लठ्ठमार होली
लठ्ठमार होली
होली के बारे में यूँ तो सभी जानते है। होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा से भी सभी परिचित है। पर मैं आज आपको होली से जुड़ी एक कथा सुनाती हूँ, जो मेरी दादी ने मुझे सुनाई थी। और हाँ दादी वाला नियम यहाँ भी लागू होगा । कथा सुनते वक्त हुंकारी भरते रहिएगा । नही तो कहीं ऐसा ना हो जाये मैं कथा सुनाती रहूँ और आप सो जाएं। वैसे सोएंगे तो नही इस बात की गारंटी है क्योंकि कथा है हमारे नटखट मुरलीधर चितचोर और राधा रानी जी की। हाँ तो हुंकारी भरते रहिएगा।
एक समय की बात है जब हमारे नन्दलाल गैया चराने जाते थे। अब नन्दलाल छोटे थे और सबके चहेते भी तो बलदाऊ को खीझ होती कि सब कान्हा कान्हा का ही नाम जपते है। सब कान्हा की ही तारीफ करते है। कान्हा ने ये किया , कान्हा ने वो किया , कान्हा मुरली अच्छा बजाता है।
भाई कोई बलदाऊ को गलत ना समझना । बचपन में हम सभी के भाई बहन ही हमारे सबके बड़े दुश्मन होते थे। तो बलदाऊ ने कान्हा को चिढाना शुरू कर दिया । गोरी यशोदा मैय्या , गोरे नन्दबाबा, कान्हा काला काला। बालमन पर ये बातें बहुत असर करती है। हाँ भाई मुझे भी आज तक मेरे भाई चिढ़ाते है कि मेरी अम्मी मुझे घूरे (कूड़े के ढेर) से उठा कर लायी थी और मुझे भी ऐसा ही लगता है। अरे मैं भी कहाँ अपनी बातें लेकर बैठ गयी।
हाँ तो बार बार चिढ़ाने से कान्हा के मन में यह बात बैठ गयी कि वह काले हैं । वह बलदाऊ की तरह , मैय्या, बाबा की तरह गोरे और सुंदर नही है। हाँ भाई आज से नही बरसो पहले से भारतीय समाज मे गोरा रंग सुंदरता का परिमाप माना जाता रहा है।
यह बात इतनी बढ़ गयी कि कान्हा में मन मे अपने रंग को लेकर हीनभावना पैदा हो गयी। अब कान्हा बड़े हो रहे थे और राधारानी को पसन्द भी करने लगे थे। पर उनको लगता राधारानी तो बलदाऊ से भी , यशोदा मैय्या से भी ज्यादा गोरी है। तो वह उन्हें पसन्द नही करेंगी।
यहीं बात जब उन्होंने यशोदा मैय्या से बोली तो मैय्या बोली, " इधर उधर लोगों की बातों में क्यूँ आता है लाडले। जा कर लाडली से ही पूछ लें कि तू काला है तो क्या उसे फर्क पड़ता है ? "
कान्हा ने जब यह सुना तो ग्वाल बालों संग दौड़ते पहुँच गए बरसाने , राधारानी के घर ।
भाई हुंकारी भरते रहिए। वैसे मैं बता दूँ, हाँ दादी ने ही बताया था कि तब कान्हा पन्द्रह या सोलह वर्ष के किशोर नही, सात साल के अबोध बालक थे और हमारी राधारानी बारह तेरह वर्षीय बालिका। कान्हा जाकर राधारानी से बोले, "बलदाऊ कहते है मैं काला हूँ तुम गोरी हो।"
राधारानी प्यार से कान्हा को बिठा कर अंदर से थोड़े रंग ले आयी । गुलाबी रंग कान्हा के मुँह पर लगा कर और कान्हा के हाथों से नीला रंग अपने चेहरे पर लगा कर बोली , "देखो अब मेरा रंग तुम्हारे जैसा, और तुम्हारा रंग मेरे जैसा"।
कान्हा तो यह देख कर खुश हो गए । उन्होंने सबको नीले रंग में रंग डाला कि अभी तो सभी सांवले हो गए। राधारानी की सखियों ने देखा कि कान्हा ने उनकी राधारानी के गोरे चिट्टे रंग को श्यामल कर दिया है तो वे लठ्ठ लेकर कान्हा और ग्वाल बालों के पीछे दौड़ी। वो शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। इसलिए आज भी इस दिन राधा और कान्हा के पवित्र प्रेम की याद में बरसाना में लठ्ठमार होली की परम्परा है।
आज लठ्ठमार होली तो सभी मनाते है पर इसके पीछे छिपी कहानी भूल गए है। पर फिर भी यह कहानियां लोककथाओं के रूप में दादी से पोती तक, मुझसे आप तक पहुँचती रहेंगी।