Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

4.5  

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Romance

कर्मजली

कर्मजली

80 mins
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शारदा आंटी गर्ल्स पेइंग गेस्ट रखती है अपने दो कमरों में, इससे उनको कुछ इनकम भी हो जाती है और टाइम पास भी हो जाता है। वैसे तो उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है। उनको विधवा पेंशन मिलता है और बेटा बहु मुम्बई में बड़े हॉस्पिटल में डॉक्टर हैं।

लेडी मकान मालकिन होने और घर में किसी भी पुरुष सदस्य के नहीं रहने के चलते लड़कियाँ भी कम्फ़र्टेबल महसूस करती हैं। लेकिन शारदा जी का नियम कानून कड़क होने के चलते पैसेवाली और स्टूडेंट लाइफ में मौज मस्ती करने वाली लड़कियाँ यहाँ पेइंग गेस्ट रहना पसंद नहीं करती हैं। किसी भी लड़की को रात को नव बजे तक वापस लौटना है। किसी को भी अपने बॉयफ्रेंड को अंदर बुलाने की इजाजत नहीं है। किसी भी प्रकार का नशा करने पर रूम खाली करना पड़ेगा। अंगप्रदर्शन करने वाला ड्रेस नहीं पहन सकती। आंटी कभी भी फोन का औचक निरीक्षण कर सकती है। यदि उसमें अश्लील फ़िल्म मिली तो तुरंत रूम खाली करना पड़ेगा।

शारदा जी का यह पुश्तैनी घर पटना के अशोक राजपथ पर मुख्यमार्ग के अंदरूनी हिस्से में स्थित है। आजु बाजु के सभी घर लगभग आधुनिक रंग रूप ले चुके हैं। लेकिन 'गीताभवन' अपने पुराने वास्तविक स्वरूप में खड़ा है। इसकी दीवारों से कहीं-कहीं पतली इंटे झांक कर अपनी प्राचीनता का प्रमाण देती हैं। इस मकान के हाते में घुसने पर एक नीम और एक रात रानी का वृक्ष आपका स्वागत करेगा। फिर मेहराबों वाला बरामदा मिलेगा। ऊपर जाने के लिए घुमावदार लोहे की सीढ़ी है। छत पर दो रूम बना है और एक टॉयलेट बाथरूम है जिसे पेइंग गेस्ट में रहने वाली लड़कियाँ प्रयोग करती हैं। नीचे का हिस्सा आंटी ने अपने जिम्मे रखा है। लेकिन लड़कियों के प्रयोग करने पर कोई खास प्रतिबंध नहीं है। मुख्य दरवाजे का एक चाभी सभी लड़की को मिलता है लेकिन रात नव बजे के बाद जो ताला लगता है उसका चाभी सिर्फ आंटी के पास रहता है। किसी लड़की की तबीयत खराब हो जाने पर आंटी उसकी देखभाल अपनी बेटी की तरह करती हैं।

उसी शारदा आंटी के पेइंग गेस्ट के तौर पर एक लड़की का आगमन हुआ है जिसका नाम है जबरी। वह स्वभाव से जिद्दी लेकिन कार्यकुशल और व्यवहारिक लड़की है। वह कभी भी किसी के दुख का कारण नहीं बनाना चाहत।

जबरी फुलवारी शरीफ के नेमीचंद हाइस्कूल की टॉपर थी जिसके चलते पटना साइंस कॉलेज में उसका एडमिशन आसानी से हो गया था। उसकी बड़ी बहन सरला किसी तरह से सेकंड डिवीजन से पास हुई थी। वैसे तो सरला जबरी से दो साल बड़ी थी लेकिन दो बार बोर्ड में लड़खड़ाने के चलते जबरी के साथ हो गयी थी। इस बार भी शायद वह पास नहीं हो पाती अगर जबरी का सहयोग और समर्थन नहीं मिलता।

जबरी के पिताजी जी को दो बेटी और एक बेटा था लेकिन उसकी माँ को केवल एक बेटा और एक बेटी थी, ऐसा जबरी का मानना था। क्योंकि माँ उसको बिल्कुल प्यार नहीं करती थी। बात बात में उसपर हाथ उठाती थी और घर का सारा काम भी उससे करवाती थी। सरला दीदी और सुशांत से कुछ भी गलती हो तो उनको माफ कर दिया जाता की कोई बात नहीं चलो बच्चों से गलती हो जाती है। लेकिन जबरी की मामूली सी गलती पर माँ सर पर आसमान उठा लेती थी। माँ के इसी व्यवहार ने जबरी को जिद्दी बना दिया और वह घर में कभी कभी जानबूझकर भी गलतियाँ करती थी ताकि माँ चिढ़े। उसको यह नहीं समझ में आता था की माँ को उससे क्या समस्या है और उसके इस व्यवहार का सरला और सुशांत भी फायदा उठाते थे। पिताजी आदरणीय श्रीमान रमेश सिन्हा जी जबरी से संवेदना और सहानुभूति तो रखते थे लेकिन अपनी पत्नी को कभी गलत नहीं कह पाते थे। यह बात जबरी को और कष्ट पहुँचाती थी। क्योंकि पिताजी उसको अकेले में बहुत प्यार करते थे और उसकी हर जरूरत का ख्याल रखते थे।

घर पर जबरी को रोका-टोकी का सामना करना पड़ता था। अतः बोर्ड में अच्छा मार्क्स आने पर शहर के सबसे बेहतरीन कॉलेज में फर्स्ट लिस्ट में नाम आ जाने पर माँ भी विरोध नहीं कर पायी। बेमन से ही सही माँ ने उसको सइंस कॉलेज में नाम लिखाने की अनुमति दे दी। लेकिन अब समस्या थी कि फुलवारी शरीफ से वह कॉलेज कैसे जाएगी। इतनी लंबी यात्रा अकेली लड़की के लिए सुरक्षित भी नहीं रहेगा। बाहर अकेले रहेगी तो खर्च ज्यादा आएगा। कुल मिलाकर माँ नहीं चाहती थी की जबरी बाहर जाए क्योंकि उसके नहीं रहने पर घर के काम का सारा बोझ उसके ऊपर ही आ जात। यहाँ पर पिताजी ने जबरी का सपोर्ट किया और माँ इस शर्त पर तैयार हुई कि उसको एक निर्धारित पैसा ही मिलेगा और उसको उसी में काम चलाना पड़ेगा। अब सरला की शादी की भी चिंता करनी पड़ेगी।


जबरी ने सभी शर्त को स्वीकार कर लिया क्योंकि वह पढ़ने में अच्छी थी और उसको सीमित साधनों में रहने का बचपन से अभ्यास था। उसको याद नहीं कि कभी भी उसको नया कपड़ा खरीद कर मिला हो पहनने के लिए। उसको सरला दीदी के उतरन से ही काम चलाना पड़ता था। इसको जब सरला दीदी का कोई ड्रेस अच्छा लगता तो वह उदारता दिखाते हुए एक दो बार पहन कर ही दे देती थी। जबरी उसमें खुश रहती थी। इसके एवज में उसको सरला दीदी का होमवर्क करना पड़ता था। चूँकि वह दो साल ही छोटी थी उसको स्कूल ड्रेस भी सरला का ही पहनने को मिला। एक ही स्कूल में पढ़ने के चलते सरला दीदी और उसके अधिकतर फ्रेंड्स भी लगभग एक ही थे। और गाहे बगाहे कोई भी कमेंट कर देता था कि अरे यह ड्रेस तो सरला का है ना ! यह बात उसको चुभ जाती थी लेकिन वह यह कहकर हँस कर टाल देती थी की दीदी ने मुझे दे दिया है। उसका फैशन सेंस बहुत अच्छा था इसलिए सरला के ड्रेस में मामूली अल्टरेशन करके वह काफी अट्रैक्टिव बना लेती थी। उसके चलते सरला के छोड़े ड्रेस भी जबरी के बदन पर प्रशंसा बटोरने लगते थे। कभी कोई एम्ब्रॉयडरी कर लेती, कभी तार गोटा जड़ देती, कभी गला का डिज़ाइन चेंज कर देती और कभी साइड कट में बदलाव कर देती। उसके इस हुनर का फायदा उसकी सहेलियाँ भी उठाती थीं। यह काम उसने मजबूरी में शुरू किया था लेकिन कब यह उसके जादुई हुनर में बदल गया पता ही नहीं चला। उसको अगर फैमिली सपोर्ट मिलता तो शायद वह एक अच्छी फैशन डिज़ाइनर बन जाती। लेकिन उसने चाणक्य की कही बात को गाँठ बांध लिया था कि जीवन में चार चीज पूर्वनिर्धारित होती है और उसमें व्यक्तिगत चयन की गुंजाइश नहीं रहती है :

#मनपसंद माँ-बाप

#दाने दाने पर खाने वाले का नाम

#मृत्यु की तिथि, विधी और स्थान

#जीवकोपार्जन का साधन

इसलिए उसने अपने जीवन को नदी की धार में बहते तिनके की तरह छोड़ दिया है जिसे खुद ही नही पता कि कौन सा साहिल मिलेगा या कितनी दूर मंजिल होगी।

कॉलेज जाने का सिलसिला शुरू हुआ। वह पैदल ही कॉलेज चली जाती थी और पढ़ने में पूरा मन लगती क्योंकि उसको कोचिंग करने का पैसा नही मिलने वाला था। वह डॉक्टर नही बनना चाहती थी क्योंकि उसके पढाई का खर्चा उसको नही मिल पाता। इसलिये उसने ग्रेजुएशन करके SSC, बैंक या रेलवे का कम्पटीशन निकालकर नौकरी करना चाहती थी। बहुत जल्द ही कॉलेज में उसपर पढ़ाकू होने का और दीदी टाइप लड़की होने का ठप्पा लग गया। 


कुल मिलाकर उसकी जिंदगी ठीक ठाक कटने लगी। क्योंकि अब उसके ऊपर से माँ के ताने और अकारण मार पिटाई तथा घर के काम का बोझ हट गया था। लेकिन मेहनत करने और सीमित साधन में रहने की आदत के चलते पढ़ाई में परिश्रम करने में उसको कोई कठिनाई नहीं होती थी। हाँ घर से मिलने वाला सीमित पैसा कम पड़ रहा था। कभी मन किया तो पानी पूरी भी खाने मे सोचना पड़ता था। कोई महँगी बुक भी लेनी हो तो मुश्किल लगती थी। कुल मिलाकर उसको कुछ अतिरिक्त इनकम की व्यवस्था करने की आवश्यकता महसूस होने लगी। पिताजी को अपने खर्चे के लिए भी पैसे गिनकर माँ से मिलता था। इसलिए पिताजी चाहकर भी जबरी के प्रति उदारता नहीं दिखा सकते थे।अपने खाली समय में वह शरदा आंटी का किचन में हाथ बंटा देती थी। घर की साफ सफाई में भी मदद कर देती थी। वह यह काम इसलिए करती थी क्योंकि उसको यह करने की आदत थी और आंटी उससे प्यार करती थी। जरूरत पड़ने पर सौ-पचास उधार भी दे देती थी। जबरी को मिलने के लिए उसके पिताजी के अलावे कभी कोई नहीं आता था। फुलवारी शरीफ कोई इतना लंबा नहीं था की माँ बेटी से मिलने नहीं आ सके। शरदा जी की अनुभवी आंखों ने जबरी की घरेलु स्थिति का आकलन बैठा लिया था लेकिन माँ का बेटी से ऐसे व्यवहार का कारण उनको समझ में नहीं आ रहा था। उन्होंने मन ही मन जबरी को मदद करने का निर्णय लिया। 

संडे को किचन का सब काम निबटाने में जबरी ने मदद किया और आंटी थोड़ी थकी सी लग रही थी। फिर उनके लिए अदरक वाली कड़क चाय बनाकर दिया। शरदा जी को काफी राहत मिली।फिर जिद करके उसने आंटी के सर में तेल का मालिश कर दिया। इतने सालों से वह पेइंग गेस्ट चला रही है लेकिन किसी भी लड़की से इतना अपनापन उनको नही मिला था और वह उससे एक जुड़ाव महसूस करने लगी थी। उन्होंने जबरी से कहा तुम मुझे किचन में जो मदद करती हो वह बंद कर दो। जबरी ने पूछा "मेरे सो कोई गलती हो गयी क्या ? बोल दो आगे से नहीं करूँगी "

शरदा आंटी - नहीं तुम तो इतना बढ़िया काम करती हो कि जिसकी बीवी बनोगी जरूर उसने नींद में बिल्ली का पूँछ पकड़ा होगा। तुझसे मदद लेना उचित नहीं है। यह उसूल के खिलाफ है। फिर भी तुम मदद करना चाहती हो तो मेरी एक शर्त है तुम अगले महीने से किराया नहीं दोगी।

जबरी - मैं तो आपको अपनी आंटी मानकर मदद कर देती हूँ , जब कभी मेरे पास फ्री टाइम होता है। इसमें पैसा कहाँ से आ गया।


शारदा आंटी - यही बात तो मैं भी कहना चाहती हूँ कि तुम्हारी आंटी के इतने बुरे दिन नहीं आ गए की अपनी बच्ची से किराया ले। लेकिन इसका यह मतलब कभी नही मत समझना कि तुम्हे बंधनकारी रूप से मेरी मदद करनी है।जब तुम्हारे पास समय हो और तुम्हारा मन करे मेरी मदद कर देना। तुम बोल रही थी न कि तुम्हारे रूममेट के चलते पढ़ाई डिस्टर्ब होती है। तुम कभी भी नीचे के गेस्टरूम में आकर पढ़ाई कर लेना मैं चाभी तुमको दे दूँगी।

जबरी उनके गले लग गयी और आंटी ने उसका माथा चुम लिया। महीने का आठ सौ रुपया बहुत होता है जबरी जैसे मितव्ययी के लिए। अब वह एक तरह से शरदा आंटी की इनफॉर्मल बेटी बन गयी थी। पेइंग गेस्ट की लड़कियां पहले ही उसकी सादगी से जलती थी अब वह शरदा आंटी की विशेष कृपा पात्र बन गयी थी।


चैप्टर 2


धीरे-धीरे शारदा आंटी और जबरी के बीच में संबंध घनिष्ठ होते चला गया दोनों एक दूसरे की जरूरत बन गए।


शारदा आंटी को जब भी कहीं बाहर जाना होता जबरी को साथ में लेकर जाती हैं। जैसे-जैसे समय बितता गया जबरी के ऊपर उनकी निर्भरता बढ़ती जा रही थी। जबरी के पसंद ना पसंद का पेइंग गेस्ट के संचालन पर असर दिखने लगा था उस के बढ़ते प्रभाव से अन्य लड़कियां जलन महसूस करती थी। लेकिन इसका शारदा आंटी और जबरी के संबंध पर कोई असर नहीं पड़ा। जबरी के आत्मीय व्यवहार और अपनापन से आंटी का अकेलापन दूर हो जाता था और आंटी के स्नेहिल हाथों का स्पर्श और प्यार भरे दो बोल जबरी को

इंसान की औलाद होने का एहसास कराती थी। क्योंकि बचपन से अपने घर में उसने अवहेलना और उपेक्षा का ही सामना किया था। अब तक आंटी को कोई यह नहीं पूछता था कि उन्होंने कब खाया क्या खाया।

लेकिन जबरी ने सब कुछ बदल कर रख दिया। पूरे हफ़्ते का मीनू कार्ड डाइनिंग टेबल पर रख देती थी। अब किसी को भी फरमाइश करने का कोई मौका नहीं था। मीनू के हिसाब से खाना मिलेगा। उसके ऊपर से यदि आंटी का मन किया तो जो भी बनाएगी वो भी मिलेगा।

जबरी की रूम मेट जो थी वह भी गरीब परिवार से थी लेकिन निधी तिवारी की बराबरी करने के चक्कर में अपने माँ - बाप और अपनी गरीबी को कोसती थी। निधी का बाप आरा का बहुत बड़ा सर्जन था और वह एकलौती बेटी थी। उसको बेहिसाब पैसा मिलता था और वह बिंदास खर्च भी करती थी। उसके खर्चीले आदत के चलते उसको लड़के और लड़की दोनों दोस्तों की संख्या अच्छी खासी थी जो उसके पैसे पर ऐश करते थे। संध्या भी उनमें से एक थी। निधी मेडिकल का कोचिंग करने के लिए पटना में रहती थी। लेकिन आंटी का स्ट्रिकटनेस उसको बहुत खलता था। वह अन्य दो लड़कियों को अपने प्रभाव में लेकर आंटी के खिलाफ कान भरते रहती थी।

उसको आंटी के यहाँ का खाना पसंद नहीं, साफ सफाई पसंद नहीं, खिड़की के पर्दे के कलर पसंद नहीं। एक रोज आंटी ने उसको अपने बॉयफ्रेंड को रूम पर बुलाने के चलते बहुत डांटा था और इसकी शिकायत उसके बाप से भी कर दिया था। उसके बाद से वह आंटी से बहूत ही नाराज रहती थी और उसका बाप उसको दूसरी होस्टल में रखने को तैयार नहीं था। उसके रुम में एक सीट अक्सर खाली रहता था क्योंकि किसी भी लड़की को वह महीना दो महीने से ज्यादा अपने रूम में रहने नहीं देती थी। उसको अलग- अलग तरीके से तंग करती। उतारे हुए अंडरगारमेंट को रूम में कही भी फेंक देना। हाई वॉल्यूम में म्यूजिक सुनना , वेस्टर्न म्यूजिक पर अश्लील डांस करना। जो लड़की उसके टाइप की मस्तीखोर होती वो तो महीना दो महीना निकाल लेती लेकिन जिस लड़की का उद्देश्य पढ़ाई करने का होता वह रूम छोड़कर चली जाती।

