मौत एक रहस्यमयी बंदर की
मौत एक रहस्यमयी बंदर की
रहस्यमयी बंदर की कहानियों में शायद मेरी यह कहानी अलग हटकर है--इसमें न तो कोई कौतुक है, न किंवदंती और न ही धर्म ग्रंथों की कहानी
मेरे एक मित्र सतीश की शादी बड़े धूमधाम से मीना के साथ हुई, उनकी मुलाकात एक ही बार होटल में लड़की देखने के चक्कर में ही हुई थी और फिर दोनों ने एक ही नजर में एक दूसरे को पसंद कर लिया था। शादी बाद विदा होकर मीना साॅरी अब मीना भाभी अपनी ससुराल आयीं तो विद्वान पंडितों द्वारा न जाने कौन सा कोप पैदा कर दिया और उनके मिलन रात्रि को दो दिन के लिए टालना पड़ गया। तीसरे दिन घर में पूजा वगैरह हुई और पूजा के दरमियाँ ही नजरों ने नजरों से कुछ गुजारिश की--उनका कमरा सजाया गया, मन में मिलन के लड्डू बनाये जा रहे थे।
हम दोस्त अनुभवों की कथाओं के ग्रंथ खोलकर बैठे थे लेकिन सतीश बारबार घड़ी देख रहा था तभी चाचा जी हांफते हाँफते आये और मुझसे बोले कि बहू को तुरंत उसके मायके भिजवाना है, उसके दादा जी सीरियस हैं--बिचारे सतीश के सारे लड्डू नर्म बेसन के निकले जो एक एक करके फूट गये--मीना भाभी को तुरंत मायके भिजवाया गया--और उसके तीन दिन बाद दादा जी का इंतकाल हो गया--
अब विदाई एक माह के लिए टल गयी, जैसे तैसे एक माह गुजरा था कि दादा जी के गम में दादी जी अपने साथ सात जन्मों का वचनों को निभाने के लिए दादा जी के पास चली गयीं--
अब सतीश झल्ला गया और फोन पर ही मीना भाभी से बोला - - और भी बुजुर्ग बचे हैं क्या--विदाई का मुहूर्त तीन माह का निकला था, दोनों अजीब परेशानी में थे--और उनके परिवार वाले ठहरे पुरातनपंथी---खैर भला हो, मीना भाभी की मुंह बोली भाभी का जो पड़ोस में ही रहतीं थीं और उनकी दीवाल और छत आपस में जुड़ी हुई थीं।
उस समय वहां बंदरों का बड़ा आतंक था--बिना बताये कभी भी आ जाते और ऊधम करते, सूखने के लिए पड़े कपड़े फाड़ देते - - कई बार रात में भी छत पर जाकर भगाना पड़ता था--
हां तो मैं बता रहा था कि पड़ोस की भाभी ने एक प्लान बनाया कि सतीश को बुलाया जाये और रात में बंदर भगाने के बहाने मीना भाभी से मिलन कराया जाये--प्लान बन गया, अब सतीश भी शनिवार को वहां पहुंच कर होटल में रुक गये। रात्रि को छत पर खटपट हुई तो मीना भाभी बंदर आया कह कर डंडा लेकर ऊपर चली गयीं चूंकि उनके पापा-मम्मी को सीढी चढने में थोड़ा प्रोबलम थी--और उनका मिलन होने लगा--अब हर शनिवार को सतीश आ जाते और दो दिन रात में बंदर भगाये जाते।
उन दिनों अमावस्या की अंधेरी रात थी, शनिवार को दोपहर से मीना भाभी को तेज सिर में दर्द हो रहा था, उन्होंने सोचा रात में जगना पड़ेगा तो अभी नींद ले लूं तो नींद की दवा खाई और सो गयी - - पता ही नहीं चला कब रात हो गयी---सतीश बंदर ने बहुत उछल कूद की लेकिन मीना भाभी तो गहरी नींद में थी--झकमार कर वह सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे कि आखिरी सीढ़ी के घुमाव को नहीं देख पाये और धड़ाम से नीचे गिरे--आवाज सुन कर उनके ससुर जी उठ गये और उन्होंने ने समझा बंदर आ गया तो डंडा उठा कर भागे, इधर सतीश जान बचाने के लिए ऊपर सीढ़ियों पर चढ़ कर भागा, पैर में मसल्स खिंच जाने के कारण वह सच में बंदरों की तरह उछल कर भाग रहा था--खैर जैसे तैसे पड़ोस के घर में पहुंचा और फिर होटल--होटल से जैसे तैसे वापिस अपने घर लौट आया - - दूसरे दिन उनके पापा ने मीना भाभी को बताया - बेटा कल रात एक बहुत बड़ा बंदर आया था--तुम तो सो रही थी, मैं डंडा लेकर उसके पीछे भागा था, बस उसका भाग्य अच्छा था बच कर भाग गया--अब मीना भाभी को ध्यान आया कि कल तो शनिवार था, वह दौड़ कर अंदर गयीं और उन्होंने सतीश को फोन लगाया तो कराहते हुए सतीश के मुंह से यही निकला था--अब बंदर मर गया--जब मुहूर्त निकलेगा तभी आऊंगा--