मेरा अस्तित्व..!
मेरा अस्तित्व..!
अरे आरव तू यहाँ.....!
कितने समय बाद तुझे देखा है यार...
मुंबई जाकर तो तू मुझे भूल ही गया....।
समीर ने आरव को गले से लगाकर कहा...।।।
पर आरव बिल्कुल खामोश था...।। जैसे उसे मिलकर कोई फर्क ही नहीं पड़ा हो...।
समीर-क्या हुआ यार तू इतना चुप चुप क्यूँ हैं....?
और पहले ये बता तू इस तरह से अचानक मुम्बई क्यूँ चला गया था..। बताकर भी नहीं गया....?
आरव-तुझे नहीं पता... मैं क्यूँ गया था...?
समीर-पता होता तो तुझसे क्यूँ पुछता यार...।
आरव- क्यूँ तुझे यहाँ गाँव में कभी किसी ने कुछ नहीं बताया...?
समीर- अरे यार तू भूल गया क्या... तेरे जाने से एक रात पहले ही तो बात हुई थी हमारी... याद कर ...तू, मैं, पंकज, अज्जू सब यही पेड़ के नीचे बैठकर ही बात कर रहे थे....। मैं अगले दिन दिल्ली जाने के बारे में बात कर रहा था... मेरे बड़े भाई का वहाँ एक्सीडेंट हो गया था... मुझे बुलाया था....। मैं तो अगले दिन तड़के ही चला गया था...। अभी कल ही तो वापस आया...। आते ही सीधे तेरे घर गया तो पता चला तू भी उसी दिन मुम्बई चला गया था...। पर तूने बताया नहीं था उस रात कुछ भी..... ओर उसके बाद कोई खबर नहीं...। मैंने तेरी मम्मी से पुछा तो उन्होंने भी कुछ नहीं बताया..। क्या बात है यार तू अभी इतना चुपचाप क्यूँ हैं.... तू ऐसा तो नहीं था....!
आरव- इसका मतलब तुझे कुछ नहीं पता...!
समीर- क्या नहीं पता....! क्या बात है यार...!
आरव- वही तो मैं भी सोच रहा था कि तू ऐसे मुझे क्यूँ गले लगा रहा हैं...!
समीर- क्या मजाक कर रहा है तू यार.... मैंने तुझे कोई पहली बार गले लगाया हैं क्या....। अरे तू तो मेरा चड्ढी यार हैं....। बचपन से हम साथ हैं...। वो भी क्या दिन थे नहीं....।।
आरव- हां जानता हूँ.... पर जब तुझे सच पता चलेगा तो ये यारी.. दोस्ती पल भर में खत्म हो जाएगी....। तू प्लीज यहाँ से चला जा ओर मुझे अकेले रहने दे..।
समीर- ऐसा क्यूँ बोल रहा है तू ..... ऐसा क्या हुआ है जो मुझे पता नहीं हैं और पता चलते ही दोस्ती तोड़ दूंगा...। मैं भला ऐसा क्यूँ करूंगा यार...। पूरे गाँव में एक तू ही तो मेरा सच्चा दोस्त हैं....। पूरे दो महीने बाद आया हूँ अपने गाँव.... अपने दोस्त के पास... ऐसे थोड़ी ना छोड़ दूंगा ..!
आरव- समीर तूने अपने घर पर बताया है कि तू मुझसे मिलने आया है..?
समीर-नहीं यार.... मैं तो बाज़ार जा रहा था कुछ सामान लाने घर का.... तू दिख गया तो पहले यहाँ आ गया.... और मुझे तुझसे मिलने के लिए घरवालों की इजाजत कबसे लेनी पड़ी..? आज तक कभी रोका हैं क्या उन्होंने जो अब कुछ बोलेंगे.... अरे अपने यार से मिल रहा हूँ कोई लड़की से थोड़ी ना मिल रहा हूँ... ! (समीर हंसते हुए)
आरव- पहले की बात ओर थी समीर अब चीज़ें बदल गई हैं....। प्लीज अब अगर तेरे घरवाले तुझे इजाज़त दे तो ही मुझसे बात करना.... वरना मैंने तो आदत डाल दी हैं सबके बिना रहने की....।
समीर- आरव बात क्या है... तू ऐसे क्यूँ बोल रहा है..?