आंटी के पीजी मे अधिकतर मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग करने वाली लड़कियां रहती थी इसके चलते यहां पर रहने वाली लड़कियां अधिकतर साल दो साल ही रहती थी। प्रत्येक रूम में कूलर लगा हुआ है। गरम पानी के लिए गैस गीजर की व्यवस्था है। धूप में उठने बैठने के लिए खुली छत है ब्रेकफास्ट लंच और डिनर नियत समय पर आकर नीचे डाइनिंग टेबल पर करना पड़ता है यदि किसी को किसी कारण से खाना नहीं खाना है तो उसका मेस चार्ज में से उस दिन का ₹30 कट जाता है चाय केवल सुबह-शाम में मिलती हैं।  रेगुलर कॉलेज करने वाली लड़कियां यहाँ बहुत कम रहती है। इसके चलते आंटी के पीजी में रहने वाली लड़कियों के चेहरे रेगुलर बदलते रहते हैं।

जबरी का कॉलेज आना जाना और जमकर पढ़ना यह दिनचर्या बन गई थी। कॉलेज में उसकी गिनती अच्छे छात्रों में होती थी वैसे भी साइंस कॉलेज में अधिकतर अच्छे छात्र ही पढ़ते हैं। फिर भी जबरी तो जबरी थी! इसके बैच में चार लड़कियां थी। आठ स्टूडेंट का प्रैक्टिकल का सब ग्रुप था जिसमें उसके बैच की चार लड़कियां और चार लड़के थे। ज्यादातर वह तो इंट्रोवर्ट रहती थी इसके चलते उसका फ्रेंड सर्किल बहुत सीमित है।लेकिन उसके प्रैक्टिकल ग्रुप वाले उसका लोहा मानते थे कॉलेज के अंदर जबरी या तो क्लास रूम में मिलती है या लाइब्रेरी में। क्लास में जब कोई भी स्टूडेंट किसी टीचर के प्रश्न का जवाब नहीं दे पाता था तब एक ही नाम होता जो प्रश्नों का उत्तर दे सके और वह नाम था जबरी।

दोस्तों को जबरी नाम ओल्ड फैशन लगता था। इसलिए उन लोगों ने उसका नाम जब्बू कर दिया यह नाम उसके पर्सनालिटी को सूट करता था। कैंपस में यह बात बहुत तेजी से फैल गई कि जब किसी को जवाब चाहिए तो जब्बू के पास जाओ।

आज रविवार का दिन था और जबरी आंटी का किचन में मदद करा रही थी। पीजी के मीनू के अनुसार रविवार को हमेशा एक स्वीट डिश रहता है। जबरी और आंटी मिलकर आज मखाना का खीर बना रही थी। आंटी ने पूछा आजकल कॉलेज में कैसा चल रहा है। जबरी ने हँसते हुए कहा आंटी अब आपकी जबरी कॉलेज में जब्बू बन गई है। फिर उसने पूरा किस्सा विस्तार से बताया कि उसके दोस्त लोग कॉलेज में उसको जब्बू कहते हैं और क्यों कहते हैं। उनका कहना है कि जबरी नाम एकदम देहाती लगता है और तुम्हारे पर्सनालिटी को सूट नहीं करता है।


आंटी - बात तो बिल्कुल सही है "जबरी" यह तुम्हारा नाम थोड़ा हटके है। शुरू शुरू में मुझे भी बड़ा विचित्र लगा था कि किसी का नाम जबरी कैसे हो सकता है। तुम को कुछ याद है की तुम्हारा नाम किसने रखा था या यह नाम तुमको कैसे मिला। कभी-कभी बचपन की कोई घटना भी नामकरण का कारण बन जाती है। मेरा बचपन का नाम रसभरी था। मेरा यह नाम मेरे मामा जी ने रखा था। मामा जी मेरे से उम्र में मात्र पाँच साल बड़े थे और उनको रसभरी बहुत पसंद थी मामा जब रोने लगते या किसी बात की जिद करते तो उनको दो ही चीज से शांत किया जा सकता था या तो उनको रसभरी दो या मेरे को उनके गोद में दे दो। जैसे जैसे मैं बड़ी होती गयी रसभरी नाम मेरे से दूर होती गई। लेकिन मामा जी आज भी मुझे रसभरी ही बुलाते हैं। वो कहते हैं तुम्हारा चेहरा बिल्कुल रसभरी की तरह गोल मटोल था तुम में और रसभरी में अंतर सिर्फ तुम्हारी दो बड़ी बड़ी आंखें करती थी। आज भी जब मामा जी मिलते हैं तो बचपन आंखों के सामने से जीवंत होकर गुजर जाती हैं। फिर हँसते हुए आंटी ने कहा आज से मैं भी तुमको जब्बू ही बुलाऊंगी तुम्हारे दोस्तों ने अच्छा नाम दिया है।


जबरी - आंटी अंकल को गुजरे हुए कितने साल हो गए और वह क्या करते थे? 

आंटी - तुम्हारे अंकल लेबर कमिश्नर थे और उनका देहांत छह साल पहले हुआ। मेरी शादी भी मामा ने अपने दोस्त से कराई थी। जबरी ने कहा अंकल से जुड़ी कोई मजेदार बात बताओ ना जो आप मुझे बता सकती हो। वो लेबर कमिश्नर थे अतः उनको मजदूरों की समस्याओं से हमेशा दो-चार होना पड़ता था।

उनको किचन का कुछ भी काम नहीं आता था। खाना बनाना नहीं आता था लेकिन मेरी मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। एक रोज की बात है ओ मेरे को बताने लगे , मालूम है तुमको कर्मचारी कितने प्रकार के होते हैं ? मैंने कहा मुझे क्या मालूम कर्मचारी कितने प्रकार के होते हैं और यह सब तुम्हारा काम है तुम समझो। उन्होंने हँसते हुए कहा हर प्रकार के कर्मचारी तुम्हारे किचन में उपलब्ध है। मैंने पूछा वो कैसे ?

उन्होंने कहा कर्मचारी चार प्रकार के होते हैं:

मेहनती कर्मचारी

सफल कर्मचारी

चतुर कर्मचारी

अभागा कर्मचारी

मैंने कहा कि आपके ये चारों प्रकार के कर्मचारी मेरे किचन में कहाँ है ? मुझे तो केवल एक ही कर्मचारी दिख रहा है जो कामचोर है और वो आप हैं।

फिर उन्होंने कहा कि मैं अभी तुमको स्पष्ट करता हूँ।


मेहनती कर्मचारी - तेजपत्ता


कोई भी सब्जी बनाते समय सबसे पहले उसे ही डाला जाता है और पूरे समय वो सब्जी के साथ रहता है

लेकिन उसी सब्जी को परोसते और खाते समय सबसे पहले उसे ही खींचकर बाहर फेंका जाता है !!! 


सफल कर्मचारी - हरी धनिया 


उसे पता ही नहीं होता है कि क्या बन रहा है और सब्जी बन जाने के बाद उसे परोसने के समय डाला जाता है

और फिर सब्जी के सारे स्वाद का श्रेय उसे ही दिया जाता है !! 

चतुर कर्मचारी - हींग


वह हींग की तरह होता है जो केवल नाम के लिये चुटकी भर काम में हाथ लगाता है लेकिन चखने वाले के हाथ में गहरी (चाटुकारिता की) खुशबू छोड़ जाता है। अंत में वही अच्छा ऐपरिसीएसन और प्रमोशन पाता है!!


अभागा कर्मचारी - अदरक और पति


कुछ कर्मचारी अदरक की तरह होते हैं जिन्हें शुरू में ही कूटा जाता है और जब चाय (Organisation) में स्वाद आ जाता है तो छान के बाहर निकाल दिया जाता है होंठ तक पहुँचने का भी मौका नहीं मिलता है !!


यह बात सुनकर जबरी की हँसी रोके नहीं रुक रही थी। उसने कहा लगता है अंकल बहुत ही दिलचस्प इंसान थे। 


आंटी - हाँ जब्बू , वो मेरे साथ हमेशा दोस्ताना व्यवहार रखते थे। उनके साथ जीवन यात्रा इतनी आसानी से कटी की कभी लगा ही नहीं कष्ट क्या होता है। उनके पास हर समस्या का कोई न कोई उपाय होता था। मैं तो चाहूंगी कि अगले जन्म में भी उनका ही साथ मिले। अभी रिटायरमेंट को दो साल बाकी था तभी एक रोज उनको हार्ट अटैक आया और उन्होंने मेरी बांहों में ही दम तोड़ दिया। पास में ही PMCH है लेकिन वहाँ तक भी ले जाने का मौका नही मिला।

अबतक उनकी आँखें गीली हो चुकीं थी। जब्बू ने आगे कुछ भी नहीं पूछा और फटाफट किचन का काम समेट कर स्नान करने चली गयी।


चैप्टर 3


वक्त अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था। जबरी अब साइंस कॉलेज में जब्बू बन गई थी। फिजिक्स के प्रोफेसर वर्मा की वह खास कृपा पात्र बन गई थी। वो उसकी पढ़ाई में लगन और सादगी से काफी प्रभावित थे। फिजिक्स के न्यूमेरिकल हर स्टूडेंट के लिए मुश्किल होता है लेकिन यह जब्बू के लिए बाएं हाथ का खेल हो गया था। शायद उसके ऊपर कुछ दैवी कृपा थी जिसके चलते फिजिक्स न्यूमेरिकल के लिए उसको पेन पेपर्स भी उठाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। वह आँख बंद करके दो बार अपने सर को झटका देती थी और सीधा उतर सामने। उसकी इस काबिलियत की चर्चा धीरे-धीरे पूरे कैंपस में फैल गई और लोग उसको जब्बू जीनियस बुलाने लगे। प्रोफेसर वर्मा ने एक रोज स्टाफ रूम में कह दिया कि मुझे ऐसा लगता है लेडी वशिष्ठ नारायण अपने कॉलेज में आ गई है। इसके बाद जब भी कोई नया टीचर उसके क्लास में आता है तो पूछता है हु इज जब्बू ?

एक रोज प्रोफेसर वर्मा ने क्लास में क्वांटम थिअरी पढ़ाया जब्बू को उसमें कुछ बातें ऐसी लगी जिससे सहमत नहीं हुआ जा सकता है। लेकिन उसने वर्मा जी को क्लास में कुछ भी नहीं कहा और उनसे मिलने के लिए उनके केबिन में चली गई। वर्मा जी ने उसका अपने केबिन में स्वागत किया और पूछा बोलो बेटा कैसे आना हुआ। जबरी ने कहा सर मुझे आपसे दो बात करनी है अगर आप मुझे दो मिनट का समय दे तो। वर्मा जी ने कहा तुमको जब कभी भी किसी तरह का डाउट हो बेधड़क मेरे से आकर मिल सकती हो और अगर तुमको मैं सेटिस्फाई कर पाया तो यह मेरा सौभाग्य होगा। उसने क्वांटम थिअरी और ब्लैक होल के बारे में अपने विचार वर्मा जी से साझा किया उसमें कुछ बातें तो वर्मा जी के लिए भी नयी और आश्चर्यचकित करने वाली थी उन्होंने पूछा तुम को यह जानकारी कहाँ से मिली ? उसने लाइब्रेरी में रखे एक पुस्तक और लेटेस्ट नेचर जर्नल में छपे आर्टिकल का जिक्र किया। 


वर्मा जी - विज्ञान का विकास हमारे जैसे प्रोफ़ेसर से नहीं हुआ है वह तुम्हारे जैसे जिज्ञासु विद्यार्थियों का देन है। देखो धर्म और विज्ञान में क्या अंतर है ? धर्म हर कदम पर मानने को बाध्य करता है और विज्ञान हर कदम पर जानने को प्रोत्साहित करता है। जब तुम्हारे अंदर जानने की इच्छा होगी तो उस क्रम में तुम कई चीजें ऐसी जान सकती हो जिसका जानना तुम्हारा उदेश्य नहीं था। आजकल सच्चे विद्यार्थी का अभाव हो गया है। लड़के कॉलेज में पढ़ने कम और सो बाजी करने ज्यादा आते हैं, जो थोड़ा बहुत पढ़ते भी हैं तो उनका लक्ष्य अच्छा मार्क्स पाना और मेडिकल/ इंजीनियरिंग में एडमिशन पाना है।

सर जब से आप ने कहा है कि मैं लेडी वशिष्ठ नारायण हूं मेरे दोस्त मुझे वशिष्ठा कहने लगे हैं। यह वशिष्ठ नारायण कौन थे, जरा मुझे बताइए ना प्लीज। 

प्रोफेसर वर्मा ने गहरी सांस ली और कहा यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि आज के बच्चों को वशिष्ठ नारायण के बारे में कुछ पता ही नहीं। वशिष्ठ नारायण कोई मौर्यकालीन व्यक्ति नहीं थे बेटी,अभी पिछले साल तक इसी पटना में जिंदा थे।

यह अलग की बात है की सिर्फ कहने को जिंदा थे उनकी मौत तो बरसों पहले हो गयी थी। उनकी मृत्यु से तीन महीने पहले मैं उनको मिलने गया था। पिछली मुलाकात में उन्होंने मेरे से पूछा " वर्मा तुम साइंस कॉलेज में फिजिक्स पढ़ाते हो क्या किसी स्टूडेंट ने तुमसे पूछा कि रोटी गोल क्यों होती है ?"

मैने कहा कि यह भी कोई पूछने की बात है , रोटी तो गोल ही होती है। 

उन्होंने कहा "यदि तुम यह मानते हो की रोटी तो गोल ही होती है और यह नहीं जानते हो कि क्यों होती है तो तुमको फिजिक्स का प्रोफेसर क्या एक स्टूडेंट होने का भी अधिकार नहीं है।" उस दिन से मैं यह मानकर चलता हूँ कि मैं साइंस का विद्यार्थी कहलाने लायक भी नहीं। मैं उनकी बात को यह सोच कर टाल सकता था कि वह तो पागल है और एक पागल कुछ भी कह सकता है। मैं उनकी बात को अनदेखा कर सकता था कि चलो एक पागल ने कहा है। पागल की क्या समझ हो सकती है। लेकिन गहराई से सोचने पर ऐसा लगता है कि उनका प्रश्न वाजिब भी है और उसमें वजन भी है, यदि आप साइंस के विद्यार्थी हैं। जबरी को वशिष्ठ नारायण के बारे में और जानने की उत्सुकता बढ़ रही थी। उसने प्रोफेसर वर्मा से आग्रह किया कि से मुझे उनके बारे में बताइए वह कौन थे और उनके साथ क्या हुआ था जिसके चलते गुमनामी की दुनिया में चले गए और आज उनको कोई नहीं जानता।


तुम्हारा भी कोई क्लास नहीं है ना क्योंकि वशिष्ठ नारायण की कहानी थोड़ी लंबी है। वो अपने जमाने के एक महान गणितज्ञ थे। हमने उनको इसी कैंपस में एक स्टूडेंट के रूप में टहलते हुए देखा है। वह मेरे से दो साल सीनियर थे। एक रोज ठाकुर साहब जो मैथ के एचओडी थे कैलकुलस पढ़ा रहे थे। उन्होंने सभी स्टूडेंट्स को बोला ध्यान देकर इस मैथ को समझना। यह थोड़ा डिफिकल्ट है। मैं तुम लोगों को इसे सॉल्व करने का दो तरीका बता रहा हूं। तुमको जो आसान लगे उस मेथड से मैथ को सॉल्व करना। उन्होंने दोनों तरीके से मैथ को सॉल्व किया। उसके बाद सारे स्टूडेंटस को बोला की तुम लोग को दोनों में से जो अच्छा लगे उसी तरह से इस मैथ को सॉल्व करना। उसी क्लास में वशिष्ठ नारायण भी एक स्टूडेंट के रूप में बैठे थे। वो हँसने लगे। ठाकुर सर ने वशिष्ठ नारायण से हँसने का कारण पूछा। वशिष्ठ नारायण ने स्वभाविक तौर पर कहा कि मुझे इस बात पर हँसी आ गई कि आप इसको कठिन भी बता रहे हो और सॉल्व करने का दो तरीका बता रहे हो जबकि मैंने इससे कल चार तरीके से सॉल्व किया है और अगर कोशिश करूँ तो और दो तीन तरीके से सॉल्व कर सकता हूँ। यह बात ठाकुर सर को व्यक्तिगत अपमान लगा और उन्होंने इस बात की शिकायत प्रिंसिपल से कर दी। संयोग बस उस समय के प्रिंसिपल भी दुनिया के नामचीन मैथमेटिसियन थे। स्टूडेंट वशिष्ठ नारायण को जब प्रिंन्सिपल के केबिन में बुलाया गया उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि मैंने यह बात कही है इस प्रॉब्लम को मैं और तीन चार तरह से सॉल्व कर सकता हूं। इसमें मुझे तो कोई अनुचित नहीं लगता क्योंकि मैं ऐसा कर सकता हूँ। ऐसा बोलते समय वशिष्ठ नारायण प्रिंसिपल के टेबल पर रखी एक पुस्तक के पेज पलट रहे थे।


