हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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मेरी शादी करवा दो, मां

मेरी शादी करवा दो, मां

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बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस । मंदिरों और घाटों का शहर । कोई जमाना था जब बनारस शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था । पंडित लोग अपने नाम के आगे लिखा करते थे बनारस से पढ़े पंडित । पर जिस तरह इंसान की जिंदगी में उतार चढाव आते हैं उसी तरह शहरों की जिंदगी में भी उतार चढाव आते ही रहते हैं । अब बनारस की वो चमक और धमक नहीं रही जो पहलु थी । धार्मिक यात्राओं के प्रति लोगों का आकर्षण कम हो रहा था और प्राकृतिक स्थलों पर पर्यटन बढ़ने लगा था । इसलिए बनारस में काम धंधे की भी समस्या होने लगी थी । 

बनारस में ही पंडित मगन प्रसाद रहते थे । अपने भोले भंडारी के छोटे से मंदिर में पूजा अर्चना करते , भोग लगाते , सेवा सुश्रुषा करते । जो कुछ थोड़ा बहुत चढ़ावा आ जाता उससे अपनी घर गृहस्थी का लालन-पालन कर लेते थे । पंडित मगन प्रसाद नाम के ही मगन नहीं थे बल्कि सुख और दुख दोनों ही स्थितियों में मगन रहने वाले व्यक्ति थे । जब कभी उनकी पत्नी चंचला देवी उन्हें घर की माली हालत और बच्चों की जरूरतों के बारे में कुछ जली कटी बातें सुना देती थीं । गुस्से में कभी कभी जली भुनी रोटियां परोस देती थी तो पंडित जी बिल्कुल शांत चित्त से सब बातें सुनकर मुस्कुराते रहते थे । जली रोटियां भी बड़े प्रेम से खा लिया करते थे । इससे चंचला और भी जल कट जाती थी । 


मगन प्रसाद जी के तीन बच्चे थे । बड़ी बेटी रजनी उर्फ रज्जो । बी ए कर रही थी सरकारी कॉलेज से । दूसरे नंबर पर बेटा चिराग था जो खानदान का इकलौता चिराग था । हालांकि उसका एडमिशन कॉलेज में करवा दिया था मगर उसका मन पढ़ने में नहीं लगता था । मटर गश्ती में ही लगा रहता था दिन भर । 


तीसरे नंबर पर बेटी थी पायल । अभी स्कूल में पढ़ती थी । जितने सज्जन पंडित मगन प्रसाद थे उतनी ही कुशल प्रबंधक पंडिताइन चंचला थी । घर में सीमित आय से असीमित जरूरतों की पूर्ति पंडित जी जैसे सरल व्यक्ति नहीं कर सकते थे इसलिए पंडिताइन ने घर को संभालने का बीड़ा उठा लिया । 


रजनी उर्फ रज्जो की मौसी की बेटी परी की शादी थी । पंडित मगन प्रसाद अपने पूरे परिवार के साथ उस शादी में कानपुर पधारे । शादी का माहौल और वह भी मामा पक्ष में ? पंडिताइन अपनी बहनों , भाभियों में व्यस्त हो गई । पंडित जी साढू भाइयों में व्यस्त हो गए और रज्जो तथा पायल अपने भाई बहनों में खेलने में व्यस्त हो गए । 


शाम को पंडिताइन चंचला ने रज्जो से कहा " ऐ रज्जो , कल शादी है पूजा की । बेटी , जरा मेरे हाथों में मेंहदी तो लगा देना । पायल को भी लगा देना और फिर पायल तेरे लगा देगी" । 


