NOOR E ISHAL

Comedy Drama Action

4.5  

NOOR E ISHAL

Comedy Drama Action

मेरा आलू बुखारा भाई

मेरा आलू बुखारा भाई

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280


इस विषय को देखकर अनायास ही मुस्कुराहट चेहरे पर आ गयी थी क्यूँकि चाय का एक मज़ेदार किस्सा प्यारी सी यादों की सुनहरी अलमारी खोलकर ज़हन में आ चुका था।

हुआ यूँ था कि मैं अपने पोस्ट ग्रेजुएशन का फर्स्ट ईयर पूरा करने के बाद अपनी बुआजी के यहाँ छुट्टियाँ बिताने आ गयी थी।

बुआजी की बेटी उस समय बारहवीं क्लास में थी और बुआ जी का बेटा चार साल का था। एक दिन बुआजी को पड़ोस में कुछ काम था और उनके नौकर किसी काम से बाहर गये हुए थे।। घर पर हम चारों के अलावा कोई नहीं था।

बुआ काफ़ी परेशान हो रहीं थीं तो मैंने उनसे कहा,

"आप ये सामान हमें दे दिये मैं और सारा यमीना आंटी को दे आते हैं।"

पहले तो बुआ जी ने मना कर दिया लेकिन काम बहुत ज़रूरी था तो फिर हाँ कह दिया।जब हम जाने लगे तो पीछे से बुआ जी ने आवाज़ लगाकर कहा,

"समीर को ले जाओ।"

"मम्मी हमारे साथ समीर क्या करेगा जाकर।" सारा बोली

" अरे ले जाओ तुम दो लड़कियाँ अकेली जा रही हो कम से कम एक लड़का तुम्हारे साथ रहेगा।" बुआ जी मुस्कुराकर बोलीं

"चल आ भई लड़के।। तू भी चल।। आपा हमारे मुकाबले इस लड़के का साइज़ देख रही है।। दो बालिश्त में इसकी पूरी लंबाई तमाम हो जाती है। और दो लड़कियाँ अकेली कैसे हो सकती हैं। "सारा चिढ़ चुकी थी। सारा की बात सुनकर बुआ जी उसपर नाराज होने लगीं।।

"जब देखो तब ये अपने भाई को ऐसे ही कहती रहती है। "

"अरे आप सारा पर नाराज मत होइये।। समीर हमारे साथ जा रहा है। "मैंने झगड़ा ख़त्म करना चाहा क्यूँकि मुझे मालूम था बुआ जी अगर शुरू हो गयीं तो सारा की सारी बखिया उधेड देंगी।

"चलो ss।। We are going now।" मैंने सारा को धकेलते हुए कहा

घर से बाहर गेट पर आने तक बुआ जी के सारा पर गुस्सा होने की आवाज़ लगातार आ रही थी।

"क्या हो जाता जो चुपचाप उनकी बात मान लेती।" बाहर आकर मैंने सारा से कहा

"अरे आप टेंशन मत लीजिए ये हमारे यहाँ रोज़ का किस्सा है।। वो इसकी छोटी सी टाँग हर जगह अड़ा देती हैं।। जब कि वो जानती हैं ये कितना शरारती है।" सारा ने हँसते हुए कहा

फिर समीर के सिर पर प्यार से हाथ मारते हुए कहा,

" दो अकेली ल़डकियों के साथ इक लड़का जा रहा है। मम्मी भी ना कभी कभी बहुत हिट दे देती हैं। और इसको देखिये छोटू को कल से जब से ये बाल कटवाकर आया है और ज़्यादा आलू बुखारा लगने लगा है। " सारा की बात सुनकर मेरी हँसी छूट गयी तो सारा भी हँसने लगी।

यमीना आंटी का घर आ गया था और हम उनके घर में अंदर आ चुके थे

" सलाम आंटी,मम्मी ने आपका सामान भिजवाया है "

" वालेकुम सलाम, बेटा आप लोगों ने क्यूँ ज़हमत की।। हमें भाभी फोन कर देती।। आप दोनों इस तरह अकेले आ गये।"

सारा ने फौरन मेरे कान में बुदबुदाया मम्मी की बहुत अच्छी दोस्त हैं।। अब देखियेगा।।

" आंटी।। हम अकेले कहाँ आये हैं समीर आया है ना साथ में। "

" अच्छा हाँ।। फिर ठीक है।। बातों बातों में मैंने ध्यान ही नहीं दिया। "

" देखिये लड़का इतना छोटा है कि दिखा नहीं इनको मगर  मेरी बात सुनकर कैसा इत्मिनान इनके चेहरे पर उतर आया।" सारा लगातार मेरे कान में बुदबुदा रही थी और मैं नकली मुस्कुराहट के साथ आंटी को देख रही थी।

" अरे बेटा बैठो चाय पीकर जाना। "

" thank you aunty। हम लोग अब चलेंगे। बुआ जी ने जल्दी आने को कहा था। "मैंने पीछा छुड़ाते हुए कहा क्यूँकि सारा की बातों से हँसी रोक पाना ना मुमकिन सा हो गया था।

"आपा।। बैठो ना।। मैं तो चाय पीकर जाऊँगा।" समीर वहाँ फैल चुका था

" हाँ हाँ बेटा बैठो ना। "आंटी ने कहा

" नहीं आंटी ।। ये चाय नहीं पीता है आपको पता तो है। "सारा बात सम्भालते हुए बोली।

"आपा।। मैं तो चाय पीकर ही जाऊँगा।।" समीर रो देने वाला था तो हम लोग बैठ गये

"हाँ बेटा तुम लोग बैठो।। हम ज़रा चाय के लिये दूध मँगवा लें। "

सारा और मैं हैरान से एक दूसरे को देख रहे थे।। इसका मतलब ये हुआ कि आंटी भी रस्मन ही चाय को पूछ रही थी उन्हें भी उम्मीद थी कि बच्चे हैं चाय को मना कर देंगे।

एक शर्मिंदगी का एहसास होने लगा था मगर समीर तो चाय पीने के लिये अड़ा बैठा था।

" आंटी सुनिये अब अगर आप चाय के लिये दूध मँगवा ही रहीं हैं तो एक Parle G और मँगवा लियेगा।" समीर ने कहा

बस मेरे लिये इतना काफी था मुझसे हँसी रुक नहीं पायी और मैं हँसे जा रही थी मेरे साथ सारा और आंटी भी हँसने लगे।

"हाँ मेरे बाबू।। आज तुम्हें चाय और Parle G खिलाये बिना भेजेंगे नहीं।। तुम बेफिक्र रहो। " आंटी ने समीर को प्यार करते हुए कहा

और अंततः चाय बनी।। Parle G भी आया।। समीर ने चाय पी।। दो कप चाय के साथ पूरा Parle G भी निपटाया।। हम दोनों ने चाय के लिए मना कर दिया था क्यूँकि ज़बरदस्ती की चाय हल्क़ से उतरना भारी हो जाता। सामने टेबल पर चाय और Parle G मौजूद था। समीर बाबू सोफ़े पर पालथी मारकर आराम से विराजमान थे क्यूँकि इतने छोटे थे कि सोफ़े पर बैठकर टेबल से चाय और Parle G मैनेज नहीं कर पा रहे थे तो टेबल को सोफ़े से मिला दिया गया था। ।। और हम बस इन्तेज़ार कर रहे थे कि कब समीर बाबू चाय ख़त्म करें और हम यहाँ से फरार हो। किस्सा तो तमाम हुआ था मगर उसकी यादें आज भी बाकी हैं।


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