मेरा गाँव
मेरा गाँव
दीपक का घर शहर से दूर एक छोटे से गाँव में था। गाँव का नाम उसके दादा जी के नाम पर ही रखा गया था I दीपक के दादा जी अब इस दुनिया में नहीं हैंI वे थे तो उनका घर और गाँव में बहुत ही दबदबा था I उनकी बात पत्थर की लकीर होती थी I
दीपक के घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। लेकिन फिर भी वो खुश नहीं रहता था। उसे लगता था की शहर की जिंदगी अच्छी है। इसलिए एक दिन उसने अपने दादा जी के गाँव के घर को बेचकर शहर में घर लेने का फैसला कर किया। दीपक ने अपना गाँव का घर बेच दिया I
दीपक अपना गाँव का घर बेचकर शहर जा रहा था I उसके हाथ में सूटकेस था और वह स्टेशन के लिए रवाना हुआ I
स्टेशन पर ट्रेन आ गई, देखते ही देखते स्टेशन लोगों से खचाखचा भर गया अब तो पैर रखने की भी जगह नहीं थी I दीपक किसी तरह अपना सामान लेकर अपनी सीट पर पहुँच गया I दीपक ने राहत की सांस ली I अपने बैग से बोतल निकाल कर पानी पिया I अभी ट्रेन खुलने में समय था I दीपक के मन में नए –नए ख्याल आ रहे थे I वह शहर में अपना एक नया घर खरीदेगा I नया काम मिलेगा, बहुत पैसा होगा वहाँ और भी कई बातें उसके मन में चल रही थी I तभी ट्रेन का समय हो गया और ट्रेन अपनी रफ़्तार में चल रही थी I दीपक खिड़की की तरफ बैठा बाहर का नजारा देख रहा था I चारों ओर हरियाली ही हरियाली ताज़ी हवा बहुत ही सुकून मिल रहा था I कुछ घंटों बाद ट्रेन शहर में प्रवेश कर चुकी थी I मौसम बदल गया गर्मी से बेहाल और खिड़की से धूल भरी हवा चल रही थी I
चारों ओर बड़ी –बड़ी इमारतें दिख रही थी I अगला स्टेशन आने में अभी देर थी ट्रेन उससे पहले ही एक स्टेशन पर रुकी I तभी ट्रेन की खिड़की से आवाज़ आई I
एक छोटा सा बच्चा –साहब चाय पी लो, साहब चाय पी लो .....
सिर्फ 2 रूपये =2
वह छोटा सा बच्चा आवाज लगा लगाकर चाय बेच रहा था I दीपक उसकी ओर टकटकी लगाकर देख रहा था I दीपक ने कहा एक चाय दो I छोटे बच्चे ने मिट्टी के कप में दीपक की ओर चाय बढ़ा दी I दीपक ने 2 रूपये निकालकर बच्चे को दे दिए I वह बच्चा फिर आवाज लगाता हुआ आगे निकल गया I दीपक उस बच्चे को देखकर सोचता है यह बच्चा शहर में रहते हुए भी इतना छोटा काम कर रहा है I
तभी ट्रेन चल पड़ी दीपक ने अपना सामान समेटा उसे अगले स्टेशन पर उतरना था I कुछ ही घंटों में दीपक का स्टेशन आ गया I दीपक अपना सामान उठाए ट्रेन से बाहर निकला I
भूख बहुत जोर से लगी थी सोचा कुछ खा लिया जाए फिर घर की तलाश करूँगा , दीपक ने सामने एक होटल देखा और वहाँ पहुँच गया I
दीपक –भईया कुछ खाने का परोस दो कितने का होगा पैसे भी बता देना I
होटल का कारीगर –जी साहब आप बैठिये मैं मैन्यु लेकर आता हूँ I
साहब ये लीजिये आपको जो खाना है मुझे बात दो मैं आपका आर्डर लिख लेता हूँ I
दीपक ने मैन्यु देखा तो दंग रह गया I सभी कहने की चीजें बहुत ही अधिक मूल्य की थी I पर भूख भी बहुत जोर से लगी थी सो दाल चावल खा लिए I अब घर की तलाश थी I लोगों से पूछते हुए एक किराए का घर मिलाI इतना छोटा जहाँ घुसते ही वह ख़त्म हो जाता थ I रात गुजारनी थी सो हाँ कर दीI और अपना सामान अन्दर रखा I थका हुआ था इसलिए नींद आ गईI आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी I अपने गाँव के घर की बहुत याद आ रही थी I गाँव का घर बहुत ही बड़ा था I पर यहाँ छोटा सा घर I
चलो कोई बात नहीं आज नौकरी की तलाश में निकलना था I दीपक नहा धो-कर तैयार हुआ और चल पड़ा I होटल में जाने से हिचकिचाहट हुई पैसे अधिक लगते थे इसलिए बाहर ठेले से ही चाय नाश्ता कर लिया I पूरा दिन भटका पर काम नहीं मिला I एक महीना निकल गया I कोई काम नहीं अब तो जो जमा पूंजी थी वो भी ख़त्म होने वाली थी I गाँव का घर बिक तो गया था पर अभी उसके पैसे दीपक को नहीं मिले थेI दीपक ने गाँव अपने दोस्त को फोन किया –
दीपक –मित्र मोहन जो घर बेचा था उसके पैसे आ गए हो तो भिजवा दो I मुझे पैसों की बहुत जरूरत है I
मोहन –दीपक क्या हुआ पूरी बात बताओ I (दीपक ने सारी बातें रोहन को बता दी )
मोहन –दीपक जो शहर में नहीं हो पा रहा वो तुम गाँव में भी कर सकते हो अपना काम खोलो तो देखो कितनी तरक्की होगी I
दीपक को मोहन की बात उचित लगी अब दीपक वापस अपने घर अपने गाँव लौट रहा था I