ठाकुर सर ने कहा कि उस किताब को छोड़ दो वह कोई चिल्ड्रन बुक स्टोरी नहीं है उसमें मैथ के वो प्रोब्लेम्स हैं जिनके बारे में मथेमेटिशन्स के बीच भी विवाद है। बालक वशिष्ठ ने कहा यह बुक एक हफ्ते के लिए मुझे दे दीजिए फिर इसमें से जो भी प्रॉब्लम आपको पूछना हो मेरे से आप पूछ सकते हैं। सभी टीचर एक दूसरे का मुँह देखने लगे और ठाकुर सर ने प्रिंसिपल से मुखातिब होकर कहा आप देखिए इस लड़के की घृष्टता जो इस बुक के प्रॉब्लम को सॉल्व करने की बात कर रहा है। लेकिन प्रिंसिपल साहब को बालक वशिष्ठ के बॉडी लैंग्वेज में आत्मविश्वास दिखा और उन्होंने वह पुस्तक उनको दे दिया। चार दिन बाद स्टूडेंट वशिष्ठ ने वह पुस्तक प्रिंसिपल साहब को लौटा दिया। संयोग से ठाकुर साहब भी उस समय प्रिंसिपल के केबिन में थे। उन्होंने हँसते हुए कहा अब समझ में आ गया कि यह किताब कैसी है? जब पूरी बुक मैंने पढ़ ली है तब इसको रखने का क्या फायदा ! आप जहां से भी चाहें जो भी प्रश्न चाहिए इसमें से मेरे से पूछ सकते हैं। 


अब चौकने की बारी सारे शिक्षकों की थी सब ने एक-एक कर उनसे प्रश्न पूछा और बालक वशिष्ठ ने सबका उत्तर दिया। प्रिंसिपल साहब वर्ल्ड मैथमेटिकल सोसायटी के मेंबर थे। उन्होंने अमेरिका के डॉक्टर केली को एक पत्र लिखा कि हमारे यहां दूसरा रामानुजम पैदा हो गया है और उन्होंने सारी घटना उसकी चिट्ठी में लिख डाली। डॉक्टर केली ने उस स्टूडेंट से मिलने की इच्छा व्यक्त की और और वह इंडिया चले आए। वशिष्ठ से मिलने के बाद डॉक्टर केलि इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसको अपने साथ अमेरिका ले जाने का प्रस्ताव रखा। केली के अनुसार वशिष्ठ नारायण एक रेयर जीनियस था और ऐसी प्रतिभा को परंपरागत डिग्री के लिए समय बर्बाद कराने का कोई फायदा नहीं है। किसी भी दृष्टिकोण से यह समझदारी का काम नहीं था। एक विशेष प्रस्ताव पास कर असाधारण कदम उठाते हुए उनको मास्टर की डिग्री दी गई ताकि वह अमेरिका में जाकर शोध कार्य कर सकें। उन्होंने चार साल तक अमेरिका में शोध किया। अमेरिका में उनके एक्स्ट्राऑर्डिनरी जीनियस होने के कारण का पता लगाने के लिए उसके मष्तिष्क पर भी शोध किया गया। उनका मानना था कि यह आदमी डबल माइंडेड है और यह भवनात्मक तनाव नहीं झेल सकता है। वो आरा जिला के गरीब परिवार में पैदा हुए थे और उनके पिताजी होमगार्ड में सिपाही थे।

अमेरिका में वो केली परिवार के साथ ही रहते थे। डॉक्टर केली ने अपनी बेटी की शादी उनसे करने की इच्छा व्यक्त की।उनको भी कोई ऐतराज नही था।लेकिन उनके पिताजी ने मना कर दिया। केली का उनपर बहुत एहसान था। उन्होंने उनको जमीन से उठाकर दुनिया का एक महान वैज्ञानिक बना दिया और वो उनकी एक छोटी सी ख्वाहिश नहीं पूरा कर पाए। इसके चलते वो तनाव में रहने लगे फिर भारत वापस आ गए।

यहाँ आने पर उनकी शादी एक अमीर बाप की बेटी से हो गयी। यहाँ आने पर उनको IIT में पढ़ाने की नौकरी मिली। लेकिन उनकी प्रतिभा के हिसाब से यह काम वेस्ट ऑफ टाइम था। इस बीच वो अपनी पत्नी को टाइम नही दे पा रहे थे जिसके चलते उसने तलाक का मुकदमा कर दिया और उनके माता पिता पर गंभीर आरोप लगाया। उस व्यक्तिगत तनाव को वह नहीं झेल पाए और पागल हो गए। फिर यहाँ की अहसान फरामोश सरकार ने उनको मामूली पागल की तरह राँची के पागलखाने में डाल दिया। धीरे धीरे उनकी जिंदगी गुमनामी की दुनिया में डूबती चली गई।


जब्बू - सर वशिष्ठ जी किस टॉपिक पर शोध कर रहे थे और उनकी इस दयनीय स्थिति के लिए क्या हमारा पोलिटिकल सिस्टम जिम्मेदार है।


वर्मा जी - साइंस कहता है कि ऊर्जा का कभी क्षय नही होता है केवल उसका रूपांतर होता है। यदि यह सिद्धांत सही है तो आवाज भी एक ऊर्जा का रूप है। यदि ऊर्जा की बैक ट्रेसिंग की विधि विकसित हो जाए तो हम कृष्ण के मुखारविंद से निकले गीता के उपदेश को उनकी आवाज में ट्रेस कर सकते हैं। कुरुक्षेत्र में चले दिव्यास्त्रों से निकली ऊर्जा भी किसी न किसी रूप में विद्यमान होगी। कुल मिलाकर वो एनर्जी बैक ट्रेसिंग के सिद्धांत पर शोध कर रहे थे।

यदि वो सफल हो जाते तो आज दुनिया की रूप रेखा ही कुछ और होती।

उनकी कहानी रेयर जीनियस टू स्पोइल्ड जीनियस की यात्रा रही है लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान तो मानव सभ्यता का हुआ।


चैप्टर 4


आज जब्बू बहुत खुश थी क्योंकि साइंस कॉलेज के नब्बे साल के इतिहास में पहली बार किसी लड़की ने टॉप किया था। वह भी पीसीएम में। शारदा आंटी को यह जानकर बहुत खुशी हुई क्योंकि साइंस कॉलेज में इंटर में टॉप करना कोई साधारण उपलब्धि नहीं है। साइंस कॉलेज की गिनती इंडिया के टॉप ट्वेंटी फाइव कॉलेज में होती है। इसके न्यूटन और रामानुजम हॉस्टल ने एक से एक एलुमनी को पढ़ते बनते देखा है। आज भी डॉक्टर के. सी . सिन्हा जैसे मैथमेटिशियन साइंस कॉलेज के प्रोफेसर है। 

इस खुशी में जब्बू ने शारदा आंटी को काल कल हम लोग होटल में खाने चलते हैं। शारदा आंटी ने भी खुशी-खुशी हामी भर दी और कहा पहले हम लोग पटन देवी और हनुमान मंदिर का दर्शन करेंगे उसके बाद होटल में खाना खाएंगे।

जब्बू- और लगे हाथ हम लोग आज मोना टॉकीज में एक फिल्म भी देखेंगे। 

जब्बू की खुशी को देखते हुए शारदा आंटी ने मना नहीं किया और यह प्रोग्राम फाइनल हो गया।


अगली रोज जब्बूऔर शारदा आंटी ने इस खुशी को जमकर सेलिब्रेट किया। शाम को लौटते समय पीजी की लड़कियों के लिए मिठाई का पैकेट भी लेती आई। सम्भवतः आज का दिन जबरी के जीवन का सबसे खुशी भरा दिन था। उसने आंटी से पूछा क्या मैं आज आपके साथ सो सकती हूं। आंटी ने उसको गले लगा लिया और कहा बेटी तुमको जब इच्छा करें मेरे साथ सो सकती हो।


अगली सुबह जब वह अपने रूम में गई तो देखा कि उसकी रूम मेट अलका चौधरी काफी उदास बैठी हुई है। उसने अलका से उसके उदासी का कारण पूछा। अलका ने कहा अगर इस साल भी मेरा मेडिकल में नहीं हुआ तो मैं क्या करूंगी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मेरी मम्मी पापा को अपनी बेटी को सिर्फ डॉक्टर बनाना है। मेरा भाई आज की तारीख में आईआईटी कर रहा है। इसलिए मुझे कम से कम पीएमसीएच में तो होना ही चाहिए, ऐसा मेरे पेरेंट्स का मानना है। ऐसा नहीं है कि मैं मेहनत नहीं करती हूं या मैं पढ़ना नहीं चाहती हूं या मैं डॉक्टर नहीं बनना चाहती हूं। लेकिन फिजिक्स मेरे पले नहीं पड़ता है। मैंने मेडिकल की तैयारी के लिए दो साल का ड्रॉप भी लिया है। यदि इस साल भी मेरा नहीं हुआ तो कैरियर के हिसाब से मैं बहुत पिछड़ जाऊंगी और गड़बड़ लगेगा।


 जब्बू ने उससे सहानुभूति जताते हुए कहा कि तुम्हारी बात तो बिल्कुल सही है लेकिन मैं इसमें क्या मदद कर सकती हूँ? अलका ने कहा यदि तुम चाहो तो मैं डॉक्टर बन सकती हूँ। तुम अगर मेरी मदद करने की हाँ बोलो तो मैं तुमको तरीका बताती हूँ।


जब्बू - भला वो कैसे?


अलका - पहले तुम प्रॉमिस करो तुम मेरी मदद करोगी।


जब्बू- चलो मैंने वादा किया तुम जो कहोगी मैं तेरे लिए करूंगी लेकिन उसके पहले यह बताओ कि तुमको डॉक्टर बनने की ऐसी क्या मजबूरी है।


अलका का चेहरा फिर से और उदास हो गया। उसने कहा देखो मेरे पापा पटेल कॉलेज बिक्रमगंज के प्रिंसिपल हैं और मेरी माँ जूलॉजी डिपार्टमेंट की एचओडी हैं। पापा मैथमेटिक्स के प्रोफेसर रहे हैं और उनको अपने बेटे को इंजीनियर बनाना था। माँ को अपनी बेटी को डॉक्टर बनाना था। भाई आईआईटी में चला गया तो पापा का ईगो सेटिस्फाई हो गया। अब माँ ने बेटी को डॉक्टर बनाने को अपना ईगो बना लिया है। रही सही कसर इस बात ने निकाल दिया है की पापा जिस लड़के से मेरी शादी करना चाहते हैं उनके परिवार वाले को डॉक्टर बहू ही चाहिए। लड़का मुझे भी पसंद है लेकिन कोई प्यार वाली बात नहीं है। अब तुम बताओ मैं क्या करूं? यह मेरा तीसरा अटेम्प्ट होगा मेडिकल का यदि इस बार मैं सफल नहीं हुई तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहूँगी।


जब्बू - ठीक है चलो अब बताओ मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकती हूं?


अलका - देखो मुझे लगता है कि फिजिक्स और केमिस्ट्री में कम स्कोर होने के चलते मेरा सिलेक्शन नही हो पा रहा है। तुमको तो मेडिकल का एग्जाम देना नही है। मेडिकल में फॉर्म नंबर ही रोल नंबर होता है। मैं दो फॉर्म एक साथ खरीदती हूँ और एक तुम्हारे नाम से भर देंगे और एक मेरे नाम से। फिर एग्जाम मे सीट भी आगे पीछे मिलेगा। एग्जाम हॉल में हमलोग कॉपी एक्सचेंज कर लेंगे। मेरी कॉपी पर तुम फिजिक्स और केमिस्ट्री का पोर्शन सॉल्व कर देना और मैं तुम्हारे पर बायोलॉजी का। फिर कॉपी एक्सचेंज कर लेंगे। डिस्क्रिप्टिव तो होता नही की हैंडराइटिंग से कोई पकड़ लेगा। मल्टीप्ल ऑब्जेक्टिव में केवल राइट ऑप्शन के सर्किल को डार्क करना रहता है। फॉर्म भरने का सेंटर पर आने जाने का सारा खर्चा मैं करूँगी। तुम्हारे जैसे जीनियस के लिए कोई अलग से पढ़ना भी नहीं पड़ेगा और फिजिक्स के चलते जो मेरा सपना टूट रहा है वह बच जाएगा। प्लीज प्लीज !

जब्बू ने कहा ठीक है इसमे थोड़ा रिस्क है लेकिन तुम्हारे लिए कोई बात नही देखा जाएगा। तुम इस बात की सावधानी रखना इस बात को किसी को कभी भी मत बताना। देखते हैं, यह संयोगात्मक प्रयोग सफल होता है या नही। यदि सफल रहा तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है।

फॉर्म भर दिया गया पटना में ही सेंटर पड़ा एग्जाम भी जैसा प्लान हुआ था वैसे ही एकदम सफल हो गया। एक ही डर थ की एग्जाम हॉल में कॉपी एक्सचेंज करते समय पकड़े जाने पर मुश्किल हो सकती थी। लेकिन अलका का नसीब जोर मार रहा था उन लोगों को कॉपी बदलते किसी ने नही पकड़ा। अब रिजल्ट का इंतजार था। 


बहुत जल्द वो दिन भी आया जब पेपर में रिजल्ट पब्लिश हुआ। अलका की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसका मेडिकल में सिलेक्शन हो गया था और उसको फिफ्थ रैंक आया था। जबरी का रोल नंबर भो टॉप फिफ्टी में था।इसका मतलब साफ था की फिजिक्स के चलते ही अलका का सिलेक्शन नहीं हो पा रहा था। क्योंकि जब्बू की कॉपी में भी केमिस्ट्री का लगभग आधा आंसर अलका ने ही किया था।

अलका बहुत खुश और उसको खुश देखकर जब्बू भी खुश हो रही थी। लेकिन उसके अंदर एक आत्मग्लानि का भाव उत्पन हो रहा था उसके चलते दो डेजरविंग कैंडिडेट डॉक्टर बनने से वंचित हो गए। उसको मेडिकल में जाना नहीं था और अलका का जुगाड़ के बिना होना नहीं था। लेकिन अब तो जो होना था वह हो चुका था अब अलका का डॉक्टर बनना तय था। रिजल्ट की खबर मिलते ही अलका के मम्मी-पापा उसी दिन पटना आ गए। अलका ने उनको बताया कि यदि जब्बू ने मेरी मदद नही किया होता तो मेरा सिलेक्शन नहीं हो पाता। उसने यह भी बताया कि जब्बू साइंस कॉलेज की अपने बैच की टॉपर है। उसने सावधानी से मदद का तरीका नही बताया और उनलोगों ने समझा कि तेज लड़की है इसने आने रूम मेट को पढ़ने में मदद किया है। इससे खुश होकर अलका की माँ ने जब्बू को एक महँगा और खूबसूरत सलवार सूट गिफ्ट किया। जब्बू नहीं ले रही थी लेकिन अलका के आग्रह पर स्वीकार कर लिया। अब दोनो में दोस्ती और गहरी हो गई। अलका ने कहा कि अब तो PMCH में ही रहना है। जबतक तुम साइंस कॉलेज में रहोगी मुलाकात होती रहेगी।

शारदा आंटी भी बहुत खुश थी की उनके पीजी की लड़की ने टॉप टेन में जगह बनाया है।


चैप्टर 5


आज रविवार का दिन था नाश्ते की टेबल पर जब्बू एकदम तैयार होकर के और एक बैग लेकर सबसे पहले पहूँची। वह काफी खुश दिख रही थी।

शारदा आंटी ने उससे पूछा जब्बू क्या बात है? तुम आज बहुत खुश लग रही हो और यह बैग लेकर कहीं जाने की तैयारी है क्या?

जब्बू - मैं घर जा रही हूँ आज मेरी दीदी की सगाई है।

शारदा आंटी- अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है कि आज तुम्हारी सरला दीदी की सगाई है। लेकिन तुमने मुझे बताया नहीं !

जब्बू - आपको कैसे बताती आंटी मुझे भी तो कल रात को ही पता चला। कल देर रात सरला दीदी का फोन आया की उनकी कल सगाई है और मुझे जरूर से आना है। उस घर के अंदर अगर मेरे से कोई सहानुभूति रखता है या प्यार से दो बातें करता है तो वह सरला दीदी ही है। इसलिए उसकी सगाई में जाने का मन भी कर रहा है और जरूरी भी है। 


शरद आंटी - ठीक है जब्बू , जा सगाई के समय छोटी बहन का साथ रहना अच्छा लगता है। कितने दिन के लिए जा रही हो?

जब्बू- वैसे कोई फिक्स तो नहीं है लेकिन सोच रही हूँ दो दिन दीदी के साथ तो रहूँगी।

शारदा आंटी - सगाई में शामिल होने के लिए तुम्हारी माँ ने नहीं कहा ? 

