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Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Drama

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Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Drama

माला के बिखरे मोती (भाग ५५)

माला के बिखरे मोती (भाग ५५)

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         चाँदनी के इतना कहने के बाद सब के मन को बहुत राहत मिली है। सब अपने अपने हिसाब से सोच रहे हैं। जहाँ माला यह सोचकर खुश हो रही हैं कि यश वर्धन चाँदनी को एकेडमी खोलने की इजाज़त कभी नहीं देंगे। तो उनके लिए वह कहावत सिद्ध हो जाएगी कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।


      सभी बहुएं यह सोचकर खुश हैं कि अगर चाँदनी को एकेडमी खोलने की इजाज़त मिल गई, तो इस घर के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि घर की एक बहू को कोई काम करने दिया जा रहा है। फिर आगे आगे सभी बहुएं अपने मन का कुछ न कुछ कर पाएंगी। कम से कम एक नई शुरुआत तो होगी।


     सभी बेटे यह सोच रहे हैं कि पापा पहले मम्मी से और हम सब बेटों से इस बारे में एक बार सलाह ज़रूर लेंगे। तो हम सब बेटे भी अपने अपने हिसाब से दाँव खेलेंगे।


     डिनर ख़त्म होने के बाद सभी भाई बगीचे में टहलने निकल गए हैं। आज टहलना तो सिर्फ़ एक बहाना है। असली वजह तो चाँदनी के डांस एकेडमी खोलने के बारे में चर्चा करना है।


जय (विजय से): विजय, चाँदनी को अचानक क्या हो गया है? उसको अचानक डांस एकेडमी खोलने की याद कैसे आ गई?


विजय: मुझे भी ज़्यादा कुछ पता नहीं है जय भैया। आज शाम को शांति मेरे कमरे में आई थी। तो तब उसने मुझे इस बारे में थोड़ा बहुत बता दिया था।


धनंजय: क्या बताया था शांति ने आपको कमरे में और कब?


विजय: ऑफ़िस से लौटकर फ़्रेश होने के लिए मैं अपने कमरे में गया था। तो जब मैं वॉशरूम से बाहर आया था, तो तब शांति इस्त्री किए हुए हमारे कपड़े रखने मेरे कमरे में आई थी। 


संजय: लेकिन विजय भैया, शांति तो अक्सर ऑफ़िस से हमारे लौटने से पहले ही इस्त्री किए हुए कपड़े रख जाती है। तो आज इतनी देर से क्यों आई थी आपके कमरे में?


विजय (कुछ सोचते हुए): शायद जान बूझकर उसने ऐसा किया होगा। जिससे वह मुझसे अकेले में बात कर सके। 


जय : विजय, तो शांति ने तुझे क्या बताया अकेले में?


विजय: शांति ने बस यही बताया कि आज घर में दिन भर नाच गाना चलता रहा। इसके अलावा उसने यह भी बताया कि भावना भाभीजी ने चाँदनी को उसके डांस एकेडमी खोलने के अधूरे सपने की याद दिलाकर उकसाया था।


अजय (हैरानी से): अच्छा ऐसा कहा शांति ने...! यह शांति भी अपनी हरक़तों से कभी बाज़ नहीं आएगी। लेकिन विजय, भला भावना ऐसा क्यों करेगी! उसको क्या मिलेगा यह सब करके। एकेडमी खुले न खुले, उससे भावना को क्या फ़ायदा नुक़सान होने वाला है?