रज्जो अपनी मां के हाथों में मेंहदी लगाने चौक में बैठ गई । एक हाथ में जब मेंहदी लग गई तो वह हाथ मेंहदी की कलाकारी से दमक उठा । एक एक करके सभी औरतें आती और रज्जो द्वारा लगाई गई मेंहदी की मुक्त कंठ से प्रशंसा करतीं । साथ में यह भी कहती "ऐ रज्जो , नैक हमारे हाथ में भी लगा दे , मेंहदी" । अपनी प्रशंसा सुनकर कौन नहीं फूलता है ? रज्जो के चेहरे की रंगत ही बदल गई थी इस मेंहदी लगाने की कलाकारी से । वह सभी औरतों और लड़कियों के हाथ में मेंहदी लगा रही थी और बदले में प्रशंसा बटोर रही थी । रज्जो की मेंहदी कला उस शादी में स्थापित हो गई थी । 


शादी के बाद पंडित मगन प्रसाद का परिवार वापस बनारस आ गया । अब रज्जो ने सोचा कि क्यों नहीं मेंहदी लगाने का काम कर लिया जाये ? उसकी कला भी चारों ओर फैलेगी और कुछ पैसे भी आ जाएंगे । उसने यह बात अपनी मां चंचला को बताई । मां ने एक झटके में यह प्रस्ताव खारिज कर दिया । कहने लगी कि इससे पुरखों की इज्जत पर बट्टा लग जायेगा । 


एक दिन जब पंडित मगन प्रसाद भोजन कर रहे थे तो रज्जो ने मेंहदी केन्द्र खोलने की बात छेड़ दी । पंडित जी ने सबसे पहले यही पूछा "तूने अपनी मां से बात की " ? 

"जी, उन्होंने मना कर दिया" । 

"हूं । पर मुझे तो इसमें कोई बुराई नजर नहीं आ रही है" ।

"यही तो मैं भी कह रही हूं , पापा । मगर मम्मी ने साफ मना कर दिया" । 


पंडित मगन प्रसाद ने पंडिताइन की ओर देखकर कहा "क्या ऐतराज़ है रज्जो की मां" ?

"मुझे क्या ऐतराज होने लगा ? मैं तो आपके ही खानदान की इज्जत संभालने की कोशिश कर रही थी ‌। अगर आपको ही कोई समस्या नहीं है तो मुझे क्या होगी" ? पंडिताइन को यह कहने पर मजबूर होना पड़ा । 


रज्जो अपने पापा के गले लग गई । दूसरे दिन ही अपने घर में बाहर का एक कमरा तैयार किया और एक पेंटर बुलवा कर उस पर लिखवा दिया 

"रजनी मेंहदी कला केन्द्र" । शादी में जो मेंहदी लगाई थी उसने , उसके फोटो पायल ने ले लिए थे । अब उसने एक वेबसाइट बनाई । यू ट्यूब पर वीडियो बना कर अपलोड कर दिया । फेसबुक पेज पर भी वे समस्त फोटो अपलोड कर दिए । अपने सभी ग्रुपों में भी उन फोटो को शेयर किया । जिसने भी देखे, सबने उसकी मेंहदी कला की प्रशंसा की । इस सबसे रज्जो का आत्म विश्वास और भी बढ़ गया । 


चार पांच दिन बाद "करवा चौथ" आने वाली थी । उसने एक इवेंट प्लान किया । अपनी सभी परिचितों को मेंहदी लगवाने के लिए अपने घर में आमंत्रित करने का फैसला किया । उसने अपने सभी परिचितों को व्हाट्स ऐप पर फ़ोटो के साथ पूरा कार्यक्रम भेजा । दोपहर एक बजे से वह अपने केन्द्र में मेंहदी लगाने बैठ गई। 


पायल उसकी मदद कर रही थी । सभी को पानी पिलाने , चाय की व्यवस्था की जिम्मेदारी पायल वहन कर रही थी । साथ साथ में मेंहदी के फ़ोटो भी लेती जा रही थी । शाम के छः बजे तक उसने खूब सारे हाथों में मेंहदी लगा दी थी । वहीं पर उसने एक सुंदर सा घड़ा रख दिया था । मेंहदी लगाने के अगर कोई कुछ पैसे देना चाहें तो वे उस घड़े में अपनी श्रद्धा के अनुसार डाल सकते हैं । शाम को जब घड़ा देखा तो उसमें एक हजार पचास रुपए मिले । यह देखकर रज्जो ने पायल को उत्तेजना में सीने से कस लिया । मम्मी को बताया तो चंचला भी खुश हो गई। घर में पैसों की आवक का एक और स्रोत खुल गया था ।


