क्या आपको बुढ़ापा नहीं आयेगा ?
क्या आपको बुढ़ापा नहीं आयेगा ?
" बेटा राघव मैं कल सविता जी से मंदिर में शादी कर रहा हूं तुम और बहु आओगे तो मुझे अच्छा लगेगा बाकी तुम्हारी इच्छा है !" बेटे के कमरे के दरवाजे से दिवाकर जी बोले।
" जी पापा !" राघव ने केवल इतना कहा।
" दिमाग खराब हो गया है इनका ये कोई उम्र है शादी करने की लोग क्या कहेंगे अपने साथ साथ हमारी भी नाक करवाएंगे !" अंदर से बहु दीक्षा झुंझला कर बोली।
" फिक्र मत करो बहु जब तुम ससुर को नौकर समझती थी तब कोई कुछ नही बोला जब तुम ससुर की रोटियां गिनती थी तब कोई कुछ नही बोला तो अब लोग क्या कहेंगे !" दिवाकर जी बहु की बात सुन बोले और वहां से चले गए।
आगे की कहानी पढ़ने से पहले आपको थोड़ी पहले की कहानी जाननी होगी। दिवाकर जी जिनका इकलौता बेटा राघव । एक खुशहाल परिवार था दिवाकर जी का पत्नी सुलोचना एक अच्छी पत्नी होने के साथ साथ अच्छी मां भी थी। पर शायद दिवाकर जी और सुलोचना जी का साथ ज्यादा नहीं था। राघव जब पंद्रह साल का था तब सुलोचना जी का एक्सीडेंट हो गया और वो भगवान को प्यारी हो गई । दिवाकर जी ने राघव को मां बाप दोनो का प्यार दिया पढ़ाया लिखाया पैरों पर खड़ा किया और उसकी शादी कर दी। कुछ समय बाद दिवाकर जी रिटायर हो गए। उन्होंने सोचा अब बाकी की जिंदगी दोस्तों के साथ गप्पे मारते और पोते पोती को खिलाती गुजर जायेगी पर ऐसा ना हुआ। बहु दीप्ति को उनके दोस्तों का घर आना रास ना आता। हालाकि घर दिवाकर जी का था पेंशन भी आती थी अच्छी खासी फिर भी दीप्ति को वो बोझ से लगते। बाजार के सारे काम करने के बाद भी उनको रोटी देना दीप्ति को बहुत बड़ा काम लगता।राघव सब देख समझ कर भी घर की शांति के लिए चुप रहता। इधर उनके एक मित्र की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी का भी यही हाल था या यूं कहें दिवाकर जी से भी ज्यादा बुरा हाल था क्योंकि दिवाकर जी की तो फिर भी पेंशन आती थी पर उनके पास कुछ ना था।
अपनी बहु की बेरुखी और मित्र की पत्नी की दुर्दशा देख वो अक्सर बहुत कुछ सोचा करते । मित्र की पत्नी सविता जी अपने पोते को ले पार्क आती थी तभी मुलाकात हो जाती थी वरना न सविता जी की बहू को दिवाकर जी का घर आना पसंद था ना दीप्ति को सविता जी का। जब पानी सिर से ऊपर चला गया तब दिवाकर जी ने सविता जी के आगे विवाह प्रस्ताव रखा जिसे मानने में उन्होंने एक महीना लगा दिया पर आखिरकार राजी हो ही गई। वैसे भी इस उम्र में जिस्मानी जरूरत तो होती नही बस किसी अपने के साथ की जरूरत होती है जो सविता जी को दिवाकर जी में नजर आया और दिवाकर जी जो घर के मालिक होकर भी दो रोटी के मोहताज हो गए थे उनको सविता जी वो शख्स नजर आई जिनके कारण वो सम्मान की रोटी खा सकते थे वरना बेटे बहु से अलग हो अकेलेपन का डर था।
" दीप्ति तैयार हो जाओ हमे मंदिर जाना है !" अगले दिन राघव दीप्ति से बोला।
" मुझे शौक नही बूढ़े बुढ़िया की रासलीला देखने का और तुम्हे भी कोई जरूरत नही है उन्होंने तो शर्म बेच खाई तुम तो ख्याल करो दुनिया का।" दीप्ति बोली।