विजय: पता नहीं अजय भैया। शांति तो यह भी कह रही थी कि उसके बाद तो सभी भाभियों ने चाँदनी भाभीजी को उनके सपने की दुहाई देते हुए उकसाना शुरू कर दिया था। शुरू में सिर्फ़ मम्मीजी ने उनका विरोध किया था। लेकिन सभी भाभियों ने उनसे ख़ूब बहस की थी और उन पर दबाव बनाया था। तब मम्मीजी उनके आगे झुक गईं। ऐसा सब मुझे शांति ने बताया है।


जय: अच्छा इतना सब हो गया आज...! शांति की ये बातें अगर सच हैं, तो मुझे लगता है कि घर की सभी बहुएं बग़ावत पर उतर आई हैं।


धनंजय: मुझे भी यही लगता है जय भैया। अब अगर घर की बहुएं अपनी मनमानी करने लगेंगी तो पूरे घर का माहौल ख़राब हो जाएगा। घर की मान मर्यादा का क्या होगा? घर में अनुशासन के संस्कार ख़त्म हो जाएंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि जब एक बहू अपनी मनमानी करने लगेगी, तो बाक़ी बहुएं भी पीछे नहीं रहेंगी। फिर मैं तो ईशा को कुछ करने से रोकने से रहा!


संजय: मेरी देविका तो घर में अपनी इच्छा से पूजा पाठ ही करे, तो उसको दस बातें सुनाई जाती हैं। पूजा पाठ करने में उसकी अपनी तो कोई भलाई नहीं होती है। उसका अपना तो कोई स्वार्थ नहीं होता है। वह तो केवल मेरी भलाई और परिवार की भलाई के लिए सोचती है। माना कि उसका तरीक़ा कभी कभी ग़लत हो जाता है, लेकिन उसमें उसका कोई स्वार्थ नहीं होता है। पिछली बार वह बेचारी मेरे लिए अपनी जान पर खेल गई थी, जब साबुत लाल मिर्च वाला हवन करने बैठी थी। हाँ, यह बात और है कि उसकी इस हरक़त से पूरा परिवार परेशान हो गया था। 


अजय: संजय, देविका की उस हरक़त से पूरा परिवार सिर्फ़ परेशान नहीं हो गया था। बल्कि सबकी जान को ख़तरा हो गया था। पूरे घर में आग लग सकती थी। देविका को तो हॉस्पिटल में रहना ही पड़ा था।


संजय: हाँ अजय भैया। लेकिन देविका ने वह सब निस्वार्थ भावना से किया था। लेकिन चाँदनी भाभीजी के एकेडमी खोलने से सबका क्या भला होने वाला है? चाँदनी भाभीजी के मन में एकेडमी खोलने की बात भी तो भावना भाभीजी ने डाली है। यह सब नहीं दिख रहा है आपको।


अजय: संजय, अब तू ज़्यादा मत बोल। भावना ने अगर चाँदनी को उसके अधूरे सपने की याद ग़लती से दिला भी दी, तो इसमें भावना का क्या फ़ायदा होने वाला है? जिसको देखो, वह भावना को दोष दिए जा रहा है।


धनंजय: मेरी ईशा तो इतनी पढ़ी लिखी है। पढ़ाई में भी बहुत होशियार थी। कॉलेज में हम साथ थे, इसलिए मैं यह सब जानता हूं। उसके भी कुछ अरमान थे कि शादी के बाद कुछ करे। लेकिन शादी होकर हमारे घर में आने के बाद वह कुछ नहीं कर पाई। उसके सारे अरमान कुचल डाले गए। उसने कभी शिकायत तक नहीं की।


जय: धनंजय, तू तो ऐसे बोल रहा है कि जैसे सिर्फ़ तेरी बीवी ही पढ़ी लिखी हो और हम सबकी बीवियाँ अनपढ़ गँवार हों। जैसे सिर्फ़ तेरी बीवी के ही कुछ अरमान थे, जो कुचल डाले गए। हमारी बीवियों के तो कोई अरमान ही नहीं रहे होंगे। मेरी आरती तो बहुत छोटी उमर में ब्याह कर आ गई थी इस घर में। उस पर पूरे घर की ज़िम्मेदारी डाल दी गई थी। क्या उसके कोई सपने नहीं रहे होंगे? लेकिन हमने कभी वह जानने और समझने की कोशिश तक नहीं की। बस उस पर अपनी उम्मीदों का बोझ डालते रहे और वह बेचारी चुपचाप सबसे बड़ी बहू होने का फ़र्ज़ निभाती रही। (क्रमशः)



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