जब्बू - नहीं एक बार भी नहीं , यदि दीदी ने कल फोन नहीं किया होता तो मुझे मालूम भी नहीं पड़ता।


शारदा आंटी - ठीक है , तुम जावो लेकिन सावधान रहना। क्योंकि तुम्हारी माँ का तुमको नहीं बुलाना मेरे दिमाग मे शंका पैदा कर रहा है। कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। लेकिन उस गड़बड़ को मैं समझ नहीं पा रही हूँ। इधर तीन चार महीने से तुम्हारे पिताजी भी नही आते है तुमको मिलने के लिए। बड़ी बहन की बात सगाई तक पहुँच गयी और छोटी बहन को मालूम भी नहीं। यह स्वाभाविक घटना नहीं हो सकती किसी भी परिवार में।


जब्बू - आंटी मैं इतनी गहराई में इन सब बातों पर नहीं सोचती। आपके मन में जो प्रश्न उठ रहे हैं बेमानी नहीं हैं। लेकिन मैंने तो अपने साथ बचपन से सबकुछ असमान्य ही देखा है। इसलिए इन बातों को मैं उस तरह से नहीं लेती। मैंने अनदेखी करने की कला सिख ली है - जब व्यक्ति महत्वपूर्ण हो तो बात को भूल जावो और जब बात महत्वपूर्ण हो तो व्यक्ति को भूल जाओ । इससे जीवन मे बहुत सी अनावश्यक परेशानी से बचा जा सकता है।

नाश्ता करने के बाद वह घर के लिए निकल गयी। संयोग से गाँधी मैदान से उसको तुरत फुलवारी शरीफ की डायरेक्ट बस मिल गई। अपने घर पहुँच कर उसने महसूस किया कि किसी को भी उसके आने का न तो उम्मीद थी और न इंतजार। शायद सरला दीदी ने भी ऊपरी मन से ही बुलाया था। उसको देखकर सब लोग असहज महसूस करने लगे।

पिताजी किसी काम से बाहर गए हुए थे उसने मां का पैर छुआ और सीधे सरला दीदी के पास पहुँच गई।उसको देख कर सरला दीदी बहुत खुश हुई। जबरी ने खुशी भरी नाराजगी जताते हुए दीदी से कहा तुमने मुझे बताया भी नहीं और अपने लिए लड़का पसंद कर लिया। तुमने लड़के को देखा है वह कैसे हैं?

सरला दीदी ने कहा मैंने लड़के को नहीं देखा है उसकी फोटो देखी है। उसके परिवार वाले मुझे देखने के लिए आए थे और उन्होंने मुझे पसंद किया। आज पहली बार हम लोग एक दूसरे को आमने-सामने देखेंगे। तुमने उनकी तस्वीर तो देखी होगी जरा वह तो दिखाओ मेरे को। सरला दीदी ने अपनी अलमीरा से एक पोस्टकार्ड साइज का फोटो निकालकर जबरी की तरफ बढ़ा दिया। फोटो में तो लड़का काफी स्मार्ट दिख रहा था ऐसा लग रहा था जैसे सलमान खान का चचेरा भाई हो।


जबरी - दीदी जीजाजी तो देखने में एकदम हैंडसम है, करते क्या हैं ? 

सरला - इनका नाम विशाल है और इन लोगों का कपड़ों का व्यापार है और फ्रेजर रोड पर बडा शोरूम है जिसमें शूटिंग शर्टिंग और रेडीमेड जेंट्स वियर का कारोबार होता है।बड़ा वाला "अकाशगंगा" है ना उनके परिवार का ही शोरूम है। फिर तो फैमिली बैकग्राउंड अच्छा लग रहा है और कौन कौन है परिवार में ? परिवार में दो छोटे भाई हैं एक बड़ी बहन है जिसकी शादी हो चुकी है और पिताजी के अतिरिक्त सौतेली माँ है। इनकी अपनी माँ गुजर चुकी है।


जबरी - दीदी, छोटा भाई क्या करता है ? मेरे लिए भी कोई गुंजाइश बनेगी तो बात करना क्योंकि "आकाशगंगा" का मालकिन होना बहुत बड़ी बात है दीदी। पटना शहर का बहुत फेमस शोरूम है। यह सम्राट होटल वाली बिल्डिंग में है।

दीदी इतनी बढ़िया शादी का सेटिंग कैसे हुआ क्योंकि अरेंज्ड मैरिज के हिसाब से अपना परिवार तो उनलोगों के सामने आर्थिक स्तर पर तो कही नही ठहरता है।


सरल दीदी - सब कुछ कैसे हुआ मुझे विस्तार से नही मालूम , वो तो मम्मी पापा को ही पता होगा। मैंने सुना है कि इनका जमीन का कोई विवाद है और उसका केस पापा के अंडर है। किसी बिचौलिए ने ईश शर्त और उम्मीद में शादी तय कराया है कि कानूनगो साहब उनका केस उनके फ़ेवर में रफ दफा कर देंगे।


जबरी - वही तो मैं सोचूँ की एक बड़ी बिज़नेस फैमिली वाले हमारे यहाँ शादी को तैयार कैसे हो गए। अब बात समझ मे आयी। दीदी देखो यह नसीब की बात है कि पापा की पोस्टिंग आज उस जगह पर है और यह संयोग बन गया। वैसे मेरी दीदी भी तो लेखों में एक है। 

अच्छा यह बताओ वो लोग कब तक आने वाले हैं। दीदी ने कहा कि शाम छह बजे का वक्त निर्धारित है। जबरी ने कहा चलो तुमको लीजा ब्यूटी पार्लर में ले चलती हूँ। वैसे तुम खूबसूरत हो लेकिन थोड़ा बहुत मेकअप भी जरूरी होता है। सरला दीदी ना नुकुर कर रही थी।

तभी माँ ने रूम में कदम रखा और सारी बात जानने के बाद कहा कि जबरी सही कह रही है।आजकल दिखावा का जमाना है तो थोड़ा बहुत तो जमाने के हिसाब से चलना चाहिए। जबरी के साथ चली जा ब्यूटी पार्लर मे।

माँ की तरफ से हरी झंडी मिलते ही जबरी दीदी को खींच कर लीजा ब्यूटी पार्लर में ले गई। दोनों बहन जब ब्यूटी पार्लर से घर आए माँ खुश हो गई। सरला आज इतनी खूबसूरत लग रही थी ऐसा तो माँ ने अनुमान भी नहीं किया था। जबरी को पहली बार माँ की आंखों में अपने लिए सराहना की झलक दिखी। सुशांत भी किसी तरह से अब कॉलेज पहुंच गया था और एक जिम्मेदार भाई की भूमिका में इधर उधर भाग दौड़ कर रहा है।

नियत समय पर मेहमान का आगमन हुआ उनकी खातिरदारी में मम्मी पापा व्यस्त थे। सुशांत भी काम मे हाथ बटा रहा था। वैसे तो नाश्ते में बहुत सारी चीजें बाजार से ही आई थी लेकिन घर पर जबरी ने हिंग वाली कचोरी बनाई थी जिसकी प्रशंसा मेहमान लोग कर रहे थे। जबरी ने भी झांककर जीजा जी की एक झलक देखी। लड़का फोटो से भी ज्यादा स्मार्ट और शालीन स्वभाव का लग रहा था। कुल मिलाकर उसकी अपीलिंग पर्सनालिटी थी जिससे जबरी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रही। वह सोचने लगी यदि ऐसा लड़का उसके जीवन में आ जाए तो वह भी ना नहीं कर पाएगी। लड़के ने भी अभी तक लड़की को नहीं देखा था। दोनों पेरेंट्स ने ही शादी तय की थी।

मेहमानों की खातिरदारी समाप्त होने के बाद सगाई का कार्यक्रम शुरू हुआ। हॉल में मेहमानों के सामने सरला दीदी को लेकर जबरी आयी। यह पहला मौका था जब लड़का लड़की ने एक दूसरे को देखा। सरला तो झुकी पलको की ओट से बड़ों की नजरें बचाकर देख रही थी। लेकिन लड़के की नजर सरला से फिसलकर जबरी पर अटक गयी। सरला भी सुंदर थी लेकिन जबरी तो आफताब थी। छरहरा बदन, जवानी का आकर्षक उभार, तराशे हुए नयन नक्श और चेहरे से मासूमियत टपक रही थी।

लड़के की सौतेली माँ ने पूछा कि यह लड़की कौन है? पापा ने कहा सरला की छोटी बहन है सइंस कॉलेज में पढ़ती है और हॉस्टल में रहती है। बहन की सगाई के लिए आई है।

लड़के की सौतेली माँ ने कहा कि लेकिन आपलोगों ने कभी बताया नही की आपकी दो बेटियाँ हैं। रमेश जी ने हाथ जोड़करऔर दाँत निपोरकर कहा कि मुझे लगा की शर्मा जी ने आपको बताया होगा।

लड़के ने धीरे से अपने पापा से कुछ कहा और उन्होंने अपनी पत्नी से कानों में गुप्तगु किया। उसके बाद लड़के की सौतेली माँ के चेहरे का रंग बदल गया और वह क्रोधित दिखने लगी।

इस फुसफुसाहट में ऐसी कौन सी बात थी जिसने वर पक्ष के तीनों सदस्यों के चेहरे का रंग और लकीरों को बदलकर रख दिया। इस बदलाव को देख सरला के ममी पापा का मन सशंकित हो उठा। क्योंकि बेटी की शादी में माँ बाप को एक -एक कदम फूँक कर रखना पड़ता है। माँ का मन तो अंदर से तबतक आशंकित रहता है जबतक उसकी बेटी माँ नहीं बन जाती। यहां तो अभी सगाई का रस्म भी पूरा नहीं हुआ है।

वातावरण में अव्यक्त तनाव सा पसर गया सभी लोग एक दूसरे के चेहरे को देख रहे थे और होंठ हिलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। कानूनगो साहब ने हाथ जोड़कर कहा कि अवस्थी साहब यदि कुछ बात हो तो खुलकर बताइए हम यथाशक्ति आपकी सेवा करने को तत्पर हैं। अवस्थी जी ने कहा कि मुझे शब्द नही मिल रहे हैं लेकिन कहना तो पड़ेगा। हम दोनो के लिए धर्मसंकट की घड़ी उत्पन्न हो गयी है। मेरा बेटा कह रहा है कि वह आपकी छोटी बेटी से शादी करेगा बड़ी से नहीं करेगा।

कानूनगो साहब ने कहा कि आपलोग पैसेवाले हैं तो क्या हुआ आप इस तरह से मेरी बेइज्जती नही कर सकते।भला बड़ी बेटी को कंवारी रखकर छोटी की शादी होती है क्या ? यह तो एकदम अन्याय है, अपमान है मेरे परिवार का ,मेरी बेटी का। दूसरी बात इस रिश्ते के लिए मेरी बड़ी बेटी ने हामी भरी है छोटी ने नहीं। मेरी बेटी कोई खूंटा पर बंधी बछिया नहीं है कि आपको जो पसंद आई उसका पगहा आपके हाथ पकड़ा दूँ।

लड़के ने दृढ़ता पूर्वक कहा कि हमारी तरफ से यह अंतिम फैसला है आगे आपकी मर्जी। यदि आप चाहें तो अभी अपना फैसला बता सकते हैं या हप्ता भर बाद भी। जहाँ तक बड़ी बेटी की शादी के बाद छोटी की शादी का प्रश्न है मैं बड़ी बेटी की शादी होने तक इंतजार कर लूंगा। आपकी बड़ी बेटी की शादी करने में मदद भी करूँगा।

सरला के पिता अब उम्मीद की दृष्टि से कभी शर्मा जी तो कभी अवस्थी दंपति की तरफ देख रहे थे।यह अपमान उनको असहनीय लग रहा था। उधर सरला की माँ जो हाई बी पी की पेशेंट थी, उनकी हालत खराब होने लगी।जबरी माँ का पीठ और छाती सहलाने की कोशिश करने लगी। उन्होंने उसका हाथ झटक दिया। गुस्सा में आग बगुला होकर बोली तुमको इससे शादी करनी है जिसके माँ- बाप और कुल खानदान किसी चीज का पता नहीं। यह मेरी अपनी औलाद नही है और इसी बिहुनी के चलते मेरी बेटी का इतना बढ़िया रिश्ता टूट गया। तुम शादी के बाद क्यों अभी इसको लेकर जावो। तुम सब भागो मेरे घर से अभी का अभी भागो।

माँ ने एकदम विकराल रूप धारण कर लिया। विशाल उसके माता पिता और शर्मा जी को तुरंत घर से बाहर खदेड़ दिया। फिर कानूनगो साहब पर बरस पड़ी। तुमको ही न इस कर्मजली पर दया आ गयी थी और इसको उठाकर घर लाए थे। जिसकी अपनी माँ ने ही पैदा करके मरने के लिए छोड़ दिया उससे बड़ा कर्मजली कौन हो सकता है। पापा गिड़गिड़ा रहे थे। तुम गुस्से में क्या बोल रही हो, चुप हो जावो। देखो बच्चे सहमे हुए हैं रो रहे हैं। माँ पर तो जैसे भूत सवार हो गया था। वो अपना बाल नोच रही थी और एड़ी घिसकर रोती जा रही थी और चिल्लाते जा रही थी। मुझे उसी समय इस मुसीबत को घर मे जगह नहीं देना चाहिए था। मैंने अपने हाथों से अपने दुर्भाग्य को पाल पोसकर बडा किया।

सरला, सुशांत और जबरी माँ की बात को भौंचक होकर सुन रहे थे क्योंकि आज ही तीनो को मालूम पड़ा कि वो तीनो सगे भाई- बहन नहीं है। अब तो जबरी उस घर मे रहने का जन्मसिद्ध अधिकार खो चुकी थी। लेकिन जाने से पहले वह अपनी सच्चाई जानना चाहती थी। रोते बिलखते माँ को फिट मार गया और वो बेहोश हो गयी। पड़ोस में ही एक डॉक्टर रहते थे उन्होंने आकर चेक किया और कुछ दवाई और नींद का इंजेक्शन दे दिया। माँ तो शांत होकर सो गई लेकिन जबरी के जीवन मे जो तूफान उठा गयी वह शांत होने वाला नही था। पापा की भी मानसिक स्थिति अच्छी नही थी। वो बेहोश पड़ी माँ के सिरहाने बैठकर रो रहे थे। जिस राज को उन्होंने इतने सालों से राज बनाकर रखा उसके लिए कितनी चाही अनचाही परिस्थितियों का सामना किया , सब व्यर्थ चला गया।

जबरी ने माँ के पूरे शरीर में तेल मालिश किया ।पापा भी नींद की गोली खाकर सो गए थे। और उसने पापा के सर पर भी तेल रखा। उनके भी पैर में तेल लगाया और उनके पैरों में ही कब उसको नींद आ गयी उसको पता भी नहीं चला।


चैप्टर 6


पुरे घर मे मातम पसरा था। सभी सदस्य अपने मे सिमटे पड़े थे। कोई भी किसी को संतावना देने या ढांढस बंधाने की स्थिती में नही था। गुनाहगार कोई भी नही था लेकिन अपने हिस्से का दुख सभी महसूस कर रहे थे। जब व्यक्ति नहीं परिस्थिति खलनायक की भूमिका में हो तो यही दशा होती है। 

गरीबी जैसे कोई बीमारी नही है, वैसे ही खुबसूरत होना भी अपने आप मे कोई अपराध नहीं है क्योंकि यह भगवान से बिन मांगे मिला हुआ वरदान है। गरीबी और सुंदरता तुलनात्मक शब्द हैं , इनका कोई सर्वमान्य पैमाना नहीं है। भिखारियों के बीच फोर्थ ग्रेड कर्मचारी भी धनी लगेगा और अंधों के बीच काना भी गर्व महसूस कर सकता है। जबरी खूबसूरत थी लेकिन इतनी भी नहीं थी कि उसको मिस वर्ल्ड का दावेदार माना जा सके। फिर भी वो घटना घट चुकी थी जिसकी अपेक्षा कानूनगो साहब के परिवार में किसी ने नहीं की थी।

सरला की सगाई से पहले तक जबरी के लिए कानूनगो साहब सगे पिता जी थे लेकिन अब वो तथाकथित पापा बन चुके हैं। फिर भी जिस रिश्ते को आपने बरसों तक एक एहसास से जिया हो वो अचानक टूटे काँच सा बिखर गया था। यह बिखराव जबरी के लिए असमान्य और असहनीय था। उसको तो यकीन ही नही हो रहा था की उसका यह शरीर किसी के एहसान और मेहरबानी से तैयार हुआ है। जिसे वह माँ की उपेक्षा और तिरस्कार समझ रही थी ,वास्तव में वह उसकी भी अधिकारी नहीं थी। उसको अपने वजूद की वास्तविकता जाननी थी और इसका उत्तर सिर्फ कानूनगो साहब और उनकी पत्नी ही दे सकते हैं। माँ की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब है और पिताजी भी काफी दुखी हैं। क्योंकि शरीर की चोट केवल अंग बिशेष को प्रभावित करती है लेकिन आत्मसम्मान पर लगी चोट अस्तित्व को झकझोर देती है।

जबरी को कानूनगो साहब के तलवे में तेल मालिश करते करते कब नींद आ गयी उसे पता नही चला और वह उनकी पैर में ही सो गयी। रात में करीब तीन बजे कानूनगो साहब की नींद खुली और जबरी को अपने पैरों मे सोया देखा तो उनको उसपर प्यार आ गया। उनका हाथ बरबस ही उसके माथे को सहलाने लगा। उनको इस बात का बड़ा दुख था की जिस बात को वो पिछले बीस साल से राज बनाकर रखा था वो आज यों खुल गया कि उनको संभालने का भी मौका नहीं मिला। पापा का हाथ माथे पर महसूस होते ही जबरी की नींद खुल गयी। वह बिना कुछ बोले उनके सीने से चिपककर ,फुट फुट कर रोने लगी।

वह रो रही थी और पापा उसका पीठ सहला रहे थे। दोनों के होंठ कहना बहुत कुछ चाहते थे लेकिन जुबान को शब्दों का साथ नहीं मिल रहा था। जबरी ने पापा के सीने में मुंह छुपाए और सुबकते हुए पूछा " पापा अब तो बता दो मेरे असली माँ-बाप कौन हैं ?"

