Amit Singhal "Aseemit"

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माला के बिखरे मोती (भाग २२)

माला के बिखरे मोती (भाग २२)

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अब जय, संजय, भावना, ईशा और बनवारी हॉस्पिटल से घर जाने के लिए निकल रहे हैं। 


जय (रास्ते में बनवारी से): बनवारी काका, आपने मुझे हॉस्पिटल में बताया था कि इस हादसे के वक्त देविका को पूजा घर से निकालने के लिए पूजा घर का दरवाज़ा तोड़ना पड़ा था और पूजा घर की दीवारें भी हवन के धुएं से काली सी हो गई हैं। तो आप एक काम करिएगा कि किसी से कहकर पूजा घर का टूटा दरवाज़ा ठीक करवा दीजिएगा और पूजा घर की दीवारों पर फिर से पेंट करवाने का इंतज़ाम भी करवा दीजिएगा। यह काम जितना जल्दी से जल्दी हो जाए तो अच्छा है, क्योंकि पूजा घर को ऐसे उजड़ा हुआ ज़्यादा समय तक छोड़े रखना ठीक नहीं रहेगा। वैसे भी, हर सुबह को पापा मम्मी सबसे पहले नहा धोकर पूजा घर में पूजा करने जाते हैं।


बनवारी: "ठीक है जय बेटा। आप ठीक कह रहे हैं। मैं जल्दी से जल्दी पूजा घर को ठीक करवाता हूं।"


जय: "काका, हो सके तो आज रात में ही यह काम हो जाए, तो अच्छा है। किसी कारपेंटर और पेंटर को अभी बुला लीजिए और यह काम रात में ही करवा दीजिए। रात को दीवारों पर पेंट हो जाएगा तो सुबह तक सूख भी जाएगा। अभी ज़्यादा समय नहीं हुआ है। कोई न कोई कारपेंटर और पेंटर मिल ही जाएगा। यह काम आज रात ही करवाना पड़ेगा। चाहे दोगुने या तिगुने रुपयों में करवाना पड़े। आप उसकी चिंता मत करिएगा। आप बस फ़ोन करके कारपेंटर और पेंटर को बुलाइए।"


बनवारी: "ठीक है जय बेटा। मैं अभी घर के सेवकों को फ़ोन करता हूं और उनको सारी बात समझा देता हूं। उनसे यह भी कह देता हूं कि फ़ौरन जाकर जल्दी से जल्दी कारपेंटर और पेंटर को बुलाकर पूजा घर ठीक करवाएं। हम सब घर पहुंच ही रहे हैं। मैं उनसे यह भी कह देता हूं कि यह बात यश वर्धन भैया को पता न चले। न तो कार्पेंटर और न ही पेंटर उनके सामने आए और न ही पूजा घर में कोई शोर शराबा हो, जिसकी आवाज़ यश वर्धन भैया के कानों तक पहुंचे।"


जय: "बिल्कुल सही काका।" 


   यह सुनकर बनवारी घर के सेवकों टिंकू और बंटी को फ़ोन कर रहा है और उन दोनों को सारी बात ध्यान से समझा रहा है। गाड़ी में संजय, भावना और ईशा की धीमी आवाज़ में बातें चल रही हैं कि किस तरह घर पहुंकर नॉर्मल रहना है और पापाजी से यह सब छुपाना है।


   अब जय, संजय, भावना, ईशा और बनवारी घर पहुंच गए हैं। घर के हॉल में घर के बाक़ी सदस्य बैठे हुए हैं। जैसे ही ये लोग हॉल में पहुंचे, यश वर्धन के अलावा सबकी नज़रें आपस में टकराईं। जैसे कि, आँखों से ही वे देविका के बारे में पूछ रहे हों। जय, संजय, भावना, ईशा और बनवारी ने भी उनकी आँखों के सवाल को समझ लिया और आँखों से ही देविका के ठीक होने का अहसास करवा दिया।


   फिर जय, संजय, भावना, ईशा और बनवारी फ्रेश होने के लिए चले गए। 


   यश वर्धन ने माला से सवाल किया,


   "माला, ये लोग कहां गए हुए थे? ये लोग परेशान से क्यों लग रहे थे? सब ठीक हैं न?"


   माला: "जी, सब ठीक है। ये सब दूर के एक मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शनों के लिए निकले हुए थे। इसलिए ये सब थक गए हैं। इसलिए आपको ये परेशान दिख रहे होंगे। लंबे सफ़र से आए हैं न। आप चिंता मत करिए। सब ठीक है।"


यश वर्धन: "ठीक है माला। लेकिन मैं जबसे ऑफिस से आया हूं, मुझे देविका बहू दिखाई नहीं दे रही है। और अब तो आरती और चांदनी भी नहीं दिख रही हैं। कहां हैं ये तीनों बहुएं?"


माला (थोड़ा हकलाते हुए): "आप...आप परेशान मत होइए जी। दरअसल, ये तीनों देविका की एक सहेली के बेटे की जन्मदिन की पार्टी में गईं हैं। देविका तो दोपहर से ही गई हुई है। आरती और चांदनी अब डिनर के लिए गई हैं। तीनों एक साथ ही वापस आएंगी। मगर शायद उनको आने में थोड़ी देर हो जाएगी। आप चिंता न करें, उनके साथ पप्पू और बबलू को भी भेज दिया है, जिससे उनको कोई दिक्कत न हो।"


   इधर, घर के दूसरे दरवाज़े से कारपेंटर और पेंटर को घर के अंदर मोनू ने ले लिया है। मोनू चुपचाप उन दोनों को पूजा घर में ले जाकर काम समझा रहा है। यश वर्धन और माला सोने के लिए चले गए हैं, क्योंकि अब काफ़ी देर हो चुकी है। जय, संजय, भावना और ईशा फ्रेश होकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गए हैं और कुछ सेवक उनको खाना परोस रहे हैं। 


   बनवारी भी अब फ्रेश होकर आ गया है। वह अपने खाने की प्लेट लेकर कारपेंटर और पेंटर का काम देखने जा रहा है। वह उनको काम करते हुए देखकर संतुष्ट है। अब बनवारी पूजा घर के दरवाज़े के बाहर कुर्सी पर बैठकर खाना खा रहा है। (क्रमशः)


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