Kameshwari Karri

Inspirational

3.4  

Kameshwari Karri

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माँ की वेदना

माँ की वेदना

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सुनंदा को वृद्धाश्रम में आए तीन साल हो गए थे। वह किसी से भी ज़्यादा बात नहीं करती थी। अपना अलग से अकेले ही बैठती थी। इन तीन सालों में नंदिता के अलावा उसने किसी से भी बात नहीं की थी। कोई प्रश्न पूछता भी है तो हाँ, न में ही जवाब देती थी। सबको लगता था कि वह घमंडी है। नंदिता ने भी कभी उससे निजी बातें नहीं पूछी। इसीलिए शायद उसका साथ सुनंदा को अच्छा लगता था। 

सुनंदा हमेशा खोई - खोई सी रहती थी और दिन में कम से कम तीन चार बार अपनी थैली में से कुछ निकाल कर देखती थी। 

एक दिन नंदिता भागते हुए सुनंदा के पास आई और बोली सुनंदा तेरे से मिलने कोई लड़की आई है। यह सुनते ही सुनंदा की आँखों में चमक आई और वह भागते हुए विज़िटर्स रूम की तरफ़ गई। इस तरह खुश सुनंदा को नंदिता ने कभी नहीं देखा था। जैसे ही सुनंदा वहाँ पहुँची उसने एक छोटी सी बच्ची जो बारह साल की होगी देखा। जब उसने ध्यान से बच्ची को देखा तो उसे लगा यह तो दो तीन दिन पहले भी आई थी। ख़ैर उसके सामने आकर बैठ गई। सुनंदा को अपनी बेटी मालिनी की याद आ गई। जब मालिनी छोटी थी इस लड़की के समान ही दिखती थी। 

सुनंदा को चुप देख उस लड़की ने कहा मैं आपको दादी बुला सकती हूँ। सुनंदा ने हाँ में सिर हिलाया। उस बच्ची ने कहा - दादी मेरा नाम मुग्धा है और मैं दसवीं क्लास में पढ़ती हूँ। एक प्रॉजेक्ट के सिलसिले में मैं यहाँ आई हूँ। दो तीन दिन पहले भी मैं यहाँ आई थी। जब मैंने आपको देखा तो मुझे आपसे बात करने की इच्छा हुई। मैं चाहती हूँ कि हम दोनों दोस्त बन जाए। सुनंदा ने मुग्धा को एक नज़र डालकर देखा उसकी मासूम चेहरे को देखते रहने की इच्छा हो रही थी। उसने हाँ में सिर हिलाया। अब मुग्धा रोज़ ही वृद्धाश्रम के चक्कर लगा लेती थी, धीरे-धीरे सुनंदा भी मुग्धा से घुलमिल गई। अब दोनों घंटों बातें करते थे और मुग्धा की भोली भाली बातों से कभी-कभी सुनंदा ठहाके भी लगा लेती थी। नंदिता के साथ -साथ दूसरों को भी आश्चर्य होता था कि इस बच्ची की वजह से ही सुनंदा के अलग रूप को देख रहे हैं। 

मुग्धा एक सप्ताह तक वृद्धाश्रम नहीं जा सकी क्योंकि उसकी परीक्षाएँ चल रही थी। अंतिम परीक्षा के बाद वह जैसे ही वृद्धाश्रम पहुँची सुनंदा ने उसे सीने से लगा लिया और कहा मुग्धा मैंने तुम्हें बहुत मिस किया है। तुम्हें देख कर मैंने अपनी बेटी को भुला दिया था। मुग्धा ने कहा - दादी अपनी बेटी मालिनी के बारे में बताइए न वह कहाँ रहती है क्या करती है और आप यहाँ क्यों रहती हैं? सुनंदा ने कहा ...हाँ बेटी तुझे मैं ज़रूर बताऊँगी। चल हम बाहर चलते हैं। मुग्धा ने कहा दादी हमारे घर चलिए न, माँ भी बहुत खुश हो जाएगी। 

वृद्धाश्रम में शाम तक आने के लिए कहकर 

वे दोनों बाहर आ गए। घर आकर मुग्धा ने दादी को माँ से मिलाया और अपने कमरे में उन्हें ले गई। चाय नाश्ते के बाद दादी ने अपनी कहानी कहना शुरू किया। 

