Sarita Maurya

Children Stories Inspirational

4  

Sarita Maurya

Children Stories Inspirational

कोरोना मदर्स डे

कोरोना मदर्स डे

4 mins
208



सोने में उसे महारत हासिल थी, सुबह की नींद तो इतनी प्यारी थी कि मॉं की डांट भी लोरी जैसी सुनाई देती। और मॉं भी उसे डांटते-डांटते भूल जाती कि जगा रही थी फिर खुद ही अपने बचपन की बातें छेड़ देती। पता ही न चलता कि कब जगाते -जगाते खुद भी उसके पास जाकर लेट गई। फिर ऑफिस का टाइम होते ही भागती। रोज की यही कहानी रहती। उसे जगाने के लिए रोज सुबह मां को कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी ताकि सुबह की पढ़ाई और उससे पूर्व शारीरिक -मानसिक व्यायाम हो सके। रोज उसके पास एक ही बात होती-मां 1 घंटा आगे कर दो अच्छा 6 की बजाय सिर्फ आधा घंटा। प्लीज मां मैं साढ़े छः बजे पक्का उठ जाने का वादा करती हूं। वादा कभी पूरा न होता। और मां सोचती कभी सुधार होगा क्या कि वह बिना आलस किये स्वयं उठ जायेगी, क्या होगा जब उसे दूर पढ़ने के लिए भेजना पड़ेगा, पता नहीं कॉलेज जा पायेगी या सोती रहेगी और कक्षा मिस हो जायेगी।

प्रथम लहर के दौरान जब मां को कोरोना वायरस ने घेरा तो उसने अपनी उम्र से दोगुनी और अपनी क्षमता से कई गुनी सेवा दी। स्वयं 12 वर्ष की नन्हीं उसपर 42 वर्ष का बोझ। सबसे विशेष बात थी कि चिकित्सालय में कई बार टेस्ट के बाद वायरस पकड़ में नहीं आ रहा था। उसके संक्रमित होने की पूरी संभावना थी। चिकित्सालय भर्ती नहीं कर रहा था। अपनों का सहारा नहीं था बस मां और मां की नन्हीं सी जान। ऐसे में मां की स्वादग्रंथियों का चले जाना, और अन्य जाने पहचाने लक्षणों ने उसकी चिड़-चिड़ और बढ़ा दी थी। भूख लगती लेकिन भोजन न भाता। अचानक ही वह लापरवाह लड़की बड़ी हो गई, अपनी जिम्मेदारी से प्रातः पांच बजे उठना प्रारंभ कर दिया ताकि मां के लिए सुबह-सुबह पहली बस से आये हुए ताजे नारियल और दूसरे फल ला सके। ये वही बच्ची थी जिसे 7 बजे भी हल्ला मचा-मचा कर जगाना पड़ता था। 

मां के ठीक होते ही उसने अपना पुराना रवैया अख्तियार कर लिया। फिर वही मस्ती वही आलस!

महामारी की दूसरी लहर ने मां से उसके कई साथी और नाते रिश्ते छीन लिये। मां डिप्रेशन में थी क्योंकि परिवार में एकसाथ 5 सदस्य पॉजिटिव थे, इतना ही नहीं उनके आस-पास रोज देखने सुनने को मिल रहा था। तिसपर भाई भी कोसों दूर महाराष्ट्र में, जहां का नाम ही भय उत्पन्न करनेवाला हो गया था। मॉं बैठे-बैठे जाने शून्य में कहां घूरने लगती और भूल जाती कि वह क्या काम कर रही थी। उसे अपनों की चिंता ने आ घेरा था। 

वह तीन दिन से लगातार पीछे लगी हुई थी मां आपको बाहर जाना है आपको मेरे लिए सामान लाना है, मां घर में सामान समाप्त हो रहा है। आज तो हद हो गई। 6 बजे से 11 बजे की समयसीमा को देखते हुए बेटी ने मां को पांच बजे ही उठा दिया ताकि वह जाकर सामान ला सके। मां झुंझला उठी। लेकिन जाना तो था ही सो जल्दी से तैयार होकर निकल गई, पर अंदर से झुंझलाहट हो रही थी कि फालतू इतनी जल्दी आ गई अभी दुकानें पूर्णतया नहीं खुली हैं। बाहर का काम समाप्त करते-करते मां को लगभग पौन घंटे का समय लग गया। घर लौटते ही सैनिटाइज करने के बाद बेटी ने दूसरा आदेश दिया ‘‘मां बाहर से आई हो पहले स्नान करो तब कहीं और जाकर कुछ छूना।’’ स्नानघर से बाहर निकली तो बेटी ने मां की आंखें बंद कर लीं और आदेश दिया कि उसे तबतक नहीं खोलना है जबतक कि वह न कहे-

ऑंखें खुलीं तो सामने हैप्पी मदर्स डे के साथ मॉं बेटी की स्केच की गई तस्वीर के साथ ही एक कप में छोटा सा मैदा केक और साथ ही एक चॉकलेट रखी गई थी जो निश्चित ही कहीं किसी दिन मिले उपहार के पैसों से बचाकर खरीदी गई थी। नीले पेन से लिखे नोट ने मॉं को अब तक के सारे डिप्रेशन से उबार लिया। ‘‘मॉं सबकी चिंता करना तेरा स्वभाव है पर तेरी चिंता करना मेरा दायित्व है, मैं तेरे सब दुख समझती हूंॅ, मेरी ऑंखों में झांक के देख कि तुझे दुनिया मानती है लेकिन एक तू ही है जो मुझे जानती पहचानती और मानती भी है। मेरे लिए मुस्कुरा देना मॉं बस एक बार पहले की तरह हॅंसकर डांटना और फिर गले लगा लेना मॉं। अब कभी देर से नहीं उठूॅंगी, हांॅ परेशान रोज करूॅंगी। हैप्पी मदर्स डे-तेरी सोनचिरैया, तेरी बछिया। मॉं के लिए ये जिंदगी का सबसे खूबसूरत तोहफा था। इसीलिये तो बच्चे बहुत जरूरी हैं और बेटियां अनमोल। अगर बच्चों का कोलाहल न हो तो मानवजीवन नीरस हो जाये फिर भी हम बच्चों के अधिकारों को देने में स्वयं को सबसे ज्यादा कंजूस घोषित करने पर तुले रहते हैं। चलिये कुछ नया करें, नया सोचें जीवन के कोलाहल को गूंजने दें किलकारियों की सरिता बहने दें ताकि कोई हर मां के कान में कह सके ‘‘हैपी मदर्स डे’’।


Rate this content
Log in