कानूनगो साहब ने बड़ी मुश्किल से अपनी आँसू को नियंत्रित करते हुए कहा यदि मुझे मालूम होता तो तुमको जरूर बात देता बेटी।


जबरी - फिर भी मुझे कुछ तो बताइए मैं आपकी जिन्दगी में कैसे आ गयी और यह आजतक राज क्यों बना रहा ?


कानूनगो साहब ने एक गहरी साँस ली जिसको उनके सीने से चिपकी जबरी ने महसूस किया। फिर उसके पीठ को सहलाते हुए कानूनगो साहब ने कहना शुरू किया। सन 2000 की बात है। मैं अपने एक मित्र की बहन की शादी में जबलपुर गया था। जाडे का महीना था और मेरा पटना सुपरफ़ास्ट से से आरा लौटने का टिकट था। उस समय मेरी पोस्टिंग आरा में थी और मैं कतीरा तालाब के किनारे चौधरी निवास में किराए पर रहता था। सतना में करीब पच्चीस की उम्र की महिला मेरे सामने वाली बर्थ पर आकर बैठी उसके गोद में एक नवजात बच्ची थी। वह उदास और परेशान दिख रही थी लेकिन एक महिला से कुछ भी पूछना मैंने उचित नहीं समझा। वह खिड़की की तरफ मुँह करके बैठी , कभी बच्ची को तो कभी बाहर का नजारा देख रही थी। तबतक मैं खाना खा चुका था। थोड़ी देर में मुझे नींद आ गयी।मुगलसराय में आधी रात को गाड़ी पहुँची तबतक वह औरत अपने बच्चे को लेकर बैठी अपलक निहार रही थी। मैं फिर सो गया जब बक्सर में ट्रेन आयी तो मैं जागकर बैठ गया क्योंकि अगले स्टेशन पर मुझे उतरना था। लेकिन वो औरत गायब थी और नवजात शिशु उसी बर्थ पर पड़ा था। मैंने सोचा महिला कही वॉशरूम वगैरह गयी होगी। लेकिन ट्रेन के दस मिनट तक चलने के बाद भी जब वह महिला नहीं लौटी और वो शिशु रोने लगा तो मैंने उसको चुप कराने के इरादे से उठा लिया। मेरे गोद में आते ही वो बच्ची मेरी उंगली पकड़कर चुप हो गयी। मैं जब उस बच्ची को कपड़े के ऊपर से सहला रहा था तो मुझे उसमे कागज का एक टुकड़ा मिला जिसपर कुछ लिखा था। वह पढ़कर मेरा होश उड़ गया। कागज पर लिखा था :


"मैं अभागी माँ हूँ, फिर भी अपनी बेटी को अपने हाथों मार नहीं सकती लेकिन इसको अपना भी नहीं सकती। अतः इस कर्मजली को इसके भाग्य पर चलती ट्रेन में छोड़ रही हूँ। आगे इसका भाग्य जाने।"


वो लड़की तुम थी। अब मुझे समझ मे नही आ रहा था कि क्या करूँ , क्या न करूँ!! तुम वैसे ही मेरी उंगली पकड़कर मुस्कुरा रही थी। फिर मैंने एक बड़ा फैसला लिया कि तुमको मैं अपने साथ ले जाऊँगा और अपने बच्चे की तरह पाल पोसकर बड़ा करूँगा। उस समय तुम शायद एक हप्ता का भी नही रही होगी। तुमको लेकर जब सुबह - सुबह मैं घर पहुँचा तो मुझे मेरी धर्मपत्नी के आड़े तिरछे सवालों का सामना करना पड़ा। मैने अपनी तरफ से सारी सफाई दी लेकिन उसके दिल मे आजतक यही बात बैठी है कि हो ना हो तुम मेरी अवैध संतान हो। अड़ोस पड़ोस वाले भी कई तरह का प्रश्न कर रहे थे। तबतक मैंने फुलवारी शरीफ में जगह खरीद लिया था। फटाफट यहाँ घर बनवाया और यहाँ शिफ्ट हो गया। हमारे परिचित और रिश्तेदारों में बहुत कम लोग जानते हैं कि तुम हमारी बेटी नही हो। मैने अपनी पत्नी से वादा लिया था कि यह बात वह अपने बच्चों और परिचितों को नहीं बताएगी। इसके एवज में उसने मेरे से वचन लिया था कि अपनी पूरी कमाई लाकर उसके हाथ मे रख दूँगा।यहाँ तक कि अपनी जेब खर्च भी मुझे उससे मांगनी पड़ती है। लेकिन कल के पहले तक हम दोनों ने अपना वादा ईमानदारी से निभाया। उसने भले तुमसे प्यार नही जताया लेकिन कभी भी किसी के सामने यह नहीं कहा कि तुम उसकी बेटी नहीं हो। इस बात का राज रह जाना तुम्हारे स्वाभाविक सामाजिक विकास में सहायक रहा। लेकिन हमलोगों की बरसों की तपस्या और मेहनत पर पानी फिर गया। अब चाहकर भी पहले वाली बात नहीं हो पाएगी। मुझे माफ़ करना बेटी मैं तुम्हारा बाप रह पाने में असफल रहा।


जबरी अब उनके सीने से अलग हो गई और कहा पापा आपने एक अनाथ और अबोध बच्ची को पाल पोषकर बडा किया है। यह आपका मेरे ऊपर बहुत बड़ा उपकार है। माँ के प्रति मेरा मन कई बार गुस्सा से भर जाता था। मैंने जान बूझकर के कई बार उसको तंग भी किया है। लेकिन सच्चाई जानने के बाद वह मेरे लिए पूजनीय हो गयी है। मेरी स्थिति अब डाल से टूटे की फूल की तरह हो गई है जो दुबारा पौधे से नही जुड़ सकता। उसकी नियति जहाँ लेकर जाए - पूजा के काम आए या पैरों तले रौंदी जाए। पापा मुझे अब जीवन मे अपने बल पर आगे बढ़ने का आशीर्वाद दीजिए। मैं अब कभी भी अपनी जिद्द और जबरदस्ती के साथ माँ का सामना नहीं कर पाउँगी। अतः अंतिम बार मेरी तरफ से उससे माफी मांग लेना।

अंदर जाकर अपना बैग ली और अंतिम बार पूरे घर को अपने नजरों में कैद करके भाई बहन को सोता छोड़ माँ का चरण स्पर्श किया फिर पापा से आज्ञा लेकर घर से निकल गयी।

चैप्टर 7


जबरी ऑटो लेकर बस स्टॉप पहुँची। अभी उसके दिमाग मे कोई प्लान नहीं था कि आगे क्या होगा कैसे करना है ? उसको अब कानूनगो साहब के परिवार पर किसी प्रकार का बोझ नहीं बनना है और उनके साया से बाहर निकलना है।

फिलहाल तो वह शारदा आंटी के गेस्ट हाउस जा रही थी। वहीं पहुंचकर आगे का निर्णय लिया जाएगा। वैसे सब कुछ अपने हाथ में थोड़ी होता है। अपनी इच्छानुसार हो तो अच्छी बात है लेकिन अपनी इच्छानुसार न हो तो और अच्छी बात है क्योंकि वह परमात्मा की इच्छानुसार होता है और उसमें भूल की गुंजाइश नहीं होती है। उनको तो आगे की होनी-अनहोनी सबका संज्ञान रहता है। दिलासा देने के लिए ऐसी दार्शनिक बातें बड़ी मददगार साबित होती हैं। जब आपके पास कोई विकल्प ना हो तो ज्ञानदर्शन और धर्मदर्शन काफी बड़ा सम्बल होता है।

बस स्टॉप पर पहुँचते ही गाँधी मैदान के लिए बस मिल गया और उसको विंडो सीट भी मिल गया।


बस तो अपनी गति से चल रही थी लेकिन उसको लग रहा था की रेंग रही है। जब इंसान किसी जगह और याद से पीछा छुड़ाना चाहता है तो एक एक पल सदियों जैसा लगने लगता है। जबरी तो अपने बीस साल के इतिहास का लिबास उतारना चाह रही थी जिसमें कई जोड़ पर खुरदरे टाके लगे हैं। उनको वह अबतक अपना दुर्भाग्य समझकर सह रही थी।अ ब वही खुरदरापन चुभने लगा है जबसे उसको पता चला कि यह लिबास मेहरबानी के कपड़े से बना है। वह अपनी समझ से अपनी कल्पना में अपनी माँ की तस्वीर बना मिटा रही थी और उसके किसी भी तस्वीर को वो आखरी रूप नही दे पा रही थी। आखिर उसके माँ की क्या मजबुरी रही होगी ? क्या वह बिन ब्याही माँ की औलाद है , या लव जिहाद की परिणति है , या किसी रईसजादा की हवस से पनपी लावारिस या अपनी माँ की आशिक मिजाजी का प्रमाणपत्र या बेटा की उम्मीद करती माँ की अनचाही संतान ?

अब कोई ऐसा सूत्र उसके पास नहीं था जिसके माध्यम से वह अपनी जैविक माँ तक पहुँच सके और उसकी मजबूरियों को साझा कर सके, समझ सके। खैर कारण कुछ भी रहा हो उसका जीता जगता प्रमाण वह खुद है।


गाँधी मैदान से शेयर ऑटो लेकर शारदा आंटी के पास पहुँची। आंटी उसको देखकर चौंक गयी और पूछ दिया इतनी जल्दी कैसे आ गयी ? सब कुशल तो है न! तुम्हारे चेहरे पर इतनी परेशानी क्यों झलक रही है ?

वह शारदा आंटी के गले लगकर रो पड़ी और रोते-रोते सारा वृतांत सुना दिया। सुनकर आंटी को झटका लगा लेकिन आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि उनको पहले से अंदेशा था कि जब्बू का अपने परिवार के सदस्यों के साथ रिश्ता सामान्य तो नही है। खासकर माँ का व्यवहार तो ऐसा नहीं होना चाहिए। आज वही शंका सच साबित हुआ। उन्होंने जब्बू का आँसू पोछा और कहा कि हाथ मुँह धो ले और कुछ खा लो फिर बाद में बात करते है। हिम्मत से काम लो सब ठीक हो जाएगा। भगवान सारे दरवाजे एक साथ बंद नही करते हैं। उसके उलट एक दरवाजा बंद होते ही दो दरवाजा और खुल जाता है। भले ही हम उसको अपनी आँखों से देख नहीं पाए , महसूस नहीं कर पाएं।

दोपहर का खाना खाने के बाद आंटी ने उसे अपने बेड पर बैठाया और बोला देखो तुम जो हुआ उसे भूल जाओ और पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित करो। इस घटनाक्रम को एक बुरा सपना समझकर भूल जाओ ।


जब्बू - आंटी , अब आगे का पढ़ाई का रहने खाने का खर्चा कैसे जुटा पाउँगी। मैं अकेली लड़की इस समाज का सामना कैसे करूँगी जो खूबसूरत अकेली जवान लड़की में योग्यता नहीं अपनी स्वार्थी उपयोगिता ढूंढता है।


शरद आंटी - तुम्हारी बात सही है। लेकिन मेरे रहते तुम अपने को अकेला और अनाथ मत समझना। आज से तुम्हारी सारी जरूरतों की जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेती हूँ। तुम अब नीचे मेरे साथ रहोगी। तमको कोई कठिनाई नहीं होने दूँगी।


जब्बू - आंटी मैं अब और मेहरबानी का बोझ नहीं झेलना चाहती हूँ। मैं अपने दम पर कुछ करना चाहती हूँ।


शारदा आंटी - ठीक है , तुम्हारी पढ़ाई लिखाई और रहने खाने पर जो भी खर्चा होगा उसका हिसाब जोड़ कर रखना और जब तुम कमाने लगना तो मेरे पैसे चुका देना। मेरी मदद को तुम उधार समझना एहसान कतई नहीं। अबसे तुम नीचे के मेरे बगल वाले कमरे में रहोगी, मेरे साथ रहोगी। तुमको जब जितने पैसे की जरूरत होगी कभी हिचकिचाना नहीं मेरे से ले लेना मैं इसे अपने बुढ़ापे का इन्वेस्टमेंट समझूंगी। मैं ऐसा मान कर चलूँगी कि मैंने जब्बू नाम के स्टार्टअप में इन्वेस्ट किया है। शारदा आंटी की यह बात सुनकर वह खुश हो गई और उनके गले लग कर बोली "थैंक यू वेरी मच, आपने मेरी बहुत बड़ी मुश्किल को एक झटके में हल कर दिया। निश्चित रूप से पिछले जन्म में मेरा और आपका कोई रिश्ता रहा होगा वर्ना मेरी जैसी अनाथ और अभागी बच्ची को भला कोई ऐसा ख्याल रख सकता है क्या?"

 शारदा आंटी ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए कहा जाओ बेटी जब तक मैं जिंदा हूं तुमको किसी प्रकार की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है और अपना सारा सामान लाकर बगल वाले कमरे में शिफ्ट कर लो। 


जब्बू - आंटी मुझे ऊपर ही रहने दो क्या दिक्कत है? 


शारदा आंटी - जी नहीं बिल्कुल नहीं ! अब तुम यहॉं पर मेरी बेटी की हैसियत से रहोगी ना की पेइंग गेस्ट की। तुम दिमाग के किसी भी कोने में यह सोच मत लाना कि मैं तुम पर एहसान कर रही हूं। देखो हमारी जिंदगी में बहुत सारी चीजें बिना मांगे मिल जाती हैं जिसका हमको कभी एहसास नहीं होता है और उसके बदले हम प्रकृति और समाज को कुछ लौटाते भी नहीं है। जिस दिन लोग 'क्या मिला' के जगह 'क्या दिया' का हिसाब रखने लगेंगे यह दुनिया रहने के लिए सर्वोत्तम जगह बन जाएगी। तुमको मदद करके मैं अपना परलोक सुधार लूँगी। पुण्य कमाने के लिए मंदिरों की दानपेटियाँ भरना जरूरी नहीं है। सच्चा जरूरतमंद नसीब से मिलता है जिसको मदद करके इंसान भगवान की नजर में कृपा पात्र बन जाए।


जब्बू भावुक हो उठी और बोली आंटी आप मुझ अभागन को क्यों इतना मदद करना चाहती हैं ?


