कुछ मत कहना

कुछ मत कहना

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माताजी, आपको पता भी है आप क्या-क्या कहते रहते हैं मेरे बारे में ! सुनकर मुझे तो बड़ा खराब लगता है। जरा हमें बताते तो सही, ऐसा हमने क्या किया ? अब तबीयत कभी ठीक नहीं रही तो काम नहीं किया होगा ! ऐसे ही तबीयत की खराबी के कारण ही हमसे खाना भी नहीं बन पाया होगा ! तो इसमें कौन-सा जुल्म कर दिया हमने ! यह तो हमारी भलमनसी है जो हम कुछ कह नहीं रहे हैं वरना कोई दूसरी होती तो पता चलता आपको। अभी तक आपने औरों की बहुओं को देखा नहीं है ना इसलिए ऐसी बातें कर रही हैं नहीं तो आटे - दाल का भाव मालूम पड़ जाता। अरे अपनी उम्र का भी तो ख्याल कीजिए बताइये हमने आपका कब काम नहीं किया ? कब हमने आपकी सेवा नहीं की? हम काम पर जाते हैं फिर भी आपका खाना-पीना बनाना टाइम पर आपको दवाई देना डाक्टर के पास आपको ले जाना इत्यादि सब हम ही तो करते हैं तब भी आपकों हमारी कद्र नहीं है तो फिर हम क्या कर सकते हैं आप खुद ही बताइये ! सच कहें हम तो आपकी किट-किट से परेशान हो गए हैं जब से आये हैं तब से हमारे नाक में दम करके रख दिया है काम को लेकर कहते रहते हैं दिन भर कुछ काम नहीं करती ! अब करें भी तो करें क्या ? हम इतना तो करते हैं नहीं तो औरों की बहुओं को देखिए कुछ काम नहीं करती बस सारा दिन सजने-संवरने में लगी रहती हैं। हमारा भी मन करता है हम भी सजें-संवरे लेकिन हम कर ही नहीं पाते हैं।

लेकिन बहुरिया हमने कब मना किया है - तुम सजो-संवरो मत ? खूब सजो-संवरो भाई यही उम्र है फिर तो उम्र निकल जानी है तो बस हमारी तरह यूं ही पड़े रहना पड़ेगा ! इती देर से तुम हमें जो रामायण सुना रही हो अरी बहुरिया हमें काहे सुना रही हो ? हमने कब का कही है ? बस हर रोज दिनभर यूं ही चुपचाप बैठे रहते हैं कुछ भी तो नहीं कहते हैं। अरे भाई जैसा मिला चुपचाप खा लिया कभी नहीं कहा कि हमको ये नहीं खाना है वो नहीं खाना है। तुम्हें पता है हमारे दांत नहीं है हम जैसे-तैसे खाते है तुम रोटियां कितनी कच्ची-पक्की और कड़क बनाती हो हमसे खाई नहीं जाती तब भी हमने कोई शिकायत की तुमसे ? कैसे भी करके हम का लेते हैं - कभी दाल में कभी छाछ में कभी सब्जी के रसे में भिगाकर खा लेते हैं कभी तो एकदम सूखी सब्जी होती है और साथ में कुछ नहीं होता तो हम सब्जी में पानी डाल कर खा लेते हैं फिर भी तुम ऐसा कहती हो अरे ऐसा कहते हुए तुम्हें कुछ भी लगता नहीं ? हमें तू ये तो बता किसने कहा तुम्हें कि हमने तुम्हारी बुराई की ? फिर बुराई करने से हमें क्या मिलेगा ? हमारा दिमाग अभी सही चल रहा है हम अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे लिए अच्छा-बुरा जो भी होगा तू ही तो करेगी कोई बाहर वाला थोड़े ही ना आ जायेगा हमारी मति नहीं मारी गई है जो ऐसी बातें करें देख बहुरिया तुम्हें भी यह सब शोभा नहीं देता है ! 

