Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy

4.5  

Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy

खोखली नींव

खोखली नींव

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सरिता की शादी बहुत जल्दी महज अठरह बरस की उम्र में ही मनोज से हो गई थी वह अपने ससुराल में सबसे बड़ी बहू थी मनोज जी के दो छोटे भाई और एक छोटी बहन थी। ससुर बहुत पहले ही गुजर चुके थे तो उन सब की जिम्मेदारी भी मनोज पर ही आ गई थी। सरिता जी की सास कमला जी बहुत कड़क स्वभाव की थी पूरे घर पर उनका ही प्रभुत्व चलता था । वो जैसा कहती वैसा ही घर मे होता । मनोज भी पूरी तरह अपनी मां की ही बात सुनते। और अपनी पूरी तनख्वाह लाकर अपनी मां को देते। बचत के नाम पर एक रुपया भी अपने पास नहीं रखते।

सरिता को जब भी किसी चीज की जरूरत होती तो उन्हें अपनी सास से मांगना होता। कमलाजी की जब उनकी मर्जी होती तब उनको वो अपने हिसाब से पैसे देती नहीं तो डांट कर भगा देती। सरिता अपमान का घुट पीकर घर के सारे काम करती । क्योंकि घर में उनकी सुनने वाला कोई नहीं था। ना ही पति ना ही कोई और जिससे वो अपने मन की बात कह पाती।

महज अठारह साल की उम्र में ही सरिता भाभी और अपने देवर ननद की एक मां की तरह सारे काम करती थी. घर में कमाने वाले एकमात्र सरिता के पति मनोज ही थे क्योंकि दोनों भाई और बहन पढ़ाई करते थे।

मनोज जितना भी कमाते थे सब अपने भाइयों और बहनों पर खर्च कर देते थे और बाकी उनकी मां के हाथ में घर खर्च के नाम पर चले जाते थे। सरिता ने कई बार प्यार से मनोज को समझाने की कोशिश की। लेकिन वो कुछ समझाना सुनना ही नहीं चाहते थे। उनको लगता था कि वो उनको उनके परिवार के खिलाफ करना चाहती है।

समय के साथ साथ सरिता भी दो बेटियों की माँ बन गयी। अब उनको खुद से ज्यादा अपने बेटियों के भविष्य की चिंता सताने लगी।

एक दिन सरिता ने रात में कहा,"

"सुनिए मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।"

मनोज ने नजरें तरेरते हुए कहा, "कहो, क्या कहना चाहती हो"

सरिता ने डरते डरते नजरें झुकाएं हुए दबी जुबान में कहा," देखिए यह आदत आपकी सही नहीं है आपको कुछ पैसे भविष्य के लिए भी बचा कर रखना चाहिए। अभी तो हमारी बेटियां छोटी-छोटी हैं आगे चलकर इनकी भी पढ़ाई और शादी के भी खर्चे हमें देखने होंगे। और आपकी प्राइवेट नौकरी भगवान ना करे कल को कोई बात हुई तो कैसे संभलेगा सब। अगर हम भविष्य के लिए सेविंग नहीं करेंगे तो कैसे काम चलेगा?

लेकिन मनोज जी पर सरिता की बातों का कोई असर नहीं हुआ । उल्टा उन्होंने उनको गुस्से में कहा, "पता है तुम जैसी औरतो की वजह से ही घर टूट जाते है।" कहकर कमरे से बाहर चले गए

समय के साथ साथ जैसे तैसे करके मनोज की बहनों और भाइयों की भी पढ़ाई और शादी हो गई । मनोज के दोनों भाई शहर में अच्छी नौकरी करते थे लेकिन घर के खर्चे के लिए एक रुपए भी नहीं देते थे. अभी भी घर के खर्चे के सारा जिम्मेदारी मनोज के ही ऊपर थी। घर भी पुराना जर जर हालत में हो गया था। तब एक दिन कमला जी ने कहा

"मनोज अब सिर्फ घर बनाने का काम रह गया बेटा सोचती हूँ अपने जीते जी वो भी देख लू।"

तब मनोज ने कहा, "माँ ऐसा क्यों बोल रही हो मैं कल ही घर बनाने के सिलसिले में बात करता हूं। उन्होंने मदद की उम्मीद से दोनों भाइयों को फोन किया लेकिन दोनों ही भाइयों ने मना कर दिया। ये कहते हुए की उनके पास अभी इतना बजट नहीं है।"

