Ranjana Jaiswal

Abstract

4.5  

Ranjana Jaiswal

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कमजोर की बीवी

कमजोर की बीवी

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वे डॉक्टर थे। छोटे -मोटे नहीं, बहुत बड़े डॉक्टर,पर बड़े ही सरल,सदय,हँसमुख,मिलनसार और समाजसेवी। पिछड़ी जाति के एक गरीब परिवार में जन्मे थे,इसलिए उन्हें पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। गांव वालों ने चंदा करके उन्हें डॉक्टर बनाया था। डॉक्टर बनकर उन्होंने गांव का कायाकल्प कर दिया। उनके परिवार का कायाकल्प तो हुआ ही। शहर में आलीशान बंगला बनाया। साथ ही बहुत बड़ा प्राइवेट अस्पताल। कितने तो पैथोलॉजी और जाने क्या -क्या!पत्नी भी सरकारी डॉक्टर और खुद भी मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ डॉक्टर। खूब कमाया। दोनों बच्चों को विदेश पढ़ने को भेजा। खुद भी हर दो महीने पर विदेश जाते रहते थे। वहाँ बड़े- बड़े सेमिनारों में आमंत्रित होते थे।

कुल मिलाकर अब वे राजा इंद्र थे। हाँ, एक बात तो भूल गयी वे बड़े भक्त भी थे। उनके घर हमेशा पूजा -पाठ, यज्ञ-हवन हुआ करते। शहर के ज्यादातर अखबारों के पत्रकारों और थानों के पुलिस अधिकारियों से उनके मित्रवत सम्बन्ध थे,इसका एक फायदा यह था कि उनके खिलाफ़ कुछ नहीं छपता था,जबकि सरकारी डॉक्टर होते हुए भी पति पत्नी दोनों प्राइवेट प्रेक्टिस में लाखों रोज ही पीटते थे। वे भी पत्रकारों और पुलिस अधिकारियों के परिवार का मुफ्त इलाज करते थे और सभी के साथ पारिवारिक सम्बन्ध भी रखते थे।

पर कहते हैं न पैसा अपने साथ बहुत बुराइयां भी लाता है।

नामी डॉक्टर थे इसलिए सुदूर गाँवों से मरीज आते थे। पहले मेडिकल कालेज जाते थे, पर वहाँ से निराश होकर इनके अस्पताल। पर बेचारे अधमरे, गरीब मरीजों पर भी डॉक्टर साहब को दया नहीं आती थी। दिन -प्रतिदिन उनकी फीस बढ़ती हुई एक बार में हजार तक पहुंच गई। मरता क्या न करता,मरीज फिर भी भीड़ लगाए रहते। एक -दो बार छापे की नौबत आई, पर पत्रकारों और पुलिस अधिकारियों की कृपा से पूर्व सूचना पाकर मामला ठीक कर लेते थे। मेडिकल कालेज के कई घोटालों में भी उनका नाम उछला, पर कोई पक्का सबूत न होने से बचते रहे। बाद में पत्नी से रीजाइन करवाकर निजी अस्पताल में बिठा दिया और उसके नाम से खुद मरीज देखते रहे। अब तो खैर रिटायर हो गए हैं,इसलिए कोई व्यवधान ही नहीं रहा। अख़बारों में उनके विशेष ब्याख़्यान छपते रहते हैं। इस तरह वे शहर के नामचीन व्यक्ति में शामिल हैं।

मुझे उन्होंने एक मित्र की पार्टी में पहली बार देखा था और सबके सामने ही मेरे रूप -रंग की इतनी प्रशंसा की कि मैं शरमा गयी। पार्टी में बहुत सारे पत्रकार और डॉक्टर्स अपने परिवार के साथ आए थे। सबको डॉक्टर साहब की मुखरता पर आश्चर्य हो रहा था। सबने इसे सहजता से ही लिया। मेरे पति भी अखबार में ही थे और सबका आना -जाना एक -दूसरे के घर बेतकल्लुफी से होता था। तबियत खराब होने पर तो खैर डॉक्टर साहब थे ही। मुझे देखते ही वे खिल उठते। तुरत चाय -नाश्ता मंगवाते और फिर हाल- चाल पूछते। सुबह मार्निंग -वाक करते मुझे मिल जाते और शाम को जिम में भी। पति को फुर्सत थी नहीं मैं अकेली ही नौकरी,घर-बाहर सब देखती थी। कुछ दिन बाद ही मुझे पता चल गया कि डॉक्टर साहब मुझपर आसक्त हैं। पर अपने मुंह से उन्होंने कभी कुछ ऐसे -वैसी बात न की। मैं भी इस चीज को टाल जाती थी।

एक बार वह विदेश गए थे तो प्रात:-भ्रमण के समय उनका दरोगा मित्र मिल गया। मुझे वह आदमी जरा -सा भी अच्छा नहीं लगता था। उसकी नजरें बड़ी गंदी थीं। मैं तेज- तेज टहल रही थी कि वह मेरी बराबरी पर बढ़ आया--कहाँ भागी जा रही हैं?जरा धीरे चलिए। डॉक्टर साहब का हाल -चाल नहीं पूछ रही हैं!