पंडिताइन ने पंडित जी को जब यह बात बताई तो पंडित जी बोले "मेरी रज्जो सबसे निराली है । देखना रज्जो की मां , यह एक दिन हमारे खानदान का नाम रोशन करेगी" । 


रज्जो की मेंहदी कला मौहल्ले में प्रसिद्धि पाने लगी । पूरे बनारस में पंडित जी के रिश्तेदारों में भी उसकी मेंहदी कला की प्रशंसा होने लगी । ‌‌दोनों बहनों की सहेलियों के परिवारों में भी उसकी ख्याति जम गई। अब उसको शादियों में मेंहदी लगाने का निमंत्रण मिलने लगा । धीरे धीरे वह इस मेंहदी कला केन्द्र से आठ दस हजार रुपए महीने कमाने लगी । 


पंडिताइन ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मंदिर में चढ़ावे के अलावा और कहीं से भी पैसा आ सकता है । उसे अब रज्जो पर और ज्यादा प्यार आने लगा । अब चंचला रज्जो से घर का काम नहीं कराती । कहती "तू मेंहदी का काम कर घर मैं और पायल संभाल लेंगे" । रज्जो को इस कारण और भी समय मिल जाता था । 


जब घर में थोड़ा पैसा आया तो रज्जो को दो चीजों की आवश्यकता महसूस हुई । एक तो मोटरसाइकिल की जिससे चिराग उसे मोटरसाइकिल पर बैठाकर ग्राहकों के घर छोड़ आये और ले आये । सबसे पहले उसने मोटरसाइकिल खरीदी और चिराग को गिफ्ट कर दी। चिराग तो खुशी से पागल ही हो गया था । उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे मोटरसाइकिल मिल जायेगी । वह रज्जो का गुलाम बन गया । 


रज्जो ने महसूस किया कि मेंहदी में मेहनत ज्यादा है और पैसा कम । यदि वह ब्यूटीशियन का कोर्स सीख ले तो फिर वह और ज्यादा पैसा कमा सकेगी । उसने ब्यूटीशियन का कोर्स भी कर लिया और अब उसने अपने "मेंहदी कला केन्द्र" को मॉडर्न ब्यूटी पार्लर में बदल दिया और उसका नाम रखा "रजनी ब्यूटी पैलेस" । तब तक उसकी एम ए भी पूरी हो चुकी थी । 


अब उसका पूरा ध्यान अपने ब्यूटी पार्लर पर था । पायल भी अब बड़ी हो गई थी और कॉलेज में आ गई थी । दोनों बहनों ने दिन रात मेहनत कर इस ब्यूटी पार्लर को ऊंचाइयों पर बैठा दिया । चिराग का काम शादी पार्टियों की व्यवस्था करना हो गया था । उसने एक कार खरीद ली । पायल को एक्टिवा दिला दी । घर में पैसों की आवक खूब होने लगी । घर की माली हालत अब बहुत अच्छी हो गई । 


पांच सात लाख रुपए लगाकर घर को भी रिनोवेट करा लिया था । सोफ़ा वगैरह खरीद लिए । ड्राइंग रूम भी बढ़िया सज गया था । रज्जो अब तेईस साल की हो गई थी । सुंदर तो वह थी ही । ब्यूटी पार्लर चलाने के कारण वह थोड़ा थोड़ा मेकअप कर लेती थी । इस मेकअप से वह किसी अप्सरा की तरह नजर आती थी । 


