मैं नहीं कमज़ोर
मैं नहीं कमज़ोर
उम्र के साथ सिर्फ शरीर कमज़ोर हुआ है दिमाग नहीं
"अम्मा ! ज़रा आज नाश्ता आप ही बना दो ना। भव्या की तबियत कुछ ठीक नहीं है। वह कह रही है कि अपने नाश्ते में वह कार्नफ्लेक्स और दूध ले लेगी। आप बस मेरे लिए टिफिन और अपने और बाबुजी के लिए नाश्ता बना लो !"
बोलकर अमन फटाफट ऑफिस के लिए तैयार होने चला गया।
गोदावरी जी समझ गईं ये धनबाद से मुन्ने के मुंडन से आने के बाद से बार बार भव्या की तबियत क्यों ख़राब हो रही है। और यह सब नाटक आखिर क्यों किये जा रहे हैं।
खैर... उस दिन उन्होंने किसी तरह अमन के लिए टिफिन में चार आलू के परांठे भरके दे दिए और अपने और पति गोविन्द जी के लिए एक साथ ही दाल चावल और रायता बना लिया। बुढ़ापे का शरीर था। उनसे इससे ज़्यादा काम नहीं किया गया।
रसोई का काम निपटाकर भव्या के कमरे में एक ग्लास दूध पहुँचाने जा ही रहीं थी कि कमरे से भव्या की किसीसे हँस हँसकर बोलती आवाज़ सुनकर बाहर ही ठिठककर रुक गईं।
"अरे... तु नहीं जानती मेरी सास को। एक नंबर की चालाक है और कंज़ूस भी। मैंने कितनी बार कहा कि एक खाना बनानेवाली रख लेते हैँ। इससे उन्हें तो पूरा आराम मिल जायेगा और मुझे भी रसोई से छुट्टी मिलेगी तो थोड़ा मी टाइम मिल जाया करेगा। आए... हाए... ईन दिनों इतने सारे वेब सीरीज आए हैं कि मन करता है देखती चली जाऊँ। पर ये खाना बनाना, घर का इतना सारा काम होता है कि फुरसत ही नहीं मिलती !"
गोदावरी जी साँस रोके हुए बाहर ही खड़ी रहीं। समझ नहीं पा रहीं थी कि क्या करें। अंदर जाएं या नहीं।
पर तभी उधर से पूछे हुए किसी सवाल के जवाब में भव्या ने कहा,
"लो कर लो बात... ! वहाँ धनबाद में तो जेठानी के यहाँ घर का काम करनेवाली है ही ऊपर से खाना बनानेवाली अलग से लगा रखी है और ऊपर से एक मेड मुन्ने के की देखभाल और मालिश के लिए अगर से लगा रखी है। ठाट हैँ उनके तो। यार, इनलोगों को मैं सिर्फ खाना बनाने और घर संभालने वाली बनाकर रख दिया है। इसलिए अबसे मैं तो बीमारी का बहाना करके रसोई का सारा काम सासू माँ पर छोड़ रखा है। कुछ ही दिनों में इस झंझट से बचने के लिए उन्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी।
दरअसल धनबाद में गोदावरी जी का बड़ा बेटा अनंत और उसकी पत्नी वनिता अपने दो बच्चोंनिक्की और चीकू के साथ साथ रहते थे। बच्चे अभी छोटे थे और विनीता अभी जॉब पर चली जाती इसलिए फिलहाल उसने उनके लिए एक वृद्ध ज़रूरतमन्द को रख लिया था जो बड़े ही प्रेम और अपनेपन से बच्चों को संभालरी थी। पिछले दिनों क्रिसमस पर सारा परिवार वहीं इकठ्ठा हुआ था। इसलिए वहाँ उनका रहन सहन और दिनचर्या देखकर आने के बाद से ही भव्या अब यहाँ कोई काम नहीं करना चाहती थी।
पहले तो गोदावरी जी ने सोचा अभी भव्या को कुछ ना कहें पर फिर कुछ सोचकर उन्होंने कमरे में प्रवेश किया और उन्हें देखकर भव्या एकदम हड़बड़ा गई तो दूध का ग्लास उसे पकड़ाते हुए बोलीं,
"देखो बेटा ! मैं यहाँ भी खाना बनानेवाली रख सकती हूँ। पर अभी हमें उतनी ज़रूरत नहीं है। वहाँ सब काम फ़ास्ट है। और बच्चे छोटे हैँ। इसके अलावा बेटा बहू दोनों नौकरी करते हैं तो मेड उनकी ज़रूरत है कोई ठाट नहीं। और यहाँ तुम जो अपने अनाड़ी हाथों से कच्चा पक्का बनाती हो उसमें एक प्यार और अपनापन झलकता है। इसलिए मैं चाहती थी कि तुम पहले घर के कामों में निपुण हो जाओ और फिर चाहो तो खाना खुद बनाओ या मेड रखो वह तुम देख लेना !"
सास की बात सुनकर भव्या को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने गोदावरी जी से माफ़ी माँगी।
अगले दिन से फिर से घर का काम सुचारु रूप से चलने लगा तो पतिदेव ने उनसे पूछा कि,
"ये कमाल कैसे हुआ भला?"
तो गोदावरी जी ने हँसते हुए कहा,
"इस उम्र में सिर्फ शरीर कमज़ोर होता है दिमाग नहीं !"
फिर दोनों हँसने लगे। थोड़ी देर में उनकी हँसी में बेटे बहू की हँसी भी शामिल हो गई।