कवि सम्मेलन
कवि सम्मेलन
छगनापुर के एक कवि सम्मेलन का दृश्य
कवि बचाल चोंचा- "तिल को तिल कहें या मोर के पँख, जब आती है याद तेरी बजाते हैं शंख"
कवि गम्भीर सुस्ती-"तेरे घर के सामने एक घर बनाऊंगा, जब कपड़े सूखायेगी तू मैं उठा ले जाऊँगा"
वीर रस के कवि मर्द जनाना वादी- "तौहीन का जबाव तो समशीरे दिया करती हैं, पर क्या करें गालिब मियाने ही छोटी हैं"
कवि बुद्धि भूसा- "तेरे चुल्ल की नफरत अब न सह पायेंगे, लेगें हाथों में लठ्ठ और तुझे तेरे घर तक भगायेंगे"
कवि मदहोश मस्त लगे- "मेरे शक का कीड़ा कुलबुलाया तो था.."
जब वो मुझे देख के मुस्कुराया जो था
कवि बेदर्द मरे- "वो लगा रहा खाने में फिर...दो घण्टे पखाने में"
कवि कोना पकड़- "सौ ग्राम रबड़ी खाने के साथ, मजा आ गया खुजाने के बाद"
कवि बिगड़ैल- "थोड़ी तो तमीज होनी चाहिए, पेंट के संग कमीज होनी तो चाहिए"
श्रोता सिर पीटकर- वाह वाह, वाह वाह.