हरि शंकर गोयल

Children Stories Comedy Children

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हरि शंकर गोयल

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महाराज जी

महाराज जी

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इस रचना में "बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख" कहावत का प्रयोग किया गया है। 

आज महाराज जी 14 महीनों के हो गये हैं। अब वे अपने पैरों पर खड़े हो गये हैं और चलने भी लगे हैं। हालांकि हमें अपने पैरों पर,खड़े होने में 22 साल लग गये थे। दिन भर इधर से उधर और उधर से इधर चलते रहते हैं। हम दोनों दादा - पोता एक से हैं इस वक्त। काम हमारे पास भी नहीं है और काम उनके पास भी नहीं है। शायद मैं गलत कह गया। यह बात तो सही है कि काम मेरे पास बिल्कुल नहीं है मगर उन्हें तो एक घड़ी की भी फुरसत नहीं है। उनकी "फैन फॉलोइंग" बड़ी जबरदस्त है। चार तो हम लोग ही हैं। पांचवी उसकी बुआ है जिसे "महाराज जी" के वीडियो दर्शन किये बिना चैन नहीं आता है। अपनी ससुराल में रहकर भी उसे "महाराज जी" का एक वीडियो रोज चाहिए तभी उसके पेट का पानी पचता है। फूफाजी तो उसके सबसे बड़े फैन हैं। और हमारे समधी समधन जी भी कम फैन नहीं हैं उनके। 

उनकी देखभाल करने वाली "नैनी" उन पर जान छिड़कती है। हम सबकी देखभाल करने वाले हमारे सेवक राम और उनके परिवार के पांचों सदस्य उन पर जान छिड़कते हैं। जबसे महाराज जी अवतरित हुए हैं तब से उनकी अम्मा सब कुछ भूल भालकर केवल महाराज जी की सेवा में लीन हो गई हैं। अब उनके लिहाज से हमारे होने न होने का कोई मतलब नहीं है। स्कूल से आते ही वे उनमें व्यस्त हो जाती हैं। उनकी सेवा में वे इतनी तल्लीन हो जाती हैं कि वे स्वयं को भी भूल जाती हैं। यह "कोरोना" देवता के आशीर्वाद का प्रताप है कि पुत्र और पुत्रवधू को "वर्क फ्रॉम होम" करने को मिल रहा है अन्यथा वे महाराज जी को लेकर बैंगलोर में रहते और हम दोनों प्राणी उनकी अजब गजब की "अठखेलियों" के आनंद को तरसते रहते।

ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है। जैसी ईश्वर ने हम पर कृपा की है वैसी कृपा सब पर करें, प्रभु से यही कामना करते हैं। एक कहावत है कि बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख। यह कहावत हम पर पूरी तरह लागू होती है। ईश्वर से कभी मांगा नहीं और ईश्वर ने जो दिया है उसका कोई अंत नहीं। सब कुछ दिया है ईश्वर ने। पद, प्रतिष्ठा, पैसा , पत्नी, पुत्र, पुत्री और पौत्र। अब कोई और कामना शेष नहीं है। 

महाराज जी की दिनचर्या दस बजे से शुरू होती है। हम सभी "सेवादार" उनकी सेवा में लग जाते हैं। सबसे टिपीकल टास्क है उन्हें "खाना खिलाना"। उनके लिए उनका अलग भोजन बनता है। रागी , वेजिटेबल दलिया या कुछ और। एक सेवादार महाराज जी के पैर दबाता है एक गाना सुनाता है , एक डान्स करता है और एक खाना खिलाता है। तब जाकर महाराज जी खाना खाते हैं। दूध पीने में भी आजकल वे बहुत नखरे करने लगे हैं। नखरेवालियों की तरह। हालांकि डॉक्टर ने कहा है कि दूध बोतल से मत पिलाना मगर महाराज जी वैसे कहां पीते हैं ? इसलिए बोतल से ही पिलाना पड़ता है। हमारे समधी जी यानि पुत्री के ससुर जी ने गाय के शुद्ध दूध के लिए आठ दस गायें पाल रखी हैं और हमारा दूध वहीं से आता है। इसलिए महाराज जी भी गाय का शुद्ध दूध पी रहे हैं यहां। रही बात डॉक्टर की बातों की , तो डॉक्टर तो सब चीजों के लिए मना करते हैं मसलन शराब , सिगरेट वगैरह। मगर डॉक्टर खुद ही इनका सेवन ज्यादा करते हैं। हमारी श्रीमती जी कहती हैं कि सारी बातें तो माननी ही नहीं चाहिए किसी की। तो अब जाकर पता चला है कि वे हमारी बहुत सी बातें क्यों नहीं मानती हैं। 

मुझे लिखने के अलावा गाना गाने का भी शौक है तो मैं जैसे ही गाना गाना शुरू करता हूं वैसे ही महाराज जी गाने की आवाज सुनकर मेरे पास दौड़े दौड़े चले आते हैं और भांगड़ा करने लग जाते हैं। वह दृश्य देखकर लगाता है कि महाराज जी हमारी संगीत साधना को बहुत आगे लेकर जाऐंगे। 

महाराज जी इतनी सी उम्र में न जाने कितनी भाषा सीख चुके हैं। वे पता नहीं कौन सी भाषा में "स्तुति पाठ" करते हैं हमारी समझ से बाहर है। पता नहीं वो देशी भाषाऐं हैं या विदेशी या दोनों , पर बोलते बड़ी सुरीली आवाज में हैं। "बुद बुद बुद बुद"। और भी बहुत कुछ उच्चारण करते रहते हैं वे पर हम जैसे कम बुद्धि वाले उनकी उच्चता को कैसे पकड़ सकते हैं। उनको कुछ गीत बहुत पसंद हैं जैसे "शंकर जी का डमरू बाजे , पार्वती का नंदन नाचे , बर्फीले कैलाश में देखो जय गणेश की धूम" सबसे अधिक पसंद है। इसके बाद नंबर आता है "अच्युतम केशवम" का। "एक मोटा हाथी झूम के चला , मकड़ी के जाल में वो फंस गया , दूसरे हाथी को इशारे से बुलाया इधर आ इधर आ इधर आ"। बस , इन्हीं की धूम रहती है घर में आजकल। अभी तो वे भगवान के इतने भक्त हैं कि मैं जब सुबह आरती करता हूं तो वे मेरे पास आ जाते हैं और शाम को अपनी अम्मा के साथ आरती कर लेते हैं। कभी कभी तो अम्मा कहती हैं कि सन्यासी बनेंगे क्या ? पता नहीं मुकद्दर में क्या लिखा है। 

महाराज जी के सान्निध्य 24 घंटे भी कम पड़ जाते हैं। महाराज जी का नाम वैसे शिवांश है मगर सब लोग उन्हें पूरा मान सम्मान देते हैं इसलिए महाराज जी ही कहते हैं। 

तो हमारे महाराज जी से मिलकर कैसा लगा ? रॉयल फीलिंग्स आई ना ?


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