मैं हार नहीं मानूँगी
मैं हार नहीं मानूँगी
माँ आप यह क्या कह रही हैं ? आप समझ क्यों नहीं रही हैं। प्लीज़ आप पापा को भी मेरी शादी में बुला लीजिए क्योंकि कन्यादान आप दोनों को ही करना है।
मानिनी ने कहा -देख !सोनी तुम मुझे नहीं समझ रही हो। मेरी बात भी समझो ना बेटा।
सागर ने कहा- माँ सोनी ने ठीक ही कहा है। आप और पापा अलग अलग रहते हैं। यह मैंने बचपन से देखा है। इसका मतलब तो यह नहीं है न कि आप अपनी बेटी की शादी में उसके पिता को निमंत्रण न भेजें।
माँ हमारे घर में जो भी पूजा या त्योहार हो आप चाचा चाची या मामा मामी को ही बिठाती हैं। अब हम बड़े हो गए हैं और हम चाहते हैं कि आप और पापा हमारा कन्यादान करेंगे तो हमें भी अच्छा लगेगा साथ ही सोनी के ससुराल में भी उसकी इज़्ज़त बनी रहेगी।
मानिनी चुपचाप बच्चों की बातें सुन रही थी। उसने उनकी बातों का जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में चली गई। उसने अंदर से दरवाज़ा बंद कर दिया।
उसे वह दिन याद आया जब माता-पिता ने उसकी शादी दीपक से करा दी। वह सरकारी नौकरी करता था। माता-पिता ने सोचा अकेला लड़का है मानिनी को बहुत खुश रखेगा। मानिनी के कहने पर कि पढ़ाई ख़त्म करके शादी करूँगी परंतु उन्होंने नहीं मानी और शादी करा दी। मानिनी शादी के बाद दीपक के साथ उसके घर आ गई। घर छोटा था पर अच्छा था। मानिनी अपने घर को अच्छे से सँभालने लगी। दीपक रोज रात को बहुत देर से घर आता था। अगर कभी जल्दी आ भी गया तो अपने साथ अपने दोस्तों को लेकर आ जाता था। मानिनी हमेशा रसोई में ही रहती थी। वह मानिनी की तरफ़ ध्यान नहीं देता था।
एक दिन घर आते ही दीपक ने कहा मैं अपनी नौकरी छोड़ रहा हूँ। मानिनी हताश हो गई पिछले कई दिनों से वह कुछ न कुछ व्यवसाय कर रहा था। उसके चलते बहुत से पैसे खर्च कर दिए थे। परंतु सरकारी नौकरी होने के कारण मानिनी को बुरा नहीं लगा पर आज जब सरकारी नौकरी छोड़ने की धमकी दी तो उसे बुरा लग रहा था। इसी बीच मानिनी प्रेगनेंट हो गई उसे आराम चाहिए था पर दीपक उसे मायके नहीं भेज रहा था। यह कहकर कि माँ कहती है कि लड़कियाँ अपने मायके जाती हैं तो काम नहीं करती हैं और डिलीवरी में प्राब्लम हो जाता है। नौ महीने की पेट लेकर भी वह घर के सारे काम करती थी। नौ महीना ख़त्म होने के पहले दीपक ने उसे मायके भेजा। मानिनी को लड़का हुआ। दीपक ने उसे दस दिन में ही घर बुला लिया यह कहकर कि माँ ने कहा कि यह हमारे घर का रिवाज है। मानिनी के माता-पिता ने उसे उसके घर छोड़ दिया और पंद्रह दिन रहकर चले गए। दीपक फिर से अपने व्यापार अपनी नौकरी में व्यस्त हो गया था। मानिनी को लगा कि चलो अच्छा है दीपक ने अब तक सरकारी नौकरी छोड़ने की बात नहीं की है। इसी बीच मानिनी फिर से प्रेगनेंट हो गई। अपने मायके चली गई अबकी बार उसे लड़की हुई। दस दिन बाद फिर से माता-पिता उसे उसके घर छोड़कर दस दिन रहकर चले गए थे। इस बार मानिनी को दीपक में कुछ बदलाव नज़र आया। दो दिन में पता चला कि उसने सरकारी नौकरी छोड़ दी है और व्यापार करने लगा है।
दीपक ने कहा- मानिनी मैंने नौकरी छोड़ दिया है और व्यापार कर रहा हूँ। मुझे थोड़े और पैसों की ज़रूरत है इसलिए मैं सोच रहा हूँ कि तुम्हारे गहने मिल जाए तो मेरा काम शुरू हो जाएगा। यह कहकर उसने गहने भी ले लिया।
मानिनी घर का काम बच्चों के काम में इतनी व्यस्त हो गई थी कि उसे दीपक के बारे में सोचने का मौक़ा भी नहीं मिला था। एक दिन बच्चे को गोद में लेकर सब्ज़ी मंडी गई थी। वहाँ पड़ोस में रहने वाली नीरजा मिल गई थी।
अरे! मानिनी बहुत दिनों बाद देखा है तुझे कैसी है ?