शरद आंटी - पगली, मैं तुमको कहाँ मदद कर रही हूँ। मैं तो प्रभु प्रदत्त अवसर का लाभ उठा रही हूँ। यह प्रभु की लीला और तुम्हारे पिछले जन्म का पुण्य का असर है जो हम दोनो की मुलाकात हो गयी। भगवान ने आजतक कभी भी किसी को डायरेक्टली एक रुपया भी नहीं दिया है। लेकिन वो इस तरह की परिस्थितियां बना देते है की सदपात्र को मदद मिल जाए।


तुमको मैं एक किस्सा सुनाती हूँ। एक जमाने में एक शहर में रामलाल नामक बहुत बड़ा व्यापारी था और वह बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का था। वह दान पुण्य में आस्था रखता था। व्यापार में अचानक बहुत बड़ा घटा हुआ और वह कंगाल हो गया। उसको दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी भारी पड़ने लगा। थोड़ी दूरी पर एक शहर था जिसका नगरसेठ पुण्य खरीदता था। जिस किसी को भी अपना पुण्य बेचना हो वह उचित दाम देकर खरीद लेता था। इसके लिए उसके पास एक पुण्य का तराजू था जिसमे एक तरफ पुण्य और दूसरी तरफ मनी माणिक रखकर वह वजन करता था।

गरीबी से परेशान रामलाल सेठ की पत्नी ने कहा कि आप तो इतना दान धर्म करते थे कुछ तो आपके पास पुण्य इकट्ठा होगा। उसमें से कुछ को बेचकर पैसा लाइए ताकि कुछ दिन के खाने पीने की व्यवस्था हो सके। सेठ को सुझाव अच्छा लगा और उन्होंने सोचा क्यों ना अपने अर्जित पुण्य में से कुछ बेचकर जीवनयापन के लिए धन जुटाया जाए। अगले रोज दूसरे नगर में जाकर पुण्य बेचने का निर्णय पति पत्नी ने कर लिया। सेठानी ने रास्ते मे खाने के लिए चार रोटी और गुड़ बांधकर दे दिया।रास्ता लंबा था और जंगल से होकर गुजरता था। सेठ को जब भूख लगी तो एक पेड़ के नीचे बैठकर खाने के लिए पोटली खोला तभी एक कुतिया वहाँ पर आ टपकी और ललचाई नजरों से रोटी को देखने लगी। ऐसा लग रहा था उसने कई दिनों से खाना नही खाया होगा। सेठ ने उसकी तरफ एक रोटी बढ़ा दिया। वह तुरंत रोटी खाने में जुट गई तभी कूँ कूँ करते उसके चार बच्चे भी आ गए। वह उम्मीद भरी नजरों से सेठ की तरफ देखने लगी।सेठ को उसकी स्थिति पर दया आ गई और सोचा इस जंगल मे इसको खाना कहाँ से मिलेगा और यदि यह नहीं खाई तो इसके बच्चों का क्या होगा जो अभी पूरी तरह ऑंखफोड़ भी नहीं हुए हैं। उन्होंने एक एक कार अपनी चारो रोटी उस कुत्ती को खिला दिया और खुद मुँह में गुड़ डालकर पानी पिया और नगर सेठ के पास चल दिए।

नगरसेठ को सूचना दी गयी कि एक जरूरतमंद व्यक्ति अपना पुण्य बेचने आया है। उसको बैठक में आदर पूर्वक बुलाया गया जहाँ नगरसेठ पुण्य खरीदता था। उसने पूछा आपने क्या -क्या पुण्य अर्जित किया है। उन्होंने बहुत सारे धर्माथ कार्य की सूची बताई जो इसने की थी जैसे मंदिर में दान, भंडारा, धर्मशाला बनवाना, यज्ञ करना आदि। उसने उनके बताए पुण्य को तराजू पर रखा लेकिन उसपर कोई असर नहीं हुआ। तराजू का पलड़ा जस का तस रहा।

रामलाल सेठ आश्चर्यचकित थे कि उनके सारे दान पुण्य का कोई वजन नहीं।फिर नगरसेठ ने ध्यान लगाकर देखा और बोला आपके पास अभी भी एक पुण्य बचा है क्या उसको बेचना चाहेंगे। सेठ ने कहा मुझे याद नही की मैने इसके अतिरिक्त कोई पुण्य का काम किया है। 

नगरसेठ ने कहा आज आपने अपनी भूख से ज्यादा महत्व एक कुत्ती के भूख को दिया ताकि उसकी और उसके बच्चों की जान बच सके।इस पुण्य को यदि आप बेचना चाहें तो मैं खरीद सकता हूँ। रामलाल सेठ ने सहमति दे दी। फिर चार रोटी मँगाकर पुण्य की तराजू पर नगरसेठ ने रखा उसके बराबर के हीरे जवाहरात उनको वजन करके दे दिया।

रामलाल सेठ ने घर पहुँचकर सारी बात अपनी पत्नी को बताया और जवाहरात की वो पोटली उसके हाथ मे रख दी। अब दोनो समझ गए थे कि सही और सच्चा पुण्य केवल जरूरतमंद को मदद करने से मिलती है। और आज की तारीख में तुमको मदद की जरूरत है और मैं मदद करने की स्थिति में हूँ। शायद भगवान की भी इक्षा मेरे पुण्य में अभिवृद्धि का हो और इसी निमित हम दोनों को मिलाया हो।

आंटी की बात सुनकर उसके मन का बोझ हल्का हो गया और उसने यहीं रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करने का फैसला किया। लेकिन अब वह कानूनगो साहब के परिवार से एकदम संपर्क खत्म कर देना चाहती थी अनजाने में जो हुआ उसको बदला नहीं जा सकता लेकिन अब उनको वह किसी प्रकार का कष्ट नही देना चाहती है।

उसी दीन वह एक नया सिम खरीदी ताकि पुराने परिचित लोग उससे संपर्क नहीं कर सकें। शारदा आंटी की कृपा से जब्बू की जिंदगी अब सामान्य रूप से बड़े कायदे से गुजरने लगी। वो दोनो अब अब एक दूसरे की पूरक की तरह हो गए थे। जब्बू मन लगाकर पढ़ाई कर रही थी और जब कभी समय मिलता था आंटी की मदद करती थी। अपनी कुशलता और बुद्धिमता से उसने पेइंग गेस्ट में कई परिवर्तन किया जो आंटी और गेस्ट दोनों को पसंद आया। कंपाउंड में और टेरेस पर उसने बहुत सारी फूल पत्तियाँ लगा दिया। आंटी को फूल पौधों का देखभाल करने में मन भी लग रहा था उनको वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का एहसास होता।

लगभग छः महीना गुजर गया और जब्बू ग्रेजुएशन के सेकंड ईयर में पहुंच गई लेकिन कानूनगो साहब के यहाँ से किसी ने भी जबरी का खोज खबर नहीं लिया और जब्बू ने भी उनसे संपर्क करने का कोई प्रयास नहीं किया। उनलोगों के लिए शायद अच्छा हुआ कि अपने आप बला टली और उनके हिस्से में कोई पाप या कलंक नहीं लगा। लेकिन जब्बू ने शारीरिक रूप से तो खुद को कानूनगो साहब के परिवार से दूर कर लिया था लेकिन मानसिक रूप से एक जुड़ाव बना हुआ था। जब भी अपने अतित का ध्यान आता वही परिवार नजर आता और महसूस होता। यादों की कसक बड़ी अजीब होती हैं - गुदगुदा भी जाती हैं और सता भी जाती हैं , आती हैं मेहमान की तरह और सताती हैं मजबूरी के रिश्ते की तरह।


चैप्टर 8


अब जब्बू की जिंदगी नए सिरे से नए किनारे से चलने लगी थी। शारदा आंटी के साथ रहना कॉलेज जाना पढ़ाई करना। ऐसा लग रहा था जैसे उसके जीवन की सारी परेशानी ही छू-मंत्र हो गयी हो। धीरे धीरे आंटी की निर्भरता जब्बू के ऊपर बढ़ती जा रही थी। इसका मुख्य कारण उसकी ईमानदारी एवं समर्पणभाव और शारदा आंटी का सरल स्वभाव। दोनों के स्वभाव का ऐसा मिश्रण बना की दोनों एक दूसरे के पूरक जरूरत बन गए।

लगभग तीन महीना बित गया लेकिन जबरी के घरवालों ने उसकी कोई खोज खबर नहीं ली। किसी ने भी यह जानने का कोशिश नहीं किया कि अकेली जवान लड़की कहाँ रहती होगी कैसे रहती होगी ? उसके साथ कोई ऊँच-खाल तो नहीं हुआ!


यह सत्य है कि वह यह बोलकर घर से निकली थी कि अब इस घर से उसका कोई भी रिश्ता नहीं। लेकिन जब उनलोगों ने उसकी कोई खोज खबर नहीं लिया तो उसको विश्वास हो गया वह उस परिवार पर सचमुच एक जबरदस्ती का बोझ ही थी। लेकिन वह अपनी इस भावना को किसी से बाँट भी नहीं सकती थी। दूसरी तरफ शारदा आंटी ने अपना एटीएम कार्ड और उसका पिन भी दे दिया था और उनकी सभी बैंकिंग का काम वही देखती थी।


एक रोज शारदा आंटी ने जब्बू से कहा देखो बेटी मैंने तुमसे बिना पूछे अपनी सहेली को वादा कर दिया है कि तुम उसकी पोती को साइंस पढ़ा दोगी। हमलोगों की बात हो रही थी तो तुम्हारी जिक्र आयी तो मैंने कहा दिया कि मेरी जब्बू अपने बैच की साइंस कॉलेज की टॉपर है। फिर वह आग्रह करने लगी थी उससे बोलो ना मेरी पोती को थोड़ा साइंस मे मदद कर दे। उसके आग्रह को मैं अस्वीकार नहीं कर पायी और मैंने हां कर दिया। तुम किसी तरह से उसके लिए आधा घंटा का समय निकालो यह मेरी इज्जत का सवाल है। वह दो बिल्डिंग छोड़कर रहती है तुम जो समय बताओगी उस समय पर सुबह या शाम तुम से पढ़ने के लिए आ जाया करेगी। जब्बू ने कहा कोई बात नहीं आप उनको बोल देना शाम को पाँच बजे अपने पोती को भेज देना।


अब शाम को पांच से छह बजे तक एक घंटा का समय ट्यूशन पढ़ाने के लिए जब्बू के रुटीन में शामिल हो गया। एक सप्ताह बाद जब्बू के स्टूडेंट उषा ने कहा मेरी एक सहेली भी है जो आपसे ट्यूशन पढ़ना चाहती है। जब्बू ने कहा वह सोच कर बताएगी। उसने शारदा आंटी से डिस्कस किया कि उसके साथ उसकी एक और सहेली पढ़ने आना चाहती है। क्या मैं उसको भी शामिल कर लूं ? शरदा जी ने कहा कि जब तुमको कोई एक्स्ट्रा समय नहीं देना पड़ता है तो कर लो। उषा का भी मन लगेगा और उस बच्ची का भी भला हो जाएगा। इसमें कोई हर्ज नहीं है। फिर उषा और निशा दोनों सहेलियां ट्यूटर जब्बू की स्टूडेंट बन गई। 


महीना समाप्त होने के बाद दोनों ने चार हजार रुपया जब्बू को ट्यूशन फी के रूप में दिया। वह सोच में पड़ गयी। क्योंकि वह सोच रही थी कि आंटी के कहने पर वह उनके दोस्ती खाते में पढ़ा रही है। उसके दिमाग मे फी का एंगल नहीं था। वह उन दोनों को ड्राइंग रूम में छोड़कर पैसा लेकर सीधे शारदा आंटी के पास गई और उनसे पूछा कि क्या आपने पढ़ाने के लिए कुछ फीस तय किया था क्या !


शारदा आंटी- नहीं ऐसी तो कोई बात नही हुई थी। अगर वो अपने मन से दे रही है तो रख लो। वह मुझे मिली थी तीन दिन पहले, वह कह रही थी कि उसकी पोती में अच्छा इम्प्रूवमेंट हुआ है।वह तुम्हारे पढ़ाने के तरीके से बहुत प्रभावित है।


जब्बू - आंटी मुझे कहाँ पढाने का कोई अनुभव है। यह पहली बार मैं किसी स्टूडेंट को पढ़ा रही हूँ।


शरद आंटी - देखो ,पढाना एक कला है। यह सम्प्रेषण की कला है जो केवल टीचर की नौकरी मिल जाने से नही आती है। हमारी वैदिक परम्परा में गुरु का स्थान जीवन मे भगवान से भी ऊपर रखा गया है। तूमने भी सुना होगा किसी ने कहा है " गुरु गोविंद दोनो खड़े काके लागूं पाव।" मतलब यह कि यदि दोनों एक साथ सामने आए तो भी गोविंद से पहले गुरु को महत्व दो क्योंकि गुरु ही तुमको गोविंद की पहचान करा सकता है। 


जब्बू - आंटी, यह बहुत हो गया मैं कोई गोविंद से पहचान करानेवाली गुरु नहीं हूँ। मैं तो केवल f=ma जैसा ही सीखा सकती हूँ।


शारदा आंटी - टीचर का यह महत्व नहीं है कि उसने क्या सिखाया। उसका महत्व इसमें है कि उसने सिखना सीखा दिया। टीचर का काम जटिल विषय को सरल भाषा में समझना होता है। जो यह नहीं कर सके वह टीचर नहीं।


जब्बू - ठीक है बाबा, मेरी माँ -बाप गुरु सब आप ही हो। अब यह पैसा भी आप ही रखो।


शारदा आंटी - नहीं बेटी ,देखो तुम्हारी पहली कमाई है और इसे तुम अपने पास रखो। तुम्हारी बहुत सारी ऐसी जरूरतें हो सकती है जिसके लिए तमको मुझसे भी मांगने में संकोच होगा। अतः यह तुम अपने पास ही रखो।

उन्होंने पैसे को हाथ लगाकर कहा तुमने दिया और मैंने ले लिया। लेकिन इसे अपने खाते में डाल दो। तुम्हारा बैंक खाता तो होगा ही।

जब्बू - हाँ है, जब दसवीं पास हुई थी तो सरकार ने दस हजार रुपया और एक सायकल दिया था। उसी समय खाता खुला था। इंटर पास होने पर भी पंद्रह हजार सरकार से उसी खाते में मिला था। अभी तो मेरिट वाल स्कालरशिप भी उसी खाते में आता है।


शरद आंटी - यह भी उसी खाता में डाल दो क्योंकि यह भी मेरिट का ही इनकम है। पैसा ही जीवन में सब कुछ नहीं है , लेकिन पैसा बहुत कुछ है - यह खुदा नही तो खुदा से कम भी नहीं है।


ऐसा कहकर आंटी ने उसका पीठ थपथपाया। फिर जब्बू दो हजार के दो नॉट पकड़े अपने स्टूडेंटस के पास आई और उनको बोला तुमलोग अब घर जावो और जो होमवर्क दिया है उसे अच्छे से करना। उनके जाने के बाद वह मुठी में भींचे नॉट को टेबल पर रखकर एकटक निहारते बैठी। इस पैसे को देखकर छूकर उसको अलग तरह की अनुभूति हो रही थी। वह बार बार उनको छूकर यह महसूस कर रही थी की अपनी कमाई का पैसा कैसा होता है!! तभी खिड़की के बाहर उसकी नजर यशवंती के पौधे पर पड़ी जिसमे पहला फूल खिला था। उसको लगा आज मेरी और उस यशवंती की खुशी एक सरीखा है - उसका भी पहला फूल है और मेरी भी मेहनत का यह पहला फल है। इससे मेरी जिंदगी की सारी कठिनाई दूर तो नहीं होगी लेकिन कठिनाई में एक रास्ता जरूर हो सकता है।

आंटी के प्रति उसका मन कृतज्ञता से भर गया। "खूबी" और "खामी" दोनों हर इंसान में होती है बस फर्क इतना सा है कि जो "तराशता" है उसे "खूबी" नजर आती है और जो "तलाशता" है उसे "खामी" नजर आती है। आज वो टूट कर बिखर जाती यदि शारदा आंटी ने हाथ बढ़ाकर संभाला नही होता।

एक रोज देर रात आंटी बाथरूम के लिए उठी तो उनका पैर फिसल गया और वह धड़ाम से मोरी पर ही गिर गईं। उस समय जब्बू पढ़ रही थी। धड़ाम की आवाज और कराहने का आवाज सुनकर वह बाहर निकली तो देखा कि आंटी बेसुध पड़ी हैं उनके सर से खून निकल रहा है।

 

उनकी हालत देखकर वह घबड़ा गयी उसने आवाज लगाकर अन्य लड़कियों को मदद के लिए बुलाया। फिर सबने किसी तरह उनको गाड़ी में डालकर PMCH के इमरजेंसी वार्ड में पहुँचाया। जब्बू की हालत बहुत खराब हो रही थी लेकिन उसने अंदर से हिम्मत बनाए रखा क्योंकि उसके अलावा अभी कोई दूसरा करीबी उपलब्ध नही था। इसी बीच उसने आंटी के बेटा गिरीश को फोन किया लेकिन उसने नहीं उठाया। अतः उसने मैसेज से सूचित कर दिया। गिरीश मुम्बई में डॉक्टर है।  

PMCH में उसको अलका ने बहुत मदद किया क्योंकि अब वह वहाँ पर स्टूडेंट थी। उसके चलते पेपर फॉर्मेलिटी और डॉक्टर का स्पेशल केअर आंटी को मिला। अलका ने ही बताया कि आंटी को बहुत जबरदस्त ब्रेन हम्मरगे हुआ है और कमर में भी गंभीर चोट लगी है। आंटी का एटीएम कार्ड जब्बू के पर्स में ही था इसके लिए पैसे की तो कोई दिक्कत नहीं थी।

सुबह करीब छह बजे गिरीश जी का फोन आया। जब्बू ने उनको सभी बातें बता दी। उसने अटेंडिंग डॉक्टर का नाम पूछा और बोला कि मैं उससे बात करता हूँ। तुम घबड़ाना मत मैं फ्लाइट पकड़कर आ रहा हूँ। सब ठीक हो जाएगा। तबतक मैं अपने एक दोस्त डॉक्टर को वहाँ पहुंचने को बोलता हूँ।

गिरीश जी का फोन आने के बाद जब्बू ने राहत की सांस ली क्योंकि वह खुद भी डॉक्टर हैं और अब आंटी को बेस्ट पॉसिबल ट्रीटमेंट की व्यवस्था हो जाएगी। लेकिन उसकी चिंता यह थी कि आंटी अभी भी ICU मे थी और उनको होश नहीं आया था। डॉक्टर का कहना था कि अगला अड़तालीस घंटे काफी क्रिटिकल है।

गिरीश ने आने के बाद सारा केस पेपर देखा डॉक्टर से बातचीत किया। सब कुछ समझकर उसकी चिंता बढ़ गयी। उसकी परेशानी को देखकर जब्बू ने पूछा भैया मुझे भी बतावो न आंटी की हालत कबतक सुधरेगी और उनको क्या हुआ है।

गिरीश - ब्रेन हैमरेज के चलते माँ कॉमा में चली गयी है और उसके लेफ्ट पार्ट पर पैरालिसिस का भी माइल्ड अटैक है। उसको पूर्ण रूप से ठीक हो पाना मुश्किल है और शायद कभी भी वह होश में नहीं आ पाए। अब कोई चमत्कार ही उसको नार्मल कर सकता है।

