V. Aaradhyaa

Romance Classics Fantasy

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V. Aaradhyaa

Romance Classics Fantasy

माना कि हम यार नहीं

माना कि हम यार नहीं

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"मुझे समझ में नहीं आता है कि जिंदगी भर आप लोग अभिनव को एक बेटे की तरह मानते रहे और एकदम से वह इतना पराया कैसे हो गया? अब अचानक अगर सिर्फ उसने मुझसे शादी करने की जगह और मुझे छोड़कर कल्पना से शादी कर रहा है तो उसकी कोई वजह ज़रूर रही होगी। वैसे भी उसने कभी अपने मुंह से अपने और मेरे रिश्ते को कहां स्वीकारा था?"

थोड़ा रूककर अपने माता पिता के स्याह पड़ गए चेहरे की तरफ देखा फिर बोलने लगी।

"अब आपलोग मुझे ही देखिये। मेरे मन में भी तो उसीकी छवि बसी हुई है। पर मैं अपने बालसखा को किस बात पर दोष दूं ? जबकि एक दोस्त का फर्ज तो उसने हमेशा निभाया है। अब उससे बेबात रूठकर आप उसकी शादी में भी नहीं जाओगे। ऐसा तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए !"

नंदिनी की आवाज में जहां नाराजगी थी वहीं कहीं उसका मन बहुत ही ज्यादा दुखी भी था। उसे अपने माता-पिता की सोच पर नहीं बल्कि उसे दुख था कि विधाता ने उसके साथ ये कैसा मजाक किया था। और साथ में कहीं ना कहीं उसे एक नाराजगी भी थी कि अभिनव ने उसके मन की बात कैसे नहीं समझी ? वह तो ना जाने कबसे अभिनव को ही अपना भावी जीवनसाथी मानकर बैठी हुई थी। बल्कि इस बार गर्मी की छुट्टी में अभिनव को अपने दिल की बात भी बतानेवाली थी। उसे पूरा यकीन था कि अभिनव भी उससे उतना ही प्यार करता है जितना वह उससे करती है। और... अब तो दोनों अच्छी नौकरी कर रहे हैं । कुल मिलाकर शादी के लिए मन से भी तैयार थी नंदिनीकि अभिनव ने अपने पापा के गुरुजी की बेटी कल्पना से शादी करने की बात बताकर नंदिनी की आंखो से सारे सपने चुरा लिए थे और उसके होंठो की मुसकुराहट चुराकर कल्पना के होंठो पर सजानेवाला था। अपने इस बालसखा की नादानी पर उसे आज बहुत गुस्सा आ रहा था और वह सोच रही थी .....

आज जो तोरण आज कल्पना के घर के बाहर सज रहा होगा वह आज उसके घर के बाहर सज रहा होता।

उसके पिता अमरेंद्र जी और मां उमाजी अब बिलकुल शांत हो चुके थे और अपनी बेटी की इच्छा का ख्याल रखते हुए दोनों अभिनव की शादी में जाने को तैयार हो गए थे ।

तभी नंदिनी अपने बालसखा की शादी में जाने को तैयार होकर आई तो माता पिता दोनों उसे एकटक देखे रह गए थे। एक तरफ अमरेंद्र जी को अपनी सौम्यता की प्रतिमूर्ति मृदुल स्वभाव की बेटी साक्षात दुर्गा का रुप लग रहीं थीं वहीं उमा जी अपनी सुंदर सी बेटी की रूप की छटा को निहारती रह गईं। इस नारंगी रंग के लहंगे में कैसा निखरकर रूप सामने आया था उनकी लाडली नंदिनी का। किसी राजा रजवाडे के खानदान की लग रही थी। उपर से उदास कुम्हलाया सा चेहरा उसकी खूबसूरती पर और नजरें जमा देने को विवश कर रहा था।

"ऐसा दिव्य रूप... और इतना सौम्य स्वभाव...!

