मैं और मेरी दुनिया
मैं और मेरी दुनिया
मैं विजया हूँ। मेरी एक खूबसूरत छोटी सी दुनिया है। मेरे माता-पिता की तीन बेटों के बीच मैं अकेली लाड़ली संतान हूँ। मुझे माता-पिता ने मास्टर्स कराया मैंने फ़िज़िक्स में मास्टर्स किया बहुत ही होशियार थी। अपने माता-पिता का नाम रोशन किया वे गर्व से लोगों को बताते थे कि हमारी बेटी होनहार छात्रा है।
बड़े भाई की शादी हुई उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी और एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहे थे। पापा ने उनकी शादी कराई बहू आई और उनकी ही शादी में रजत के पापा ने मुझे देखा और पापा से अपने बेटे के लिए मेरा हाथ माँगा।
पापा खुश थे कि घर बैठे बिठाए बेटी के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया है। रजत सरकारी ऑफिस में ऊँचे पद पर कार्यरत थे। गाड़ी बँगला नौकर चाकर सब सहूलियतें थीं। मैं भी खुश थी कि मेरे देवर और ननंदें भी बहुत अच्छे थे।
कुछ ही साल के अंतराल में मेरे माता-पिता का देहांत हो गया था। मेरे भाइयों ने माता-पिता का स्थान ले लिया और मेरा ख़याल रखने लगे।
मैं भी दो बेटों की माँ बन गई थी। अजय बड़ा बेटा था विजय छोटा बेटा था उन्हीं की स्कूल में मैं गणित और फ़िज़िक्स की टीचर बन गई थी।
अजय ने अपनी बारहवीं की परीक्षा ख़त्म की और आई आई टी के एनट्रेन्स की तैयारी कर रहा था।
उसे किसी भी हालत में आई आई टी में ही पढ़ना था इसलिए उसी के हिसाब से तैयारी भी कर रहा था।
परीक्षा का डेट आ गया था रजत ने उसकी पूरी तैयारी को एक नज़र देखा और उससे कहा कि कल परीक्षाकेंद्र तक तुम्हें मैं छोड़ दूँगा फ़िक्र मत करो आज रात को बेफिक्र हो कर सोना।
रजत ने दूसरे दिन अजय के लिए पेन्सिल बॉक्स हॉल टिकट सब एक जगह रखा ताकि उसे ढूँढने की ज़रूरत न पड़े। यह आदत उन्हें बचपन से थी।
अजय सुबह जल्दी उठ गया नहाधोकर भगवान के पास प्रणाम किया और मुझसे कहा माँ पापा उठे नहीं उठा दो देर हो जाएगी। वैसे अभी परीक्षा के लिए दो घंटे का समय था। वह जल्दी तैयार हो गया था। फिर भी उसकी तसल्ली के लिए मैं रजत को उठाने गई जैसे ही शरीर पर हाथ लगाया तो शरीर एकदम ठंडा पड़ गया था।
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया है। उसी समय अजय अंदर आया और मुझे देखकर पापा को उठाने के लिए हाथ रखा और पीछे हट गया था। उसे समझते देर नहीं लगी कि पापा अब नहीं रहे।
मैंने हिम्मत दिखाई और भाई को और देवरों को फ़ोन कर दिया।इसी शहर में भाई रहते थे भागते हुए आए और उन्होंने अजय से कहा तुम परीक्षा के लिए चले जाओ। छोटा भाई उसे परीक्षा हॉल तक छोड़ कर आ गया। अजय की आँखों में आँसू ही नहीं थे ऐसा लग रहा था कि वह अभी भी शॉक में ही है।
उसने अपनी परीक्षा लिखी घर पहुँचा तो सब लोग आ चुके थे। उसने ही उनका अंतिम संस्कार किया था।
मुझे मेरे भाइयों ने सँभाल लिया था। छह महीने तक मैं घर से बाहर नहीं निकली तो भी मुझे कोई तकलीफ़ न पहुँचे ऐसा उन्होंने हर वस्तु का प्रबंध कर दिया था।
