Mamta Singh Devaa

Inspirational

4.0  

Mamta Singh Devaa

Inspirational

मेरा देश... भारतवर्ष

मेरा देश... भारतवर्ष

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मिलता नही सबको ये सर्वोत्तम भाग्य 

राजा भरत और मेरा देश भारत हैं मेरा सौभाग्य।


घर के कामकाज से निबटकर शकुंतला जैसे ही कुटिया से बाहर निकली आश्चर्य से उसका मुंह खुला का खुला रह गया उसके भाव में हैरत के साथ ही डर भी भरा हुआ था...पल भर को लगा कि उसकी पैरों के नीचे धरती नाच गई हो।


उसका बेटा भरत शेर के बच्चों की पूंछ पकड़कर घसीट रहा था और उसके ठीक पीछे था उन शावकों का पिता वनराज भयानक सिंह जिसकी आंखों को देखकर सामान्य इंसान के होश हवास उड़ जाएंगे। शकुंतला का कलेजा मुंह को आ गया उसने देखा नन्हा-सा भरत उठा और पहले उसने शावकों के दांत गिन और फिर उस शेर की पीठ पर चढ़कर सामने झुक गया और उस शेर के दांत गिनने लगा था।

शकुंतला के जीवन में दुख कम नहीं था। उसके पति राजा दुष्यंत ने भरी सभा में उसको पहचानने से इनकार कर दिया था...सीधे मुंह कह दिया था दुष्यंत ने...कौन हो तुम ?


यह कहानी लंबी है पर ऋषि कण्व के साथ राजा के यहां गई शकुंतला को वापस लौटना पड़ा था। खाली हाथ अपमानित उसकी आंखों से धारासार आंसू बहते रहे क्रोध से, अपमान से और अपने पेट में पल रहे शिशु के भविष्य के बारे में सोचकर। पर ऋषि कण्व ने भी आसरा नहीं दिया था और शकुंतला को ऋषि कश्यप के यहां आसरा लेना पड़ा था।


शेर और उसके शावक जंगल में लौट आए थे तब शकुंतला ने गुस्सा दिखाया था, जंगली जीवों को ऐसे बांधकर क्यों रखते हो तुम ?


भरत ने मासूमियत से जवाब दिया था ' मां ये मेरे साथ खेलते हैं अगर कहीं भाग गये तो फिर मैं किसके साथ खेलूंगा...और फिर मुझे इनकी सवारी भी तो करनी है। '


' पुत्र तुम्हारे अंदर इतनी ताक़त कहा से आ गई कि तुम राक्षसों, दानवों और सिंहों का दमन करने लगे...अब मैं समझी कि आश्रम वालों ने तुम्हारा नाम ' सर्वदमन ' क्यों रखा है। '


मछली के पेट से अंगूठी मिल जाने पर राजा दुष्यंत को सब कुछ याद आ गया और वो सम्मान पूर्वक शकुन्तला व भरत को हस्तिनापुर ले आये। भरत बड़े होकर चक्रवर्ती भरत के नाम से हस्तिनापुर के राजा बन अपने जीवन काल में यमुना, सरस्वती तथा गंगा के तटों पर क्रमश: सौ, तीन सौ तथा चार सौ अश्वमेध यज्ञ किये और हस्तिनापुर को राजधानी बनाया। 


भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ जिनसे उन्हें नौ पुत्रों की प्राप्ति हुई लेकिन भरत संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने घोषणा की....


' ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं हैं। '


राजा भरत का ये कथन सुनते ही उनके शाप से डरकर उन तीनों माताओं ने अपने-अपने पुत्र का हनन कर दिया। 


वंश के बिखर जाने पर वंश प्राप्ति के लिए राजा भरत ने कई यज्ञ किये। मरुद्गणों ने भरत को भारद्वाज नामक पुत्र दिया भारद्वाज के जन्म की कथा भी बहुत विचित्र है। बृहस्पति ने अपने भाई ' उतथ्य ' की गर्भवती पत्नी ममता का बलपूर्वक गर्भाधान कर दिया लेकिन उसके गर्भ में ' दीर्घतमा ' नामक संतान पहले से ही विद्यमान थी। बृहस्पति ने उससे कहा...बस इसका पालन पोषण भर करो यह मेरा जायज़ और भाई का क्षेत्रज पुत्र होने के कारण दोनों का ' द्वाज ' पुत्र है।


भारद्वाज जन्म से तो ब्राह्मण थे किन्तु भरत का पुत्र बन जाने के कारण क्षत्रिय कहलाये। भारद्वाज की कृपा से ' भूमन्यु ' नामक पुत्र हुआ था। राजा भरत ने इसका युवराज अभिषेक किया किन्तु अपने पुत्र को राज्य के कार्य भार से विरक्त देख चिंता हुई।


' पुत्र भूमन्यु क्या तुम्हें राज पाट में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है ? '


' पिता श्री एकदम नहीं है मैं क्या करूं इन सब में मेरा मन ही नहीं लगता...इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ तथा अपने इस पद को त्यागता हूॅं।


भारद्वाज ने भी स्वयं शासन नहीं किया और भरत के देहावसान के बाद उन्होंने ने अपने पुत्र ' वितथ ' को राज्य का भार सौंपा और स्वयं वन में चले गए। 


इस वंश के सब राजा 'भरतवंशी' कहलाए तथा सिंहो के साथ बचपन से खेलने वाले इस महावीर शक्तिशाली और पराक्रमी राजा भरत के नाम पर ही मेरा देश ' भारतवर्ष ' कहलाया।   



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