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Shailaja Bhattad

Abstract

2.6  

Shailaja Bhattad

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कर्मों का फल

कर्मों का फल

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 "हर बार तुम पूछते हो न, माँ अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है, को मुझे आपके ही जीवन के उदाहरण से समझाओ। तो फ़िर सुनो।"

अस्पताल के बिस्तर पर लेटी शिल्पी ने अपने दस साल के पुत्र से कहा।

"हां ! जल्दी बताओ न ऋषि अधीरता भरे स्वर में बोला।

 "तो सुनो आज जो भी हुआ तूने सब देखा न।"

 "हाँ! माँ, हमारी पड़ोसी आंटी ने तुरंत भीड़ में से आगे आकर बेझिझक आपको मोजे पहनाकर आपके ठंड से काँपते शरीर को राहत पहुंचाने में आपकी मदद की।"

 "बिल्कुल ठीक, जानते हो आज से ठीक अठारह वर्ष पूर्व जब मैं होस्टल में पढ़ती थी, ऐसे ही एक कनिष्ठ विद्यार्थी को शारीरिक समस्या आई थी, वह ठंड से काँप रही थी लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए सामने नहीं आया। बस उसके चारों ओर भीड़ लगाकर खड़े रहे।

 मैंने निस्संकोच आगे बढ़कर उसके तलवों में तेल माॅलिश कर उसे राहत पहुँचाने में मदद की।" सुनते ही ऋषि मां के गले लग गया।


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