rekha karri

Tragedy

4.4  

rekha karri

Tragedy

कल आज और कल

कल आज और कल

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मालती जी अपने कमरे से धीरे धीरे चलते हुए बाहर निकल कर आई और अभी वे पिछवाड़े की तरफ़ जाने ही वाली थी कि रमा ने उन्हें रोकते हुए कहा कि माँजी आप भी इतनी सुबह सुबह उठकर कहाँ जा रही हैं । आपको ऑफिस या स्कूल कॉलेज तो नहीं जाना है न क्या जल्दी मचा रहीं हैं जाइए अपने कमरे में बैठिए जब सब चले जाएँगे घर ख़ाली हो जाएगा तब आपको मेरी बहू शिप्रा बुला लेगी । 

मालती ने कहा -- "बहू मैं रात भर सो नहीं सकी थी अभी मेरे सर में दर्द हो रहा है तो मैं ब्रश करके आ जाती हूँ तो कॉफी पी सकूँगी ।" 

"आपके सर में दर्द हो रहा है तो थोड़ी देर और लेट जाइए । मेरे बच्चों को ऑफिस जाने के लिए देर हो जाएगी आप बीच में आ जाएँगी तो इसलिए ज़ोर से बोलने के लिए मुझे मजबूर मत कीजिए । "


मालती चुपचाप अपने कमरे में चली गई और पलंग पर लेट गई थी और अपने पुराने दिनों को याद करने लगी थी ।

मालती के पिता बहुत बड़े नामी डॉक्टर थे उनके दो भाई थे और एक बहन थी । मालती की शादी एक संयुक्त परिवार में ही हुई थी । उस समय सब मिलकर ही रहते थे । मालती के पति ने उस समय के मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज से अंग्रेज़ी भाषा में गोल्ड मेडल हासिल किया था । गाँव में उनकी बहुत इज़्ज़त थी वे कॉलेज में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत थे । मालती की एक लड़की तीन बेटे थे सब अच्छे सरकारी ऑफिस में नौकरी करते थे । 

शुगर की बीमारी के कारण मालती के पति की मृत्यु हो गई थी । उस समय शुगर की बीमारी के लिए दवाइयाँ नहीं थीं । उसके बाद वह अपने तीनों बच्चों के पास तीन तीन महीने रहते हुए अपना गुज़ारा कर रही थी । रमा बड़ी बहू थी । वह एक बहुत बड़े घर से आई थी । इसलिए ससुराल के लोग उसको फूटी आँख भी नहीं भाते थे । 

रमा मालती को तीन महीने तक किसी तरह झेलकर दूसरे बेटों के पास भेज देती थी । दूसरी बहू सुनयना रमा की बहन जैसी ही थी उसके बच्चे नहीं हुए थे इसलिए उसे खाना बनाने में भी आलस आता था । मालती को वहाँ भी ख़ुशी नहीं मिलती थी । 

तीसरी बहू सुजाता बहुत अच्छी थी मालती को वहाँ रहना ज़्यादा अच्छा लगता था क्योंकि सुजाता दिल से उनकी सेवा करती थी । मालती अपने दिल के दर्द बातें सब उसे बताती थी उसे विश्वास था कि सुजाता कभी भी चुग़लियाँ नहीं करती थी परंतु एक ही बेटे के साथ रहकर मालती उस पर बोझ नहीं डालना चाहती थी । कितनी भी तकलीफ़ क्यों न हो बहुएँ कितनी भी बातें क्यों न सुना दे परंतु अपने दर्द को दिल में ही दबाकर वह अपने पहले और दूसरे बेटे के साथ रहने चली जाती थी । 


तीसरा बेटा हमेशा कहता था माँ यहीं रह जाओ ना । मालती नहीं मानती थी उसे लगता था कि बड़े लड़के के पास अंतिम दिनों में रहूँ तो अच्छा रहेगा परंतु बहू तो उसे तीन महीने होते ही भगा देती थी । 

उसकी सोच को बीच में ही रोकना पड़ा क्योंकि शिप्रा उसे बुलाने आई थी कि दादी आइए आप फ्रेश हो जाइए आपके लिए मैं कॉफी बना देती हूँ । मालती धीरे से उठकर उसके पीछे चल पड़ी । 

एक दिन रात को अचानक मालती की तबियत ख़राब हो गई थी । उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था । दूसरे दोनों भाइयों को भी बुलाया गया क्योंकि डॉक्टर ने कह दिया था कि अपनों को बुला लीजिए । 

लोगों ने सोचा था मालती की क़िस्मत अच्छी है इसलिए बड़े बेटे के पास जब वह थी तब ही उसकी तबियत ख़राब हो गई थी । उसकी स्थिति आज या कल वाली हो गई थी । 

इसी बीच बड़ी बहू को किसी पंडित ने बताया था कि आज कल के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं अगर आपकी सास घर में गुजर गई तो पूरा घर बंद करना पड़ेगा । फिर क्या जैसे ही मालती का अंतिम समय आया तो रमा ने मालती को पिछवाड़े में सीढ़ियों के नीचे लिटा दिया था । इस घटना से भाइयों का दिल दर्द से छलनी हो गया था । उन सबके सामने ही मालती ने दम तोड़ दिया था । उसके तीनों बेटों और उनके बच्चों के खुद के घर थे परंतु क्या फ़ायदा हुआ क्योंकि माँ या दादी को तो सीढ़ियों के नीचे दम तोड़ना पड़ा । इससे ज़्यादा दुख और दर्द की बात क्या हो सकती है । हम यह भूल जाते हैं कि हम अपनी बहुओं को क्या सिखा रहे हैं । कल हमारे साथ भी ऐसा ही हो सकता है । कल हमने किया आज बहू ने देखा और कल हमें भी सहने के लिए तैयार रहना है । 


दोस्तों अंधविश्वासों पर विश्वास नहीं करना चाहिए उसके कारण आप अपने अपनों को दर्द दे देते हैं । बाद में पछताने से कोई फ़ायदा नहीं होता है । हमसे कोई कुछ नहीं कहता है इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करके दूसरों को दुख पहुँचाए । 

 


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