किराएदार
किराएदार
प्रिशा ने अपने बजट के हिसाब से सारे किराए के घर देख लिए। मगर उसे कोई भी घर सही नहीं लगा । अगर कहीं किराया कम है तो घर साफ सुथरा नहीं है। कहीं मकान मालिक की चिक-चिक इतनी है कि वो रह नहीं सकेगी। वह निराश होकर आजाद कॉलोनी की तरफ मुड़ गई। उसने सोचा कि जितने बड़े घर होंगे उतना ज्यादा किराया होगा । फ़िर भी कोशिश की जा सकती है। यही सोचकर उसने एक घर की घंटी बजा दी। "जी, मैं प्रिशा हूँ। किराए पर रहने के लिए घर ढूँढ रही हूँ। " "हम सिर्फ फॅमिली वाले को ही अपना घर देते है। " प्रिशा बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई । उसके सामने एक ऑटो रुका और एक अंकल उसमे से निकले । उसने देखा कि उन्होंने अपना सामान ऑटो से निकाला। ऑटो वाले को पैसे दिए और पूरी गली को ऐसे नज़र भर देखने लगे जैसे कोई जाना-पहचाना चेहरा ढूँढ रहे हो । फ़िर एक लम्बी सांस ली और दरवाज़े पर लगे ताले को खोलने लग गए । प्रिशा ने सोचा इनसे भी एक बार बात की जाए।
"अंकल मेरा नाम प्रिशा है, मैं किराए पर एक कमरा देख रही हूँ। " सुब्रोतो ने उसे गौर से देखा और कहा, "अंदर चलकर बात करते है। " अंदर पहुँचे तो प्रिशा ने पूरे घर को गौर से देखा। इतना बड़ा और हवादार घर, हर चीज़ अपनी जगह सलीके से रखी है । "अगर घर देख चुकी हो तो दो कप चाय बना लाओ। फ़िर बैठकर आराम से बात करेंगे। और हाँ, दूध की थैली फ्रिज में होगी । मेरी बेटी ने सुबह ही घर में भिजवा दी थी। " प्रिशा ने सुना तो पहले उसे अजीब लगा पर अपनी मज़बूरी समझकर वह किचन की ओर चल दी। पांच मिनट बाद दो कप चाय बनाकर ले आई। अंकल ने पहले ही बिस्कुट के पैकेट खोल लिए थे।
"हाँ बेटा, क्या कह रही थी तुम ? घर चाहिए ? मैं रिटायर होकर आज ही लखनऊ से लौटा हूँ। पत्नी को गुज़रे हुए कई साल बीत चुके हैं। एक बेटी है, जो सरकारी अफसर है। वह अपने पति के साथ रहती है। यहाँ से उसका घर लगभग दो घंटे की दूरी पर है । बेटा अमेरिका में रहता है। मर्ज़ी का मालिक है, मन करे तो बात कर लेता है । वरना कभी महीनों बात नहीं होती। चाय तो अच्छी बनी है। " सुब्रोतो ने चाय का घूँट पीते हुए कहा। "अंकल मेरी नौकरी इसी शहर में लगी है। अभी ज्वाइन किया है इसलिए सैलरी ज़्यादा नहीं है। पहले पापा ब्रेन ट्यूमर से चले गए, फ़िर उसके छह महीने बाद मम्मी हार्ट अटैक से चली गई। चाचा-चाची के साथ रहती थी। जैसे ही नौकरी मिली तो यहाँ आ गई। "तो बेटा वहीं कर लेती ? यहाँ अकेले रह पाऊँगी? ""जी, वहाँ अब रहने का मन नहीं करता। " प्रिशा बोलते-बोलते चुप हो गई । "ठीक है, ऊपरवाला कमरा तुम ले लो। किराया 2000 /- रुपए चलेगा ?" प्रिशा के चेहरे पर रौनक आ गई। "थैंक्यू अंकल। "