मैं अब माँ को लेकर मुम्बई चला जाऊँगा। दो दिन में वह ICU से बाहर आएगी फिर मैं उसको लेकर चला जाऊँगा। अब वह वहीं पर मेरे पास रहेगी। तुम सभी लड़कियों को बोल दो अपनी व्यवस्था कर लें क्योंकि अब तो पेइंग गेस्ट नहीं चल सकता। माँ के रहते मैं इसको बेचूँगा नहीं लेकिन इसमें अब एक कोचिंग तइंस्टिट्यूट खुलेगा। कई साल से मेरा एक दोस्त मेरे से रिक्वेस्ट कर रहा था।


अब जब्बू के पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी। उसको समझ नहीं आ रहा था इस आचनक आयी विपदा का वह कैसे सामना करेगी। गिरीश जी जो भी सोंच रहे है वह एकदम ही प्रैक्टिकल एप्रोच है। उनको तो शायद मेरी और शारदा आंटी के बीच के अनूठे रिश्ते का इनको जानकारी भी नहीं होगी।

अगले रोज जब्बू के सामने ही वो आदमी मिलने के लिए आया जो इस मकान में कोचिंग इंस्टिट्यूट खोलने वाला था। उसने कहा कि मुझे यह मकान पंद्रह दिन में ही खाली चाहिए। उसने पांच लाख का चेक गिरीश जी को दिया और उन्होंने कहा ठीक है पंद्रह फरवरी तक आपको यह मकान मिलेगा।

फिर गिरीश जी ने जब्बू से मुखातिब होकर कहा मैं कल माँ को लेकर जा रहा हूँ और तुम पंद्रह तारीख को इस घर की चाभी उपेंद्र जी को दे देना। यह अब तुम्हारी जिम्मेदारी है कि सभी लड़कियाँ उस दिन तक अपनी व्यवस्था कर लें। फिर उपेंद्र जी का विजिटिंग कार्ड जब्बू को पकड़ा दिया।


चैप्टर 9


शारदा आंटी एकदम कॉमा में चली गयीं थी - देख सब कुछ रही थी , बोल कुछ भी नहीं रही थी और शायद महसूस कुछ भी नही कर पा रही थीं। यदि वो महसूस कर पातीं तो आज वो स्वयं से ज्यादा जब्बू के दुख से परेशान हो उठती।

जब्बू ने शारदा आंटी का व्यक्तिगत समान एक बैग में पैक कर दिया था। उसने उनका सबसे प्रिय हनुमान जी का फोटो भी रख दिया। जब्बू ने गिरीश जी से आग्रह किया है की हनुमान जी की यह तस्वीर हमेशा उनके पास ही रखिएगा और हो सके तो रोज एक बार उनके माथे से लगा दीजिएगा क्योंकि उनको उनके हनुमानजी में बहुत आस्था थी। 


जब्बू की स्थिति अजीबो गरीब थी। उसकी शारदा आंटी उससे बिना कुछ कहे , बिना कुछ सुने शायद हमेशा के लिए उससे दूर जा रही थी। वह कुछ कह भी नहीं सकती थी , वह कुछ कर भी नहीं सकती थी। उसका दिल शारदा आंटी की यह हालत देखकर बैठा जा रहा था। लगभग तीन साल से वह उनके संपर्क में थी लेकिन एक बार भी गिरीश जी को नहीं मिली थी क्योंकि वो पटना नहीं आते थे। हॉं आंटी एक दो बार मुम्बई उनके पास गई थीं कुछ दिनों के लिए।आंटी ने खुलकर बताया तो नहीं था लेकिन ऐसा लगता था कि उनकी अपनी बहू से संबंध मधुर नहीं थे। कभी भी जब्बू ने उनको बहु से बात करते या बहु के बारे में बात करते नहीं सुना था। वह उनके साथ रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। लेकिन वह कह नहीं सकती थी। क्योंकि गिरीश जी के नजर में तो वह पेइंग गेस्ट में रहनेवाली अन्य लड़कियों की तरह ही एक और लड़की थी जो अपने अच्छे स्वभाव के कारण अपने लैंडलॉर्ड की ऐसी स्थिति में मदद की थी। एक तरह से देखा जाए तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन हकीकत तो जब्बू और शारदा आंटी को ही पता है।


जब्बू को समझ मे नहीं आ रहा था उसको क्या करना चाहिए या उसका अब आगे का क्या आसरा होगा। अतः द्रष्टाभाव से वह जो भी घटना घट रही थी उसको देख रही थी। उसके हिस्से जो भूमिका आ रही थी उसको निभा रही थी। इस समय शारदा आंटी की कही बात उसको बहुत सम्बल दे रही थी "जब तुम्हारी इच्छानुसार हो तो अच्छी बात है, यदि तुम्हारी इच्छानुसार ना हो तो और अच्छी बात है क्योंकि उसमें ऊपरवाले की इच्छा शामिल है।"


उसकी आँखों के सामने शरदा आंटी को एयर एम्बुलेंस में डालकर गिरीश जी रवाना हो गए और उसको एकबार फिर याद दिलाया कि पंद्रह तारीख तक घर की चाभी उपेंद्र जी को सुपुर्द कर देना।


उसने सभी लड़कियों को इन्फॉर्म कर दिया अब उनको कहीं और व्यवस्था करनी पड़ेगी क्योंकि शारदा आंटी अब पेइंग गेस्ट चलाने की स्थिति में नहीं है और उनका बेटा चलाना नहीं चाहता है। बाकी सब लड़कियाँ पैसे वाले बाप की लाडली बेटियाँ थी। हप्ते भर के अंदर उनलोगों ने अपनी व्यवस्था कर ली। अब पूरे घर मे वह अकेली बची थी और हर तरफ से अकेली पड़ गयी थी - ना कोई उम्मीद ना कोई सहारा। अब उसको भी निर्णय लेना था , अपनी मंजिल और रास्ता तय करना था।


जब्बू अब बंद चौराहे के बीच खड़ी थी, किस तरफ मुडे और किधर जाए ! हर तरफ एक अनजानी डर और डगर इंतजार कर रहा था। लेकिन कोई ऐसी बाहें नहीं थी जिसकी तरफ वह उम्मीद भरी नजरों से देख सके कि वह उसके कदम लड़खड़ाने पर सहारा देगा। आत्महत्या सबसे आसान विकल्प दिख रहा था। तभी उसको ध्यान आया की मृत्यु की तिथि और तरीका तो पूर्व निर्धारित है। फिर उसको अपने से मरने की नहीं अपितु जीने की कोशिश करनी चाहिए। उसको हिम्मत करके इस दुनिया में जीने के लिए संघर्ष करना है क्योंकि मौत तो वैसे भी नियत तिथि पर उसको धर दबोचेगी। 


अब उसके सामने यक्ष प्रश्न यह था की जिंदगी को नए सिरे से जीने की शुरुआत कहाँ से की जाए। कानूनगो साहब के यहाँ जा नहीं सकती। अब तो सर पर छत भी नहीं रहा जहाँ से वह अपने संघर्ष की शुरुआत कर सके।

बहुत सोच विचारकर उसने तय किया कि जिंदगी की नई पारी वहीं से शुरू की जाए जहाँ से इसकी ज्ञात शुरुआत हुई थी - यानी पटना - मुम्बई सुपरफास्ट एक्सप्रेस।


 उसने तत्काल में मुम्बई का टिकट निकाला और उसको थर्ड एसी में कन्फर्म सीट मिल गया। उसने सुरक्षा की दृष्टि से थर्ड एसी का टिकट निकाला। उसने उपेंद्र जी को फोन करके बोल दिया कि कल आप सुबह आठ बजे आकर घर की चाभी ले लीजिए। उसने अपना सामान एक सूटकेस में पैक किया और अनजान रास्ते पर चलने के लिए तैयार हो गयी। उसने अपना सब डॉक्यूमेंट और सर्टिफिकेट भी साथ में रख लिया।


अगले रोज नियत समय पर उपेंद्र जी चाभी लेने के लिए हाजिर हो गए। जब्बू ने घर की चाभी को उनको सुपुर्द किया फिर घर को भर नजर अंतिम बार देखा क्योंकि इस घर ने उसको तब आश्रय दिया था जब उसको इसकी सख्त जरूरत थी।


वह चाभी देकर उनकी बात गिरीश जी से करा दी। फिर अपना बैग उठाकर सीधे रेलवे स्टेशन पहुंच गई। नियत समय पर पटना सुपरफास्ट आ गयी और वह अपने सीट पर जाकर बैठ गयी। यही वो ट्रेन थी जिसके किसी सीट पर वह  कानूनगो साहब को मिली थी। उस समय वह नवजात बच्ची थी लेकिन आज वह बीस साल की खूबसूरत लड़की है जो उसी ट्रेन से अनजान मंजिल की तरफ बढ़ गयी। उसने अपने आपको वक्त की धार पर बहने के लिए छोड़ दिया। ट्रेन ने अब रेंगना शुरू कर दिया लेकिन उसके सामने वाल बर्थ अभी तक खाली था।


करीब पाँच मिनट बाद 25 -26 साल का नौजवान कंधे पर लैपटॉप बैग और छोटा ट्रॉली लिए आकर सामने वाली सीट पर बैठा। दिखने में काफी स्मार्ट था , एकदम हीरो लग रहा था। उसने ट्रॉली बैग को सीट के नीचे एडजस्ट किया और अपने सीट पर बैठ गया। कुछ देर बाद उसने जब्बू से कहा "प्लीज जरा मेरे समान का ध्यान रखना मैं फ्रेश होकर आ रहा हूँ।" जब्बू ने कहा ओके नो प्रॉब्लम। 


बाथरूम से लौटने के बाद वह लड़का अपने बैग से एक बुक निकालकर कर पढ़ने लगा। बुक का नाम था "What Young India Wants" यह चेतन भगत की बुक थी। थोड़ी देर में जब्बू ने वेंडर से कॉफ़ी लिया और उस लड़के ने भी कॉफी लिया। कॉफी पीते वक्त उस लड़के ने जब्बू से बातचीत का सिलसिला शुरू किया।


" मेरा नाम कुशल रेतिवाला है और मैं इंफोसिस में प्रोजेक्ट मैनेजर हूँ और मुम्बई में रहता हूँ। देखिए लंबा सफर है अगर थोड़ी जान पहचान हो जाए तो बातचीत करते आराम से काट सकती है। आप मेरे ऊपर ट्रस्ट कर सकती हैं।" ऐसा कहकर उसने जब्बू के सामने अपना कंपनी आईकार्ड और आधार कार्ड दिखाया।


उसकी इस हरकत पर जब्बू ने मुस्कुराकर कहा मैंने आपके क्रेडेंशियल पर डाउट नहीं किया है। वैसे मेरा नाम जब्बू सिन्हा है और मैं साइंस कॉलेज में बीएससी सेकंड ईयर की स्टूडेंट हूँ।


कुशल - आप किस प्रयोजन से मुम्बई जा रही हैं ? 


जब्बू इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं थी। फिर भी उसको सावधनी से जबाब देना था ताकि सामने वाले उसकी वास्तविक स्थिति का भान न हो। अन्यथा गलत आदमी उसका फायदा उठा सकता है। लेकिन सामने वाला चार्मिंग भी था भरोसेवला भी लग रहा था। अतःउसने मन ही मन उससे नजदीकी बढ़ाने का निर्णय लिया। फिर उससे बोली वैसे तो कोई स्पेसिफिक पर्पस नहीं है। सुना है मुम्बई सम्भावनावों का शहर है अतः अपने लिए संभावना तलाशने जा रही हूँ।


कुशल - यह बात तो बिल्कुल सही है। मैं स्वयं शहर की संभावना की जीती जागती मिसाल हूँ। मुझे नहीं मालूम मेरे माता पिता कौन हैं। तीन साल की उम्र में बांद्रा स्टेशन पर अपने परिवार से बिछड़ गया था। मैं केवल अपना नाम बोल सकता था। मुझपर एक गुजराती दंपति की नजर पड़ी वह बच्चा आज आपके सामने बैठा है और एक मल्टीनेशनल कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर बन गया है। जबकि वह कहीं पर भीख माँग रहा होता या भगवान का प्यारा हो चुका होता। मेरा नाम अपना और सरनेम उसी गुजराती माता पिता से मिला है।


जब्बू - आप उन्हीं के साथ रहते हैं आज भी ?

कुशल - नहीं, दो साल हो गया दोनो गुजर गए।अपनी सारी जायदाद मेरे नाम कर दिया है।


जब्बू - मैंने तो सुना था कि यहाँ पर राह चलते किसी का किस्मत बदल जाता है। बस कंडक्टर हरी भाई संजीव कुमार बन जाता है, टैक्सी ड्राइवर गायक बन जाता है, भीख मागनेवाली गायिका बन जाती है , पेट्रोल पम्प अटेंडेंट पेट्रोकेमिकल कंपनी का मालिक बन जाता है। आप से यह भी पता चला कि किस्मत साथ दे तो इस शहर में माँ- बाप भी मिल जाते हैं।


इस बात पर कुशल मुस्कराने लगा लेकिन जब्बू गंभीर हो गयी। कुशल ने इस बदलाव को नोटिस किया और इतना तो समझ गया कि इस लड़की के अंदर कुछ उथल पुथल चल रहा है। उसने सोचा इसको ओपेन अप होने के लिए कुछ टाइम देना चाहिए। अतः उसने टॉपिक चेंज करने के इरादे से पूछा आपका इंटर में मैथ था या बायो और कितना परसेंट मार्क आया था ?


जब्बू - मैथ, और मैं अपने बैच की साइंस कॉलेज की टॉपर थी।


कुशल - ग्रेट, फिर तो आपकी सब्जेक्ट पर बहुत अच्छी पकड़ होगी।


 जब्बू ने हँसते हुए कहा मुझे रूबी राय जैसा बिहारी टॉपर मत समझना। आप भी सम्भवतः इंजीनियर तो होंगे। चाहें तो मेरे से प्रश्न करके मेरी सब्जेक्ट नॉलेज की जानकारी ले सकते हैं।


कुशल - नहीं बाबा बिल्कुल नहीं , मुम्बई में तो ऐसे ही प्रचलित है " एक बिहारी सबपर भारी "। मेरे जितने भी बिहारी दोस्त हैं सब इतने भारी हैं कि पूछो मत ! उनके नॉलेज की गहराई और विस्तार अद्भुत है। केवल बोलते हैं तो बिहारी टोन झलक जाता है। लेकिन आपका टोन एकदम परफेक्ट है। जबतक किसी को बताया नहीं जाए कोई मेक आउट नहीं कर सकता कि आप बिहार से हो।


जब्बू के कहा थैंक्स , आप भी दिलचस्प इंसान लग रहे हैं। आप चेतन भगत की यह जो बुक पढ़ रहे हैं क्या यह भी फिक्शन है ? क्योंकि वह तो फिक्शन स्टोरी ही लिखते हैं। 

कुशल - नहीं बिल्कुल नहीं , यह मोटिवेशनल बुक है। चेतन जी एक बहुत अच्छे थिंकर भी हैं। इसमे उन्होंने आज के युवा के मन मे उठ रहे सवालों को एक नए अंदाज में उठाया है और कई प्रैक्टिकल समाधान भी बताया है। आपको बुक पढ़ने का शौक हो तो मेरे पास और भी बुक है, मैं आपको देता हूँ।

देखिए अधिकतर मैं फ्लाइट से ही ट्रैवेल करता हूँ और उसमे कोई आपके जैसा हमसफर तो मिलता नहीं है इसलिए बुक से बात करते रास्ता कट जाता है। आज आप से मिलने का संयोग था जिसके चलते मैं आपके सामने बैठ हूँ। नहीं मेरा फ्लाइट मिस होता नहीं मैं आपके साथ सफर कर रहा होता। फिर उसने अपने बैग से एक बुक निकालकर जब्बू कि तरफ बढ़ा दिया।

बुक का नाम था " रिच डैड पुअर डैड"।

 ट्रेन जितनी रफ्तार से दौड़ रही थी उससे दुगने रफ्तार से दोनो मानसिक रूप से एक दूसरे के करीब आते जा रहे थे। दोनों अपनी सीट पर अपने बुक में उलझ गए।इसबीच कई बार कुशल के फ़ोन पर फोन आया और वह कभी प्यार से कभी गुस्से से बात करता। लेकिन फोन बहुत आते थे।

धीर धीरे रात उतर आई और चारो तरफ अंधेरा पसर गया। खिड़की से बाहर घना अंधेरा और सर्द हवा चल रही थी लेकिन एसी डब्बा में बाहर की ठंड का आभास नहीं हो रहा था। इसका अर्थ यह नहीं था कि किसी को भी ठंड नहीं लग रही थी।

बीच बीच मे वेंडर जो भी समान लेकर आता तो जिसको खाने पीने की इच्छा होती दो पीस खरीदता और दोनों का खाते पीते रास्ता कट रहा था। दोनों एक दूसरे के हावभाव पर बारीक नजर बनाए हुए थे। ऐसा लग रहा था दोनों एक दूसरे में भविष्य की संभावना तलाश रहे थे। दोनों के मन में यह विचार चल रहा था काश यह एक्सीडेंटल मीटिंग परमानेंट सेटिंग में बदल जाता।

 दोनो अपने बर्थ पर अपनी नींद में अपने हिस्से की उम्मीद को सहला रहे थे ,मन को बहला रहे थे कि शायद कल की नई सुबह के साथ यह सहयात्री एक हसीन हमसफ़र बन जाए।


चैप्टर 10



अगली सुबह जब कुशल की नींद खुली तो देखा कि जब्बू अभी भी सोई है और ट्रेन भुसावल पहुँचने वाली थी। वह फ्रेश होकर आया और जब्बू के जागने का इंतजार करने लगा। यह इंतजार था या कुछ और वह यह निर्णय नहीं कर पा रहा था। सोई जब्बू को वह अपलक निहार रहा था। उसका पूरा बदन तो चादर से ढका था लेकिन मासूम चेहरा दिख रहा था। उसने अभी करवट बदला और उसका चंद्रमुखी चेहरा पूरा का पूरा कुशल की तरफ मुड़ गया था। जब वह उससे बात कर रही थी तब भी वह उसकी खूबसूरती को इतनी स्पष्टता और बारीकी से नहीं देख पाया था - एकटक , निर्विघ्न।


शायद लड़कियाँ नींद में भी अपने ऊपर पड़नेवाली नजरों के प्रति संवेदनशील होती है। अभी बेचारा कुशल केवल एक फाँक आँख और एक फाँक नाक को ही अपनी चाहत भरी नजरों से सहलाया था कि जब्बू जग गयी। एक अंगड़ाई लेते हुए बोली "गुड मॉर्निंग कुशल "


कुशल - थैंक्स एंड हैव ए नाइस डे ! 