नीरजा जी...मैं बिलकुल ठीक हूँ। आपको मालूम है न बच्चों के कारण समय ही नहीं मिलता है।
नीरजा ने कहा- मानिनी तुम्हारे मायके जाने के बाद दीपक ने एक औरत को लाकर घर में रख लिया था। मोहल्ले वालों ने जब ऑब्जेक्ट किया तो उसे वापस छोड़ कर आया। झगड़ा मत करना तुम्हें भी पता चले इसलिए मैंने तुम्हें बता दिया था।
मानिनी को बहुत बुरा लगा। सब्ज़ियाँ लेकर घर आ गई। देखा तो घर के सामने लोगों की भीड़ थी। दीपक सबसे हाथ जोड़कर निवेदन कर रहा था कि थोड़ी सी मोहलत दे दें तो सबके पैसे सबको लौटा देगा। सबने दीपक को वार्निंग देकर छोड़ दिया। मानिनी को अब पता चल गया था कि दीपक गले तक उधार में डूब गया था। दीपक सुबह से गया हुआ था शाम को भी वापस नहीं आया मानिनी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें ?
मानिनी रात भर दीपक के इंतज़ार में बैठी रही। सुबह नीरजा ने आकर बताया था कि मानिनी दीपक उसी औरत के साथ भाग गया है जिसे घर लेकर आ गया था। मानिनी को काटो तो खून नहीं था। उसने अपने पिता को फ़ोन किया क्योंकि इन दो बच्चों को लेकर वह कहाँ जाएगी। पिता आए उसे दो बच्चों के साथ घर लेकर गए। मानिनी पढ़ी लिखी नहीं थी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ पर बच्चों को तो पालना ही पड़ेगा। उनकी पढ़ाई , उनके खर्च कैसे उठाएँगे। माँ पिताजी के पास भी उतने रुपये नहीं हैं। पहली बार पिताजी को भी लगा कि बेटी को पढ़ाता तो अच्छा था।
मानिनी ने हार नहीं मानी और जो विद्या उसे आती थी उसी पर काम करने की सोची। बडियाँ बनाना आचार चटनियाँ बनाना आदि। सब छोटे छोटे पैकेट बनाकर दुकानों में देती थी। पहले तो लोग उन्हें चिढ़ाते थे पर धीरे-धीरे उसका बिज़नेस चलने लगा। कुछ सालों में ही उसने एक होटल भी खोल दिया था। उसे मालूम था कि दीपक कहाँ है पर उसने उसके बारे में जानना ज़रूरी नहीं समझा। बच्चे भी पढ़ लिखकर नौकरी करने लगे थे। सागर ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और एक बहुत बड़े कंपनी में काम करता है। सोनी ने डेंटिस्ट का कोर्स किया था और एक अस्पताल में काम करती है। उसी के साथ मिलकर काम करने वाले विजय के साथ उसकी शादी तय हुई थी।
बाहर कमरे में यही बातें चल रही थी। उसी समय बाहर से बच्चों ने दरवाज़ा खटखटाया। मानिनी ने आँसू पोंछ कर दरवाज़ा खोला। देखा तो विजय के माता-पिता बच्चों के चाचा चाची, मामा मामी सब लोग थे। शायद बच्चों ने उन्हें बुलाया था। मानिनी ने विजय के माता-पिता से कहा कि आपको मैंने सब कुछ बताया है छिपाया कुछ भी नहीं है। जब मैं अकेली बच्चों को पाल पोसकर बड़ा कर सकती हूँ तो कन्यादान के लिए उस आदमी की ज़रूरत ही क्यों जिसने मुझे बच्चों के साथ अकेले छोड़ दिया था। मेरी बेटी का कन्यादान मैं ही करूँगी। सबने मिलकर एक साथ कहा कि कन्यादान आप ही करेंगी। आप हार नहीं मानेंगी। मानिनी ने कहा जी मैं हार नहीं मानूँगी।