पंडित मगन प्रसाद के पास रिश्तों की लाइन लगने लगी । रज्जो की बुआ के रिश्ते में एक लड़के का प्रस्ताव आया लेकिन वह लड़का रज्जो को पसंद नहीं आया । पंडित मगन प्रसाद के मामा के बेटे ने भी एक रिश्ता भेजा लेकिन लड़के वालों की हैसियत बहुत कमजोर होने के कारण पंडिताइन ने वह रिश्ता ठुकरा दिया था । 


इधर रजनी का ब्यूटी पार्लर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा । महीने के पचास साठ हजार रुपए की कमाई हो जाती थी उससे । दिन गुजरने लगे । रज्जो की शादी के प्रस्ताव आते लेकिन कोई ना कोई कमी नजर आ जाती थी इसलिए कोई भी प्रस्ताव अपनी परिणति तक नहीं पहुंच पा रहा था । लेकिन घर में समृद्धि बढ़ती जा रही थी । 


रज्जो अब 26 वर्ष की हो गई थी । चिराग 24 का और पायल 21 साल की हो गई थी । एक दिन रज्जो छत पर टहल रही थी । पायल भी साथ ही थी । उसने देखा कि पड़ोस की छत पर खड़ा अविनाश कनखियों से रज्जो को देख रहा था मगर रज्जो इस सबसे अनजान थी । पायल जब भी अविनाश को देखती वह अपनी निगाहों को फेर लेता था । पायल मन ही मन मुस्कुरा दी । रज्जो बहुत सुंदर लगती थी । अविनाश भी स्मार्ट लगता था । एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था अविनाश । मगर रज्जो को अपने बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं थी । बस, उसका ध्यान तो ब्यूटी पार्लर और घर की हालत ठीक करने में ही रहता था । पायल के मन में अपनी दीदी के लिए सम्मान दिनों दिन बढ़ता जा रहा था । 


एक दिन रज्जो और पायल दोनों ही ब्यूटी पार्लर में बैठी थीं । अचानक पायल ने रज्जो से कहा "दी , एक बात पूछूं , सच सच बताना ? " 

"पूछ क्या पूछना चाहती है" ? 

"दी , अपने पड़ोस में वो अविनाश है ना" 

"कौन अविनाश" ? 

"अरे वो रामकिशन अंकल का बेटा और संध्या का भाई" 

"हां हां , उसका नाम अविनाश है क्या" ? 

"हां दी , वह अविनाश ही है । अभी कुछ दिन पहले ही उसकी जॉब लगी है एक कंपनी में । देखने में भी स्मार्ट है । तुमने देखा है ना उसे" 

"नहीं , मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है । शायद देखा हो । पर तू ये मुझसे क्यों पूछ रही है" ? 

उसने जरा अपने दिमाग पर जोर डाला और पायल की आंखों में गहरे से झांककर पूछा "अच्छा, तो हमारी छुटकी उसे चाहती है" ? 

पायल को यह उम्मीद नहीं थी इसलिए वह थोड़ा चिढ़ गई । "अरे दी , आप भी कहां की बात कहां ले जाती हो । मैं तो यह कहना चाह रही थी कि वह आपको पसंद करता है" 

"तुझे कैसे पता" ? 

"मैंने उसे देखा है । एक दिन जब हम दोनों छत पर टहल रहे थे तब वह छुप छुप कर आपको देख रहा था" 

"तुझे यह कैसे पता चला कि वह मुझे ही देख रहा था , तुझे नहीं" ? 

"दी, अब मैं भी कोई छोटी बच्ची नहीं रही । लोगों की नजरों को पहचानने लगी हूं । वह आपसे प्यार करता है दी" 

रजनी ने आश्चर्य से पायल को देखा । बोली "मुझे तो पता ही नहीं चला कि हमारी छुटकी इतनी बड़ी हो गई है कि वह प्यार व्यार को भी समझने लगी है । मैं तो बस ब्यूटी पार्लर में ही खोई रही इसलिए और कहीं ध्यान ही नहीं दिया" । 

"हां दी , ये सही है कि आपने हम सबकी तकदीर बदल दी है । मगर आप अपने बारे में भी तो सोचो ना । अब आप 26 साल की हो गई हो । पापा तो मस्त मौला आदमी हैं । मम्मी को आपकी चिंता होनी चाहिए लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि वे आपकी शादी करवाने के मूड में हैं । अब तक बहुत सारे लड़कों के प्रस्ताव आये लेकिन एक भी प्रस्ताव सिरे नहीं चढ़ा । क्यूं" ? 