-वे अमेरिका गए हैं न।

'हाँ, वहीं है पर वहां की हर कली हर फूल में आपके ही दर्शन कर रहे हैं। '

-क्या बेकार की बात कर रहे हैं!

'आप तो जैसे जानती ही नहीं हों !'

-क्या नहीं जानती!

'वे आपसे बहुत प्रेम करते हैं। '

-मैं भी उनका सम्मान करती हूँ।

'सम्मान से क्या होगा,प्रेम दीजिए ...लीजिए!'

-इसी से मैं आपसे बात नहीं करना चाहती-कहकर मैं आगे बढ़ गयी।

रास्ते भर सोचती रही कि यह डॉक्टर साहब का राज़दार है, तभी उन्होंने इससे यह बात बताई है। कितनी अजीब बात है कि यह जानते हुए भी कि मैं शादीशुदा हूँ डॉक्टर साहब मेरी चाह रखते हैं। किसी को पसन्द करना अलग बात है पर उसे पाने की इच्छा रखना,यह तो गलत है। आखिर मित्र -मंडली में इतनी स्त्रियाँ हैं। ठीक- ठाक ही हैं पर उनके प्रति इस तरह का भाव नहीं रखा उन्होंने।

एकाइज मेरे दिमाग नें कुछ कौंधा--ओह, तो ये बात है इस सर्किल में सबसे कमजोर मेरे ही पति हैं। रूप- रंग, देह ही नहीं नौकरी से भी। मैं उनके बिल्कुल विपरीत हूँ इसलिए लोगों को यह भरम रहता है कि मैं उनसे संतुष्ट नहीं रहती होऊँगी। अक्सर लोग पूछ भी बैठते हैं-क्या देखकर शादी कर ली उनसे!

मैंने संबको जवाब भी दिया है कि -उनकी अच्छाई देखकर की है शादी। रुप -रंग, देह तो ईश्वर की देन है !

'पर ठीक से कमाते भी तो नहीं आप ही कमाकर घर चलाती हैं। '

-मुझे कोई शिकायत नहीं उनसे।

फिर भी लोगों को संशय था कि मैं उनके प्रति ईमानदार होंगी या रहूंगी। जैसे कमजोर की बीबी पूरे गाँव की भाभी लगने लगती है यानी सब उससे छूट लेने की कोशिश में लग जाते हैं ऐसा मेरे साथ भी हो रहा था।

इनके कई मित्र मेरे सामने प्रणय- प्रस्ताव रख चुके थे। अब डॉक्टर साहब भी!

मैं इस बात से दुखी होती थी, पर पति को यह बात संकोच वश नहीं बताती थी। पति भी थे तो आखिर एक मर्द ही, जिसे अपनी कमी कभी दिखती ही नहीं। मैं खुद ही हाथ जोड़कर मामला संभाल लेती थी पर डॉक्टर साहब आसानी से टलने वाले नहीं हैं।

डॉक्टर साहब के सामने मैं ये दिखाती कि उनके मंशा से मैं अनभिज्ञ हूँ।

एक दिन फिर दरोगा मिल गया-आप किससे डरती हैं?आपका सूखा हुआ पति ची -चुपड़ करेगा तो दो हाथ लगाकर थाने में बंद कर दूँगा।

'देखिए मैं पहले भी कह चुकी हूं। मैं उनमें इंटरेस्टेड नहीं हूँ। '

-अब बनिए मत। अरे, किसी दिन लांग -ड्राइव पर जाइये उनके साथ। गाड़ी मैं चलाऊंगा। मैं तो ऐसे अवसरों पर पिछली सीट की तरफ पलट कर भी नहीं देखता। कई बार डॉक्टर साहब के साथ गया हूँ।

'छि: !ये तो बड़े गंदे लोग हैं। '-मन में सोचती हुई मैं आगे बढ़ ली। कई दिन तक मैं मार्निंग वाक पर नहीं गयी। मुझें दहशत होने लगी थी।

