मिले हम-तुम !
मिले हम-तुम !
उस दिन चाचा मुरारी बहुत खुश थे। वर्षों का उनका पूजा - पाठ , भेंट, मनौती और चढ़ावा आखिरकार आज रंग लाया था और उनके घर दो जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया था।आश्चर्य की बात यह कि उनकी पैदाइश एकदम नार्मल हुई और दोनों बच्चों सहित उनकी पत्नी कामिनी एकदम स्वस्थ और प्रसन्न घर वापस आ गईं। दोनों बच्चों का रंग रूप एकदम एक जैसा ..और उनका हंसना - रोना भी एक साथ ! चचा की जानकारी मे उनकी कई पीढ़ियों में ऐसा नहीं हुआ था।कामिनी ने तो कमाल कर दिया।
घर पर आज भी पहले की ही तरह छट्ठी, बरही और निकासन आदि का प्राविधान चलता आ रहा है।मुरारी चचा अपनी प्रसन्नता लिए कभी अन्दर तो कभी बाहर आ जा रहे है।आज तो उनके यहाँ महिलाओं की भीड़ लग गई है।उनका प्रफुल्लित मन आज इन दोनों बच्चों के लिए मंगल गीत गा रहा है।
" जच्चा ने बच्चा जाया है, दिन ये खुशी का आया है।
जच्चा की सास आयेगी देवता वही मनाएगी।
उसी का नेग देना है ,नहीं पीछे झगड़ा थानेगी।
जच्चा की जीजी आयेगी, चुपड़ी वही पोवायेंगी।
उसी का नेग देना है ,नहि पीछे झगड़ा ठानेगी।
जच्चा की बीबी आयेगी, छतिया वही धरावेंगीं।
उसी का नेग देना है, नहिं पीछे झगड़ा ठानेंगी। "
देर रात तक चले इस समारोह का समापन आये हुए लोगों को उनके यथायोग्य उपहार और देन लेन के साथ समाप्त हुआ।
धीरे धीरे दिन नार्मल होते गए। बच्चे बड़े होते गए और उनकी किलकारियों से घर का आँगन चहकने लगा था।मुहल्ले वाली महिलायें घंटों आकर इन दोनों बच्चों को खिलाया करती थीं।कोई उन्हें राम - श्याम कह कर बुलाता था तो कोई कृष्ण - बलराम ! वे अबोध बच्चे सभी के पुकारने पर अपनी प्रतिक्रया इस प्रकार दिया करते थे मानो उनका वही नाम हो।
समय पंख लगाकर आगे बढ़ता गया।इनके नामकरण का समय आया तो इनकी कुण्डली आदि बनवाने के लिए पंडित बुलाये गए।पंडित राधेश्याम उनके कुल के पंडित थे और उनकी ज्योतिष विद्या भी पूरे इलाके में प्रसिद्द थी।
"पंडित जी, इन दोनों बालकों का जन्म 28 जुलाई 1977 की सुबह 5-68 पर हुआ है।..ये ..ये इस बालक का जन्म पहले हुआ और इस बालक का उसके तुरंत बाद।'' मुरारी लाल ने अपनी बात समाप्त की।
"देखिये जजमान इन जुड़वा बच्चों का जन्म इनकी माता के गर्भाधान के समय की ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर हुआ है।इन दोनों की जन्म कुण्डली निश्चित ही एक सी ही बनेगी।इनकी शक्ल- सूरत, रोग , जीवन की घटनाएं भी एक समान होंगी। फिर भी जुडवा बच्चों के व्यक्तित्व,कर्म और उनकी जीवन - धारा में काफी अंतर हो सकता है। और हाँ इन तमाम समानताओं के बावजूद इनके हाथ की रेखाओं में पर्याप्त अंतर मिलेगा।"
" जी !" एक लम्बी सांस लेकर मुरारी बाबू बोले।
"लेकिन, लेकिन यह क्या ?" घर आये पंडित राधेश्याम स्वयम ही लगभग चौंक उठे थे।
पूरे माहौल में सन्नाटा छा गया था।सभी भौचक पंडित जी की ओर एकटक देखने लगे।
"ये दोनों बच्चे तो पिछले जनम में भी जुड़वा थे ....हाँ हाँ , जुडवा थे और और इनका बहुत ही नाम था ....ये..ये रेगिस्तान और पठारी इलाके के बहुत बड़े जादूगर थे और इनका अलग अलग पालन पोषण हुआ था।पूरी ज़िंदगी इनका मिलन नहीं हो पाया था इसीलिए इनका पुनर्जन्म हुआ है आपके घर में ..! " पंडित जी ने रहस्य पर से पर्दा उठा दिया था।
वहां उपस्थित सभी लोग हतप्रभ हो गए।
किसी ने चिल्ला कर कहा - " अरे ! कहीं ये दोनों जादू और पी.के.तो नहीं है जिनकी पिछले कुछ साल पहले ही रहस्यमय गुमशुदगी हुई थी ?"