Sarita Kumar

Others

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Sarita Kumar

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मेरी साहित्यिक यात्रा

मेरी साहित्यिक यात्रा

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लिखा है बहुत मैंने जीवन पर , मित्रता पर , प्यार पर , त्याग और बलिदान पर , भारत माता पर , जाबांज सैनिकों पर , कर्मठ पुरूषों पर , आदर्श महिलाओं पर , मासूम बच्चों पर और सबसे ज्यादा लिखा है छात्र और छात्राओं पर । पेशे से शिक्षक हूं इसलिए छात्र छात्राओं से विशेष लगाव रहा है । रिटायरमेंट के बाद भी मेरे स्टूडेंट्स मेरे नेटवर्क में हैं और निरंतर निर्बाध रूप से मेरा स्नेहाशीष मिल रहा है उन्हें और मुझे मेरे हिस्से का सम्मान भी । 

मेरे लेखन में पेड़ पौधे , जंगल पहाड़ , निर्जन सड़क और पशु-पक्षी भी शामिल रहें हैं । कोई भी विषय अक्षुण्ण नहीं रह सका । दुनिया के तमाम रिश्तों को उधेड़ा है , बुना और सीला है । कुछ रफ्फू किया , कुछ पैबंद लगाया है मगर उपेक्षित नहीं छोड़ा है किसी को भी । लिखा है अपने "जीवन" को भी पूरी ईमानदारी से । अच्छा बुरा , सही ग़लत , उचित-अनुचित का परवाह किए बिना सब कुछ लिखा है जो कुछ घटित होता रहा है । बेहद रोमानी कहानी से लेकर थ्रीलर , एडवैंचरस और यथार्थवादी कहानियों तक । कविताओं में देशभक्ति , वीर रस , प्रेम रस और हास्य-व्यंग्य भी थोड़ा बहुत आजमाया है बस एक कमी रह गई है वो विरह गीत की , वेदना रस की और अतृप्ति के व्याख्यान की । मगर कैसे लिखूं जिसे महसूस नहीं किया है । जिया नहीं जिन लम्हों को , गुजारा नहीं जिस वेदना को , डूबी नहीं जिस व्यथा में , तड़पी नहीं किसी के वियोग में ..... ? कैसे लिखूं विरह गीत ?????

ऐसा नहीं है कि मुझसे कोई छुटा नहीं , कोई जुदा नहीं हुआ , कोई बिछड़ा नहीं । छुटा है बहुत कुछ , जुदा हुए हैं बेहद अजीज़ लोग , बिछुड़ी हूं अपने "अपनों" से मगर ........ घटित होने वाली हर घटना को ईश्वर की मर्जी मान कर स्वीकार कर लिया था और बड़े जतन से पाला पोसा अपने उम्मीदों को । आशाओं के ज्योत जलाए रखी और इंतजार किया हर उस मंजर का जिसे देखने की इच्छा बाकी थी । ईश्वर पर आस्था , अपने कर्मों के प्रति समर्पण और साकारात्मक सोच मुझे प्रगति के पथ में निरंतर बढ़ने के लिए प्रेरित और उत्साहित करते रहे हैं । 

आज मुझे हासिल है मेरे मन का सुकून । समृद्ध हो गई हूं भावनात्मक रूप से इसलिए तृप्त हूं , संतुष्ट हूं । प्यार है मुझे संसार से । आभारी हूं ब्रह्मांड का जिसने मेरे सुख के सभी संसाधनों को उपलब्ध कराया । पूरी कायनात मेरी खुशियों के खजाना को भरने के लिए प्रयत्नशील रही है । एक तिनका भी मेरे चाहत का गुम नहीं हुआ .... । बूंद जो गिरा था आंसुओं का समंदर में वो बेशकीमती मोती बन कर मिला मुझे ......


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