महंगा उपहार
महंगा उपहार
बात उस समय की थी जबकि राघव की नौकरी छूट चुकी थी। नेहा ही ब्यूटी पार्लर में काम करके थोड़ा बहुत कमा लेती थी।कुछ दिन पहले ही कंपनी के बंद होने के कारण राघव को नौकरी से निकाल दिया गया था। क्योंकि पहले राघव को भी अच्छा वेतन मिल जाता था तो नेहा के ब्यूटी पार्लर से मिलने वाले पैसे केवल उसकी पॉकेट मनी ही होते थे। दोनों ने एक फ्लैट भी लोन पर ले लिया था इससे उन्हें किराया नहीं देना होता था। बहुत खर्चीले तो वे सदा से ही नहीं थे लेकिन नेहा को घर को सजाने का बहुत शौक था इसलिए वह अपने पैसों से घर की सजावट का सामान लाती रहती थी। अपने लिए भी वह डिजाइनर सूट इत्यादि पैसों से ही खरीदती रहती थी। राघव के पैसों से घर खर्च और फ्लैट के लोन के पैसे अच्छे से चुक जाते थे।
पिंकू अभी छोटा ही था। इन दोनों की गृहस्थी बहुत खुशहाल थी। घर खर्च तो अभी नेहा के पार्लर के पैसों से चल ही रहा था। राघव को भी नई कंपनियों में इंटरव्यू वगैरह के लिए जाना होता था इसलिए कुछ पैसे नेहा को राघव को भी देने पड़ते थे। समय का फेर समझकर दोनों फिर भी प्रेम से रहा करते थे।
राघव को इंटरव्यू के लिए दूसरे प्रदेश में जाना था। नेहा ने अपनी जमा पूंजी में से कुछ पैसे राघव को ट्रेन की बुकिंग के लिए और वहां पर खर्ची के लिए भी दिए थे।
राघव को देने के बाद नेहा के पास ज्यादा पैसे नहीं बचे थे लेकिन फिर भी उसे उम्मीद थी कि दो-तीन दिन में उसे कुछ कॉल मिल जाएंगी और उनसे इतने पैसे तो मिल ही जाएंगे कि कुछ समय कट जाए। 1 तारीख को तो पार्लर वाली मैडम भी वेतन दे ही देती थी। अब नेहा कुछ घरों में भी बुलाने पर मेकअप करने के लिए जाने लगी थी।
राघव को दूसरे दिन इंटरव्यू के लिए जाना था इसलिए वह राघव का सामान लगा रही थी तभी उसने देखा की राघव की अलमारी में एक लिफाफे में बहुत सुंदर सूट रखा हुआ था। नेहा ने हैरान होकर जब राघव से सूट के बारे में पूछा तो राघव ने कहा कि यह सूट उसने नेहा के बर्थडे पर उपहार देने के लिए खरीदा है।
बस फिर क्या था? एक तो वैसे ही नेहा घर बहुत मितव्ययिता से चला रही थी और दूसरा इतना महंगा सूट खरीदने के लिए राघव ने पैसे खर्च करें तो नेहा को राघव पर बहुत गुस्सा आया और उसने राघव को बहुत बुरा भला कहा।
दूसरे दिन राघव सुबह 4:00 बजे उठकर जब स्टेशन के लिए गया भी नेहा ने गुस्से में उससे कोई बात नहीं करी सिर्फ चाय उसके सामने रख दी थी लेकिन -----राघव के घर से निकलने के बाद उसे बहुत आत्मग्लानि हुई और ख्याल आया कि मालूम नहीं राघव के पास पैसे है या नहीं वह बहुत घबरा गई थी और उसकी इच्छा हुई कि वह किसी भी तरह से राघव को कुछ और पैसे दे आए पता नहीं राघव के पास पैसे हो या नहीं। वह कुछ पैसे लेकर घर से बाहर निकली भी लेकिन बाहर बहुत अंधेरा था और घर में पिंकू अकेला सो रहा था। यह तो निश्चित था कि राघव ऑटो लेकर तो रेलवे स्टेशन तक गया नहीं होगा शायद वह बस स्टैंड पर ही खड़ा होकर स्टेशन की बस की इंतजार कर रहा हो लेकिन बाहर निकलने के बाद पिंकू को भी अकेले घर में छोड़ने की उसकी इच्छा नहीं हो रही थी। उसका पूरा दिन आत्मग्लानि और दुख में ही बीता था। यह वह समय था जबकि मोबाइल प्रचलन में नहीं था।
रात को जब राघव घर आया और उसने बताया कि उसे नौकरी मिल गई है। वह यही कोशिश करेगा कि उसकी नौकरी इस दिल्ली वाली ब्रांच में ही हो।
अब यह आंसू आत्मग्लानि के थे या कि राघव की नौकरी लगने के, दोनों के आंसू ही बहते ही जा रहे थे। राघव ने नेहा से कहा अब तो कल यह सूट पहन लोगी ना, हैप्पी बर्थडे।
वास्तव में उम्र के इस मोड़ पर आने के बाद भी नेहा और राघव उस बर्थडे को कभी नहीं भूल सके। आज राघव भले ही नेहा को उसके बर्थडे पर हीरे का सेट भी दिलवाता हो लेकिन फिर भी शायद सबसे महंगा उपहार उसने नेहा को वह सूट ही दिया था।