मैं अब बदल गई हूँ (खुरचन)
मैं अब बदल गई हूँ (खुरचन)
"रोहिणी ! ज़रा इधर तो आ !"
माँ की आवाज़ सुनकर स्कूल के लिए यूनिफार्म पहनकर चोटी बनाती हुई रोहिणी ने एक तरफ की चोटी आधी बनी ही छोड़ दी और दौड़कर पुष्पा के पास आकर पूछा,
"क्या हुआ छोटी माँ ! आपने मुझे अभी बुलाया ? आज मेरा टेस्ट है इसलिए थोड़ा जल्दी स्कूल पहुँचना था !"
रोहिणी की आवाज़ में एक हड़बडाहट सी थी। जिसे नज़रअंदाज़ करके पुष्पा जी बोलीं,
"रोहिणी, आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है। ऊपर से रत्ना का टिफिन भी तैयार नहीं हुआ है। बेटा, तेरा आज स्कूल जाना नहीं हो पायेगा। तू फटाफट आवेदन पत्र लिख दे कि आज तेरी तबियत ठीक नहीं है इसलिए तू आज स्कूल नहीं आ पायेगी। मैं नीचे सिग्नेचर कर दूँगी। फिर तेरे पापा तेरी स्कूल बस में तेरी दोस्त प्रेरणा को दे आएंगे। जल्दी करो... नहीं तो तुम्हारी स्कूल बस निकल जाएगी !"
बोलते हुए पुष्पा ने रोहिणी की मनोदशा की ज़रा भी परवाह नहीं की। रोहिणी एकदम रोआँसी हो गई कि छोटी माँ ने एकबार भी यह नहीं सोचा कि आज उसका कितना इम्पोर्टेन्ट टेस्ट था। आज उसके फेवरेट सब्जेक्ट साइंस की परीक्षा थी और आज ही छोटी माँ की तबीयत ख़राब हो गई।
रोहिणी का बड़ा मन किया कि वह पलटकर कह दे कि,
"आप अपनी मदद के लिए रत्ना को क्यों नहीं रोक लेतीं ? अब रत्ना भी तो बड़ी हो गई है। सातवीं कक्षा तक तो आप मुझसे बड़ा काम करवाती थी पर अब ज़ब रत्ना भी बड़ी हो रही है। और रोनित भी तो काम में हाथ बंटा सकता है। उन दोनों को भी कभी कभी स्कूल नागा करने बोला कीजिये !"
पर प्रकट में रोहिणी ने कुछ नहीं कहा क्योंकि वह जानती थी कि बदले में पुष्पा जी क्या कहेंगी। यही कि,
"उनका स्कूल तो शहर का सबसे बड़े स्कूलों में से एक है। वहाँ ऐसी छोटी छोटी बात के लिए थोड़ी ना छुट्टी कर सकते हैँ ?"
अभी रोहिणी के पापा दिनेश जी भी टूर पर गए हुए थे इसलिए उसके पास पुष्पा जी की बात मानने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था।
दरअसल रोहिणी सरकारी स्कूल में पढ़ती थी और उसके दोनों छोटे भाई बहन रत्ना और रोनित पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे।
दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली रोहिणी बचपन में तो यह सब नहीं समझती थी पर अब अपनी सौतेली माँ जिसे वह छोटी माँ कहा करती थी उनका यह पक्षपात पूर्ण व्यवहार समझने लगी थी।
अपनी बेबसी पर उसकी आँखें भर आईं जिसे पोछकर वह अप्लीकेशन लिखने लगी। आँसुओ की वज़ह से अक्षर भी धुंधले से नज़र आ रहे थे। किसी तरह अप्लीकेशन लिखकर फिर पुष्पा जी से हस्ताक्षर करवाकर स्कूल बस में अपनी सहेली ललिता को देने चली।
ऑटो स्टैंड पर उसे अधबनी अधखुली चोटी और हवाई चप्पल में आया हुआ देखकर बिना कुछ बोले ही रोहिणी की सहेली ललिता समझ गई कि....
आज फिर रोहिणी की सौतेली माँ ने उसे अपनी तबियत ख़राब का बहाना करके उसे स्कूल जाने से रोक दिया है !"
"ललिता, मेरा यह एप्लीकेशन क्लास टीचर मीना मैम को दे देना !"
"क्यों... ? फिर तेरी माँ बीमार पड़ गई ? तो हमेशा तू ही स्कूल नागा क्यों करे। आखिर वह तो रत्ना और रोनित की भी माँ है फिर तू ही हमेशा स्कूल क्यों नागा करे !"
"अब तू छोड़ ना ललिता। जा मैडम को मेरा अप्लीकेशन दे देना !"
कहकर रोहिणी घर की ओर चली।
पुष्पा जी की तबियत नहीं ख़राब थी। बस आज कामवाली नहीं आई थी सो ढेर सारे बर्तन धोने को पड़े थे।
यूनिफार्म बदलकर पुष्पा जी को चाय बनाकर देकर रोहिणी ज़ब बर्तन धोने को हुई तब पुष्पा जी कमरे से चिल्लाकर बोली,
"दूध का भगोना धोने से पहले खुरचन निकाल लेना। तुझे पसंद है ना। बाद में खा लेना !"
रोहिणी को पसंद था खुरचन क्योंकि गाँव में दादी उसे गाढ़े दूध की खुरचन खिलाती थी। पर यहाँ तो मलाई दोनों भाई बहन को मिलते और रोहिणी के हिस्से में खुरचन ही आता था।
खैर... वक्त बीता। रोहिणी बड़ी हुई और उसकी शादी किस्मत से बड़े सम्पन्न घर में हुई। राजरानी की तरह रखते थे उसे ससुराल में।
शादी के तीन महीने बाद मायके आई थी रोहिणी। रात में माँ ने सबको दूध पीने को दिया। और उसके लिए कटोरी में खुरचन लेकर आई तब रोहिणी ने बड़े ही दृढ़ शब्दों में कहा,
"छोटी माँ, अब मैं खुरचन नहीं खाती हूँ !"
सुनकर पुष्पा जी आवाक... ! ! !
आज पहली बार इस बारे में मुँह खोला रोहिणी ने,
"मुझे खुरचन पसंद है और मलाई भी। मैं सिर्फ खुरचन नहीं खाती !"