"इसलिए दादी अम्मा कि वे सही नहीं थे , बस" । 

"नहीं दी , मुझे तो लगता है कि मम्मी नहीं चाहतीं हैं कि आपकी जल्दी शादी हो" 

"ऐसा क्यों चाहेंगी मम्मी" ? 


"ऐसा इसलिए चाहेंगी वो कि जब तक आप इस घर में रहोगी , ये घर आपकी कमाई से चलता रहेगा । जब आपकी शादी हो जाएगी तब आपकी कमाई पर उनका हक नहीं रहेगा ना । तब घर की हालत क्या होगी , रामजी ही जाने । यही सोचकर वे आपकी शादी जल्दी नहीं करना चाहती हैं । वरना तो प्रयागराज से जो रिश्ता आया था , उसमें क्या कमी थी ? मगर वह इसलिए रिजेक्ट कर दिया कि वह लड़का हमारी चाची के पीहर वालों की जान पहचान का था । इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह चाची के पीहर वालों की जान पहचान वालों में से था । मम्मी ने जानबूझकर उसे मना किया था जिससे शादी अभी और आगे टाली जा सके" । पायल ने अपनी आशंका , संदेह सब बयां कर दिया । 


यह सब सुनकर रजनी एकदम से स्तब्ध रह गई । उसने तो कभी ऐसा सोचा ही नहीं था और इस दृष्टिकोण से देखा भी नहीं था । उसे याद आया कि एक लड़का बहुत स्मार्ट था । वह उसे पसंद भी आ रहा था मगर उसकी कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला देकर वह प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था । अब तो प्रस्ताव भी आने कम हो गए थे । लोग यह समझने लग गये थे कि पता नहीं हमें कैसा लड़का चाहिए । पायल की बातों में कुछ तो सच्चाई नजर आने लगी थी रजनी को । लेकिन मन विश्वास नहीं कर रहा था । एक मां ऐसे कैसे सोच सकती है ? अपनी बेटी को कब तक रखना चाहेगी वह घर में ? लेकिन यह भी सही है कि मम्मी ने सारे प्रस्ताव ठुकरा दिये थे । रज्जो के मन में अब थोड़ा खटका सा तो हो गया था । 


एक दिन रज्जो अपने पापा को खाना परोसने जा ही रही थी कि मगन प्रसाद पंडिताइन से कुछ कह रहे थे । रज्जो चुपके से सुनने लगी। 


"रज्जो की मां , पंडित मनभर लाल एक रिश्ता लेकर आए थे मेरे पास । लड़का सरकारी नौकर है । बाप भी सरकारी नौकर है । दो ही बच्चे हैं बस । लड़के की बहन की शादी हो चुकी है । फोटो भी दिखाया था उन्होंने । लड़का फोटो में तो अच्छा लग रहा था । तुम कहो तो बात आगे बढ़ाएं" ? 


पंडिताइन ने कुछ नहीं कहा तो पंडित जी ने फिर कहा "कहो तो कल उसे देख आवें" । 

"देख लेंगे , ऐसी कौन सी जल्दी हो रही है" 


मां के ये वाक्य सुनकर रज्जो चौंकी । उसे पायल की बातें सही लगने लगीं । 


मगन प्रसाद जी फिर बोले "अब रज्जो की उमर भी 26-27 की हो गई है । कब तक अपने घर में बैठाकर रखेंगे जवान लड़की को" ? 


