chandraprabha kumar

Children Stories Inspirational

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chandraprabha kumar

Children Stories Inspirational

कह बिगाड़ू

कह बिगाड़ू

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कह बिगाड़ू

 एक कहावत है देहात में-“ कह- बिगाड़ू।" कुछ लोग ऐसे होते हैं कि उनका मन बुरा नहीं होता, पर वे जीभ के कड़वे होते हैं और कड़वी, बेतुकी, बेमौके की या बेढंगी बात कहकर बुराई ले लेते हैं। राजा रणजीत सिंह जी और सूफ़ी सन्त की एक कहानी से हमें पता चलता है कि बात इस तरह कहें कि वह दूसरों को बुरी न लगे और सुनकर ख़ुशी महसूस हो। वाक् कुशल होना बहुत बड़ा गुण है ।यह कहानी संक्षेप में इस प्रकार है-

    राजा रणजीतसिंह बहुत प्रतापी शासक पंजाब में हुए हैं। वे जितने सख्त थे उतने ही विनम्र थे। उनकी वीरता की धाक दूर दूर तक थी। एक दिन राजा साहब अपने बुर्ज में बैठे माला फेर रहे थे, उनके पास ही बैठे सूफ़ी सन्त अजीउद्दीन जी भी माला फेर रहे थे। दोनों का माला फेरने का तरीक़ा अलग- अलग था। राजा साहब माला फेर रहे थे भीतर की तरफ और सूफ़ी सन्त साहब बाहर की तरफ़ को। 

    अचानक इस भेद की तरफ़ राजा साहब का ध्यान गया। उन्होंने सन्त साहब से पूछा-“क्यों फ़क़ीर साहब, माला को भीतर की तरफ़ फेरना ठीक है या बाहर की तरफ़ ?”

   प्रश्न सीधा- सादा था, पर जवाब आसान नहीं था। यदि वे कहें कि बाहर की तरफ़ फेरना ठीक है, जैसे कि वे फेर रहे थे, तो राजा साहब के तरीक़े की निन्दा होती है। यदि वे कहें कि भीतर की तरफ़ फेरना ठीक है, जैसे कि राजा साहब फेर रहे थे, तो अपने तरीक़े को ग़लत कहना पड़ता। 

  सन्त साहब चुप भी नहीं रह सकते थे। सन्त साहब ने समझाया-“माला फेरने के दो मक़सद होते हैं। पहला अच्छाइयों को, अच्छे गुणों को अपनी ओर खींचना और दूसरा बुराइयों को, दोषों को बाहर फेंकना। आपको गुणों को ग्रहण करने का ध्यान रहता है, इसलिये आप माला भीतर की ओर फेरते हैं ; मुझे अपने भीतर भरी हुई बुराइयों को बाहर फेंकने का ध्यान रहता है, इसलिये मैं अपनी माला बाहर की ओर फेरता हूँ।”

    सन्त की बात सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और उनके हृदय में सन्त साहब का सम्मान बढ़ गया। इसका कारण था। सन्त साहब ने बात इस तरह कही कि उन्होंने झूठ भी नहीं बोला और दोनों धर्मों का सम्मान भी किया। 

   अपनी वाणी का मधुरता से, कुशलता से इस्तेमाल कीजिये, जिससे शान्ति बनी रहे। कहा भी गया है-

“ ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय ।

 औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होय।।


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