प्रिशा के पास सामान के नाम पर सिर्फ दो बैग है। उसने कमरे को देखा तो वह सामान से भरा -पड़ा है। उसने वहाँ रहना शुरू कर दिया। सुबह नौकरी पर निकल जाती। शाम को आती तो सुब्रोतो अंकल उसका चाय पर इंतज़ार कर रहे होते। वह अपने घर-परिवार की सारी कहानी सुनाते। छुट्टी वाले दिन वह साथ खाना खाते। अब उसके दोस्त बन चुके है। वे भी घर आ जाते हैं। उनसे भी सुब्रोतो की दोस्ती हो गई। उनकी बेटी उन्हें कहती, "पापा आप किराया कम ले रहे है, उस पर लोग तरह -तरह की बातें भी करते हैं। " वे कहते, “लोगों को बोलने दो। वैसे मैं तुम्हें बता दो कि मैंने फ़िर से शादी करने का फैसला कर लिया है । “ पूजा हैरान होकर पूछने लगी, "किससे?" "पीछे कॉलोनी में एक विधवा रहती है, उनसे। " पूजा ने अपने भाई अतुल को बताया तो उसने भी सुब्रोतो से बात करनी बंद कर दी । पर प्रिशा ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर सुब्रोतो की शादी करवा दी। दो साल गुजरने के बाद प्रिशा को बंगलौर में नौकरी मिल गई । उसने सुब्रोतो और रागिनी को नम आँखों से अलविदा कहा और बंगलौर चली आई । मगर फ़ोन पर वो उनसे बात करती रहती। फ़िर कुछ महीनों बाद सुब्रोतो अपनी पत्नी रागिनी को लेकर अपने बेटे के पास अमेरिका चले गए और कभी-कभी ईमेल के जरिए ही प्रिशा उनका हालचाल पूछ लेती। एक दिन प्रिशा को सुब्रोतो का पत्र मिला।
प्यारी बेटी प्रिशा!
तुम्हें पता है, मेरी ज़िन्दगी का सबसे ख़ास और यादगार दिन कौन सा है। जब तुम मेरे घर पर किराएदार बनकर आई थीं। मैं यही सोचकर उदास हो रहा था कि रिटायरमेंट के बाद मैं अकेला हो जाऊँगा । पर तुमने मेरा अकेलापन केवल बांटा ही नहीं बल्कि उस अकेलेपन की साथिन रागिनी को भी मुझसे मिलवा दिया । तुम्हें मैं अपनी बेटी कहता नहीं हूँ, मानता भी हूँ । इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटी के पास भी अपना आशियाना हो । इस खत के साथ तुम्हारे लिए कुछ भेज रहा हूँ । तुम्हें हम दोनों की तरफ से ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद । ।
सुब्रोतो और रागिनी
प्रिशा ने दूसरा लिफ़ाफ़ा खोला तो वह हैरान हुए बिना नहीं रह सकी। उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गए। सुब्रोतो ने अपना पुणे वाला मकान उसके नाम कर दिया है। जहाँ वो किराएदार बनकर आई थीं, वह अब उस घर की मालकिन है ।
आज प्रिशा की शादी है, उसके ख़ास मेहमानों में सुब्रोतो और रागिनी भी शामिल है। जब पंडितजी ने कहा कि माता-पिता कन्यादान के लिए आगे आए तो प्रिशा के चाचा-चाची आने लगे। मगर प्रिशा ने सुब्रोतो और रागिनी का हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा, "मेरा कन्यादान आप करेंगे, यह मेरी ज़िन्दगी का सबसे खास और यादगार पल होगा। सुब्रोतो ने उसे गले लगा लिया और रागिनी की आँखों में आंसू आ गए। किस तरह ज़िन्दगी ने दो लोगों को कभी न भूलना वाला लम्हा दिया है । जिसकी याद हमेशा उनके रिश्ते को अनमोल और मजबूत बनाती रहेगी।