"आप तो सठिया गए हैं । आपको तो कुछ पता होता नहीं है । आप तो भगवान के भजनों में मस्त रहते हैं । मगर घर तो मुझे चलाना पड़ता है ना । एक मिनट के लिए सोचिए कि अगर रज्जो की शादी हो जाएगी तो वह अपने ससुराल चली जाएगी । फिर हमारा घर कैसे चलेगा ? वह कमा रही है तो हम सब अच्छे से रह रहे हैं । नहीं तो पता नहीं हमारा क्या होगा । आपने तो जिंदगी में एक धेला भी कमाकर नहीं दिया है । इसलिए उसकी शादी की अभी जल्दी नहीं है" । 


चंचला के ये शब्द सुनकर रज्जो के हाथ से थाली गिरते गिरते बची । अब तो शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी । रज्जो का दिल टूट गया था । 


जैसे तैसे करके वह पंडित जी को थाली रखकर आ गई । पायल को खाना बनाकर परोसने का कहकर वह अपने कमरे में आ गई और फूट फूट कर रोने लगी । 


थोड़ी देर बाद पायल भी आ गई थी । रज्जो ने पायल को सीने से कसकर भींच लिया और दोनों बहनें जोर जोर से रोने लगीं । थोड़ा गुबार निकलने के बाद रज्जो बोली "पायल , तू ठीक कह रही थी उस दिन कि मम्मी मेरी शादी करने में इंटरस्टेड नहीं है" । 

"कैसे पता चला दी" ? 

"आज मैंने खुद अपने कानों से सुना है । इसलिए अब शक की कोई गुंजाइश नहीं है । मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मम्मी ऐसा क्यों कर रहीं हैं ? मैंने कोई गुनाह किया है क्या" ? और रज्जो की फिर से रुलाई फूट पड़ी । 


"आपने गुनाह नहीं किया है दी बल्कि मम्मी की आंखों पर स्वार्थ का चश्मा चढ़ गया है । उन्हें भैया की चिंता है । भैया कोई काम धंधा तो करते नहीं । अगर आपकी शादी हो जाएगी तो हम लोग नंगे भूखे हो जाएंगे । फिर भैया की शादी कैसे हो पाएगी । इसलिए मम्मी सोच रहीं होंगी कि पहले भैया की शादी हो जाए फिर आपकी हो । आज मम्मी को मैंने कहते भी सुना था कि भैया के लिए कोई लड़की देखो ना" ? 


रज्जो को अब सारी कहानी समझ में आ गई । लेकिन वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई कि करें तो क्या करें ? 


पायल ने रास्ता दिखाया । 

"दी , अगर आप बुरा ना मानें तो मैं एक बार अविनाश से बात करके देख लूं कि वह आपको चाहता है या नहीं । यदि वह आपको चाहता होगा तो फिर मैं संभाल लूंगी । आपको वह पसंद आ जाएगा " । 

"मम्मी पापा क्या कहेंगे" ? 

"वो मुझ पर छोड़ दो , दी" 

"अच्छा ठीक है , जैसी तेरी मरजी" । 


एक दिन जब पायल छत पर टहल रही थी तो पड़ोस में छत पर अविनाश भी आ गया था । एक बार उसने इधर देखा लेकिन जब रज्जो दिखाई नहीं दी तो वह जाने लगा । पायल ने आवाज देकर उसे रोक लिया । 

"दी नहीं है इसलिए जा रहे थे ना आप" ? 

अविनाश की चोरी पकड़ी गई । वह सिर नीचे किये हुए रहा , कुछ नहीं बोला । पायल ने ही बात आगे बढ़ाई 

"आप दी को चाहते हैं" ? 

"जी , बहुत" 

"शादी करना चाहते हैं दी से" ? 

अब अविनाश के चौंकने की बारी थी । वह बोला 

"क्या वो भी मुझे चाहतीं हैं" ? 