आरव- ये सब बताने की मुझमें हिम्मत नहीं हैं..... तू गाँव में किसी से भी या फिर अपने घरवालों से ही पूछ लेना..। अभी मैं चलता हूँ....। मैं वैसे भी कल वापस मुम्बई जा रहा हूँ...। बस माँ को देखने आया था... देख लिया...। अपना ध्यान रखना यार...। ( आरव समीर को गले से लगाकर वहाँ से चला गया)
समीर उसे बुलाता रहा पर वो नहीं रुका, वो आरव को जाते हुए देख रहा था.... और सोच रहा था.... ये आरव अपने घर की ओर ना जाकर गाँव के बाहर मंदिर की ओर क्यूँ जा रहा हैं...? वो ऐसा रुखा रूखा क्यूँ बर्ताव कर रहा हैं...?
समीर से रहा नहीं गया और वो भाग कर अपने दूसरे दोस्त पंकज के घर पहुँचा..।
पंकज- अरे समीर तू कब आया...। आ अंदर आना...। तेरे भाई की तबीयत कैसी है अब...? मैंने सुना तो था तू आया हैं वापस पर यार समय ही नहीं मिला... वरना मैं खुद आता तुझसे मिलने..।
समीर- मुझसे मिलने तो आता.... आरव से मिला...?
पंकज- आरव....!
वो भी आया है क्या..?
समीर- तुझे नहीं पता...? ऐसा तो हो ही नहीं सकता पंकज...। गाँव में कौन कब आया... कौन कब गया.... ये खबर तुझे सबसे पहले पता चल जाती हैं...।
पंकज नजरें चुराते हुए- नहीं मुझे... सच में.... नहीं पता...। कब आया वो...।
समीर- किससे झूठ बोल रहे हो यार... अपने आप से या अपने यार से...?
पंकज- नहीं ऐसा नहीं हैं... वो बस.... मुझे नहीं मिलना उससे.... और तू भी दूर रह उससे...।
समीर- लेकिन क्यूं ..? क्यूँ दूर रहूँ आरव से...?
पंकज- समीर बात को समझ...। तू अभी आया है... आराम कर... बाद में बात करेंगे इस बारे में..।
समीर- नहीं पंकज मुझे अभी जानना है...।क्या समझूँ..? मुझे बता तो सही क्यूँ दूर रहें..?
पंकज- समीर वो हम जैसा नहीं हैं..!!!
समीर- क्या मतलब....??? मैं समझा नहीं...!!
पंकज- समीर अब वो बदल चुका है... इसलिए उसकी माँ ने भी उसे घर से निकाल दिया है..। उसकी अब एक अलग दुनिया हैं...। हम उसकी दुनिया में नहीं आते...।
समीर- क्या घर से निकाल दिया...! लेकिन क्यूँ...?
साफ साफ बोल बात क्या हैं....!
पंकज- समीर ...... आरव किन्नर है....!। वो अब हमारे समाज में नहीं रह सकता...। गाँव वालों ने उसे गाँव से निकाल दिया है....। उसी दिन जिस दिन तू दिल्ली गया था...। वो कुछ दिन पहले भी आया था अपनी माँ से मिलने...। वो बस अपनी माँ से मिलकर चला जाता है...। कल भी आया और अब तक तो चला भी गया होगा...। गाँव के सरपंचों ने उसे किसी से भी गाँव में मिलने या बात करने पर रोक लगा दी है...सिवाय उसकी माँ के..। इसलिए मैं तुझसे भी कह रहा हूँ... भूल जा उसे....
समीर- इतना सब कुछ हो गया और मुझे किसी ने बताया भी नहीं...। अगर वो किन्नर हैं तो उसमें आरव की क्या गलती हैं यार....। नहीं मैं ये सब दकियानूसी बातें नहीं मानता... मैं आरव को ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकता.. मैं जा रहा हूँ.... अपने बचपन की दोस्ती निभाने...।
पंकज- समीर रुक..! ज्यादा जज्बाती मत हो...। तू गाँव के कानून जानता हैं ना...। पागलों जैसी हरकतें मत कर..। उन लोगों का समाज अलग हैं... रहन सहन अलग हैं.... और आरव उस माहौल में ढल चुका है....। वो अपनी नई दुनिया अपना चूका है तो तू क्यूँ खुद को कुएं में ढकेल रहा हैं....।
समीर- तू ये सब इसलिए कह रहा है... क्योंकि तू ने आरव के बारे में सिर्फ सुना हैं... मैंने आरव को देखा है... मैं मिल चुका हूँ उससे... मैंने अपनी आँखों से देखा हैं वो खुश नहीं हैं पंकज...।
पंकज- ये तू क्या कह रहा हैं समीर....! तू आरव से मिल चुका है...। कब...? कहाँ....?
आरव की आगे की कहानी अगले भाग में जरूर पढ़ें.......
क्रमशः....................... जय श्री राम...