तब मनोज ने अपने पी.एफ के पैसे निकालकर घर बनवाने की ठानी। क्योंकि उनको अपनी मां का सपना पूरा करना था। कमलाजी को जब ये बात पता चली तो वो बहुत खुश हुई और दोनों बेटे के लिए कहा, "बेटा तू उन लोगों की बातों को दिल से मत लगाना तू तो जानता है की बड़े शहरों के खर्चे भी बड़े होते है। वरना वो तुझे झूठ थोड़ी ना बोलेंगे।"

मनोज ने कहा, "हाँ माँ जानता हूँ की जब मुझे जरूरत होगी तब वो दोनों मेरे साथ हमेशा रहेंगे। तभी तो ये निर्णय लिया। मुझे बुरा नहीं लगा उनकी बातों का।

सरिता इस बार मनोज और कमला जी के सामने अपने मन का गुब्बार बाहर निकाला उन्होंने बोला ," मैं आपको पहले भी समझा चुकी हूं कि पहले आपके भाई बच्चे थे लेकिन अब तो वह भी कमाते हैं आखिर घर के खर्चे में उनको भी तो हाथ बटाना चाहिए। क्या पूरी जिंदगी आपने ही उनका ठेका ले रखा है। आखिर हमारी भी अपनी जिंदगी है कल को मेरी बेटियां बड़ी हो रही है उनकी पढ़ाई और शादी के खर्चे कहाँ से लाएंगे। कौन देगा उनके पढ़ाई और शादी के पैसे। जब बेटे और भाई बहनों की ही जिम्मेदारी निभानी थी तो शादी ही क्यों कि। क्या मुझे बता सकते हो कि पिता और पति की जिम्मेदारी कौन निभाएगा"

इतना सुनते कमला जी ने घड़ियाली आंसू रोने लगी।

उन्होंने कहा, "देख तो बेटा कैसे जुबान चला रही है ये तो शुरू से ही अपना अलग घर लेकर अलग हो जाना चाहती थी। लेकिन इसके मनसूबे पूरे नहीं हुए, तो तेवर दिखा रही है।"

मनोज ने गुस्से में कहा," सरिता जगह देखकर बात किया करो समझी ,अपना मुँह बन्द रखना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

मां आप चुप हो जाओ ,चिंता मत करो मैं किसी के झांसे में नही आने वाला। ये घर बनकर रहेगा।

सरिता के लाख मना करने पर भी मनोज ने पी एफ के पैसों से और कुछ पैसे बैंक से लोन लेकर घर बनवा दिया। सरिता इस बात को लेकर हमेशा बहुत चिंतित रहती कैसे उसका जीवन चलेगा ,बढ़ती बेटियों को देखकर उनकी रातों की नींद भी गायब हो जाती वो दिन रात सोचती अचानक पैसे की जरूरत पड़ गई या कुछ बीमारी हो गया तो कहां से पैसे आएंगे।

कमला जी भी अपने दोनों छोटे बेटे बहुओं और उनके बेटों को ही ज्यादा प्यार करती। मनोज से सिर्फ पैसों के लिए उनको प्यार था। सरिता के हिस्से तो शुरू से ही सिर्फ अपमान और परायापन ही आया था। गर्मी की छुट्टियों में जब देवर देवरानी आती तो उनके आवभगत की जिम्मेदारी भी सरिता की होती। अब बेटियां बड़ी हो गयी थी उनको ये भेदभाव बहुत खराब लगता। विद्रोह भी करती। तो कमला जी तुरंत कहती दोनों अपनी माँ पर गयी है झगड़ालू।

आखिर में एक दिन वही हुआ जिसका सरिता को डर था।

गर्मी की छुट्टियों में दोनों देवर देवरानी आये हुए थे। तब कमला जी की तबीयत भी ज्यादा ही खराब थी उन्होंने ने सबको बुलाकर कहा, "देखो मनोज तुम्हारे दोनों भाइयों का कहना है और मेरा भी मानना है कि मैं अब प्रापर्टी का बराबर बराबर बंटवारा कर दूँ। लेकिन उससे पहले तुम बताओ कि तुम्हें मेरा फैसला तो मंजूर होगा ना।"

तब मनोज ने कहा, "कैसी बातें करती हो मां? क्यों नहीं मंजूर हो गा आपका फैसला मेरी सिर आंखों पर"