माताजी औरों की तो छोड़िए आपका खुद का बेटा कह रहा था - मां कह रही थी कि तुम खाना बराबर नहीं बनाती हो सुबह की बनी रोटियां दिन में तीनों टाइम खिलाती हो चावल दाल-सब्जी दिन भर का एक ही बार में बनाकर रख देती हो अगर उसमें भी बच गया तो दूसरे दिन यह कहकर चला लेती हो - आज कल का खाना बहुत बच गया है खा लेंगे या दूसरा बनायें ?  

 हम रोज ताजा ही तो बनाते हैं अब कभी बच गया तो क्या इतने मंहगाई के जमाने में फैंक दें ? भाई हमसे तो नहीं होगा ! हे राम बुढ़ा गई हैं लेकिन अभी शौक तो देखिए !

अरी बहुरिया तुम इतनी जली-कटी काहे सुना रही हो ? हमने क्या किया है ? कौन-से शौक हमने पाल रखें हैं ? जो तुमने पूरे किए हैं ! फिर तुमने हमारे लिए ऐसा क्या किया है जो कबसे बड़बड़ाए जा रही हो ? देखो तुम्हारा यह शहर हमको वैसे भी रास नहीं आता हम तो यहां नहीं आना चाहते थेऔर न ही रहना चाहते थे पर हम भी का करें गांव में अकेले लल्ला रहने नहीं देता हमने किती बार कई हमें गांव में ही रहने दो अब का करें लल्ला ने हमारी एक नहीं सुनी जबरदस्ती कसम देकर ले आया। हमारा गांव का घर भी बेच दिया हमने बहुत रोका लेकिन माना ही नहीं कहने लगा मां तू हमारे साथ नहीं चलोगी तो हमारा मरा मुंह देखोगी अब इतने कठोर तो हम हो नहीं सकते हमारे लिए हमारे लल्ला से बढ़कर तो कुछ भी नहीं है ! अब तुम्हें अच्छा लगे या बुरा हमें अब यहीं रहना पड़ेगा ! हम कुछ काम करें तो तुम करने नहीं देती हो फिर बड़बड़ाती रहती हो बर्तन इधर से उधर पटकती रहती हो हम समझते सब हैं तुम हमें पसंद नहीं करती अरे तुम का तुम्हारे बच्चे भी हमें पसंद नहीं कहते तुम्हारी देखा-देखी वे भी तुम्हारी तरह ही बड़बड़ाते रहते हैं बड़ी वाली दोनों लड़कियां तो फिर हमारे साथ ठीक से बतियाती है लेकिन वो तुम्हारा पिद्दी - सा बेटा हमसे कह रहा था - दादी तुम हमारे घर में काहे रहती हो तुम्हारा अपना घर नहीं है ? अपने घर जाओ ना बेचारी मम्मी उस दिन से रो रही तुम्हारे लिए पापा ने मम्मी को मारा बहुत गुस्सा किया ! हमने तो लल्ला को भी कितना डांटा औरत पर हाथ उठाना कोई मर्द की निशानी नहीं है हाथ वहीं उठाता है जो कमजोर होता है हमारा लल्ला कमजोर नहीं है ! बहुरिया हमें एक बात बताओ - हमने कभी कोई तकलीफ तुम्हें दी है कभी भला-बुरा कहा है ? हां हमें तो याद नहीं आ रहा है अगर तुम्हें याद है तो तुम ही बतादो फिर भी कभी जाने-अनजाने कुछ भी कहा हो हमें माफ कर दो इस तरह मन मैला मत करो बस बिटिया दो दिन की जिन्दगी है काहे मन दुखी कर रही हो ! अरे बेकार ही में हलकान हुए जा रही हो ! 

हम सच कह रहे हैं बहुरिया हमने किसी से कुछ नहीं कहा। लल्ला से भी कभी कुछ नहीं कहा है। आने दे उसे हम तेरे सामने पूछेंगे।

 नहीं-नहीं आप उनसे कुछ मत पूछियेगा वो हमसे झगड़ा करेंगे वो तो गुस्से में मार भी देते हैं आपको तो पता ही है !

