कुलीग दोस्त नहीं
कुलीग दोस्त नहीं
दोस्त और कुलीग में फर्क होता है
"अर्पिता ! नैना ने नए साल के आगमन के उपलक्ष्य में पार्टी अपने घर पर रखा है , कितना मजा आनेवाला है तु सोच भी नहीं सकती। प्लीज चल ना। तु अपनी उस कॉलेज की फ्रेंड हिमश्री के जन्मदिन पर तो बहुत खुशी खुशी गई थी। और अब इस ऑफिस की दोस्त नैना के बर्थडे पार्टी में जाने को मना कर रही है!"
अंकिता जैसे जिद ठानकर बैठ गई थी कि वह किसी भी तरह से अपनी इस ट्रेजेडी क्वीन दोस्त अर्पिता को नैना के बर्थडे पार्टी में ले जाकर रहेगी।
पर.... अर्पिता को राजी करना इतना भी आसान नहीं था।
ना जानें ऐसी कौन सी गांठ थी अर्पिता के मन में जो वह ऑफिस वालों से कटी कटी रहती थी और ऑफिस के काम के अलावा ओर कोई मतलब नहीं रखती थी।
अर्पिता भी क्या करती....?
उसका इसके पहले के ऑफिस और वहां के कुलीग से ऐसा ही कुछ बुरा अनुभव हुआ था जिसे भूला पाना अर्पिता के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि बहुत मुश्किल था। अब वह किसी कुलीग से दोस्ती तो क्या उनसे फॉर्मल बातों के अलावा ना तो कोई और बात करना चाहती थी ना ही और ना ही किसी को अपनी जिन्दगी में आने देना चाहती थी।
पिछले ऑफिस में उसकी कुछ कुलिग्स ने बहुत बड़ा धोखा किया था अर्पिता के साथ कि अब अर्पित किसी भी नए इन्सान पर बिलकुल भरोसा नहीं कर सकती थी।
बीता साल अर्पिता को यह बहुत अच्छी तरह समझाकर गया था कि किसी कुलीग्स पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए और ना ही किसी नए दोस्त को खुलकर अपनी कमजोरी बतानी चाहिए।
वैसे देखा जाए तो... बीता साल कुछ अच्छे अनुभव के साथ कुछ बुरे अनुभव भी देकर गया था। और अर्पिता को प्रोफेशनल वर्ल्ड में अपनी पहचान बनाए रखने और उस पहचान को किसी और को खराब नहीं करने देने का एक मंत्र भी सीखा गया था।
तमाम बातों से परे किसी भी प्रतियोगिता का मूलमंत्र स्पर्धा होना चाहिए ईर्ष्या नहीं।
यह अर्पिता के लिए बीते साल की सबसे बड़ी सीख थी , जिसे अर्पिता अब कभी नहीं भूलने वाली थी।
(समाप्त)
उद्घोषणा: यह एक काल्पनिक और स्वरचित कहानी है।
इसका किसी भी मूल घटना से कोई कनेक्शन नहीं है।
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