भला ऐसी कौन सी हूर की परी मिल गई अभिनव को जो उसने नंदिनी को छोड़कर किसी और से शादी करने का सोच लिया! "

उमा जी के मन में बार-बार यही बात आ रही थी कि उनकी आंखें अभिनव को वरमाला पहनाते हुए और किसी और लड़की के लिए सिंदूर दान करते हुए देखना बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी। क्योंकि बचपन तो ख़ैर मासूम सा था...... फिर बचपन से जैसे ही दोनों बच्चे किशोरावस्था में पहुंचे थे तब से अभिनव को अपने दामाद के रूप में देखने लगी थीं। बरसों पहले अपने पुत्र शिशिर की मृत्यु पर जो दुख उन्हें हुआ था ...उसके बाद अभिनव के प्यार ने उन्हें एक बेटा ना होने के अहसास को मिटा दिया था। अब अचानक इस व्रजपात से वह संभल नहीं पाई थी । वह भी नंदिनी की तरह इस बात पर भरोसा करने लगी थी कि .....

उस हल्की नोकझोंक में उन छोटी छोटी लड़ाईयों में अभिनव और नंदिनी प्यार के गहरे बंधन में जुड़े हुए थे।

लेकिन जब से उन्हें पता चला कि ....

वह प्यार का बंधन सिर्फ दोस्ती का बंधन था तो वह अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी। उनका दुख पहाड़ सा दुख था क्योंकि वह अपनी बेटी नंदिनी के दिल से जुड़ी हुई थी और सौम्य स्वभाव की हरदम खुश रहने वाली अपनी बेटी का दुख उनसे देखा नहीं जा रहा था।

अमरेंद्र जी तो पिता थे वह भी समझ रहे थे लेकिन उन्हें दुनियादारी का ज्ञान था। उन्हें पता था कि... अगर ऐसा कुछ हुआ है तो शायद नंदिनी के भाग में कुछ और ही बदा हुआ है।

नियत समय पर जब वरमाला के लिए दुल्हन को लाया गया तभी उसके पैर में हल्की लंगडाहट थी और यह क्या दुल्हन का साधारण चेहरा इतना पक्का रंग और नाक नक्श भी कोई खास देखे नहीं थे एकबारगी तो नंदिनी भी चौंक गई। कि ....

कल्पना देखने में ऐसी होगी इसकी कल्पना भी उसने नहीं की थी।

खैर....उमा जी और अमरेंद्र जी का भी लगभग ऐसा ही हाल था कि ...

इस लड़की के लिए इस कुरूपा के लिए उन्होंने उनकी सर्वगुण संपन्न बेटी को छोड़ दिया था क्या अभिनव के अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे।

बहरहाल....

यत्र यत्र शादी संपन्न हुई और वो लोग वापस घर आए तो सबके जेहन में सिर्फ एक ही सवाल था कि अभिनव नेआखिर क्या देखकर कल्पना से शादी की थी।

"टिंगटॉन्ग "

कॉल बेल कीआवाज़ से जब नंदिनी ने दरवाजा खोला तो चौंक गई। सामने अभिनव खड़ा था।

शादी के अगले दिन ही अभिनव कोअपने घर पर आया हुआ देखकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ।

अभिनव ने बताया कि , कल्पना पग फेरे के लिए मायके गई हुई है एक दिन के लिए। और वह एक जरूरी बात करने आया है।

वैसे तो नरेंद्र जी उससे बिल्कुल बात नहीं करना चाहते थे। पर नंदिनी ने जिससे इतना प्रेम किया था वह उसका बालसखा भी था। और आज एक दोस्ती का तकाजा था कि उसे अपने दोस्त की बात सुननी थी।

उन्हें प्यार तो बाद में हुआ था सबसे पहले तो अभिनव और नंदिनी दोस्त थे ना...!

