मेरे मां-पापा
मेरे मां-पापा
स्कूल से आते हुए हर्ष काफी खुश दिखा। वह दौड़ते हुए आया और अपने पापा को गले लगा लिया। हर्ष के पापा ने भी उसे प्यार किया और खुशी जाहिर करते हुए कहा
"तू ऐसे ही अच्छे से स्कूल आया जाया कर, मन खुश हो जाता है बस।"
दोनों अपने कमरे में गए और हर्ष ने अपने पूरे दिन की हलचल बताने लगा। लेकिन कुछ वक्त बीता ही था की हर्ष के मम्मी पापा किसी बात को लेकर आपस में झगड़ने लगे। पहले तो बातचीत थोड़ी शांत रही मगर धीरे-धीरे उनकी आवाज ऊंची होने लगी। हर्ष परेशान होकर उन्हें चुप होने के लिए कहता मगर दोनों अपने बच्चे की बात को अनसुना कर देते।
कुछ और वक्त बीता, झगड़ा और बढ़ने लगा। हर्ष परेशान होकर तेजी से चुप रहने के लिए कहता भी लेकिन दोनों नहीं सुनते। धीरे धीरे बात और बढ़ी, हर्ष के पापा ने उसकी मम्मी को चोट पहुंचाना शुरू कर दिया। यह सब देख कर हर्ष बहुत बेचैन हो गया और बिल्कुल डर गया था। वह कमरे से बाहर आया और मम्मी पापा को शांत कराने के लिए किसी को खोजने लगा। लेकिन उस वक्त कोई भी किराएदार मौजूद नहीं था पर थोड़ा सा हटकर बगल के कमरे में एक युवती रहती थी, जिसकी किसी के साथ ज्यादा बोल चाल भी नहीं थी और ना ही वो किसी से ज्यादा बात करती थी। हर्ष उसके पास गया। बिल्कुल डरा हुआ और नम आंखों से उसने कहा,"मेरे मां पापा लड़ रहे हैं।"
युवती सब जानती तो थी लेकिन उसने हर्ष को समझाते हुए कहा,"कुछ नहीं वह अभी शांत हो जायेंगे, तुम यहीं पर रहो।" लेकिन उसके मम्मी पापा का झगड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा था। हर्ष बेचैन होकर अपने कमरे के बाहर गया और हाथ से इशारा करते हुए उस युवती को बुलाया और समझाने को कहा। उस युवती ने शांत रहने के लिए कहा भी लेकिन दोनों नहीं सुने। वह अंदर भी जाने से डर रही थी क्योंकि गहमागहमी बहुत ज्यादा हो चुकी थी। पर तभी हर्ष के पापा ने उसकी मम्मी का हाथ मरोड़ते हुए उसकी मां को पीटना शुरू कर दिया। यह देख कर हर्ष तनिक भी संभल ना पाया और वह जोर से चिल्ला उठा। हर्ष बिल्कुल बिलख पड़ा था। यह देख कर युवती भी विचलित हो गई और किसी को बुलाने के लिए तेजी से बाहर गई।
हर्ष बिल्कुल बेबस बाहर खड़ा यह सब देख ही रहा था कि फिर से हर्ष के पापा ने उसके मम्मी को मारना शुरू कर दिया। यह देख हर्ष जोर जोर से रोते हुए किसी को बुलाने के लिए बाहर की ओर भागा। लेकिन गनीमत रही की बाहर से कुछ लोग आए और किसी तरह दोनों को शांत करवा कर सुलह करवाया गया। जब लोगों ने उनसे लड़ाई की जड़ पूछी तो दोनों फिर से शुरू हो जाते। तब हर्ष घबराया हुआ अपनी मां के पास जाता और शांत रहने के लिए कहता है,
' मां चुप हो जा, तू चुप हो जा।'
दरअसल हर्ष और उसके मम्मी पापा एक किराए के कमरे में रहते थे। पिछले कई महीनों का किराया भी नहीं दिया था, और हर्ष के पापा को कहीं काम मिलना भी मुश्किल हो पा रहा था , और अगर कोई काम मिलता भी तो वहां लड़ाई कर बैठते । ऊपर से मकान मालिक का कमरे के किराए के लिए बार बार टोकना वो अलग था। मगर चलो दोनों का, गैर से ही सही, किसी तरह सुलह हुआ। कुछ दिन बीते पर दोनों की नोंक झोंक अभी भी शांत नहीं हुई थी। हर्ष भी अब स्कूल आने-जाने में ज्यादा आनाकानी करने लगा। हर्ष के पापा को काम ना मिल पाने के कारण पैसों की किल्लत ज़्यादा हो गई थी। लोगों की उधारी भी बढ़ती जा रही थी। घरेलू सामान की भी कमी होती जा रही थी और हर्ष के स्कूल की फीस की टेंशन भी अलग थी।
एक दिन जरा सी नोंक झोंक फिर परवान चढ़ने लगी। दोनों में इल्ज़ाम लगाने का दौर फिर से शुरू हो गया । बात बढ़ते बढ़ते हाथापाई तक आ गई।हर्ष एक एक के पास जाता और चुप रहने के लिए कहता, लेकिन दोनों में से कोई नहीं सुनता। परेशान होकर हर्ष कमरे से बाहर आकर मदद की आस में वह दूसरों के कमरों में झांकता और बस यही कहता,
' मेरे मां-पापा लड़ रहे हैं।'