Arunima Thakur

Children Stories

4.7  

Arunima Thakur

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मिट्टी ...

मिट्टी ...

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बचपन की भाई बहन की खट्टी मीठी यादों की एक और याद आपके साथ साझा करती हूँ। मेरे मामा का लड़का सोना मिट्टी बहुत खाता था। मुझे सौंपा गया कि "तुम दीदी हो उसकी, सबसे बड़ी हो, उसको समझाओ कि मिट्टी खाना गंदी बात है । नुकसान करती है, दांत खराब होते हैं।"


 अब मैं दीदी, इतनी बड़ी जिम्मेदारी पा कर गर्व से तन गयी । "हां मामा! बिल्कुल, मिट्टी खाना गंदी बात है । मैं समझाऊंगी सोना को।"


 मैं अब रोज उसके पीछे पड़ी रहती, "सोना मिट्टी मत खाया करो। मिट्टी खाना गंदी बात है। तुम्हारे दांत खराब हो जाएंगे"। वह भी मेरे सामने नहीं खाता। पर जब चारों साथ में खेल रहे हैं तो कोई कब तक बचेगा।


 रोज-रोज की टोका टोकी से तंग आकर वह बोला, "दीदी आपने कभी मिट्टी खाई है" ? 


मैंने कहा, "नहीं , छी .. मिट्टी कौन खाता है" ?


सोना बोला, "बस इसीलिए आप ऐसा बोल रही हो। एक बार मिट्टी खा कर देखो"।


 मैंने सिर हिलाया, "नहीं छी, नहीं मिट्टी में जानवरों का सब छि छी सु सु होता है। सब थूकते है। सब के गंदे गंदे पैर पड़ते हैं"।


सोना बोला, "पागल हो क्या दीदी ? वह मिट्टी मैं नहीं खाता"।


 अब मेरी बाल सुलभ उत्कंठा, उत्सुकता जागृत हो गयी, फिर तुम कौन सी मिट्टी खाते हो"? 



वह बोला, "मैं ईट वाली मिट्टी खाता हूँ"। 


"अब यह ईट वाली मिट्टी क्या होती है ?"


सोना मुझे घर के पीछे की पुरानी दीवार की ओर ले कर गया। पुरानी ईट जो घिस गयी थी उनसे लाल लाल मिट्टी झड़ रही थी । 


उसने पहले तो मुझे ईट खरोच कर मिट्टी निकालना सिखाया। फिर थोड़ी सी मिट्टी उंगली में लेकर के उसने खायी और ऐसा अमृत्तुल्य मुँह बनाया कि मेरी उत्कंठा चरम पर पहुँच गयी। क्या इतना अच्छा स्वाद होता है मिट्टी का ?


 मैंने भी अपनी उंगली ईट पर रगड़ी और खाई। छि कितना बुरा स्वाद है।


 अभी हम यह सब कर ही रहे थे कि मामा स्कूल से आ गए । आते ही आवाज लगाई, "चंगू, मंगू, "दीदी, भैया कहां हो ? आ जाओ, देखो मैं क्या लाया हूँ। "


 लाया हूँ, सुनते ही हम सब भागे। मिकी और मिनी पहले से ही घर के अंदर थे । हम दोनों बाहर से दौड़ते पहुँचे, इस फ़िक्र के साथ कि कही हमारे अंदर पहुंचते भर में चीज खत्म ना हो जाये। मामा / पापा क्या लाए हो ? 


अब हम दोनों को देखकर मामा अपना सिर पीट लिया। "यह देखो दीदी को बोला गया था कि भइया को सिखाएं मिट्टी नहीं खानी है । यहां दीदी को भी मिट्टी खाने की आदत लग गई है।


 अरे अरे हां ना थोड़ी ही देर पहले खायी गई लाल मिट्टी मेरे मुँह में और हाथों की उंगलियों में लगी हुई थी और मेरे ना किये गए कारनामे की चुगली कर रही थी। वह दिन आज का दिन मैंने कभी मिट्टी खाई तो नहीं, पर कह सकती हुँ कि मैंने मिट्टी चखी है। तब से मैं किसी को सुधारने की जिम्मेदारी नहीं लेती हूँ। 


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