कहानी,,क्षमा ऐसा न कहती ...तो !
कहानी,,क्षमा ऐसा न कहती ...तो !
उस दिन सुबह के करीब आठ बजे थे। राज सुबह की वाकिंग कर अपने कमरे में पहुॅंचा। कमरे की टेबल पर एक बंद लिफाफा देखा ,तो अपनी पत्नी रमा से पूछा --"यह लिफाफा किसने दिया? रमा बोली अली गांव से कोई व्यक्ति आया था, वही देकर गया है। कह रहा था 25 दिसंबर को बेटी की शादी है, सपरिवार आवश्यक रूप से शादी में पहुंचना है।" राज ने जल्दी से लिफाफा खोला और पढ़ने लगा। जिसमें एक खत भी रखा था। राज पत्र को जल्दी जल्दी पढ़ने लगा। लिखा था-- "राज,आप मेरी बेटी की शादी में जरूर आना। क्षमा ----।" हां, वह क्षमा थी। जो राज के साथ साथ पढ़ाई करती थी। राज को अपने स्कूल के दिन याद आ गए। उसकी स्मृति में बचपन के एक एक चित्र , एक एक घटना याद आने लगे-------।
राज गरीब घर का लड़का था। पढ़ने लिखने में तेज था। घर में दो बहने थी। जो अध्ययन छोड़ चुकी थी। राज को अपनी बड़ी बहनों की किताब कापी और टूटी मिट्टी की स्लेट पेंसिल मिली। जो मात्र एक टुकड़ा बची थी,उसी में राज अपनी सुंदर लिपी में होमवर्क कर स्कूल ले जाता था।
एक दिन सभी बच्चे पंक्तिबद्द प्रार्थना में खड़े थे। गुरु जी सभी की किताब कापी व स्लेट पेंसिल चेक कर रहे थे। जब गुरु जी राज के पास पहुंचे। राज घबरा रहा था। गुरुजी बोले --"यह कौन से जमाने की स्लेट है ? मात्र एक टुकड़ा। " उस स्लेट को गुरु जी अपने हाथ में लिए और तेजी से छत में फेंक दिया। राज का कलेजा धड़कने लगा। गुरु जी की इस नाराजगी से वह खफा हुआ ,मगर उसे स्लेट फेंकने का गम नहीं था,गम इस बात का था कि उसने मन से सुंदर लिपी में होमवर्क लिखकर लाया था। राज स्लेट के बिना होम वर्क कैसे करेगा ? सभी बच्चे अपनी अपनी क्लास में चले गए। तब क्षमा उसके पास आकर जोर से हॅंसते हुए बोली--"स्लेट अच्छी नहीं न सही, कम से कम कपड़े तो सही पहनकर आता। देखो, तुम्हारा नेकर जर्जर फटा हुआ है। इसे पहनने से अच्छा अंदर वाला कच्छा पहनकर ही आ जाता। वह हंसते हुए तेजी से भागकर क्लास रूम में चली गई।"
राज मन मारकर अपनी आंखों के आंसूओं को पी गया मगर क्षमा की बातें कलेजा के टुकड़े टुकड़े कर दी। क्षमा बड़े घर की बेटी थी। राज कुछ नहीं कहा मन ही मन रोता रहा। राज गरीब था। ठीक से पेट भर नहीं सकता था। वह किससे नेकर खरीदने को कहता। माता-पिता बुजुर्ग थे। मजदूरी करते थे। आय के कोई साधन नहीं थे। बहन की शादी के लिए पिता ने घर की जमीन बेचा ,तब बहनों की शादी हूई थी। राज,हिम्मत नहीं हारा। घर में एक पुरानी टीन की स्लेट ढूंढ निकाला। क्षमा के द्वारा कही बातों को गंभीरता से नहीं लिया, बल्कि वह पढ़ाई में मन लगाया। समय गुजरता गया।राज नई ऊॅचाईयों को छूता गया। लगातार सफलता पाता गया....!
राज ने स्टेशन मास्टर की नौकरी पाया। पत्नी व दो बेटो का पिता। खुशी-खुशी से जीवन चल रहा था।वह अपनी कार निकाला और अली गांव की ओर चल पड़ा। क्षमा के घर के सामने कार रोका।क्षमा ने उसका उसकी पत्नी और बच्चों का आदर सत्कार कर बैठायी।शादी उल्लास से भरी थी।सभी कार्य सम्पन्न हुये। शादी के बाद क्षमा के घर से राज चलने लगा। क्षमा राज की गाड़ी के पास आकर बोली---" राज,वह बचपन में कही गई बातें मुझे आज भी याद है। मैं ना समझ थी। पता नहीं क्या-क्या बोल गई थी। अब करीब तीस साल हो गये होगें। मैं तुमसे मिलना चाहती थी। अपनी बातें वापस लेना चाहती थी। किश्मत ने साथ नहीं दिया। एक दिन तुम्हारे दोस्त से, तुम्हारा पता लेकर शादी में आमंत्रित किया। राज, मुझे पता है घूर के भी दिन फिरते हैं। तुम तो अच्छे पढ़ाकू बालक थे। तुम्हारी समझदारी और मेहनत रंग लाई है। आज कीमती सूट-बूट पहने हो। साधन संपन्न हो गये हो। "
राज ने बीच में ही क्षमा को रोककर बोला --"काश ! तुम ऐसा नहीं कहती----तो ! न जाने मैं क्या होता ?" क्षमा आगे बोली -"राज,मैं तुम्हारा दिल दुखायी थी। मुझे नहीं पता तुम उस दिन की बात के लिए क्षमा करोगे या नहीं।मैं क्षमा चाहती हूं। मैंने तुम्हारे कपड़े और स्लेट का मजाक उड़ायी थी। आज तुम बड़े और ईमानदार अधिकारी हो। सुखी हो,सम्पन्न हो। कहते कहते क्षमा की आंखों से आंसू छलक गए। क्षमा के आंसू पश्चाताप के थे।"
राज बोला--" कोई बात नहीं क्षमा। जो होता है, अच्छे के लिए होता है। वक्त सबका साथ देता है। इंसान को सहनशील और कर्मठ होना चाहिए। मेहनत करने वाले को मंजिल अवश्य मिलती है। ठीक हैं,चलता हूॅं।" राज की कार क्षमा के दरवाजे से तेज गति से धूल उड़ाती निकल गई। क्षमा को लगा राज ने बचपन की वो बातें धूल में उड़ाकर जीवन को सही राह दिया।
बेटी की विदाई से क्षमा उदास थी किन्तु क्षमा को आज दो-दो खुशी एक साथ मिल गई थी।उसका मन हल्का हो गया था। राज को रमा ने झकझोरा तो राज अचानक वापस आया। उसने देखा-," पूर्व में सूरज अपनी रोशनी के साथ नया उजाला फैला रहा था। मन की इच्छायें खुशी से हृदय के आंगन में अठखेलियाॅं कर रही थी....।