"पता नहीं । मगर वो आपको चाह सकतीं हैं । मैं आप दोनों को मिलवाने का काम कर सकती हूं बशर्ते कि आप दी से शादी करना चाहते हों" । 

अविनाश का चेहरा खिल उठा । "क्या वाकई ऐसा हो सकता है" ? 

"हां, अगर तुम मुझे वचन दो तो" । पायल के स्वर में अटल विश्वास था । 

"आप ये काम करवा दीजिए पायल जी, जिंदगी भर आपका अहसान मानूंगा" । अविनाश गिड़गिड़ाते हुए बोला ।

"अच्छा , तो कल शाम को ठीक छः बजे इच्छा पूर्ण मंदिर में आ जाना" । कहकर पायल चली आई । 


उसने रज्जो से कहा "दी , अपने को इच्छा पूर्ण मंदिर में गये हुए बहुत समय हो गया है । कल शाम को छ: बजे चलें" ? 

"हां हां , जरूर" । 


दूसरे दिन दोनों बहन इच्छा पूर्ण मंदिर में आ गई । थोड़ी देर में सामने से अविनाश आता दिखाई दिया । पायल ने रज्जो से पूछा 

"दी , सामने जो लड़का आ रहा है , वह कैसा है" ? 

"कैसा है , क्या मतलब" ? 

"अरे बाबा , देखने में कैसा है" ? 

"अच्छा है । हैंडसम है । स्मार्ट है । और क्या" ? 

"इसका मतलब तुम्हें पसंद है" । पायल हंसी दबाते हुए बोली 

"इसका मतलब .... ये अविनाश है" ? 

"हां दी , यही अविनाश है । अगर आपकी अनुमति हो तो बात आगे बढ़ाएं" ? 

रज्जो उसके कान उमेठते हुए बोली 

"शैतान लड़की । तू तो बहुत होशियार निकली । क्या इसीलिए लेकर आई थी यहां पर ? अब समझ में आ रहा है तेरा षड्यंत्र । तू तो छुटकी नहीं बड़की निकली । तुझे तो मेरी बड़ी बहन होना चाहिए था " । रज्जो का रोम रोम उसे आशीर्वाद दे रहा था । 


इतने में अविनाश नजदीक आ गया था । उसने दोनों को अभिवादन किया और पास आकर खड़ा हो गया। पायल ने रजनी का परिचय करवाया फिर रजनी से अविनाश का परिचय करवाया । 


उन दोनों को अकेला छोड़ने की गरज से पायल ने कहा "दी , मेरी सहेली का फोन आ रहा है । मैं बात करके आती हूं । तब तक आप लोग बात कीजिए" । और पायल चुपके से वहां से खिसक गई । 


थोड़ी देर तक अविनाश और रजनी खामोश खड़े रहे । अविनाश ने ही चुप्पी तोडते हुए कहा "रजनी जी , अगर आप बुरा नहीं मानें तो एक बात आपसे कहना चाहता हूं" 

"जी , कहिए" 

"मैं आपसे बेइंतहा प्यार करता हूं । ये मेरा सौभाग्य होगा अगर आप हां कह दे । मंदिर में खड़ा हूं । भगवान की सौगंध खाकर कहता हूं कि आपको हमेशा खुश रखने के लिए जी जान लगा दूंगा" । 

रजनी थोड़ी देर खामोश रही । उसने अविनाश की आंखों में देखा । वहां सच्चाई और प्यार के सिवाय और कुछ नहीं था । उसने गर्दन नीचे झुका ली । 

"आपने कुछ कहा नहीं" । 

"लड़कियां कभी कुछ कहती हैं क्या ? उनकी खामोशी पढ़ना सीखिए मिस्टर" । और वह हल्के से मुस्कुरा दी । 

अविनाश ने रजनी का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा 

"आपने आज मुझे एक नई जिंदगी दी है रजनी जी । आपका यह अहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगा" । 

रजनी ने उसके होंठों पर उंगली रखते हुए कहा 

"इसमें अहसान कैसा ? मैंने कोई अहसान नहीं किया है आप पर । आप हैं ही इतने स्मार्ट कि कोई भी लड़की आपको पाकर अपने को धन्य समझेगी । 


फिर दोनों ने साथ साथ भगवान के दर्शन किए और बाहर आ गए। बाहर पायल उनका इंतजार कर रही थी । 


घर पर आकर पायल ने कहा 

"दी , अब आपको मम्मी से बात करनी होगी" । 

"मैं ? मैं कैसे बात करूंगी मम्मी से" ? 