अभिनव ने बताया कि, " जब मैं इस बार अपना निश्चय लेकर आया था। तब मैं माता-पिता को बताने वाला था कि

"वह नंदिनी से प्यार करता है और नंदिनी से शादी करने वाला है। तभी उसके पिता ने अपने गुरु की बेटी कल्पना का हाथ थामने को समझाया क्योंकि उनके संगीत गुरु मरते हुए अपनी बेटी की जिम्मेदारी उसके पापा शंकर जी को देकर गए थे । और यह भी कह कर गए थे कि उसकी शादी अपने बेटे अभिनव से करवा देना ।

अपने पिता की आज्ञा और पिता का मान रखने के लिए अभिनव ने कल्पना का हाथ थामा था।

उस दिन अभिनव के ऊपर नंदिनी को बड़ा गौरव हुआ था।

ऐसा प्यार ऐसा विश्वास कि वह नंदिनी को सारी बात बता रहा था। उसे एक पल में उसकी आंखों से बह रहे थे पश्चाताप के आंसू ।

कैसे .....? .....

आखिर कैसे......?उसने अपने बाल सखा को गलत कैसे समझ लिया था ।

सारी बातें जानकर उमा जी ने भी अभिनव को माफ कर दिया और मन में सोचा कि ,

कोई नहीं ..... दामाद बनकर नहीं तो कम से कम बेटा बनकर तो अभिनव हमेशा उनकी जिंदगी में रहेगा। और अभी ने वादा किया कि उनका साथ कभी नहीं छोड़ेगा

नंदिनी ने अभिनव से कहा, " बहुत हुआ। अब जल्दी जाओ । वहां कल्पना तुम्हारा इंतजार कर रही होगी। याद रखो , तुमने उसका हाथ थामा है उसे पूरा प्यार देना ,एहसान मत देना! और हां .....मुझ पर भी एहसान मत करना। हम दोस्त हैं हम दोस्त हमेशा रहेंगे। अफसोस मत करो जो निर्णय लिया है उस पर कायम रहो और अपनी पत्नी को प्यार और सम्मान देना. वैसे एक बात है... हम स्त्रियां बहुत जा जल्दी समझ जाती हैं कि हमें कौन प्यार कर रहा है और कौन सम्मान दे रहा है और कौन सिर्फ अहसान कर रहा है। मुझसे भी दोस्ती रखना एहसान मत करना।"

वहां से जाते हुए आज अभिनव को अपनी दोस्त पर गर्व हो रहा था।

कितनी महान थी नंदिनी जिसने अपने बचपन के साथ के प्रेम को बुलाकर अपने दोस्त को माफ किया था उसके दोस्ती कबूल की थी साथ ही उसकी पत्नी के साथ भी न्याय करने को कह रही थी।

और आज ....इधर नंदिनी को अभिनव पर गर्व था जो एक पुरुष होकर भी स्त्रियों का इतना सम्मान कर रहा था और अपनी पत्नी और दोस्त दोनों ही जगह ईमानदार रहने की कोशिश कर रहा था।

दूर कायनात में कहीं कोई था जो या तो इन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था कि,

प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है ,खोना भी पड़ता है और रिश्ते में अपना कर्तव्य निभाने के लिए कई बार प्यार की कुर्बानी भी देनी पड़ती है ।

बात सही तो थी... अगर अभिनव जबरदस्ती कल्पना से प्यार करता तो कल्पना समझ जाती।

और अगर नंदिनी पर एहसान करता तो नंदिनी भी समझ जाती। इसलिए अभिनव ने अपनी सच्चाई का सहारा लिया ।

बहुत सच्चे होते हैं ये दिल के रिश्ते जो प्यारऔर विश्वास के धागेसे बुने हुए होते हैं । और शायद बहुत ज्यादा ही दिल के करीब भी होते हैं। ऐसे ही मासूम सच्चे रिश्तो में बनावट की जरूरत नहीं पड़ती और एक दूसरे का मान सम्मान ऐसे रिश्तो का लक्ष्य होता है। तभी तो आज नंदिनी अपने पति रोहित के साथ सुखी वैवाहिक जिन्दगी जी रही है और अभिनव व कल्पना भी अपनी गृहस्थी के सफ़र पर एक साथ कदम बढ़ाते हुए चल पड़े हैं।

आज भी अभिनव और नंदिनी दोस्त हैं... एक मर्यादित समझदारी भरा रिश्ता आज भी है दोनों के बीच। आखिर ... प्यार का दूसरा नाम तपस्या भी तो है, है ... ना...?


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