जब्बू - लेकिन खुशी मांगने से नही जागने से मिलती है और मैं तो अभी तक सो ही रही हूँ।


कुशल - अच्छा अब तो जग गयी हो फटाफट फ्रेश होकर आ जाओ फिर कॉफ़ी पीते हैं।


थोड़ी देर में जब्बू फ़्रेश होकर आयी फिर दोनों बैठकर कॉफी पीने लगे। कुशल ने जब्बू के चेहरे पर नजर जमाते हुए पूछा " क्या तुम मेरी एक बात का इम्मानदारी से और सच्चा उत्तर दोगी ?"


जब्बू - यह निर्णय तो प्रश्न सुनने के बाद ही लिया जा सकता है की उसका उत्तर देना है या देना भी चाहिए या नहीं। इतना जरूर है कि जबाब ईमानदारी से दूँगी। वैसे हमलोग मुंबई कितने बजे तक पहुंच जाएँगे ? 


कुशल - ट्रेन अभी सिड्यूल टाइम से डेढ़ घंटे लेट है। तकरीबन तीन बजे तक पहुंच जाएंगे।

क्या तुम अपने घर से भागकर मुम्बई जा रही हो ?


यह प्रश्न जब्बू के लिए एकदम अप्रत्याशित था और इसको सुनकर वह अंदर तक हिल गई। फिर भी हिम्मत जुटाकर उसने कुशल से काउंटर क्वेश्चन कर दिया। कि

तुम्हारे प्रश्न का आधार क्या है?


कुशल - मैं अपने काम के सिसिले में एक्सटेंसिव टूरिंग करता हूँ और मुझे कई प्रकार के लोगों से सामना होता है। वैसे भी फेस इज द इंडेक्स ऑफ़ माइंड। फिर तुम्हारे साथ की परिस्थितियां भी गवाही दे रहीं है की तुम्हारी यह यात्रा साधारण यात्रा नहीं है।


जब्बू - भला वो कैसे ?


कुशल - देखो , एक अकेली खूबसूरत और जवान लड़की मुम्बई की यात्रा पहली बार कर रही है और उसके पास मोबाइल फोन भी है। लेकिन लगभग बीस घंटे में उसके फोन की घंटी नहीं बजी। यह कोई सामान्य बात नहीं हो सकती है। नहीं घर से किसी का फोन आया नहीं जिसके पास जा रही उसका फोन आया - यह सामान्य बात नहीं है।

तुम मानो या न मानो मेरे हिसाब से कुछ तो राज है जो मेरे समझ से परे है। मुझे बता सकती हो , हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ।

इट इज कम्प्लीटली अपटु यु , तुम चाहो तो मेरा भरोसा कर सकती हो।


जब्बू ने गहरी लम्बी साँस खींची और एक गहरा अवसाद

उसके चेहरे पर तैर गया। कुछ पल के लिए वह आँख बंद करके खामोश रही फिर संयमित स्वर में कुशल से कहा "मैं घर से भागी नहीं हूँ बल्कि मेरा घर है ही नहीं। मेरी व्यक्तिगत कहानी कुछ अलग तरह की है। आज की तारीख में मेरा इस दुनिया मे अपना कोई नहीं है - ना नाम से , ना काम से।

मुझे अपनी जंग खुद ही लड़नी है , खुद ही जितना है या हारना है। यदि जहाज डूबना ही है तो उसे प्रशांत महासागर में ही क्यों न डुबोया जाए। यही सोचकर अपनी जीवन रूपी जहाज को लेकर मुम्बई के महासागर में उतरने जा रही हूँ।"


कुशल - यदि तुम चाहो तो उस वक्त तक अपना हमदर्द और हमराज मान सकती हो जबतक मेरी तरफ से तुमको कोई अमर्यादित व्यवहार की झलक नहीं दिखाई पड़े। 

मुझे तुम्हारी पूरी कहानी जानने में दिलचस्पी है। शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ क्योंकि किसी समय में किसी ने मेरी भी मदद की थी। इस प्रकार हो सकता है मुझे अपने प्रति किए गए उपकार का प्रतिदान करने अवसर मिल जाए।


जिंदगी में कभी - कभी ऐसे अवसर आते हैं जब आपको आपके अलावा कोई दूसरा सलाह नहीं दे सकता कि क्या उचित है और क्या अनुचित है। क्योंकि आपकी परिस्थिति का सम्पूर्ण सत्य केवल आपको ज्ञात है। जब्बू तो अभी पूर्णतः अथाह में थी की अगले पल क्या होगा। ऐसी दशा में कुशल का सामने से सहानुभूतिपूर्ण बातें एक सम्बल प्रदान करने वाली थी। अतः उसने निर्णय लिया कि अपनी स्थिति की राजदार कुशल को बनाना चाहिए। फिर आगे जो भी होगा देखा जाएगा।

जब्बू ने अपनी सारी राम कहानी अक्षरशः कुशल को बता दिया। फिर उससे पूछा कि आप बताओ मैंने क्या गलत किया और आगे मुझे क्या करना चाहिए ?


कुशल उसकी बात सुनने के बाद गंभीर हो गया। कुछ देर सोचने के बाद बोला तुमको वाकई एक सच्चे मददगार की जरूरत है। हम दोनो की भाग्य रेखा कही न कहीं एक दूसरे को टच कर रही है। हमारी मुलाकात शायद इसी का परिणाम है। मेरा खार वेस्ट मे 3BHK का फ्लैट है और उसमे मैं अकेला रहता हूँ। मेरे पालक माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है। अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है अतः तमको मेरे घर में मेरे साथ अकेले रहना पड़ेगा।

फिलहाल तुम मेरे साथ मेरे घर पर चलो। आगे की आगे मिल बैठकर सोचेंगे क्या रास्ता निकल सकता है। तुम मेरी इस मदद को कभी भी एहसान मत समझना क्योंकि किसी ने मेरी भी उस समय मदद की थी जब मैं निःसहाय था। ऊपरवाले ने हो सकता है मुझे तुम्हारी सहायता के लिए ही मेरी फ्लाइट मिस करा के मिलाया हो।

बातचीत के बीच ट्रेन अपने गंतव्य लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंच गई। जैसे ही दोनों प्लेटफॉर्म से बाहर निकले कुशल का ड्राइवर फॉर्च्यूनर लेकर खड़ा था। 

जब्बू कुशल के साथ अनजान शहर में अनजान साथी के साथ अनजान डगर पर अनजान मंजिल की तरफ बढ़ चली। जब आपके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा हो तो साहसिक और असंभव सा लगने वाला निर्णय भी आसानी से लिया जा सकता है। शायद जब्बू ने भी वही किया।

चैप्टर 11


कर्मजली पार्ट 11


फॉर्च्यूनर में दोनो का बैग रखने के बाद ड्राइवर शुक्ला ने पूछा साहब कहाँ चलना है ?

कुशल ने कहा सीधे घर पर ले चलो।ट्रेन की जर्नी करके आया हूँ थोड़ा आराम करेंगे।


शुक्ला ने कहा ठीक है साहब और मैडम को कहाँ पर ड्राप करना है ?


कुशल - यह हमारी मेहमान हैं और अब हमारे साथ ही रहेंगी। हमारे फ्लैट में।


शुक्ला पुराना ड्राइवर होने के चलते कुशल के परिवार के बारे में अच्छी तरह जानता था। वह यह भी जनता था कि इस लिब्रा हाइट सोसाइटी में वह तीन साल से रह रहा है अतः उसके फैमिली बैकग्राउंड के बारे में सबको पता है। उसके पेरेंट्स सोसाइटी के रेस्पेक्टबल मेम्बर थे।


 उसने कहा कि यदि एक ही घर मे रहना है तो रिश्ते को तो एक नाम देना ही पड़ेगा। यह दोनो के मान- सम्मान के लिए जरूरी है।

वैसे भी लोग आपसे आपके मुंह पर कम पूछेंगे लेकिन मेरे से ज्यादा पूछेंगे।


कुशल ने मन ही मन सोचा ,बंदा बात तो सही कह रहा है

लेकिन अभी तक तो यही तय नहीं हुआ है कि हम दोनों का रिश्ता क्या है। मेरा आकर्षण तो जब्बू के प्रति है लेकिन उसको प्यार का नाम तो नही दिया जा सकता है। उसके मन में क्या चल रहा है वह उसको ही मालूम। इतना तो तय है कि किसी निर्णय पर वह भी नही पहुँची होगी। मैं फिलहाल तो उसको मानवीय संवेदना के आधार पर मदद कर रहा हूँ। लेकिन यह भी कहना बेमानी होगा कि मेरे अंदर उसके प्रति कोई आकर्षण नही है। इतना तय है कि मैं उसकी मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश कभी नही करूँगा। एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन किसी निर्णय पर पहुंचने तक इस रिश्ते को एक नाम तो देना पड़ेगा ताकि समाज मे हम दोंनो सर उठाकर बेफिक्र चल सके और आत्मसम्मान भी बचा रहे।

ड्राइवर साइड की विंडो सीट पर बैठी जब्बू का ध्यान खिड़की से बाहर दिख रहे नजारे में उलझा था। वह भीड़ भरी सड़क और गगनचुम्बी इमारतों को देखकर यह सोच रही थी कि इसमे कितना हकीकत और कितना फसाना है। वह मायानगरी की सड़क पर इतनी महंगी गाड़ी में बैठकर घूम रही है। जब भविष्य अनजान ही है तो वर्तमान को पूर्णता में जीने में ही समझदारी है क्योंकि भगवान वो नहीं देता जो आपको अच्छा लगता है बल्कि वह देता है जो आपके लिए अच्छा है। यह विश्वाश बहुत विपरीत परिस्थिति में उम्मीद को बनाए रखने में मदद करता है।

तभी शुक्ला ने कहा साहब हमलोग थोड़ी देर में घर पहुंच जाएंगे इसलिए घर का फ्रिज और एसी चालू कर दीजिए।


कुशल - तुमने अच्छा याद दिलाया। मैं "अपना स्टोर" से कुछ जरूरी सामान भी आर्डर कर देता हूँ। कुछ और नहीं तो ब्रेड ,बटर, अंडा और दूध तो घर में होना ही चाहिए।

शुक्ला - साहब अपने रिश्ते के बारे में नहीं बताया !


कुशल - लिव इन पार्टनर, ठीक है ! चलो अब गाड़ी चलाने पर ध्यान दो।


शुक्ला - समझ गया साहब ,अच्छी बात है। काँग्रेचुलेसन्स।


जब्बू ने देखा कि कुशल ने फोन से कुछ किया और फिर बोला लो अब एसी और फ्रिज तो स्टार्ट हो गया। फिर उसने मोबाइल पर कुछ लिखकर व्हाट्सएप किया। 

उत्सुकतावश जब्बू ने पूछा "यहाँ से बैठे बैठे तुमने घर का गैजेट स्टार्ट कर दिया। यह तो कमाल की बात है। हमने सुना था कि ऐसी तकनीक अब आ गयी है लेकिन उसका प्रयोग होते पहली बार देख रही हूँ।


कुशल - इतना ही नही मैं जब चाहूँ अपने फ्लैट के अंदर क्या स्थिति है देख सकता हूँ।

फिर उसने एक बटन क्लिक किया और शानदार डॉयिंग रूम दिखने लगा। खिड़की पर शानदार पर्दा लटक रहा था।खिड़की के नीच एल शेप में कीमती सफल लगा था। सोफे का कलर चॉक्लेट ब्राउन कलर था और कर्टेन का कलर लाइट आइवरी था। दोनों का कॉम्बिनेशन एकदम मस्त दिख रहा था। इटालियन मार्बल का फ्लोरिंग और हॉल के बीचोबीच लटका झूमर बाद ही शानदार दिख रहा था। तभी कुशल ने एक इंस्ट्रक्शन दिया " स्विच ओन आल सीलिंग लाइट्स"। तुरंत झूमर के साथ मे फालस सीलिंग में लगे छोटे छोटे बल्ब जल गए। इस प्रकाश में तो हॉल की खूबसूरती देखते बन पड़ रही थी।


जब्बू - इस तरह तुम घर का कोना - कोना देख सकते हो ?

 कुशल - बेड रूम और बाथ रूम छोड़कर जितना भी कॉमन एरिया है जैसे कि किचन, पैसेज और बालकॉनी।


जब्बू - और कितना टाइम लगेगा फ्लैट में पहुँचने में? 


कुशल - बस समझो की आ ही गए। सामने होटल रिट्ज का बोर्ड दिख रहा है न , बस उसी लेन में अपना बारह मंजिल लिब्रा टावर है। इसके सातवे मंजिल पर अपना फ्लैट नंबर 702 है और प्रत्येक फ्लोर पर केवल चार फ्लैट है। प्रत्येक फ्लैट का एरिया है 2000 स्क्वायर फ़ीट। 


जब्बू - फिर मोबाइल दर्शन बंद करो। मैं अब साक्षात दर्शन करूँगी।


इस बात पर दोनो एक साथ हँस पड़े। और कुछ ही देर बाद दोनों फ्लैट के अंदर पहुंच गए। यहाँ की सुख सुविधा तो जब्बू के लिए सपने की जिंदगी जीने जैसा था। यहॉतक कि वर्तन धोने के लिए भी डिशवाशर था।

जब्बू दुनिया की नजर में कुशल की लिव इन पार्टनर बन कर रहने लगी लेकिन दोनो के बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं बना था। कुशल ने यह निर्णय पूर्ण रूप से जब्बू के विवेक के ऊपर छोड़ दिया था कि वह जो भी और जब भी निर्णय लेगी वह उसको स्वीकार होगा।


दोनो देर रात तक बातें की और कुशल के सलाह पर जब्बू ने MAC अकादमी में एडमिशन ले लिया। पढ़ने में तो वह तेज थी ही और कुशल के पास एपल का कंप्यूटर और लैपटॉप सब उपलब्ध था जिस पर वह अभ्यास करती थी। बहुत जल्द उसने ग्राफ़िक एनीमेशन में महारथ हासिल कर लिया। इस बीच 

कुशल ने उसके टैलेंट को पहचानते हुए उसका यूट्यूब पर एक चैनल खोलवा दिया जिसका नाम रखा गया "जब्बूज़ोन"। इसमें वह साइंस बेस्ड क्विज करती थी जो कंपीटिटिव एग्जाम देने वाले स्टूडेंट में काफी लोकप्रिय हो गया।

अब यूट्यूब से उसको आमदनी भी होने लगी। ग्राफ़िक एनीमेशन के एक प्रॉजेक्ट में उसने एक पांच मिनट की एनीमेशन फ़िल्म बनाया जिसका नाम था "टैंक फिश & सी"। यह एनीमेशन फ़िल्म काफी अच्छी बन गयी।

इसमे एक फिश की कहानी थी जिसने अपना जीवन फिश टैंक में गुजरा था और आक्सीडेंटली समंदर में पहुंच जाती है तो उसको किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।

 इसको उसने अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड कर दिया। देखते देखते उसको दस लाख से ज्यादा व्यू और लाइक मिला। फिर वह प्रोफेशनल उट्यूबर बन गयी और उसको एक नियमित आमदनी भी शुरू हो गई।

 इस बीच दोनों भावनात्मक रूप से एक दूसरे के करीब आते गए फिर एक दिन वह भी आया जब दोनों के बीच की सारी दूरियां समाप्त हो गयी।

उन लोगों ने अब अपने संबंध को सामाजिक मान्यता देने के लिए विधिवत शादी कर लिया और पति-पत्नी के रूप में खुशहाल जिंदगी व्यतीत करने लगे।




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