तब कमलाजी ने कहा, "बेटा मैंने घर और जमीन के दो हिस्सों में बांट दिया है। तुम्हारे दोनों भाइयों के लिए। क्योंकि तुम्हारे तो बेटा है नहीं। और बुढ़ापे में तुम्हारे दोनो भाई के बेटे ही तुम्हारी देखरेख करेंगे। तो बाद में तुम्हारे हिस्से को लेकर कोई झगड़ा ना हो इसलिए मैंने ये फैसला किया है।"

और तुम्हारी दोनों बेटियों की शादी का खर्चा एक एक भाई उठा लेंगे। मैंने इनको कह दिया है कि ये लोग जो मदद बन पड़े वो इन दोनों की शादी में कर दे।

इतना सुनते मनोज के पैरों तले आज जमीन घिसक गयी उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि ये फैसला उनकी मां ने लिया। आज ना जाने क्यों मनोज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे।अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गयी। आनन फानन में उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया। तब डॉक्टर ने बताया कि हल्का अटैक था लेकिन कुछ दिन निगरानी के लिए हमें अस्पताल में रखना होगा। एक दिन अस्पताल में दोनों भाई बात कर रहे थे सबसे छोटे भाई ने मझले भाई से कहा ,"देखो भैया बात साफ है मैं इनकी बेटियों की शादी और पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा पाऊंगा, अगर इनको कुछ हो गया तो।"

मझले भाई ने कहा, "यार मुझसे भी नहीं हो पायेगा सुन एक काम करेंगे अगर ऐसा कुछ होता है तो हम भाभी को उनके मायके भेज देंगे। फिर वो जाने और उनके मायके वाले।"

आंखें बंद किये मनोज ने सब कुछ अपने कानों से सुना।

जब अस्पताल के बिल और दवा की बारी आई तब भी दोनों भाइयों ने देने से मना कर दिया। तब सरिता ने अपने गहने बेचकर अस्पताल का बिल चुकाया और मनोज को घर लेकर आयी।

एक सप्ताह बाद एक दिन मनोज ने कहा, "सरिता तुम सब अपना सामान पैक करो हम लोग अब यहाँ से चलेंगे। तब सरिताजी ने कहा, "लेकिन कहाँ "

मनोज ने कहा, "तुम समान पैक करो बस और अपनी दोनों बेटियों को भी समान पैक करने के लिए कह दिया।"

मनोज जब सपरिवार घर से बाहर निकलने लगे तो कमला जी ने कहा, "अरे मनोज बेटा तू कहाँ जा रहा है? अभी तो तू अस्पताल से आया है।"

तब मनोज ने कहा, "मां मैं अपने पत्नी और बेटियों के साथ अपने घर जा रहा हूं।"

तब कमला जी ने कहा ,"अरे ये भी तो तेरा ही घर है। क्यों री क्या उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा दी मेरे बेटे को तुम मां बेटियों ने मिलकर जो मेरा बेटा ऐसी बाते कर रहा है।" सरिता कि तरफ घूरती निगाहों से देखकर कमलाजी ने कहा

तब मनोज ने कहा," मां कब तक सरिता को दोष देंगी? मेरी गलती की सजा मेरे साथ साथ ये लोग भी भुगत रही है। लेकिन अब मैं अपनी पत्नी और बेटियों का अपमान बरदाश्त नहीं करूँगा। ना मैं लाचार बेसहारा हूँ ना मेरी बेटियां किसी पर बोझ। उनका पिता उनके लिए काफी है।"

रही बात इस घर की। तो लगता है जब मैंने अपने खून पसीने की कमाई से इस घर को बनवाया तब घर बनाते समय इस घर की नींव खोखली बन गयी ।तो इस खोखले नींव वाले घर में मुझे नहीं रहना जिसके किसी भी कोने पर मेरा अधिकार नहीं।

लेकिन अब मैं खोखली नींव का घर नहीं बल्कि मजबूत नींव का घर बनाऊंगा। जो हो सकता है इसके मुकाबले छोटा हो लेकिन मेरा अपना होगा। जिस पर मेरा मेरी पत्नी और बेटियों का पूर्णतया अधिकार होगा। आधे से ज्यादा जिंदगी और कमाई तो मैंने बर्बाद कर दी लेकिन अब जो बचा है कम से कम उसे तो बर्बाद होने से बचाना चाहता हूं। चलता हूँ। मां।

कहकर मनोज सरिता वो घर छोड़कर चले गए।


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