क्रिसमस गिफ्ट : भाग दो
क्रिसमस गिफ्ट : भाग दो
सारांश : . '. छाबड़ा ' के लालच को देख उसका खून खौल रहा था। एक उत्ताल तरंग धड़धड़ाती हुयी उठी फिर निराशा से समतल हो गयी। उसे यह चद्दर तो चाहिये ही थी।
सामने, जलती आग ने उसके अर्न्तजगत के विस्मृत संताप' को मोम सा पिघला दिया। वह फूट फूट कर रोने लगा। अतीत की कसमसाती स्मृतियाँ आखों के कोरों से टप्प् . टप्प् टपकने लगीं। आंसू से धुली धुंधली पड़ी यादें चमक कर उसके दृष्टिपटल पर उभरने लगीं। उसे बप्पा याद आए . अम्मा याद आयीं और याद आयी बड़ी जीजी -- - याद आए साझे सुखों के वे पल ' फिर याद आया दिन प्रतिदिन मुरझाता बापू का चेहरा ' गायब होती अम्मा की हँसी और निस्तेज होता जीजी का चेहरा -- - पानी से भरी झलमल करती आंखो में अचानक सबकुछ गड्ड मड्ड हो गया।
अचानक . हवा के एक झों कें से एक अंगारा भभक उठा साथ ही उसका हृदय भी दरक गया। उसे लगा, वह , अभी अभी संध्या समय , खेल कर लौटा है। सामने, धू-धू कर उसकीझोपड़ी जल रही है, उस आग मे उसका सारा परिवार राख हो गया था। वह अचरज से आग को देख रहा था . - - लोगों ने बताया कि बापू के सिर कर्जा था . सूखा अलग पड़ रहा .
इसका उत्तर किसी के पास न था। वह गाँव छोड़ , शहर आ गया था। गली गली घूम घूमकर चेन बनाने . हूक लगाने का काम करने लगा था। अगल - बगल के कुछ बड़े लोगों से उसकी पहचान हो गयी थी . उनके छोटे मोटे काम कर देता था। जिस दिन उस के पास खाने के लिए पैसे नहीं होते . वह उनके यहाँ चला जाता . कुछ न कुछ पेट भरने को मिल जाता था . I रात मे कंबल ओढ़ वह गहरी नींद सोता , ईश्वर को धन्यवाद देता परन्तु आज उसका धैर्य व संयम का बाँध टूट पड़ा था। रात में पसलियों को कसती हाड़ कंपकपाने वाली ठंड का .एहसास उसके आखों से अश्रु बन प्रवाहित होरहा था - - - वह देर तक सुबकता रहा . यकायक उसने साईकिल उठायी और नित की भाँति ' ताल कटोरा ' पंहुच कर आवाज़ लगानी शुरु कर दी - - बैग ' बस्ता . झोला . जैकेट में .. चेन लगवा लो'। '
चार दिन से छाबड़ा आण्टी के बच्चे परेशान थे।जैकेट की चेन खराब हो गयी थीं। टेलर ( दर्जी ) एक चेन के बीस तीस रुपये ले लेता है , इसलिए छाबड़ा चेन बनाने वाले का इंतजार कर रही थी। ये 'चेन बनाने वाले ' भी आते अपने समय से हैं, जब वह फुत्के ( रोटी ) सेंक रही हो या कपड़े धो रही हो , ऐसे में आवाज़ सुनकर भी वह उन्हें रोक नहीं पाती , रोकने पर पाँच रुपए के काम के लिए पच्चीस तीस रुपए बताते है मोलभाव व झिकझिक के लिए समय उनके पास नही होता परन्तु बच्चे परेशान थे अतः उन्होंने तय कर लिया कि आज तो जैकेट बनवा ही लेगी।
