Sajida Akram

Others

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"लालकुआं की लास्ट ट्रेन"

"लालकुआं की लास्ट ट्रेन"

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 आज मैं आपको,किस्सा बताना चाहती हूं। मेरे पति की अम्मी सुनाती थी। उनके पिताजी का वो दूसरे विश्व युद्ध में अंग्रेजों की सेना में भर्ती हो गए तो , बाबा अंग्रेजों के यहां उस वक़्त टेलीफ़ोन की लाइन में "लाइनमैन"की पोस्ट पर भर्ती हुई।


 दूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था। इसलिए आधिकारिक रूप से भारत ने भी नाजी जर्मनी के विरुद्ध १९३९ में युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिटिश राज (गुलाम भारत) ने २० लाख से अधिक सैनिक युद्ध के लिए भेजे थे । जिन्होने ब्रिटिश नियंत्रण के अधीन धुरी शक्तियों के विरुद्ध युद्ध लड़ा। इसके अलावा सभी देसी रियासतों ने युद्ध के लिए बड़ी मात्रा में अंग्रेजों को धनराशि प्रदान की, हमारे बाबा बताते हैं ,कि जहां-जहां ब्रिटानिया फोज़ पैदल चलने के साथ उनके लिए लाइन कनेक्शन टैम्परेरी डाली जाती थी जिसे की बड़े साहब "कर्नल साहब" से "वायरलेस सेट पर हुक्म लेती ।


  अपनी सेना की पूरी जानकारी देना और कितने सैनिक घायल हैं, कितने फौत हो गए हैं ।हम बाबा से पूछते फौत क्या होता है ? जो लड़ाई में अपनी जान गंवा देते थे , उन्हें कहते हैं,फौत होना अच्छा, हम बच्चे फौरन दूसरा सवाल दागा देते ...; 


"अच्छा बाबा आपको और दादी को चिंता नहीं होती थी कि दादा जी युद्ध में गए हैं। हम बच्चे थे हम तो जानते नहीं थे "विश्व युद्ध"किस चिड़िया का नाम है"। 

"अरे हां तुम लोगों ने दूसरी बातों में लगा दिया।" मैं दादाजी के लड़ाई से लौटने के क़िस्से बहुत मज़ेदार सुनाते थे।


"बाबा आप लोगों को घर चलाने के क्या करते थे । दादी कैसे सब करती थी।" बाबा नादान सवालों पर हंस कर कहते 

"अरे पहले संयुक्त परिवार रहते थे।दादा ,चाचा,ताऊ और इन सबके बच्चे और बुजुर्ग सबका ख़्याल रखते थे खेती-बाड़ी थी।" बाबा को सेना में जाने के वक़्त ही ब्रिटानिया हुकुमत ने सैनिकों भर्ती करी,तो परिवारों"को वजीफा "बांध दिया था।  


 दादाजी ने बताया सेना में एक "आर्मी घोस्ट"तैयार की गई थी 1944 में नाज़ी सेना में भ्रम पैदा करती थी।  एक और टुकड़ी थी। जो ऐसे फ़र्जी रेडियो संदेश प्रसारित कर रही थी। जो नाज़ी सेना के जासूस पकड़ सकते थे.। साथ ही नाज़ी सेना को भ्रम में रखने के लिए उन्होंने मोबाइल लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया।, जिस पर वो सेना के क़दमों की आहट और पुल बनाने की योजना जैसे प्रोजेक्ट से जुड़ी आवाज़ें ज़ोर से सुनाते थे।  तुम्हारे दादा जी लाइनमैन थे, तो लाइन सही काम कर रही या नहीं रात दिन अपनी टीम के साथ काम करते रहते।

   

दादाजी ने बताया कि हम-सब लौटने से पहले अफ्रीका में भी रहे वहां हमने जंगलों में "शुतुरमुर्ग"देखें हम पैदल-पैदल लाइन की देखभाल के लिए घूमते थे तो हमें उनके घौसलों का भी अंदाजा था। हमारे साथियों को शुतुरमुर्ग के अंडों पर नज़र थी, हर कभी कहते यहां कि निशानी के तौर पर ले जाएंगे।हम लोग समझाते शुतुरमुर्ग लड़ाकू प्रजाति का होता है।तुमने देखा है ना कितना तेज़ दौड़ते हैं ,जब कोई शिकारी हमले करतें हैं तो पैरों से किक मारतें है।

चलने के कुछ दिन पहले शरारती सैनिकों ने शुतुरमुर्ग के अंडों को चुराने की कोशिश ट्रेन से निकलना था लास्ट ट्रेन थी बोगियों में छुपा दिए ...;


दादाजी ने बताया कि 1939से1944तक चला दूसरा "विश्व युद्ध"हम बड़े नसीब वाले थे । ब्रिटानिया हुकुमत ने हमें यूरोपीय देश भेजने के लिए "लास्ट ट्रेन" से ब्रिटिश भेजा गया । सफ़र रोमांचित ,युद्ध की थकान सभी गहरी नींद में थे कि ट्रेन के साथ भागने और भयानक आवाज़ें सुनाई दी देखा तो "शुतुरमुर्ग" के झूंड के झूंड 60-70किलोमीटर की रफ्तार से ट्रेन के साथ दौड़ रहें हैं ।


बस हमारे साथियों ने अपनी बोगियों की ख़िड़कियां बंद की कुछ लोगों ने पिक्चर भी खींच लिए उन शुतुरमुर्ग के झूंडों के ब्रिटिश न्यूज़ पेपर में छपा सीक्रेट था।

 #शुतुरमुर्ग_अंडे #ब्रेकिंग_न्यूज_बन_गई_द्वितीय_विश्व_युद्ध_से_लौट_रहे_विजेता_सैनिकों _पर_शुतुरमुर्ग_के_झूंडों_का_हमला। 


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