"दी, यह काम मैं भी कर सकती थी मगर मैं यह चाहती हूं कि आप दृढ़ता पूर्वक अपनी बात कहना सीखें । इतना साहस करें कि आप हर परिस्थिति से मुकाबला कर सकें । मैं आपको स्क्रिप्ट तैयार कर दे दूंगी । आपको तो बस डॉयलॉग बोलने हैं" । वह आंख मारते हुए बोली । 


पायल ने स्क्रिप्ट तैयार कर रजनी को दे दी । रजनी ने उसे खूब अच्छी तरह से रटा फिर दोनों मम्मी के सामने आकर खड़ी हो गई। 


रजनी ने एक फोटो मम्मी को देकर कहा

"कैसा लड़का है मम्मी" ? 

"देखने में सुंदर है । अच्छी कद काठी है । जवां मर्द लग रहा है । आखिर हैं कौन यह लड़का" ? 


जवाब पायल ने दिया "आपका होने वाला बड़ा दामाद" 

चंचला एकदम से चौंक गई । कुछ याद करते हुए बोली "अरे , यह तो अविनाश है" । 

अब रजनी ने मोर्चा संभाला और कहा "हां , वही हैं । हम दोनो एक दूसरे से प्यार करते हैं और अब शादी करना चाहते हैं" 


चंचला को जब कोई बहाना नहीं सूझा तो दिल की बात जुबां पर आ गई 

"अभी जल्दी क्या है बेटी ? पहले चिराग का ब्याह हो जाने दे फिर तेरा करेंगे" । 


 बीच में हस्तक्षेप करते हुए पायल बोली 

"मम्मी, भैया बड़े हैं या दी ? कुछ तो सोचो ? दी अगर घर संभाल रहीं हैं तो यह उनकी कमजोरी बन गई । कब तक उनकी कमाई खाती रहेंगी आप ? कहीं ऐसा ना हो कि एक दिन दी और अविनाश दोनों भागकर शादी कर लें फिर हाथ मलने के अलावा और कुछ नहीं बचेगा आपके पास" । पायल के स्वर में तेजी थी । 


चंचला को अपने स्वार्थ पर अब शर्म आने लगी । उसकी आंखों से गंगा-जमुना बह निकली। रोते रोते कहने लगी "बेटी , तूने मेरी आंखों पर पड़ा स्वार्थ का चश्मा हटा दिया है । मैं एक मां होकर भी तेरे जज़्बात नहीं समझ सकी । पुत्र मोह में डूबी रही और उस बेटी की जिंदगी बर्बाद करने चली थी जिसने हमको समस्त खुशियां दीं । इतनी खुशियां पाकर लोभी हो गई थी मैं । लोभ के कारण मैं ये क्या अनर्थ करने जा रही थी । अच्छा हुआ जो तुम दोनों ने मुझे पाप करने से बचा लिया । नर्क की आग से बचा लिया। जुग जुग जिओ बेटी । मेरा आशिर्वाद तुम दोनों के साथ हमेशा रहेगा । जाओ , शादी की तैयारी करो । हमारा क्या है ? वो ऊपर वाला बैठा है ना । उसने भी तो कुछ सोचा होगा हमारे बारे में । तुम अपना घर बसाओ और अपनी दुनिया में मस्त रहो " । 


और चंचला ने दोनों बेटियों को अपने सीने से लगा लिया। 



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