Anita Mandilwar

Inspirational

3.9  

Anita Mandilwar

Inspirational

मेरे मार्गदर्शक

मेरे मार्गदर्शक

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''क्या मैं अंदर आ सकती हूं," मिश्री घोलती आवाज जब. कानों में पड़ी तो मैंने सामने देखा । नवमीं कक्षा में प्रवेश के लिए लड़की जो खड़ी थी वह बहुत ही सभ्य और शालीन, अंग्रेजी में कहें तो अप-टू-डेट, सलीके से खड़ी, लम्बा कद ..........मेरे नाम. पूछने पर उसने बहुत ही सलीके से अपना नाम पूजा बताया ।

जब कक्षा में पहली बार आई, पहले ही दिन अच्छी लगी हमें, एक शिक्षिका होने के नाते तो सभी पढ़ने वाले बच्चे हमारे लिए एक जैसे होते हैं पर कुछ उनमें भी खास हो जाते हैं, जो थोड़े अलग होते हैं, हम भले उसे दिखाते नहीं कि बच्चों को ये न लगे कि कुछ भेदभाव वाली बात हो ।

पूजा की बात ही अलग थी, बहुत चंचल स्वभाव, हर काम में आगे रहना, पढ़ाई हो या सांस्कृतिक कार्यक्रम या खेल हो आगे रहने का जज्बा ही उसे आज प्रेरित कर रहा है कि वो खूब पढ़े, आगे बढ़े, वरना उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली । वह बहुत छोटी थी उस समय । नई माँ हमेशा उसके लिए नई ही रही । उसे माँ का प्यार कभी नसीब नहीं हुआ । जब थोड़ी बड़ी हुई, उससे बहुत काम करवाती और खुद. महारानी की तरह बन सँवरकर रहती । 

ये सब बातें हमें कैसे मालूम, आप सब सोच रहें होंगे, पर कक्षा नवमीं में ज्यादा उसे जान नहीं पाये क्योंकि बीच में ही प़सूति अवकाश में चली गई । जब तक पढ़ाया इतना ही जान पाई कि पढ़ने में बहुत अच्छी है । मै जीव विज्ञान की शिक्षिका हूँ पर नवमीं कक्षा में अंग्रेजी पढाती थी । मेरे विषय में उसके अंक हमेशा नब्बे के ऊपर ही होते ।

जब अवकाश पश्चात विद्यालय.ज्वाइन किया तो वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो चुकी थी । अगले सत्र में 10वीं कक्षा की कक्षा शिक्षिका थी । मेरे ही सेक्शन में पूजा भी थी । उसकी चंचलता, आज्ञाकारिता और आगे बढ़ने की ललक ने हमें उसकी ओर ध्यान. आकर्षित करने पर मजबूर कर दिया । देखते ही देखते वो मेरे इतने करीब आ गई । कब पता ही नहीं चला । वो अपने पारिवारिक बातें, अपनी समस्याएँ भी हम से शेयर करने लगी ।

दो दिन के अवकाश के पश्चात जब विद्यालय पहुँची तो वह तो मुझसे बातें करते -करते रोने लगी । मैडम आप स्कूल क्यों नहीं आई थी ।

"क्या हुआ"-बताओ तो, मेरे पूछने पर कहने लगी - मैडम आप मुझे अपने पास ले चलिए, आपकी बहुत सेवा करूँगी । बस मुझे पढ़ना है । उसका बिषम परिस्थितियों में भी पढ़ाई और आगे बढ़ने का जज्बा हमें अंदर तक झकझोर कर रख दिया । मैंने उसे उस दिन से ही प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया जिससे वो आगे बढ़ सके ।

मन तो ये होने लगा कि उसे अपने पास ले आऊँ और उसे बहुत स्नेह दूँ, उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी करूँ, पर सामाजिक पारिवारिक कारण थे जो हमें ऐसा करने की इजाजत नहीं दे रहे थे । पढ़ने में इतनी अच्छी होने के बाबजूद उसके अंक कम आने लगे थे । बहुत परेशान थी घर की परिस्थितियों से ।

मैंने कारण जानने की कोशिश की तो पता चला कि उसके माता-पिता उसके विवाह के लिए वर की तलाश कर रहें हैं इससे वो विचलित है । मैंने उसके पिता और माँ दोनों को बुलाकर समझाने का प्रयास भी किया । वो कितना समझे ये कहना थोड़ा मुश्किल है पर मैंने अपना प्रयास जारी रखा । उसके लिए कुछ कर सकूँ यही समय है मैंने सोचा कि मैं उसे बिखरने नहीं दे सकती । मैंने उसे प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया । जब भी उदास होती उसे अपने संघर्ष की कहानी, कई प्रेरक प्रसंग जो उसे हौसला दे, बताना शुरू कर दिया ।

मुझे यह देखकर बहुत खुशी होने लगी कि इसके परिणाम दिख रहे हैं वो खुश रहने की कोशिश करने लगी और आगे बढ़ने की भी । इन सबका परिणाम ये हुआ कि दसवीं कक्षा प्रथम श्रेणी से उसने उतीण किया, इसमें सभी बिषय शिक्षकों की मेहनत थी क्योंकि वो सबकी लाडली थी । उसकी खुशी में मैं भी खुश थी । जैसे ही परिणाम नेट में आया मैंने उसे फोन लगाकर बधाई दी । खुशी से उसके आँसू रूक नहीं रहे थे । वो मुझसे मिलने विद्यालय में आई और अपने हाथों से मिठाई मेरे मुँह में खिलाया । वो मुझे कुछ उपहार देना चाहती थी पर मैंने कहा कि तुमने जो कर दिखाया है वही मेरा उपहार है और गुरुदक्षिणा भी । वाकई उसने जो उपहार हमें दिया वो जीवनपयॆन्त मेरे जेहन में मौजूद रहने वाला है । उसने कहा मैम आप मेरी मार्गदर्शक है आज आपके कारण मैंने जीना सीख लिया है । 


  आज महाविद्यालय में आगे की पढ़ाई कर रही है । पर उसका स्नेह मेरे प्रति कभी कम न हुआ । जब मिलती है गले लग जाती है और भावुक भी हो जाती है । वो खुश है ये देखकर मैं भी खुश हूॅ कि उसने जीना सीख लिया है ।



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