Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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खुलते पेच

खुलते पेच

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कार उसके बंगले के मुख्य द्वार पर रुकी और वाहन चालक दरवाज़ा खोलने बाहर निकला। पीछे बैठे हुए उसने आज अपने मुख्य द्वार को ध्यान से देखा, वहां एक बड़ी तख्ती थी, जिस पर लिखा था, "अंदर आने से पूर्व अपना परिचय द्वारपाल को दें।"

उस तख्ती के यूं तो बहुत सारे अर्थ थे, लेकिन वो उसे अभी याद नहीं आ रहे थे, वह कार से उतरा और वाहन चालक से कहा, "यह बोर्ड यहाँ से हटा दो, अभी।"

वाहन चालक उसकी मनोदशा समझता था, वह कार में रखे पेचकस को निकाल लाया और तख्ती के पेच खोलने लगा।

पहला पेच खुला और जमीन पर गिर गया, उसने स्पष्ट सुना, उस पेच में से आवाज़ आ रही थी, "साहब, बहुत गरीब हूँ, भीख नहीं कोई नौकरी हो तो... "

वह उस आवाज़ को पहचान गया। तभी दूसरा पेच भी खुल कर जमीन पर गिरा, उसमें से भी आवाज़ आई, वह आवाज़ उसी की थी, "उस अछूत को अंदर मत आने देना, घर अपवित्र हो जायेगा।"

वह दूसरे पेच को बहुत गौर से देखने लगा। कुछ ही क्षणों में तीसरा पेच भी गिरा, और उसमें से उसके पारिवारिक चिकित्सक का स्वर सुनाई दिया, "दुर्घटना में आपके बेटे का बहुत खून बह गया है, उसके ग्रुप का खून यहाँ उपलब्ध नहीं है, कहीं से व्यवस्था करनी होगी।"

वह विचलित होने लगा।

चौथा पेच खुलते ही उसने उसे लपक लिया, लेकिन तख्ती नीचे गिर गयी, और अपेक्षाकृत तेज़ आवाज़ आई। उस आवाज़ में उसे एक प्रश्न सुनाई दे रहा था "साहब, आपके बेटे के शरीर में किसी अछूत का खून जाना तो मना नहीं है ?"

और चौथा पेच उसने मुट्ठी में बंद कर दिया।


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