अजय का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ और वह टॉप टेन में था। मुंबई के आई आई टी कॉलेज में दाख़िला ले लिया था मेरा एक देवर वहीं रहते हैं उन्हीं के घर में रहकर पढ़ने लगा।
विजय को पहले से ही वकील बनना था इसलिए वह उसकी तैयारी करने लगा। इसी बीच रजत के ऑफिस में ही मुझे नौकरी दिया गया था लेकिन मुझे टीचिंग अच्छा लगता था इसलिए दो साल वहाँ काम करने के बाद जब विजय को लॉ कॉलेज में एडमिशन मिला तो मैंने सरकारी ऑफिस में इस्तीफ़ा देकर स्कूल में प्रिंसिपल के पद पर जॉइन कर लिया था।
अजय ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और एम एस करने के लिए अमेरिका चला गया था।
मैं और विजय साथ में रहने लगे। विजय ने अपनी लॉ की पढ़ाई पूरी की और पूना में ट्रेनिंग करने लगा था। सब लोग पूछने लगे थे कि अजय की शादी कब करेंगे मैं अभी किसी से कुछ कहती इसके पहले ही अजय ने मुझसे कहा कि माँ मैं मेरे साथ नौकरी करने वाली शांति से शादी करना चाहता हूँ।
मुझे अच्छा नहीं लगा क्योंकि हम तमिल ब्राह्मण परिवार से थे और शांति गुजराती परिवार से थी। मेरे मना करने पर उसने शादी का विचार ही त्याग दिया था।
मैंने भी ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे पसंद ही नहीं है दूसरी जाती के लड़की को बहू बनाना।
इसी तरह दो तीन साल बीत गए थे। विजय भी बड़ा हो गया था। उसकी भी शादी करानी थी।
मैंने अजय से पूछा तो उसने कहा कि माँ आप विजय की शादी करा दो। मेरे भाइयों और देवर की मदद से मैंने विजय की शादी करा दी थी। सुहानी बहुत ही अच्छी लड़की है। अब विजय सुहानी भाई देवर सबकी बातों को सुनकर मैंने अजय से कहा तुम भी शादी कर लो। अजय ने अमेरिका में ही उस लड़की जिसका नाम किरण था शादी कर लिया था। मुझे भी लेकर गया था मैंने भी कुछ दिन उसके साथ बिताए थे सचमुच ही सुहानी अच्छी बच्ची थी। अब मेरी ज़िम्मेदारी ख़त्म हुई थी कि नहीं विजय को बेटा हुआ हम सब उसके आगे पीछे घूमते थे। इसी बीच मेरे पैरों ने जवाब दिया जिनका ऑपरेशन कराना पड़ा दोनों बेटों ने बहुत ही प्यार से उस ज़िम्मेदारी को निभाया उसका नतीजा आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूँ।
मैंने दोनों को ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा कि- मुझे अकेला रहने दो मैं स्वतंत्र रूप से रहकर अपने कार्यभार को सँभालना चाहती हूँ जब भी आवश्यकता महसूस होगी मैं खुद तुम लोगों को इत्तिला कर दूँगी। बेटों ने मेरा मान रखकर मुझे अकेला रहने की इजाज़त दे दी।
हर सुबह की प्रार्थना में ईश्वर से दुआ करती हूँ कि दुनिया में हर किसी को ऐसे ही बच्चे दें जो आवश्यकता पड़ने पर माता-पिता को समझे और उनकी सेवा करें।
दोस्तों सच ही है बच्चे अच्छे हैं तो उन माता-पिता के लिए खुशी की बात ही है क्योंकि आज हम अपने आस-पास की घटनाओं को सुनते हैं या देखते हैं तो बुढ़ापा श्राप जैसा प्रतीत होने लगता है।