मां की पुकार
मां की पुकार
मोहित के पापा कम उम्र में ही स्वर्ग सुधार गये थे, मोहित उनका इकलौता बेटा था, पापा मोहित को डाक्टर बनाना चाहते थे पर मोहित की मां ने अपने पति के सपने को पूरा करने की ठान ली थी इसलिए उसने मोहित को महसूस न होने दिया, वो अब सिर्फ मां ही नहीं थी वो तो मोहित के लिए पापा भी थी क्योंकि अपनी अंतिम सांसों में मोहित के पापा ने यही कहा था की मेरे मोहित को डाक्टर जरूर बनाना।
अब मोहित के कन्धों का छाया उसकी मां लक्ष्मी पर था इसलिए उसने मोहित की पढ़ाई को जारी रखा साथ साथ में उसके पापा की दुकान को भी संभाले रखा जिससे वो रोजी रोटी चलाते थे।
मोहित एक होनहार बालक था, उस समय वो बारहवीं कक्षा का छात्र था जब उसके पापा का देहांत हो गया, पर लक्ष्मी ने उसको आंच न आने दी। आखिरकार मोहित को डाक्टर की सीट मिल ही गई। मां की आंखों में खुशी के आंसू थे मानो कह रहीं थीं की हे पति देव मैंने आपके वायदे को पूरा निभा दिया है। मां बेटा बहुत खुशी से दिन काट रहो थे, चन्द दिनों के बाद ही मोहित को प्राइवेट नर्सिंग होम में नौकरी मिल गई, मां के मन मैं खुशी की लहर फैल गई। खैर उसने मोहित की पहली तनख्वाह उसके पापा के फोटो के आगे रखते हुए कहीं मंदिर में दान के रूप में दे दी।
मोहित अब शादी के लायक हो चुका था एक दिन मां ने अपने मन की बात करते हुए उसे शादी के लिए अपने रिश्तेदार की लड़की के लिए कह दिया लेकिन मोहित ने मां से कह दिया मां मैंने एक लड़की ढूंढ रखी है वो भी डाक्टर है, मां ने यह कह कर हां कर दी की तेरी खुशी में मेरी खुशी है।
चन्द दिनों के बाद मोहित की शादी हो गई अब घर मैं रौनक लगने लगी मां बहुत खुश थी रोज बेटे बहु के मन का खाना परोसती और खुद भी उन के साथ बैठ कर खाती। अब उसका अकेलापन दूर होने लगा था।
लेकिन एक दिन मोहित को विदेश से नौकरी का न्यौता आ गया मोहित ने सारी बात मां से कह दी और कहा चार पांच वर्षों के बाद मैं इधर ही अपना नर्सिंग होम खोल लूंगा। मां मान गई कुछ दिन बाद मोहित चला गया। मां अक्सर फोन पर कहती मैं और बहु ठीक ठाक हैं आप चिंता मत करना।
कुछ महीनों के बाद मोहित घर आया और मां को कहने लगा कि मैं बहु को भी साथ ले जाऊंगा और दूसरी दफा आपको भी, मां तो खैर मां होती है बेटे को हमेशा खुश देखना उसका सपना होता है उसने बहु को साथ भेजते हुए कहा, बेटा जल्दी ही आना अब मेरे से अकेले नहीं रहा जाता बेटा हां करके चल दिया।
अब क्या था मां का दिन तो मुहल्ले वालों के साथ बातचीत करते निकल जाता लेकिन रात बहुत लम्बी लगती थी।
दिन, महीने बीत गए लेकिन बेटा घर नहीं आया हां फोन पर बात जरूर होती अब वोही एकमात्र सहारा था जब भी फोन आता मां यही कहती बेटा कब आयेगा बेटा यही जवाब देता जल्द ही।
अब लगभग दो वर्ष बीत चुके थे अचानक बेटे का फोन आया मां आप दादी बन गई मां बहुत खुश थी और अब पोते के रूप में उसे मोहित भी याद आने लगता बचपन से लेकर बढ़ती उम्र तक हर बात याद करके लेट जाती।
अब मोहित को अपने परिवार को मोह होने लगा था और उसका उधर से निकलना बहुत मुश्किल हो चूका था, लेकिन मां हर रोज यही आस लगाती की जल्द ही मोहित अपने परिवार के साथ आए और मैं अपना परिवार देख सकूं लेकिन अब सिर्फ फोन पर ही बातचीत तय थी।
मां का हौसला टूट चूका था, बस कभी लम्बी सांस भरती कभी आंसू बहा कर बेटे को याद कर लेती की कब मैं मोहित से मिल सकूं।
समय बीतने लगा अब मां बूढ़ी हो चुकी थी, लेकिन हर रोज मन में यही सोचती एक न एक दिन जरूर मोहित आएगा।
एक दिन मां अपने बेटे और अपने पति के फोटो को निखार रही थी ओर यही बातें कर रही थी की आप तो मुझे छोड़ कर चले गए किन्तु मोहित भी दगा दे गया, मां की धड़कन तेज हो चुकी थी कि इतनी देर से धवाक की आवाज सुनाई दी मोहल्ले वाले दौड़ते हुए पहुंचे तो देख कर हैरान थे की मां चारपाई के नीचे गिर चुकी थी लेकिन दोनों फोटो उसके हाथ में थे।
मां ने रूंदी नजर से मोहल्ले वाले की तरफ देखा और मोहित मोहित कह कर प्राण त्याग दिए, शायद यही उसकी आखिरी पुकार थी।