amit mohan

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कवि सम्मेलन

कवि सम्मेलन

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छगनापुर के एक कवि सम्मेलन का दृश्य

कवि बचाल चोंचा- "तिल को तिल कहें या मोर के पँख, जब आती है याद तेरी बजाते हैं शंख"

कवि गम्भीर सुस्ती-"तेरे घर के सामने एक घर बनाऊंगा, जब कपड़े सूखायेगी तू मैं उठा ले जाऊँगा"

वीर रस के कवि मर्द जनाना वादी- "तौहीन का जबाव तो समशीरे दिया करती हैं, पर क्या करें गालिब मियाने ही छोटी हैं"

कवि बुद्धि भूसा- "तेरे चुल्ल की नफरत अब न सह पायेंगे, लेगें हाथों में लठ्ठ और तुझे तेरे घर तक भगायेंगे"

कवि मदहोश मस्त लगे- "मेरे शक का कीड़ा कुलबुलाया तो था.."

जब वो मुझे देख के मुस्कुराया जो था

कवि बेदर्द मरे- "वो लगा रहा खाने में फिर...दो घण्टे पखाने में"

कवि कोना पकड़- "सौ ग्राम रबड़ी खाने के साथ, मजा आ गया खुजाने के बाद"

कवि बिगड़ैल- "थोड़ी तो तमीज होनी चाहिए, पेंट के संग कमीज होनी तो चाहिए"

श्रोता सिर पीटकर- वाह वाह, वाह वाह.


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