कर्तव्य
कर्तव्य
"तेरी बुद्धि और हृदय को जो सत्य लगे वही तेरा कर्तव्य है"
मानव जीवन में अनेक प्रकार के कर्तव्य जन्म लेते हैं जिनको सही दिशा में निभाने से जीवन में उत्साह, शान्ति व यश मिलता है, इसलिए हर प्राणी को अपने कर्तव्यों का पालन नियमपूर्वक करना चाहिए,
आज में मां का अपने बेटे व बेटियों के प्रति क्या क्या कर्तव्य होना चाहिए उजागर करने जा रहा हुं,
देखा जाए मां शब्द अपने आप में परिपूर्ण है किन्तु फिर भी जन्म देने के साथ साथ मां के अपनी औलाद के प्रति कुछ कर्तव्य अनिवार्य हो जाते हैं जिस से जन्म देने के साथ साथ बच्चों की जिंदगी संबारने व सुधारने का कार्य भी परिपूर्ण हो सके, देखा जाए मां एक ऐसा रिश्ता है जो जीवन भर सिर्फ देना ही जानती है लेना नहीं इसी देन में उतम संस्कार भी मां की झोली में आते हैं क्योंकी मां से बड़ा कोई शिक्षा घर नहीं है, मां जैसे चाहे बैसे ही संस्कार अपने बच्चों में भर सकती है, इसलिए मां की सफलता उसी में है जब उसके बच्चे सफल बनें हालांकि इसमें परिवार के अन्य सदस्यों का सहयोग भी जरूरी है किन्तु बच्चों को उंचाइयों तक पहुंचाना मां के कर्म पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है,
माता सुनिति, माता सुमित्रा, माता संदालता जैसी माताओं का इतिहास गवाही है जिन्होने ध्रुव जैसे या लक्षमण जैसे बेटों को जन्म दिया और उनका गुणगान कभी लुप्त नहीं होगा, इसके अतिरिक्त कई महान व्यक्तियों ने इस धरती पर अपना नाम रोशन किया जिनका श्रेय उनकी पूजनिय माताओं को जाता है जैसे विवेकानन्द जी, अव्दुलकलाम जी, सुभाषचन्द्र जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर जी, इत्यादी आते हैं कहने का भाव यह है कि मां बच्चों को बनाते बनाते स्वंय को खो देती है तथा एक अच्छी मां हमेशा प्यार और अनुशासन में संतुलन रखती है,
लेकिन आज की दौड़ धूप में भावनांए इतनी व्यस्त हो गई हैं कि बच्चों के लिए समय निकालने में कमी महसूस हो रही है कारण चाहे कुछ भी हों बच्चों में संस्कार भरने में किल्लत महसूस हो रही है कुछ मातांए इतनी व्यस्त हो चुकी हैं कि अपने बच्चों को क्रैच में छोड़ने पर मजबूर हैं
जिससे बच्चों को भरपूर प्यार व अन्य हकूक नहीं मिल पाते,
कहने का भाव यह कि अगर पहले बच्चों की तुलना आज के बच्चों से कि जाए तो साइंस के दौर में सबकुछ होते हुए भी बच्चों में कुछ त्रुटियां देखने को मिल रही हैं चाहे संस्कारों में कमी हो, सेहत में हो या सूझबूझ में, इसलिए आज की मां को समझना होगा कि क्या हम अपने बच्चों को वो सब कुछ दे पा रहे हैं जिसके वो हकदार हैंक्योंकी बच्चों के भविष्य को बनाने के लिए एक मां से बेहतर कोई नहीं जानता, तभी तो कहा है,
"गिन लेती है दिन बगैर मेरे
गुजारे हैं कितने, भला कैसे कह दूं मेरी मां अनपढ़ है"।