यह खुशबू तो हलवे की है पर यह आपके लिए नहीं मेरे नवजात बच्चों के लिए है।अचानक मुझे अपनी मां की याद आ गई। उसने भी तो मेरे बेटे के जन्म के समय ऐसे ही मेरी देखभाल की थी ।घी का हलवा बना कर जबरदस्ती खिलाती थी और न जाने कितनी हिदायते देती थी।आज मैं समझ गई थी एक मां ही ममता की भाषा को पढ़ सकती हैऔर उसके अहसास को समझ सकती है।