" दुनिया का और तुम्हारा ख्याल करके ही तो अब तक चुप था वरना जो होता आया पापा के साथ वो मुझसे छिपा तो नही। वैसे तुम्हे शादी में नही जाना तुम्हारी मर्जी पर हमारा सामान जरूर पैक कर लेना !" राघव बोला।
"सामान क्यों ? हम कही जा रहे हैं ?" दीप्ति हैरानी से बोली।
" हां हम इस घर को छोड़ किराए के घर में जा रहे हैं !" राघव तैयार होता हुआ लापरवाही से बोला।
" क.. क..क्या ...अपना इतना बड़ा घर होते हुए भी किराए के घर में क्यों ?" दीप्ति हैरानी से बोली।
" तुम भूल रही हो ये घर हमारा नही पापा का है !" राघव बोला।
" हां तो हम उनके बेटा बहु है तो उनके घर पर हमारा ही तो हक है ना !" दीप्ति बोली।
" वाह हक याद रहा तुम्हे पर फर्ज का क्या ...उनकी बहू होने का एक भी फर्ज निभाया तुमने ...और तुमने ही क्यों मैने भी सब जानते बूझते भी चुप रह तुम्हारा साथ दिया तो अब हमारा कोई हक नही इस घर पर ये घर पापा का है और अब उनको बिना गिने रोटी देने वाली आ रही है तो हमें यहां से चले जाना चाहिए।" राघव बोला और तैयार होने लगा साथ ही बच्चों को भी तैयार होने बोल दिया।
" मैं भी चल रही हूं तुम्हारे साथ !" जैसे ही राघव बच्चों को ले गाड़ी में बैठने को हुआ दीप्ति तैयार हो वहां आ बोली।
" हम्म!" राघव ने इतना बोल दरवाजा खोल दिया गाड़ी का।
उधर दिवाकर जी और सविता जी अपने कुछ मित्रों के साथ शादी की रस्में कर रहे थे पर दोनो की निगाह दरवाजे पर लगी थी कि कोई तो अपना आए पर उन्हे पता था ये संभव नहीं।
" वर वधु का गठबंधन कौन करेगा ?" पंडित जी ने पूछा तो सविता जी और दिवाकर जी एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
" हम करेंगे !" तभी दो आवाज एक साथ गूंजी।
" अरे बच्चों तुम !" दिवाकर जी दरवाजे पर अपने पोते पोती को देख आश्चर्य मिश्रित खुशी से बोले।
" हां दादू हम करेंगे आपका और दादी का गठबंधन !" दोनो बच्चे बोले और आगे बढ़ गठबंधन करने लगे पीछे पीछे राघव और दीप्ति को देख दिवाकर जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
थोड़ी देर में विवाह संपन्न हुआ दीप्ति और राघव ने नवविवाहित जोड़े का आशीर्वाद लिया। सब घर आ गए।
" पापा अब हम चलते हैं !" थोड़ी देर बाद राघव बोला।
" कहां ?" दिवाकर जी आश्चर्य से बोले।
" पापा मैने किराए का घर देख लिया है अब हम वहीं रहेंगे घर यहीं इसी मोहल्ले में है तो आपको जब जरूरत होगी मैं हाजिर हो जाऊंगा !" राघव बोला।
दिवाकर जी और सविता जी ने उन्हे रोकने की बहुत कोशिश की पर शायद राघव ने मौन रह अपनी पत्नी का जो साथ दिया अपने पिता का अपमान करने में उसका यही प्रयश्चित राघव को नजर आया। दीप्ति भी सिर झुकाए राघव के फैसले को मौन स्वीकृति दे रही थी।
दोस्तों जीवन की संध्या बेला हर किसी के जीवन में आनी है पर हम अपने बड़े बुजुर्गों का अपमान कर उन्हे नीचा दिखा क्या खुद के लिए ही गड्ढा नही खोद रहे। यहां दिवाकर जी ने वक्त रहते सही फैसला लिया पर कितने बुजुर्ग तो सारी जिंदगी चैन की दो रोटी को तरसते हुए दुनिया से रुखसत हो जाते है।
अपने बुजुर्गों का अपमान करने से पहले एक बार सोचिएगा जरूर क्या आप कभी बूढ़े नही होंगे ?
आपकी दोस्त, संगीता