जाने कितनी बाईयां,नर्से, जूनियर डॉक्टर इस भूखे डॉक्टर की शिकार बनी होंगी। अपने पावर, पद और पैसे का लाभ लेकर जाने कितनी स्त्रियों का शोषण इसने किया होगा।

मुझे अब स्मरण हो रहा है कि अक्सर जवान बाइयाँ इसके घर कुछ दिन काम करती दिखती हैं फिर अचानक मेडिकल कालेज में दाई के पोस्ट पर पहुंच जाती हैं।

इसकी मेहरबानी से ही पहुंचती होंगी। ये भी पता चला कि इसकी शादी बचपन में ही हो गयी थी,पर मेडिकल कालेज में पहुंचकर इसने डॉक्टर से ही शादी कर ली और पहली पत्नी को छोड़ ढिया। पहली पत्नी इसी शहर के एक चौराहे पर सब्जी बेचकर अपना गुजर-बसर करती है।

डॉक्टर की पत्नी सांवले रंग, छोटे कद की सम्भान्त महिला डॉक्टर हैं,जाति भी उच्च है। दोनों ने मेडिकल की पढ़ाई करते हुए प्रेम विवाह किया था। डॉक्टर खुद भी साँवले, स्थूल और सामान्य कद के हैं। उनके दो बच्चे उन दोनों से भी ज्यादा अनाकर्षक हैं पर उससे क्या ! लक्ष्मी की कृपा है। ऐशोआराम है। उनकी पत्नी को पति का चरित्र पता है तभी वे खुश नहीं दिखती हैं। पर पति उन पर हावी है फिर कहाँ- कहाँ उन पर रोक लगेगी। घर से बाई हटा देती हैं तो उसकी व्यवस्था कहीं और हो जाती है। लांग -ड्राइव है! दरोगा जैसे सपोर्टर दोस्त हैं फिर देश -विदेश की टूर है। जहां चाह वहां राह!

डॉक्टर साहब की बीबी मुझे भी पसन्द नहीं करती,पर ऊपर से कुछ नहीं कहतीं। उन्हें अच्छा नहीं लगता कि उनके पति मेरा गुणगान करें। पर न तो वे कुछ कर पाती हैं न मैं कुछ कर सकती हूँ।

एक दिन डॉक्टर ने मुझे दरोगा के हाथों फूल भिजवाए और प्रेम -संदेश भी।

मैंने संकट का काट सोच लिया।

--डॉक्टर साहब से कहिए मुझसे शादी कर लें। मैं अपने पति को छोड़ने को तैयार हूं।

'ये कैसे संभव है?वे अपना परिवार नहीं छोड़ सकते। '

-तो मैं भी अपना धर्म नहीं छोड़ सकती। आज के बाद इस तरह की बातें नहीं होनी चाहिए, अन्यथा मैं संबको बता दूँगी यह बात। मित्र हैं मित्र बने रहेंगे। नमस्कार।

वह मुझे आग्नेय दृष्टि से देखता हुआ चला गया।

उसके बाद डॉक्टर साहब का व्यवहार बदल गया। कभी जिम में मिल जाते तो मेरे फीगर पर अश्लील टिप्पड़ी करते। मैंने जिम जाना ही छोड़ दिया। पर मित्र मंडली में सामना तो हो ही जाता था। दोनों ही पहले जैसा सामान्य रहने की कोशिश करते। अब वे मेरे बारे में कहते--कभी ये कितनी सुंदर हुआ करती थीं यानी अब नहीं हैं वैसी। मैं हंसकर टाल जाती। जरा- सा एकांत होता तो कहते -आपने तो मेरी सारी काबिलियत को नकार दिया।

मैं सोचती कि स्त्री अपनी देह न सौंपे तो पुरुष इतना आहत हो जाता है कि यह उसे व्यक्तित्व का नकार लगने लगता है। तो क्या स्त्री सबके आगे बिछती फिरे?पुरूष के अहंकार को सहलाती रहे?उसकी अपनी भी तो कोई मर्जी है च्वाइस है पसन्द है।

कुछ दिन बाद पति ने नौकरी छोड़ दी। कई और मित्र भी इधर -उधर चले गए फिर वह सर्किल भी टूट गयी। डॉक्टर साहब मेरी कालोनी से कुछ ही दूरी पर रहते हैं,पर अब आना -जाना नहीं होता। एकाध बार तबीयत खराब होने पर दिखाने गयी तो उनका व्यवहार कुछ अहसान जताने जैसा लगा। फिर जाना छोड़ दिया।


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