मेरे पति रेलवे में काम करते थे। मालिनी अकेले ही हमारी बेटी थी। सब अच्छे से चल रहा था। छोटा परिवार सुखी परिवार था हमारा। भगवान से भी हमारी ख़ुशी देखी नहीं गई या किसकी नज़र लग गई मालूम नहीं ,एक दिन ऑफिस से आते समय मालिनी के पिता का एक्सिडेंट हो गया और वे वापस घर नहीं आए। मालिनी छोटी -सी थी। मेरे ख़याल से शायद दस साल की थी। मैंने अपने आपको सँभाला और मालिनी के लिए जीने लगी। धीरे-धीरे हमारे दिन अच्छे से ही गुजरने लगे। मालिनी ने इंजीनियरिंग किया और अच्छी सी कंपनी में नौकरी भी करने लगी। नौकरी करते हुए मालिनी को एक साल हो गया। एक दिन वह एक लड़के को अपने साथ लाई। माँ यह राजीव है और हम दोनों एक ही कंपनी में काम करते हैं। हम दोनों एक दूसरे को चाहते हैं और शादी करना चाहते हैं। कहने के लिए कुछ नहीं था।मेरी हाँ के बाद दोनों की शादी धूमधाम से हो गई। शादी के समय मैंने कोई कसर नहीं की। बिदाई के समय मुझसे लिपट कर मालिनी ने कहा -माँ आप फ़िक्र मत कीजिए मैं हूँ न। 

मालिनी अपने ससुराल चली गई। वहाँ वह बहुत ख़ुश थी। उसे ख़ुश देख मुझे भी अच्छा लगता था। मैं भी आराम से रहने लगी। वह हर रविवार को आती थी। शाम तक रहकर चली जाती थी। सब अगर ऐसे ही चले तो फिर क्या ? मालिनी ने कहा - माँ हम दोनों को अमेरिका जाने का मौक़ा मिल रहा है, पूरा काम ऑफिस वाले ही कर रहे हैं ...दो साल रहकर वापस आ जाएंगे। वीसा मिलते ही दोनों अमेरिका जाने की तैयारी करने लगे। मालिनी ने कहा -माँ एक बात बोलूँ , बुरा नहीं मानना मेरे आते तक आप वृद्धाश्रम में रहिए बस दो साल की ही बात है। मेरे अमेरिका से आते ही मैं आपको घर वापस ला लूँगी क्योंकि मैं यहाँ नहीं हूँ ..मेरे पीठ पीछे आपको कौन देखेगा। मैंने कहा भी था कि मैं अकेले रह लूँगी बेटा ..मुझे अपना घर छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लगता है, पर उसने मेरी एक नहीं सुनी। 

वहाँ जाने के बाद रोज फ़ोन करती थी। धीरे-धीरे समय न मिलने की बात कहते हुए सप्ताह में एक बार फिर महीने में एक बार फ़ोन करने लगी। उसने अंतिम बार जब फ़ोन किया तब यह बताया था कि उसकी बेटी हुई है आध्या नाम रखा है, यानी मैं नानी बन गई। मैं फूली न समाई फिर उसने बच्ची का फ़ोटो भी भेजा। बहुत सुंदर है मेरी नाती। 

दो साल में आ जाऊँगी ...कहकर गई मालिनी आज आठ साल हो गए पर नहीं आई। उसकी बेटी के लिए मैंने कपड़ों की गुड़िया बनाई थी, फ़्रॉक भी सिले पर। उन्हें कैसे भेजूँगी ? वैसे भी अमेरिका की मेरी नातिन को ये कपड़े वाली गुड़िया पसंद भी आएंगे कि नहीं। कब अपनी नाती से मिलूँगी ? सोचती रहती हूँ। 

अब तो वह फ़ोन नहीं करती है और न ही मेरा फ़ोन उठाती है। मैंने आस छोड़ दिया कि मालिनी से मिलूँगी। बस यही मेरी कहानी है बेटा। कहते हुए उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। मैंने उन्हें रोने दिया फिर मुझे याद आया कि मेरी दीदी के जुड़वां बच्चे हुए हैं और उनकी देखभाल के लिए उन्हें एक अच्छी सी नेनी चाहिए। अपने मन में कुछ ठान लेने के बाद शाम को मैंने उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ दिया। माँ से आते ही दीदी के लिए दादी की बात कही तो माँ भी ख़ुश हो गई। दीदी जीजा जी वृद्धाश्रम गए और उन्होंने ने वहाँ के मैनेजमेंट से बात करके दादी की रज़ामंदी से दादी को अपने साथ घर लेकर आ गए। यहाँ आकर दादी ख़ुश हो गई। बच्चों के साथ उनका दिल बहलने लगा और पुरानी यादों को उन्होंने पीछे छोड़ दिया। 

दोस्तों यह एक सुनंदा नहीं ऐसे कई लोग हैं जिनकी यही कहानी है। हर किसी को मुग्धा जैसे लोग नहीं मिलते हैं। दोस्तों बचपन में माता-पिता अपनी कैरियर और नौकरी के लिए बच्चों को बेबी केयर सेंटर में डाल देते हैं। वही बच्चे बड़े होकर अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में डाल देते हैं। दोस्तों रिश्तों के अहमियत को पहचाने तो न ही बेबी केयर सेंटर होंगे और न ही वृद्धाश्रम। 



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