 नहीं हमें नहीं पता कि वो तुम पर हाथ भी उठाता है हमने तो कभी न सुना न देखा हमें तो यह भरोसा भी नहीं हो रहा है कि लल्ला ने हमारे बारे में ऐसा कहा होगा !

 तो क्या हम झूठ बोल रहे हैं ? आप मां-बेटे दोनों सच्चे कहते-कहते रोने लगी रोते-रोते बड़बड़ाये भी जा रही थी। बेचारी माताजी हैरान कि यह कह क्या रही है ! क्यों इस तरह की बातें कर रही है ? हम जब भी गांव से आते हैं थोड़े दिन ठीक रहेगी बाद में बेवजह के नाटक शुरू कर देती है हर बार तो तंग आकर हम चले जाते हैं लेकिन अब तो जा ही नहीं सकते रहने का ठिकाना जो नहीं रहा फिर भी कुछ तो करना पड़ेगा ! ऐसे माहौल में बड़ी मुश्किल से एक साल निकाला पर अब तो पानी सिर से गुजर रहा था इसलिए उन्होंने गांव जाने का फैसला किया मगर अब बेटे से कैसे कहे अपना घर भी तो नहीं रहा इसलिए थोड़ा मुश्किल हो रहा था बात करना फिर भी करनी तो पड़ेगी एक बात अच्छी थी बड़ी बेटी की ससुराल वहीं थी पर बेटी पिथौरागढ़ में रहती थी अभी वो अपनी ससुराल आई हुई थी 

इसलिए उन्होंने बेटे से कहा जाने के लिए वो एक ही बार में मान गया घर के ऐसे माहौल से वो भी परेशान था वह अघ्छी तरह से जानता था कि सारा रायता बीवी ने ही फैला रखा है लाख समझाया पर असर ऐसा हो रहा था जैसे किसी चिकने घड़े पर पानी ठहरे ! वह खुद घर बेचकर पछता रहा था  काश घर न बेचा होता तो मां का जब मन होता वैसे आती-जाती रहती ! लेकिन मां से कुछ नहीं कहा फिर भी मां बेटे के मन की बात जैसे पढ़ रही थी ! 

 गांव जाने के बाद अपनी बेटी के साथ अपने घर गई वहां औरों को देखकर मन भर आया ! उनका ग्वालीघर यूं ही खाली और उजाड़ पड़ा था उनके कोई जानवर नहीं था उनके दिमाग में एक विचार कौंधा - अगर मैं ये किराये पर ले लूं तो हिम्मत करके पूछा - ये ग्वालीघर आपके तो किसी काम नहीं आता मुझे किराये पर देंगे वो क्या है कि शहर में मेरा मन नहीं लगता अगर आप मेहरबानी कर दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी !

अरे माताजी इसमें मेहरबानी कैसी और भाड़ा भी कैसा ? आपका अपना घर है आप हमारे साथ भी रह सकती है।

 ग्वालीघर में भी तो आपके साथ ही तो है। मां-बेटी ने मिलकर दो दिन में लीप-पोतकर चकाचक कर दिया यह भी छोटा नहीं था बल्कि दो सौ मीटर लंबा सौ मीटर चौड़ा। कुछ ज़रूरत का सामान बिस्तर चारपाई बर्तन-भांडे वगैरह भी मंगवा लिया फिर वहां अच्छी तरह सेटल होने के बाद बेटे को फोन पर अपना फैसला बता दिया और बेटे ने भरे गले से कहा - अच्छा किया मां ! मैं भी आ रहा हूं।

नहीं बेटा तुम वहीं बहु-बच्चों के पास रहो बाद में मिलने आ जाना !

नहीं मां मुझे तुम्हारी जरूरत है मुझे आने दो !

पर तुम्हारी जरूरत बहु-बच्चों को है।

 थी कभी मगर अब नहीं अभी तुम्हें मेरी और मुझे तेरी जरूरत है बस अब कुछ मत कहना मां !


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