*लाज*भाग 1
*लाज*भाग 1
बहुत समय पहले की बात है एक छोटा सा गांव था कसेरी। उस गांव में गरीब किसान का एक परिवार रहता था। उस परिवार में एक बूढ़ी मां के अलावा किसान की पत्नी और दो बच्चे रहा करते थे । किसान के दोनों बच्चों में लड़का 12 वर्ष का और लड़की 2 वर्ष की थी। बरसों की मन्नतों के बाद घर में एक सुंदर सी प्यारी कन्या का जन्म हुआ था। देवी मां की कृपा समझकर वह किसान उस लड़की को बहुत प्यार करता था । परिवार अपने गरीबी के दिनों को भी अपने आपसी प्रेमभाव के कारण खुशी-खुशी व्यतीत कर रहा था।
किंतु कहते हैं समय सदैव एक सा नहीं रहता । एक दिन की बात है उस किसान के अचानक दिल में दर्द उठा। गरीबी और गांव में चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव में उसकी पत्नी उसको गांव के ही एक वैद्य जी के पास दिखाने ले गई। वैद्य जी ने जब किसान की ऐसी हालत देखी तो उसके हाथ पांव फूल गए। उसने किसान की पत्नी को अकेले में बुलाकर कहा...… सुन रामसखी इसकी हालत अच्छी नहीं है! जल्द से जल्द तू इसे शहर ले जा !! इसके पास वक्त बहुत कम है। वैद्य जी के मुंह से अपने पति के लिए ऐसे शब्द सुनकर रामसखी के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई ।उसकी आंखों में आंसू आ गए। घर में भी मदद करने वाला दूसरा कोई नहीं है.. फिर भी उसने हिम्मत दिखाते हुए गांव के कुछ लोगों को इकट्ठा किया और किसान को शहर ले जाने के लिए ट्रैक्टर की व्यवस्था की। कुछ ही समय में किसान को ट्रैक्टर की ट्रॉली में रखकर शहर की ओर लेकर रवाना हुए । कुछ दूर चल कर ही रास्ते में किसान ने दम तोड़ दिया। जब सभी लोगों ने किसान प्यारेलाल को मृत अवस्था में पाया.. तो घुंघट किए रामसखी से कहा..... रामसखी अपना प्यारे तो भगवान को प्यारा हो गया। यह शब्द सुनते ही जैसे रामसखी पर वज्रपात हो गया। वह जोर-जोर से फूट-फूट कर रोने लगी। बाकी लोग उसकी दशा देखकर अपने आंसुओं को ना रोक सके । ट्रैक्टर को वापस गांव की ओर मोड़ दिया गया। कुछ ही क्षणों में प्यारेलाल की मृत्यु का समाचार पूरे गांव में फैल गया। सभी लोग किसान के अंतिम दर्शनों के लिए एकत्रित होने लगे। किसान को देखकर उसकी बूढ़ी मां अपनी छाती पीट पीट कर कह रही थी ....मुझ दुखिया को मौत क्यों न आ गई... भगवान तू मुझे किन कर्मों की सजा दे रहा है । मेरा सब कुछ मेरी आंखों के सामने मिटा जा रहा है और मैं.... मै अभागन यह सब देखने के लिए जीवित बची हूं !! तू मुझे मौत क्यों नहीं देता ?? गांव की औरतें आंखों में आंसू लिए एक दूसरे को सांत्वना दिए जा रही थी। यह दृश्य देखकर ऐसा लग रहा था मानो गांव में सब कुछ रुक गया है । सभी लोग दुख की इस बेला में किसान के परिवार के साथ थे । कुछ समय बाद गांव के लोगों ने मिलकर प्यारेलाल के दाह संस्कार की व्यवस्था कराई क्योंकि प्यारेलाल की दशा किसी से छिपी नहीं थी। उसके घर में उसका एक ही पुत्र था वह भी अभी काफी छोटा था। कुछ समय बाद प्यारेलाल का दाह संस्कार कर दिया गया। सभी लोग श्मशान से वापस लौट आए।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा । किसान प्यारे लाल की मृत्यु से उसकी बूढ़ी मां काफी परेशान रहने लगी। धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य गिरने लगा और एक दिन वह भी पुत्र वियोग में अपने परिवार को छोड़कर चल बसी। कुछ ही समय के अंतर से हुई दो मौतों ने रामसखी को अंदर से तोड़ कर रख दिया। उस घर की सारी जिम्मेदारी अब उसी पर आ पड़ी। थोड़ी सी खेती और घर की सारी जिम्मेदारी से रामसखी बहुत परेशान रहने लगी। दुःख की इस घड़ी में उसकी मदद करने वाला पूरे गांव में कोई भी न था। वह सोचने लगी कि हम दुखियों की कब तक कोई मदद करें। टूटी को क्या कोई बूटी देगा। जब हमारी किस्मत में ईश्वर ने इतने सारे दुख लिख दिए हैं तो भला कोई सुख कैसे दे सकता है।
धीरे धीरे घर की आर्थिक स्थिति गिरने लगी । हालात यहां तक पहुंच गए कि दो वक्त का भोजन भी जुटाना मुश्किल हो गया। बेचारी रामसखी से यह सब भार उठाया न गया तो उसने किसान के एक मित्र गोपाल से कहा.... भाई साहब आप कुछ करके मेरे लड़के को शहर में कुछ काम दिलवा दो। शायद मेरा घर बर्बादी से बच जाए...। आपका मुझ पर बहुत उपकार होगा ...!
गोपाल, प्यारेलाल का अच्छा मित्र था। उसको अपने मित्र की पत्नी पर बहुत दया आई। उसने अपने शहर में एक मिलने वाले से कहकर शहर के ही एक ढाबे पर काम दिला दिया। छोटी सी उम्र में जिन बच्चों को खेलना कूदना चाहिए था वह अब जिम्मेदारियों के तले दब गए । मजबूरी ने उस बालक को छोटी सी उम्र में ही जिम्मेदारियों का पहाड़ उठाने के लिए तैयार कर दिया। मां ने अपने कलेजे के टुकड़े को जब शहर के लिए रवाना किया तो उसे गले से लगा कर रो पडी और कहने लगी..... बेटा मुझे माफ कर देना ! मैं तेरा दायित्व ना निभा सकी। इस हालात में इसके सिवा मेरे पास और कोई चारा भी तो नहीं है । लड़का भी मां के गले से लगा सुबकता रहा । हालात का मारा परिवार करे भी तो क्या करें।
आगे क्रमशः.......