' चेन बनवा लो ' की आवाज़ सुनते ही छाबड़ा ने अंदर से ही आवाज़ लगाई - 'रुको भैया ' -- - स्वर ध्वनि को पकड़ते हुए गुडडू ने एक घर के सामने साईकिल रोकदी। चाय कलेवा कुछ न करने के कारण आंते भूख से कुलबुला रही थीं परन्तु उसका मन कुछ खाने को न था। गुडडू ने देखा . - एकदम रुई के फाहे सी गोरी , बाल सलीके से क्लिप में बाँधे तीस - चालीस वर्ष की स्थूल महिला जैकेट लेकर खड़ी थी। छाबड़ा आण्टी ने गुड्डू को देखा और बोली - ' ये जैकेट बननी हैं . कितना लोगे ? ' गुड्डू ने जैकेट को हाथमे लेकर इधर उधर देखा और बोला - ' तीस रुपए '। ऑ - - ऑ -- -- छाबड़ा ने अपनी दोनों भौहों को थोड़ा ऊपर सरकाया . नाक को थोड़ा फुलाया , छोटे मुँह को गोल सा खोला फिर ऊपर के होंठसे नीचे के होंठ को दबाया और उदासीनत दर्शाती हुयी बोली - ' नहीं बनाना है तो जाओ , सुबह सुबह समय मत खराब करो। न , पहली बार तुम चेन बना रहे हो, न , पहली बार मैं बनवा रही हूँ।. पन्द्रह रुपए में बनाना है तो बोलो वैसे काम तो दस रुपए का ही है। '
वह जवाब देता इससे पहले दीनू अपनी साईकिल पर पीछे आ खड़ा हुआ। ' क्या हुआ गुड्डू ? सुना . तुम्हारा कंबल कुत्ते फाड़ गए। ' दीनू ने खेद जताया। पेशानी पर बल डालकर गुडडू ने उत्तर दिया - 'हाँ, अब रात की ही चिन्ता है i ' सारा वार्तालाप सुन रही ' छाबड़ा ' के दिमाग मे कुछ हलचल हुई वह अंदर गयी ,दो बैग और एक चद्दर उठा लाई।
दीनू जा चुका था वह गुडडू से बोली ' यह दो बैग और बना दो, बदले मे यह चद्दर ले लो '। गुडडू ने चद्दर खोली तो उसकी बाँछे खिल उठी - खूब मोटी, साफ डबल बेड की चद्दर थी केवल बीच से छोटा सा कट लगा हुआ था . उसने हिसाब लगाया . पन्द्रह - बीस रुपए के काम के बदले चद्दर - सौदा बुरा नहीं था। रात में ठंड से बचने का इससे सुन्दर उपाय भी उसके पास न था , फिर यह भीख न थी उसकी मेहनत की कमाई थी। वह उत्साहित हो काम में जुट गया। दस मिनट में काम निपटाने के बाद उसने चद्दर की ओर हाथ बढ़ाया पर ये क्या ?? छावड़ा ने झट से चद्दर अपनी ओर खसीट ली . उसके मनोभावों को ताड़ते हुए बोली - ' दो और जैकेट में चेन लगा दो तब इतनी बढ़िया चद्दर ( जो उसके लिए बेकार भी ) लेना। गुडडू अकबका गया। छाबड़ा के लालच को देख उसका खून खौल गया , एक उत्ताल तरंग धड़धड़ाती हुयी उठी फिर निराशा से समतल हो गयी। उसे यह चद्दर चाहिये ही थी। वह मूर्ख भी न था। उसने चालाकी से काम लेना , ठीक समझा . वह बोला - ' लाइए , जल्दी कीजिए . पर ऐसा तय नहीं हुआ था। ' छाबड़ा आण्टी मन ही मन खुश हो , जैकेट लेने अंदर भागी। गुडडू ने आव देखा न ताव ' सामान व चद्दर को उठाया , साईकिल के पैडल पर पैर दे मारे ये जा औ वो जा। - उसे लगा कि उसकी उभरी पसलियों के भीतर जोर जोर से धड़कता दिल उछल कर बाहर आ जाएगा। उसके दिमाग में जैसे जोर जोर से हथौड़े बज रहे थे। उसने एक लम्बी सांस ऊपर खींच कर छोड़ी। एक मिनट को रुका . पीछे मुडकर देखा वहाँ कोई न था। सर्दी के मौसम में भी माथे पर आए पसीने को उसने बाए हाथ से पोछा फिर उसी हाथ से हैंडिल पकड़कर दायाँ हाथ धीरे से चद्दर पर फिराया और मुस्कराया।
शहरी सीमेंटेड आबोहवा ने गॉव की सौंधी कच्ची मिट्टी को अपने गिरफ्त में ले लिया। साईकिल पर बैठ सामान्य रूप से उसने आवाज़ लगाना शुरु किया '- चेन बनवा लो ' --।
उधर . छाबड़ा ने मुड़कर उसे भागते हुए देखा परन्तु कहा कुछ नहीं ,
अपनी ओर आश्चर्य से देखते बेटे को देखा, बनी हुयी जैकेट हाथ में उठायी, मुस्कराई और मन में सोचा - 'अरे ' आज तो मैं सेंटा क्लाज़ हो गयी। "